भारत और नेपाल की नई यात्रा: रक्सौल-काठमांडू रेल लिंक | 18 May 2018

संदर्भ

हाल ही में प्रधान नरेंद्र मोदी द्वारा नेपाल यात्रा के दौरान उन वादों को लेकर प्रतिबद्धता जताई गई है, जो उन्होंने नेपाली प्रधान मंत्री ओली की हालिया भारत यात्रा के दौरान प्रस्तावित किये थे। ध्यातव्य है कि इस प्रतिबद्धता में कृषि, रेलवे संबंध और अंतर्देशीय जलमार्ग विकास सहित द्विपक्षीय पहलों को प्रभावी ढंग से लागू करने का संकल्प शामिल था। भारत-नेपाल के संयुक्त बयान के रूप में भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति की मज़बूती हेतु दोनों पक्षों ने विशेष रूप से "कनेक्टिविटी की उत्प्रेरक भूमिका" पर जोर दिया है। इस संदर्भ में भारत-नेपाल रेल संबंध का महत्त्व और व्यापक हो जाता है। 

प्रमुख बिंदु 

  • समयबद्ध द्विपक्षीय रेल कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिये दोनों प्रधानमंत्रियों की वचनबद्धता वास्तव में एक परिवर्तनकारी निर्णय है।
  • इस निर्णय के तहत भारत बिहार के रक्सौल और नेपाल में काठमांडू के बीच सामरिक रेलवे लिंक का निर्माण करेगा, ताकि लोगों के बीच संपर्क तथा माल के थोक आवागमन को सुविधाजनक बनाया जा सके।
  • इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि पहले चरण के तहत सीमा पार रेल लाइन (जयनगर-जनकपुर/कुर्था और जोगबानी-बिराटनगर) का कार्य वर्ष 2018 में पूरा हो जाए।
  • दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने नई विद्युतीकृत रेल लाइन का निर्माण करने पर सहमति व्यक्त की है, जिसे भारत द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
  • इसके साथ ही आगामी 3 अन्य रेलवे परियोजनाओं में न्यू जलपाईगुड़ी-ककारभीता, नौतनवा-भैरहावा और नेपालगंज रोड-नेपालगंज शामिल हैं।
  • इस परियोजना के पूरा होने से देश के सीमावर्ती क्षेत्रों का नेपाल की राजधानी से सीधा संपर्क को जाएगा।
  • सीमा पार कनेक्टिविटी दोनों देशों में लोगों से लोगों के संबंधों को बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

भारत हेतु महत्त्वपूर्ण क्यों?

  • भौगोलिक स्थिति के अनुरूप, भारत दक्षिण एशिया में केंद्रीय स्थिति रखता है, जिसमें क्षेत्रफल की दृष्टि से 51 प्रतिशत, आबादी का 71 प्रतिशत और जीडीपी का 40 प्रतिशत हिस्सा शामिल है।
  • भारत के  अधिकांश पड़ोसी देश न केवल भारत के साथ सीमाओं को साझा करते हैं, बल्कि अधिकांश मामलों में ये देश चीन के साथ भी सीमाएँ साझा करते हैं।
  • साथ ही, महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि ये देश क्षेत्रीय व्यापक कनेक्टिविटी के लिये भारत पर निर्भर करते हैं।
  • अतः यह भारत की ज़िम्मेदारी है कि वह क्षेत्रीय एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने हेतु आवश्यक कदम बढाए।
  • भारत के चारों तरफ चीन पाँच सार्क देशों के साथ भूमि सीमाओं को साझा करता है और खुद छठे स्थान पर चिकन नैक पर अवस्थित है तथा म्याँमार के साथ लंबी सीमा साझा करता है।
  • इसके साथ ही चीन ने नेपाल और पाकिस्तान को झिंजियांग और तिब्बत में अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिये महत्त्वपूर्ण माना है।
  • इन्हीं मामलों को देखते हुए चीन श्रीलंका, म्याँमार, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ के तहत सड़क और रेल लिंक का एक जाल बनाने में व्यस्त है।
  • अतः यह स्पष्ट है कि चीन दक्षिण एशियाई क्षेत्र में, न केवल भारत का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है, बल्कि समय-समय पर भारत के पड़ोसी देशों को विकास का प्रलोभन देकर इसकी संप्रभुता के लिये भी एक बड़ा खतरा बना हुआ है।
  • हालाँकि, भारत ने दोनों देशों और नेपाल को जोड़ने वाले अंतर-हिमालयी आर्थिक गलियारे के निर्माण के लिये चीन के प्रस्ताव पर एक कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त की है, क्योंकि सरकार आधारभूत संरचना और कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर नेपाल के साथ द्विपक्षीय रूप से काम करने की इच्छुक है।
  • इसलिये हाल ही में वुहान शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच इस परियोजना का जिक्र भी किया गया।

आगे की राह

  • कुछ समय से चीन ने नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव में अपनी सक्रियता बढ़ाई है, अतः भारत को पड़ोसी देशों के साथ अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • गौरतलब है कि म्याँमार भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाला एकमात्र आसियान देश है। लंबे समय तक, भारत ने म्याँमार के अराकान तट पर सड़क और रेल कनेक्शन तथा एक नए बंदरगाह के निर्माण की बात की थी, लेकिन अपने वादों की पूर्ति के लिये कोई ऊर्जावान कदम अभी तक नहीं उठाया है।
  • देखा भी गया है कि भारत उच्चतम स्तर पर भी किये गये वादों पर समयबद्ध पहुँच सुनिश्चित करने में असफल साबित हुआ है।
  • इस प्रकार के वादों की देरी से भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बिगाड़ रहा है और उधर इस स्थिति का फायदा उठाते हुए चीन भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है।
  • भारत ने रक्सौल-काठमांडू रेल लिंक के निर्माण हेतु एक सराहनीय पहल की है, किंतु अब आवश्यकता  है कि इस अवसर के माध्यम से अपने पड़ोसियों के बीच रिकॉर्ड समय में परियोजना को पूरा करने की तत्परता भी दिखाए। क्योंकि विकास परियोजनाओं के माध्यम चीन भारत के पड़ोसी  देशों में पहुँच स्थापित कर भारत की संप्रभुता को चुनौती देने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ना चाहता।