ब्रिक्स एंटी-ड्रग वर्किंग ग्रुप की बैठक | 17 Aug 2020

प्रिलिम्स के लिये

ब्रिक्स, संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय, डार्क नेट

मेन्स के लिये

भारत में मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध कार्यों के लिये डार्क नेट का प्रयोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस की अध्यक्षता में ब्रिक्स एंटी-ड्रग वर्किंग ग्रुप (BRICS Anti-Drug Working Group) की चौथी बैठक का आयोजन किया गया, इस दौरान नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (Narcotics Control Bureau-NCB) के महानिदेशक राकेश अस्थाना ने भारतीय दल का नेतृत्त्व किया।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक के दौरान ब्रिक्स देशों में मादक पदार्थों की स्थिति, मादक पदार्थों की अवैध तस्करी से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रुझान और मादक पदार्थों की तस्करी की स्थिति पर विभिन्न आंतरिक और बाहरी कारकों के प्रभाव आदि विषयों पर चर्चा की गई।
  • मुख्य निष्कर्ष:

    • ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच वास्तविक समय पर जानकारी साझा (Real Time Information Sharing) करने की आवश्यकता।
    • समुद्री मार्गों के माध्यम से बढ़ती नशीली दवाओं की तस्करी पर अंकुश लगाने की आवश्यकता।
  • इस दौरान भारत ने मादक पदार्थों की तस्करी के लिये डार्क नेट और आधुनिक तकनीक के ‘दुरुपयोग’ पर चर्चा की।
  • COVID-19 और मादक पदार्थों की स्थिति

    • मई माह में संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि COVID-19 और उसके कारण लागू किये गए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप भी अवैध दवा की आपूर्ति पर कोई विशिष्ट प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा।
  • भारत और अवैध दवाओं की तस्करी

    • संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (UNODC) की हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत अवैध दवाओं के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ट्रामाडोल (Tramadol) और मेथाफेटामाइन (Methamphetamine) जैसे आधुनिक मादक पदार्थों से लेकर भांग (Cannabis) जैसे पुराने मादक पदार्थ आदि सब कुछ पाया जाता है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत दो प्रमुख अवैध अफीम उत्पाद क्षेत्रों के बीच स्थित है, जिसमें पहला पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) है और दूसरा पूर्व में स्वर्णिम त्रिभुज (दक्षिण-पूर्व एशिया) है।
  • डार्क नेट और मादक पदार्थों की तस्करी

    • इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइटें हैं जो आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउज़िंग के दायरे से बाहर होती हैं। इन्हें डार्क नेट या डीप नेट कहा जाता है।
    • सामान्य वेबसाइटों के विपरीत यह एक ऐसा नेटवर्क होता है जिस तक लोगों के चुनिंदा समूहों की पहुँच होती है और इस नेटवर्क तक विशिष्ट ऑथराइज़ेशन प्रक्रिया, सॉफ्टवेयर और कन्फिग्यूरेशन के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है।
    • सामान्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि डार्क वेब अथवा डार्क नेट इंटरनेट का वह भाग है जिसे आमतौर पर प्रयुक्त किये जाने वाले सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता।
    • इन तक पहुँच के लिये एक विशेष ब्राउज़र टॉर (TOR) का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिये ऑनियन राउटर (Onion Router) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें एकल असुरक्षित सर्वर के विपरीत नोड्स के एक नेटवर्क का उपयोग करते हुए परत-दर-परत डाटा का एन्क्रिप्शन होता है। जिससे इसके प्रयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता बनी रहती है।
      • हालाँकि आम उपयोगकर्त्ताओं के लिये इस ब्राउज़र का उपयोग काफी खतरनाक साबित हो सकता है।
    • इसका इस्तेमाल मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है।
    • मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और हथियारों की बिक्री जैसी अवैध गतिविधियों के लिये डार्क नेट के प्रयोग का मुख्य उद्देश्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों की निगरानी से बचना होता है।

स्रोत: पी.आई.बी