73वें और 74वें संशोधन की 30वीं वर्षगाँठ | 14 Mar 2023

प्रिलिम्स के लिये:

73वाँ और 74वाँ संशोधन, संविधान की 11वीं अनुसूची, शक्तियों का वितरण, दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC)।

मेन्स के लिये:

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की स्थिति, भारत में विकेंद्रीकरण से संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2023 में भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधन की 30वीं वर्षगाँठ है, फिर भी भारत की स्थानीय सरकार/स्वशासन में कई तकनीकी, प्रशासनिक और वित्तीय सुधार किये जाने की आवश्यकता है।

73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन: 

  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम: 
    • पंचायती राज संस्थान का गठन 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा किया गया।
    • इस अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में एक नया भाग-IX जोड़ा गया और इसमें अनुच्छेद 243 से 243-O तक के प्रावधान शामिल हैं।
    • इस अधिनियम द्वारा संविधान में एक नई 11वीं अनुसूची भी शामिल की गई है और इसमें पंचायतों के 29 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।
  • 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम: 
    • पी.वी. नरसिम्हा राव के शासनकाल के दौरान 74वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से शहरी स्थानीय सरकारों का गठन वर्ष 1992 में किया गया था। यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
    • इसमें भाग IX-A जोड़ा गया है और अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त अधिनियम ने संविधान में 12वीं अनुसूची को भी जोड़ा। इसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक मद शामिल हैं।

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की क्या स्थिति है?  

  • सकारात्मक परिप्रेक्ष्य:  
    • स्थानीय समुदायों का सशक्तीकरण: लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ने स्थानीय समुदायों को निर्णयन प्रक्रिया में भाग लेने और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं तथा प्राथमिकताओं के अनुसार विकास परियोजनाओं को लागू करने की अधिक शक्ति दी है।
      • इससे गवर्नेंस और निर्णयन प्रक्रियाओं में नागरिकों की अधिक भागीदारी हुई है। 
    • ज़वाबदेही और पारदर्शिता: विकेंद्रीकरण से शासन में अधिक ज़वाबदेही और पारदर्शिता आई है।  
      • स्थानीय सरकारें  प्रत्यक्ष रूप से नागरिकों के प्रति अधिक ज़वाबदेह होती हैं और निर्णयन की प्रक्रियाएँ अधिक पारदर्शी होती हैं तथा सार्वजनिक जाँच के लिये खुली होती हैं। 
    • विविधता और समावेशिता को बढ़ावा: लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ने निर्णयन प्रक्रियाओं में हाशिये के समुदायों के अधिक प्रतिनिधित्त्व की अनुमति दी है।  
      • इसने अधिक समावेशी नीतियों को जन्म दिया है जो सभी नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना उनकी ज़रूरतों और हितों को संबोधित करती हैं। 
  • भारत में विकेंद्रीकरण से संबंधित चुनौतियाँ:  
    • शक्ति और संसाधनों का असमान वितरण: विकेंद्रीकरण को भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में असमान रूप से लागू किया गया है, जिससे शक्ति और संसाधनों के वितरण में असमानताएँ पैदा हुई हैं।
      • कुछ राज्य और क्षेत्र दूसरों की तुलना में विकेंद्रीकरण को लागू करने में अधिक सफल रहे हैं, जिससे विकास के असमान परिणाम सामने आए हैं। 
    • महापौर को औपचारिक दर्जा: दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने उल्लेख किया कि अधिकांश राज्यों में शहरी स्थानीय सरकार में महापौर को मुख्य रूप से औपचारिक दर्जा प्राप्त है।
      • अधिकांश मामलों में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नगर आयुक्त के पास सभी शक्तियाँ होती हैं और निर्वाचित महापौर अधीनस्थ की भूमिका निभाता है।
    • ढाँचागत खामियाँ: कई ग्राम पंचायतों के पास स्वयं के भवन की कमी है और वे स्कूलों, आँगनबाड़ी और अन्य संस्थाओं के साथ स्थान साझा करते हैं।
      • जबकि कुछ के पास अपना भवन है, उनमें शौचालय, पेयजल और विद्युत जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
      • हालाँकि पंचायतों के पास इंटरनेट कनेक्शन हैं, किंतु वे सदैव कार्य नहीं करते हैं। पंचायत के अधिकारियों को डाटा एंट्री के लिये प्रखंड विकास कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिससे कार्य में देरी होती है.

आगे की राह 

  • स्थानीय सरकारी संस्थानों को मज़बूत बनाना: भारत में स्थानीय शासन के लिये संस्थागत ढाँचे को अधिक स्वायत्तता, संसाधन और शक्तियाँ प्रदान करके मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • यह स्थानीय सरकारों के कामकाज़ को बाधित करने वाले कानूनों, विनियमों और प्रक्रियाओं को संशोधित करके किया जा सकता है
  • क्षमता निर्माण: स्थानीय सरकार के अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने के लिये प्रशिक्षित एवं आवश्यक कौशल तथा ज्ञान से लैस करने की आवश्यकता है।
    • यह प्रशिक्षण कार्यक्रमों, विचारों का आदान-प्रदान और सलाह के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है।
  • सामुदायिक भागीदारी: लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सफलता निर्णय लेने और स्थानीय विकास योजनाओं के कार्यान्वयन में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है।
    • जागरूकता अभियानों, सार्वजनिक बैठकों और परामर्शों के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है:(2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्योजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b) 


प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015) 

  1. विकास में जन-भागीदारी
  2. राजनीतिक जवाबदेही
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4. वित्तीय संग्रहण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत में स्थानीय सरकार के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों की खोज कर सकती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2018)

प्रश्न. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन-परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस