उदंती वन्य जीव अभ्यारण्य विलुप्त प्रजातियों की शरणस्थली | 25 Jan 2017

गौरतलब है कि भारत में जीवों के संरक्षण प्रोजेक्ट के एक भाग के रूप में छत्तीसगढ़ वन विभाग (Chhattisgarh Forest Department) द्वारा फरवरी माह में चार जंगली भैंसों (Wild Buffaloes) पर रेडियो पट्टे (Radio Collars) सम्बद्ध किये जाएंगे| ध्यातव्य है कि इस प्रकार का यह पहला संरक्षण प्रोजेक्ट (Conservation Project) है| उदंती वन्यजीव अभ्यारण्य (Udanti Wildlife Sanctuary) में कुछ विशेष प्रजातियों की संख्या में तेजी से हो रही गिरावट को मद्देनज़र रखते हुए वन्यजीव संरक्षण परियोजना के तहत यह संरक्षण प्रोजेक्ट आरंभ किया गया है|

प्रमुख बिंदु

  • उदंती वन्यजीव अभ्यारण्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्तमान में जंगली भैंसों के आवागमन से सम्बन्धित किसी भी प्रकार के वैज्ञानिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं | ऐसी स्थिति में जंगली भैंसों को रेडियो पट्टों से सम्बद्ध किये जाने से उनके उदंती वनजीव अभ्यारण्य की सीमा के भीतर तथा बाहर होने वाले आवागमन के सम्बन्ध में आसानी से सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं |
  • इसके अतिरिक्त उदंती अभ्यारण्य के संरक्षण विभाग द्वारा जंगली भैंसों की संख्या में सुधार करने के लिए बंदी वंशवृद्धि (Captive Breeding) पर भी कार्य किया जा रहा है|
  • ध्यातव्य है कि भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (Wildlife Trust of India – WTI) भी इन संरक्षण प्रयासों का ही एक भाग है|
  • भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, जंगली भैंसों को रेडियो पट्टों के साथ संबद्ध करने का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य उन क्षेत्रों की पहचान करना है जहाँ ये भैंसें गमन करते हैं| ताकि शमन (Mitigation) के उपायों से उस क्षेत्र विशेष में होने वाली फसल क्षति को कम किया जा सके |
  • उक्त जानकारी के अंतर्गत यह पाया गया है कि इन भैंसों का प्राथमिक चारागाह स्थल जंगली घास (Weeds) है|  अतः इन स्थानों को आवास वापसी (Habitat Restoration) के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है| 
  • गौरतलब है कि मध्य भारत की जंगली भैंस संरक्षण परियोजना (Central India Wild Buffalo Conservation Project) तथा डब्ल्यूटीआई के समन्वयन एवं वन विभाग के प्रमुख वन्य जीव विज्ञानी डॉ आरपी मिश्रा के द्वारा वर्ष 2006 में एक संयुक्त सर्वेक्षण का संचालन किया गया| इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि उस समय (वर्ष 2006 में) उदंती वन्यजीव अभ्यारण्य में केवल सात जंगली भैंसें थीं, जिनमें से एक मादा भैंस थी| जबकि वर्ष 1998 में इनकी अनुमानित संख्या तक़रीबन 35 थी|
  • तत्पश्चात् वर्ष 2006 के दिसम्बर माह में जंगली भैंस संरक्षण परियोजना की शुरुआत की गई| इस परियोजना के अंतर्गत एक अकेली मादा ‘आशा’ को उदंती वन्यजीव अभ्यारण्य के 36 हेक्टेयर के बंद क्षेत्र में भेजा गया|
  • वर्तमान समय में उदंती में पाँच मुक्त जंगली भैंसें (Free ranging wild buffaloes) हैं, जबकि छह भैंसों को एक बंद क्षेत्र (Enclosed Area) में रखा गया गया है| इन छह भैंसों में आशा तथा उसकी संतति के साथ-साथ एक कटड़ी (Female calf) तथा चार कटड़े (Four calves) भी शामिल हैं |

वास्तविक स्थिति 

  • ध्यातव्य है कि जंगली भैंसों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 के तहत संरक्षित करने के साथ-साथ इन्हें प्रकृति संरक्षण के लिये बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature - IUCN) द्वारा लुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में भी वर्गीकृत किया गया है|
  • चरने वाले (Grazers) ये जीव न केवल पारिस्थितिक तंत्र को व्यवस्थित बनाए रखने में सहायता प्रदान करते हैं बल्कि इनका आर्थिक महत्त्व भी होता है| 

उदंती वन्य जीव अभ्यारण्य

  • उदंती वन्यजीव अभ्यारण्य छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर ज़िले में अवस्थित है| इस अभ्यारण्य की स्थापना “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” के तहत वर्ष 1983 में की गई थी| 
  • यह अभ्यारण्य तकरीबन 232 वर्ग किलोमीटर के  क्षेत्र में फैला है|
  • यह अभ्यारण्य जंगली भैंसों की बहुतायत के लिये प्रसिद्ध है| इस अभ्यारण्य में मानव निर्मित अनेक तालाब भी अवस्थित हैं |