शेरों के लिये वैक्सीन हेतु ICMR की सिफारिश | 08 Oct 2018

चर्चा में क्यों?

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने पुष्टि की है कि गुजरात के गिर अभयारण्य में शेरों की मौतों के लिये कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) ज़िम्मेदार है। साथ ही परिषद ने इस वायरस के प्रकोप से शेरों को बचाने के लिये टीकाकरण की सिफारिश भी की है।

  • यह टीकाकरण वन्यजीव जीवविज्ञानियों द्वारा की गई सिफारिशों के खिलाफ है जिसके अनुसार वन्यजीवों का टीकाकरण नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर सकता है।
  • प्रयोगशाला में किये गए परीक्षणों के मुताबिक, 23 में से 4 शेर कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) से संक्रमित थे, जबकि 10 अन्य शेर बबेसिया प्रोटोजोवा से संक्रमित थे। यह संक्रमण चिचड़ी (Tick) परजीवी द्वारा फैलाया गया था।
  • टीकाकरण के अलावा, ICMR ने शेरों को दो से तीन अलग-अलग अभयारण्यों में रखने की सिफारिश भी की है।
  • CDV तथा संभावित महामारी के बीच यह भयावह संबंध 1994 से ही संज्ञान में है। 1994 में पूर्वी अफ्रीका के सेरेंगेती-मारा पारिस्थितिकी तंत्र (तंजानिया) में शेरों की लगभग एक-तिहाई आबादी की मौत हो गई। तंजानिया जैसे हालात आज गुजरात में पैदा हो चुके हैं।

शेरों के पुनर्वास की समस्या

  • गुजरात सरकार द्वारा 2015 में की गई शेरों की गणना के अनुसार, गुजरात 523 शेरों का आवास था। यह संख्या 2010 की गणना की तुलना में 27% अधिक है।
  • शेरों की बढ़ती आबादी संरक्षित क्षेत्र के बाहर भी फैलने लगी है। अनुमान के मुताबिक लगभग एक-तिहाई आबादी संरक्षित क्षेत्र के बाहर ही रहती है तथा यह जीवाणुओं के लिये सुभेद्य है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि अभयारण्य क्षेत्र के अंदर बड़े जानवरों की कमी तथा घरेलू मवेशियों पर बढ़ती निर्भरता भी CDV के प्रसार की कुछ वज़हें हैं।

कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV)

  • कैनाइन डिस्टेंपर वायरस मुख्य रूप से कुत्तों में श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, श्वसन तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ-साथ आँखों में गंभीर संक्रमण का कारण बनता है।
  • CDV भेड़िये, लोमड़ी, रेकून, लाल पांडा, फेरेट, हाइना, बाघ और शेरों जैसे जंगली माँसाहारियों को भी प्रभावित कर सकता है।
  • भारत के वन्यजीवन में इस वायरस का प्रसार तथा इसकी विविधता का पर्याप्त रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
  • शेर एक बार में पूरे शिकार को नहीं खाते हैं। कुत्ते उस शिकार का उपभोग करते हुए उसे CDV से संक्रमित कर देते हैं। शेर अपने शिकार को खत्म करने के लिये वापस लौटता है और इस घातक बीमारी की चपेट में आ जाता है।

कानूनी संघर्ष

  • इससे पहले सितंबर 2011 में, पशु रोग अनुसंधान और निदान (CADRAD), बेंगलुरु तथा भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI), उत्तराखंड ने गिर अभयारण्य में 2007 में मृत शेर के शव से लिये गए ऊतकों का विश्लेषण किया था। इसमें उन्हें अत्यधिक संक्रामक पेस्ट डेस पेटिट्स रमिनेंट्स वायरस (peste des petits ruminants virus- PPRV) की उपस्थिति मिली, जिसके संक्रमण से होने वाली मृत्यु की दर 80-100% तक होती है।
  • 1990 में वन्यजीव संस्थान (WWI) ने गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में संभावित आपदाओं से प्रजातियों की रक्षा के लिये एशियाई शेरों की दूसरी जगह बसाने का प्रस्ताव दिया था। इसने गुजरात से मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर अभयारण्य में लगभग 40 शेरों को स्थानांतरित करने का पक्ष लिया था। हालाँकि गुजरात ने ऐसा करने से मना कर दिया।

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बीमारी या किसी अन्य आपदा से शेरों की पूरी आबादी के खात्मे की संभावना से बचने के लिये गुजरात को कुछ शेर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में स्थानांतरित करने की ज़रूरत है।