राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण और ऑड-ईवन स्कीम की प्रासंगिकता | 11 Nov 2017

संदर्भ

  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्मॉग के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रदूषण नियंत्रण के उद्देश्य से दिल्ली सरकार द्वारा ऑड-ईवन स्कीम लागू कर दी गई है। विदित हो कि एनजीटी द्वारा इस स्कीम की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाया जा रहा था।
  • अब जब सवाल इस स्कीम के प्रासंगिकता का है तो हमें इससे संबंधित कई पहलुओं का अध्ययन करना होगा। मसलन इस स्कीम को लागू करने वाले अन्य देशों में इससे क्या बदलाव आया है और भारत में इसका क्या प्रभाव देखने को मिला आदि बातों पर चर्चा आवश्यक है।

क्या है ऑड-ईवन स्कीम?

  • यह दिल्ली सरकार द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से चलाई जाने वाली एक योजना है, जिसके तहत यातायात में एक बड़ा बदलाव किया जाता है।
  • इस योजना के अंतर्गत ऑड अर्थात् विषम दिनांक के दिन विषम संख्या वाली कारें ही तथा सम दिनांक के दिन सम संख्या वाली कार ही सड़क यातायात में शामिल होती हैं।
  • साथ ही यह भी व्यवस्था की जाती है कि पार्किंग में भी ऑड/विषम तारीख पर ऑड नम्बर प्लेट वाली कारें तथा सम दिनांक के दिन सम संख्या वाली कारें ही पार्क की जाती हैं। नियमों का उल्लंघन करने वालों को जुर्माना देना होता है।

वैश्विक अनुभव

  • गौरतलब है कि चीन का बीजिंग और भारत का दिल्ली विश्व के दो सर्वाधिक प्रदूषित शहर हैं। दिल्ली की तुलना बीजिंग से इस सन्दर्भ में की जा सकती है कि आबादी और गाड़ियों की संख्या की दृष्टि से दोनों में काफी समानताएँ हैं।
  • बीजिंग में ऑड-ईवन फार्मूला पहली बार 2008 के ओलम्पिक खेलों के दौरान लागू किया गया। फलस्वरूप प्रदूषण काफी कम हुआ, लेकिन हाल के वर्षों में यहाँ प्रदूषण एक बार फिर बढ़ा है।
  • प्रदूषण पर लगाम कसने के लिये बीजिंग ऑड-ईवन के बजाय कई नए रास्ते ढूँढ रहा है और सार्वजानिक परिवहन व्यवस्था को और भी मज़बूत बनाने की कोशिशें  की जा रही हैं।

क्या प्रभावी होगा ऑड-ईवन स्कीम?

  • दिल्ली सरकार इससे पहले शुरू की गई ऑड-ईवन स्कीम भी सफल नहीं हुई थी। आँकड़ों से पता चलाता है कि इससे हवा की गुणवत्ता में नाम मात्र का ही फर्क आया था।
  • दरअसल, ऑड-ईवन स्कीम की क्षमताएँ सीमित हैं। वाहनों के परिचालन कम करने से क्योंकि पीएम 2.5 पार्टिकल की मात्रा में बहुत अधिक कमी नहीं लाई जा सकी है।
  • भले ही प्रदूषण को कम करने में ऑड-ईवन स्कीम अधिक फायदेमंद नहीं रही, लेकिन ऑड-ईवन के दौरान गाड़ियों की औसत रफ्तार बढ़ जाती है और सड़कों पर इनकी संख्या भी कम हो जाती है। जिसकी वज़ह से ईंधन की खपत में कमी आती है। अतः अप्रत्यक्ष रूप में इसका फायदा तो मिलता ही है।

समस्याएँ क्या हैं?

  • सवाल केवल दिल्ली का नहीं है, दरअसल आज पूरे देश में हवा का स्तर खराब है, नदियाँ सूख रही हैं, झीलों का दम घुट रहा है और पहाड़ पिघल रहे हैं।
  • लेकिन, देश के अधिकांश ताकतवर लोग यहीं रहते हैं तो दिल्ली का प्रदूषण सबकी जुबान पर चढ़ा रहता है। अगर दिल्ली की बात करें तो:

♦ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित ईपीसीए की रिपोर्ट बताती है कि यहाँ स्मॉग का 38 फीसदी हिस्सा धूल से उपजा है।
♦ ऐसे में हवाई छिड़काव या फायर ब्रिगेड के ज़रिये वृक्षों को स्नान कराने जैसे उपाय करने के बजाय वैक्यूम स्वीपिंग मशीन का अधिक से अधिक उपयोग करना होगा।
♦ पिछले सात वर्षों में डीटीसी ने एक भी नई बस नहीं खरीदी है, जबकि एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली को 11,000 नई बसों की ज़रूरत है।

  • यह चिंताजनक है कि अस्वच्छ ईंधन पर करों में रियायत दी जा रही है, जबकि स्वच्छ ईंधन के मामले में यह रियायत नहीं दी जा रही।

♦ वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था के अधीन ‘फर्नेस ऑयल’ जैसे ज़हरीले ईंधन को इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को ईंधन पर रीफंड दिया जा रहा है।
♦ जबकि प्राकृतिक गैस को जीएसटी से बाहर रखा गया है। यानी उद्योगपति चाहकर भी स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं कर सकते।

  • हम दुनिया का सबसे प्रदूषक ईंधन यानी ‘पेट कोक’, अमेरिका से आयात करते हैं।

♦ अमेरिका प्रदूषण के चलते खुद इस पर प्रतिबंध लगा चुका है।
♦ चीन ने भी इसका आयात बंद कर दिया है।
♦ लेकिन हमारे यहाँ ‘ओपेन जनरल लाइसेंस’ के अधीन इसे अनुमति दी जा रही है।

महत्त्वपूर्ण है “श्रेणीबद्ध प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई योजना”

  • देश की राजधानी दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में परेशानी का सबब बने वायु प्रदूषण से निपटने में “श्रेणीबद्ध प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई योजना” (Graded Response Action Plan) अहम् साबित हो सकती है।
  • श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया से तात्पर्य एक ऐसी स्तरीय कार्य योजना (Stratified actions) से है जिसे उस समय अनुपालन में लाया जाता है जब वायु में प्रदूषक कणों का संकेंद्रण एक निश्चित स्तर तक बढ़ जाता है।
  • उदाहरण के तौर पर, जब वायु में प्रदूषक कणों (पीएम 2.5) की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के स्तर पर पहुँच जाती है तो जल छिड़काव तथा यंत्रीकृत साधनों से सड़कों एवं अन्य खुले स्थानों की सफाई जैसे कार्य आरंभ हो जाते हैं।
  • इसके आलावा, यातायात कर्मियों द्वारा यह प्रयास किया जाता है कि यातायात को निर्बाध गति से संचालित रखा जाए। साथ ही, पहले से स्थापित सभी प्रदूषण नियंत्रण उपायों जैसे, लैंडफिल फायर (landfill fires) और पीयूसी (Pollution Under Control - PUC) मानदंडों के तहत पटाखों को जलाने पर प्रतिबंध लगाना इत्यादि नियमों का सख्ती से अनुपालन किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को चाहिये कि वह उच्च सल्फर ईंधन से उत्पन्न प्रदूषकों को देखते हुए उत्सर्जन मानक तय करे। प्रदूषण कम करने हेतु दीर्घावधि सुधार के लिये सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • साथ ही पैदल या साइकिल से चलने वालों के लिये नया मार्ग भी बनाना होगा। कचरा निपटान की कोई ठोस व्यवस्था करनी होगी। दिल्ली जैसे शहरों में जहाँ कचरा निस्तारण के ठिकाने बनाए गए हैं वहाँ भी जब तब आग लगती ही रहती है।
  • यदि कचरा फेंकने की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है, तो लोगों को सबसे आसान यही लगता है कि उसे एक जगह एकत्रित कर जला दिया जाए। हमें कचरे के पूर्ण निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। इसमें कचरे को अलग-अलग करना भी शामिल है।
  • दिल्ली के आसपास पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल जलाने से होने वाले प्रदूषण का ऐसा हल निकालना होगा जो किसानों को उनके फसल अवशेष के वैकल्पिक उपयोग का तरीका सिखा सके।

निष्कर्ष

  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रत्येक सर्दियों में पीएम 2.5 पार्टिकल की मात्रा बढ़ जाती है। वर्तमान में प्रदूषण खतरे के स्तर से काफी ऊपर पहुँच चुका है, ऐसे में ऑड-ईवन स्कीम से कुछ तो राहत अवश्य मिलेगी।
  • पिछली बार जब यह स्कीम लागू हुई थी तो सरकार के पास ‘ट्रैफिक फ्री’ सड़कों और ‘व्यस्त सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था’ के आलोक में समस्याओं का विश्लेषण और उनके समाधान का सुनहरा अवसर था, लेकिन सरकार ऐसा करने में विफल रही।
  • हालाँकि इस बार सरकार के पास मौका है कि वह पुरानी गलती से सबक लेते हुए इस बार ऑड-ईवन स्कीम को लागू करने के उपरांत परिवहन व्यवस्था में दिख रही खामियों को दुरूस्त करे।
  • जहाँ तक “श्रेणीबद्ध प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई योजना” के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण का सवाल है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि इस योजना का उचित रूप में कार्यान्वयन किया जाए, तो वायु प्रदूषण पर आसानी से नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है।
  • लेकिन, इस योजना के सटीक अनुपालन के लिये प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में कार्य कर रही सभी एजेंसियों द्वारा आपसी सहमति एवं समन्वय स्थापित करना होगा।