1857 का विद्रोह | 09 Dec 2021

प्रिलिम्स के लिये:

1857 का विद्रोह, विनायक दामोदर सावरकर, व्यपगत का सिद्धांत

मेन्स के लिये:

1857 का विद्रोह: कारण एवं केंद्र

चर्चा में क्यों?

1857 के विद्रोह में शहीदों के सम्मान में अंबाला में हरियाणा सरकार द्वारा एक स्मारक-संग्रहालय बनाया जा रहा है।

  • अंबाला में युद्ध स्मारक बनाने का उद्देश्य उन गुमनाम नायकों की वीरता को अमर करना है, जिन्हें स्वतंत्रता के प्रथम विद्रोह (अंग्रेजों के खिलाफ) की पटकथा लिखने का श्रेय कभी नहीं मिला।
  • यह अंबाला में विद्रोह की घटनाओं पर विशेष ज़ोर देने के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के योगदान को भी उजागर करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • 1857 के विद्रोह के बारे में:
    • यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संगठित प्रतिरोध की पहली अभिव्यक्ति थी। 
    • यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, लेकिन जनता की भागीदारी भी इसने हासिल कर ली।
    • विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है: सिपाही विद्रोह (ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा), भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह (भारतीय इतिहासकारों द्वारा), 1857 का विद्रोह, भारतीय विद्रोह और स्वतंत्रता का पहला युद्ध (विनायक दामोदर सावरकर द्वारा)

हरियाणा में विद्रोह

  • विद्रोह का केंद्र: इतिहासकार केसी यादव के अनुसार, 1857 का विद्रोह वास्तव में अंबाला में शुरू हुआ था, न कि मेरठ में जैसा कि लोकप्रिय माना जाता है।
    • उन्होंने 'हरियाणा में 1857 का विद्रोह' नामक अपनी पुस्तक में अपने निष्कर्षों का दस्तावेज़ीकरण किया था।
  • महत्त्वपूर्ण नेता:  राव तुला राम (अहिरवाल), गफ्फूर अली और हरसुख राय (पलवल), धनु सिंह (फरीदाबाद), नाहर सिंह (बल्लभगढ़) आदि हरियाणा में विद्रोह के महत्त्वपूर्ण नेता थे।
  •  प्रमुख युद्ध: कई युद्ध राज्यों के शासकों द्वारा लड़ी गईं और किसानों द्वारा भी कभी-कभी ब्रिटिश सेना को पराजित किया गया।
    • कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध सिरसा, सोनीपत, रोहतक और हिसार में लड़ें गए। 
    • सिरसा में चौरमार (Chormar) का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था।
  • विद्रोह के कारण:
    • राजनीतिक कारण:
      • अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति:  1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनैतिक कारण अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति और व्यपगत का सिद्धांत था।
        • बड़ी संख्या में भारतीय शासकों और प्रमुखों को हटा दिया गया, जिससे अन्य सत्तारुढ़ परिवारों के मन में भय पैदा हो गया।
      • व्यपगत के सिद्धांत को लागू करके डलहौज़ी ने सतारा (1848 ईस्वी), जैतपुर, और संबलपुर (1849 ईस्वी), बघाट (1850 ईस्वी), उदयपुर (1852 ईस्वी), झाँसी (1853 ईस्वी) तथा नागपुर (1854 ईस्वी) राज्यों को अपने कब्जे में ले लिया।
    • सामाजिक और धार्मिक कारण:
      • भारत में तेज़ी से फैल रही पश्चिमी सभ्यता के कारण आबादी का एक बड़ा वर्ग चिंतित था।
      • सती प्रथा तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं को समाप्त करने और विधवा-पुनर्विवाह को वैध बनाने वाले कानून को स्थापित सामाजिक संरचना के लिये खतरा माना गया।
      • शिक्षा ग्रहण करने के पश्चिमी तरीके हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों की रूढ़िवादिता को सीधे चुनौती दे रहे थे।
    • आर्थिक कारण:
      • ग्रामीण क्षेत्रों में किसान और ज़मींदार भूमि पर भारी-भरकम लगान और कर/राजस्व वसूली के सख्त तौर-तरीकों के कारण किसानों की पीढ़ियों पुरानी ज़मीने हाथ से निकलती जा रही थी।
        • बड़ी संख्या में सिपाही खुद किसान वर्ग से थे और वे अपने परिवार, गाँव को छोड़कर आए थे, इसलिये किसानों की शिकायतों ने उन्हें भी प्रभावित किया।
      • इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का प्रवेश भारत में हुआ जिसने विशेष रूप से भारत के कपड़ा उद्योग को बर्बाद कर दिया।
        • भारतीय हस्तकला उद्योगों को ब्रिटेन के सस्ते मशीन निर्मित वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ी। 
    • सैन्य कारण:
      • भारत में ब्रिटिश सैनिकों के बीच भारतीय सिपाहियों की संख्या 87 प्रतिशत थी, लेकिन उन्हें ब्रिटिश सैनिकों से दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता था।
      • एक भारतीय सिपाही को उसी रैंक के एक यूरोपीय सिपाही से कम वेतन का भुगतान किया जाता था।
      • उनसे अपने घरों से दूर क्षेत्रों में काम करने की अपेक्षा की जाती थी।
      • वर्ष 1856 में लॉर्ड कैनिंग ने एक नया कानून (सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम, 1856) जारी किया, जिसमें कहा गया कि कोई भी व्यक्ति जो कंपनी की सेना में नौकरी करेगा तो ज़रूरत पड़ने पर उसे समुद्र पार भी जाना पड़ सकता है।
    • तात्कालिक कारण
      • 1857 का विद्रोह अंततः चर्बी वाले कारतूसों की घटना को लेकर शुरू हुआ।
        • एक अफवाह यह फैल गई कि नई ‘एनफील्ड’ राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है।
        • सिपाहियों को इन राइफलों को लोड करने से पहले कारतूस को मुँह से खोलना पड़ता था।
        • ऐसे में हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों ने उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।

विद्रोह के केंद्र, नेतृत्व और दमन

विद्रोह के स्थान

भारतीय नेता

ब्रिटिश अधिकारी जिन्होंने विद्रोह को दबा दिया

दिल्ली

बहादुर शाह द्वितीय

जॉन निकोलसन

लखनऊ

बेगम हजरत महल

हेनरी लारेंस

कानपुर

नाना साहेब

सर कोलिन कैंपबेल

झाँसी और ग्वालियर

लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे

जनरल ह्यूग रोज

बरेली

खान बहादुर खान

सर कोलिन कैंपबेल

इलाहाबाद और बनारस

मौलवी लियाकत अली

कर्नल ऑनसेल

बिहार

कुँवर सिंह

विलियम टेलर

विद्रोह की असफलता के कारण

  • सीमित प्रभाव: विद्रोह मुख्य रूप से दोआब क्षेत्र तक ही सीमित था।
    • बड़ी रियासतें हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और कश्मीर तथा राजपूताना इस विद्रोह में शामिल नहीं हुए।
    • दक्षिणी प्रांतों ने भी इसमें भाग नहीं लिया।
  • प्रभावी नेतृत्व का अभाव: विद्रोहियों के बीच एक प्रभावी नेता का अभाव था। हालाँकि नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई आदि बहादुर नेता थे, लेकिन वे समग्र रूप से आंदोलन को प्रभावी नेतृत्व प्रदान नहीं कर सके।
  • सीमित संसाधन: सत्ताधारी होने के कारण रेल, डाक, तार एवं परिवहन तथा संचार के अन्य सभी साधन अंग्रेज़ों के अधीन थे। इसलिये विद्रोहियों के पास हथियारों और धन की कमी थी।
  • मध्य वर्ग की भागीदारी नहीं: अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त मध्यम वर्ग, बंगाल के अमीर व्यापारियों और ज़मींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ों की मदद की।

विद्रोह का परिणाम

  • कंपनी शासन का अंत: वर्ष 1857 का विद्रोह आधुनिक भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी।
    • इलाहाबाद के एक दरबार में ‘लॉर्ड कैनिंग’ ने घोषणा की कि भारतीय प्रशासन अब महारानी विक्टोरिया यानी ‘ब्रिटिश संसद’ के अधीन था।
  • धार्मिक सहिष्णुता: अंग्रेज़ों ने यह वादा किया कि वे भारत के लोगों के धर्म एवं सामाजिक रीति-रिवाज़ों और परंपराओं का सम्मान करेंगे।
  • प्रशासनिक परिवर्तन: भारत के गवर्नर जनरल के पद को वायसराय के पद से स्थानांतरित किया गया।
    • भारतीय शासकों के अधिकारों को मान्यता दी गई थी।
    • व्यपगत के सिद्धांत को समाप्त कर दिया गया था।
    • अपनी रियासतों को दत्तक पुत्रों को सौंपने की छूट दे दी गई थी।
  • सैन्य पुनर्गठन: सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया गया लेकिन शस्त्रागार ब्रिटिश शासन के हाथों में रहा। बंगाल की सेना के प्रभुत्व को समाप्त करने के लिये यह योजना बनाई गई थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस