सड़कों पर जीवन यापन करने वाले बच्‍चों के लिये मानक संचालन प्रक्रिया | 22 Feb 2017

समाचारों में क्यों?

  • प्रायः हम देखते हैं कि हमारे नौनिहालों का बचपन 2 फुट के फुटपाथ की काली-सफ़ेद पट्टियों में ही फँसकर खत्म हो जाता है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, गौरतलब है कि महिला एवं बाल वि‍कास मंत्रालय द्वारा सड़कों पर जीवन यापन करने पर विवश बच्‍चों के संरक्षण एवं देखभाल के लिये एक मानक संचालन प्रक्रिया (standard operating procedure-SOP) का शुभारंभ किया गया है।

एसओपी का उद्देश्य

  • उल्लेखनीय है कि मानक संचालन प्रक्रिया का उद्देश्‍य सड़कों पर जीवन यापन करने पर विवश बच्‍चों का पुनर्वास के साथ-साथ हिफाज़त को भी सुनिश्चित करना है।
  • विदित हो कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सड़कों पर जिंदगी गुज़ारने पर मजबूर बच्‍चों के लिये इस अत्‍यावश्‍यक रणनीति को विकसित करने हेतु ‘सेव द चिल्‍ड्रेन’ नामक एक सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन के साथ गठबंधन किया है।

क्यों खास है यह एसओपी?

  • विदित हो कि यह एसओपी विभिन्‍न क्षेत्रों में किये गए विस्‍तृत शोध अध्‍ययनों के निष्‍कर्षों और लगभग 35 एनजीओ के साथ किये गए क्षेत्रीय विचार-विमर्श से उभर कर सामने आए सुझावों पर गौर करने के बाद तैयार की गई है।
  • एसओपी को तैयार करने से पहले दिल्‍ली में उन बच्‍चों से भी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में सलाह-मशविरा किया गया, जो सड़कों पर जीवन यापन करने की विवशता से अपने-आपको उबार चुके हैं। अतः इस उपक्रम की प्रकृति निश्चित ही व्यवहारिक होगी जिससे इसके सफल होने की उम्मीद बढ़ गई है। 

कैसे कार्य करेगी यह एसओपी?

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सड़कों पर जीवन यापन कर रहे बच्‍चों की देखभाल एवं संरक्षण के लिये आवश्‍यक कदमों वाली एक विस्‍तृत रूपरेखा तय करने का निर्णय लिया क्‍योंकि इस तरह के बच्‍चों की समस्याएँ बहुआयामी एवं जटिल होती हैं।
  • एसओपी का लक्ष्‍य मौजूदा वैधानिक एवं नीतिगत रूपरेखा के अंतर्गत विभिन्‍न कदमों को दुरुस्‍त करना है। एसओपी का उद्देश्‍य उन प्रक्रियाओं को चिन्हित करना है जिन पर अमल तब किया जाएगा, जब सड़कों पर जीवन यापन करने वाले किसी बच्‍चे की पहचान एक जरूरतमंद बच्‍चे के रूप में हो जाएगी।
  • ध्यातव्य है कि ये प्रक्रियाएँ नियमों एवं नीतियों की मौजूदा रूपरेखा के अंतर्गत ही होंगी और इनकी बदौलत विभिन्‍न एजेंसियों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों में समुचित तालमेल संभव हो पाएगा। इसके अलावा, ये प्रक्रियाएँ इन बच्‍चों की देखभाल, संरक्षण एवं पुनर्वास हेतु समस्‍त हितधारकों के लिये एक दिशा-निर्देश के रूप में होंगी।