उपराज्यपाल की शक्तियों में विरोधाभास | 03 May 2019

चर्चा में क्यों ?

मद्रास उच्च न्यायालय ने केंद्रशासित प्रदेश (पुद्दुचेरी) में उपराज्यपाल के राज्य के क्रियाकलापों में बढ़ते हस्तक्षेप को नियंत्रित करते हुए कहा कि राज्य में निर्वाचित सरकार के रहते उप-राज्यपाल द्वारा प्रशासन के कार्यो को अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिये।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल के बढ़ते हस्तक्षेप से यह प्रतीत होता है कि राज्य में दो समानांतर सरकारें चल रही हैं। न्यायालय ने इस बात का भी उल्लेख किया कि केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का पालन करना चाहिये अन्यथा भारतीय संविधान की लोकतांत्रिक भावना हतोत्साहित होगी।

उपराज्यपाल की शक्तियों के संबंध में न्यायालय का दृष्टिकोण

  • संवैधानिक तौर पर अनुच्छेद 239A और 239AA के अंतर्गत पुद्दुचेरी और दिल्ली की विधानसभाओं की शक्तियों में अंतर विद्यमान है।

दिल्ली और पुद्दुचेरी के उप-राज्यपालों की शक्तियों में अंतर के प्रमुख बिंदु

साधारणतः दिल्ली और पुडुचेरी दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में निर्वाचित सरकारें हैं लेकिन फिर भी इन प्रदेशों के उपराज्यपालों की शक्तियों में कुछ अंतर पाया जाता हैं।

  • दिल्ली के उपराज्यपाल के पास पुद्दुचेरी के उपराज्यपाल से अधिक शक्तियाँ हैं।
  • दिल्ली के उप-राज्यपाल को कार्यकारी शक्तियों के साथ-साथ कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं जिनका प्रयोग सार्वजनिक क्षेत्र, पुलिस एवं भूमि से जुड़े मामलों में भी देखा जा सकता है। वह अनुच्छेद 239 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा दिए गये किसी आदेश को उस राज्य के मुख्यमंत्री के परामर्श से लागू भी कर सकता है।
  • दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम ,1991 और दिल्ली एनसीटी सरकार कामकाज नियम 1993 के तहत और पुद्दुचेरी के उपराज्यपाल को केवल केंद्रशासित प्रदेशों के सरकार संबंधी अधिनियम 1963 द्वारा निर्देशित किया जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 239 और 239AA के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 में यह स्पष्ट उल्लिखित है कि केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में संघ सरकार की भूमिका होनी भी आवश्यक है। उपराज्यपाल केंद्र सरकार के आँख और कान की भूमिका निभाता है।
  • संविधान में भी दिल्ली सरकार को कानून व्यवस्था, पुलिस, भूमि संबंधित मामलों को छोड़कर सभी अधिकार प्राप्त हैं, जबकि पुद्दुचेरी विधानसभा समवर्ती और राज्य सूची के तहत किसी भी मुद्दे पर कानून बना सकती है। हालाँकि राज्य सरकार तथा संसद के कानूनों के मध्य अंतर्विरोध की स्थिति में संसद के द्वारा निर्मित कानून को ही प्राथमिकता दी जाए।
  • पुद्दुचेरी में 1963 के व्यापार संबंधी नियमों में वर्णित कार्यों को निर्वाचित सरकार (मंत्रिपरिषद) देखती है और वैसी ही शक्तियाँ वहाँ के उप-राज्यपाल को भी प्राप्त हैं।

उपराज्यपाल की शक्तियों के संबंध में उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • इस निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की उपराज्यपाल के पास राज्य सूची के विषयों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं है एवं कोई भी कदम उठाने से पहले निर्वाचित सरकार से परामर्श लेना आवश्यक है।
  • इसके साथ ही कहा कि उपराज्यपाल का यह दायित्व है कि वह राज्य सरकार के मंत्रियों के साथ समन्वय बनाकर कार्य करे और उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्यों को बार-बार बाधित न करें।

अतः उच्चतम न्यायालय का शक्ति पृथक्करण के संदर्भ में यह निर्णय स्वागत योग्य है तथा सबसे बड़ी चुनौती संघवाद और सत्ता-साझाकरण व्यवस्था में आने वाली समस्याओं को दूर करने से संबंधित है जिससे केंद्र सरकार और इसके घटकों पर नियंत्रण स्थापित हो सके।

स्रोत: द हिंदू