सेंदाई फ्रेमवर्क के प्रति भारत की प्रतिबद्धता | 31 Aug 2018

संदर्भ 

पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से दुनिया और खासकर एशिया प्रशांत क्षेत्र में कई परिवर्तन हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर परिवर्तन सकारात्मक हैं। इस क्षेत्र के अधिकतर देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था में बदलाव किया है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास के इंजन बने हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र किसी एक क्षेत्र की बजाय कई क्षेत्रों का अगुआ बनकर उभरा है इसके परिणामस्वरूप करोड़ों लोग गरीबी के अपने दायरे से बाहर हुए हैं। लेकिन, यह प्रगति यूँ ही नहीं मिली है। दरअसल, विकास के साथ चुनौतियाँ भी जस की तस बनी हुई हैं। पिछले 20 वर्षों में एशिया प्रशांत क्षेत्र में आपदा के चलते 5 लाख 80 हज़ार लोगों की मौत हुई है। आपदा के कारण सबसे ज्यादा मरने वालों के लिहाज से शीर्ष दस देशों में एशिया प्रशांत क्षेत्र के सात देश शामिल हैं। गौरतलब है कि भारत भी इन आपदाओं से अछूता नहीं है।

इस लेख के माध्यम से हम आपदा के लिये ज़िम्मेदार कारकों और भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन की दिशा में किये गए प्रयासों विशेषकर सेंदाई फ्रेमवर्क पर आधारित राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना और दस सूत्री एजेंडे के संबंध में चर्चा करेंगे।

भारत में आपदा का प्रभाव

  • एशिया प्रशांत क्षेत्र का बड़ी तेज़ी के साथ शहरीकरण हो रहा है। दशक भर से इस क्षेत्र में लोग गाँवों की तुलना में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
  • आपदा संभावित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा आबादी के केंद्रीकरण, एक छोटे से क्षेत्र में संपत्ति एवं आर्थिक गतिविधियों के कारण हो रहे इस शहरीकरण के चलते आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रबंधन के सामने बड़ी चुनौतियों के बढ़ने की संभावना है।
  • भू जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहाँ बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्‍खलन की घटनाएँ आम हैं।
  • भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्‍न तीव्रता के भूकंपों का खतरा बना रहता है।
  • 40 मिलियन हेक्‍टेयर से अधिक क्षेत्र में बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। यहाँ  की खेती योग्‍य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है।
  • इसके अलावा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है।
  • हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिमी घाट के इलाकों में अक्‍सर भूस्‍खलन का खतरा बना रहता है।
  • हाल ही में भारत के केरल राज्य की गंभीर बाढ़ ने पुनः आपदाओं के प्रबंधन के प्रति प्रतिबद्धता हेतु विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है।
  • हालाँकि, भारत ने सेंदाई फ्रेमवर्क से संबंधित अपनी प्रतिबद्धता के लिये वर्ष 2016 में ही राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को जारी कर दिया है।

राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan)

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 जून, 2016 को राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना  को जारी किया था।
  • देश में तैयार की गई इस तरह की यह पहली योजना है।
  • इसका उद्देश्‍य भारत को आपदा प्रतिरोधक बनाना और जनजीवन तथा संपत्ति के नुकसान को कम करना है।
  • यह योजना ‘सेंदाई फ्रेमवर्क’ के प्रमुख चार बिंदुओं पर आधारित है।

सेंदाई फ्रेमवर्क क्या है?

  • सेंदाई फ्रेमवर्क एक प्रगतिशील ढाँचा है और इस महत्त्वपूर्ण फ्रेमवर्क का उद्देश्‍य 2030 तक आपदाओं के कारण महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को होने वाले नुकसान और प्रभावित लोगों की संख्‍या को कम करना है।
  • यह 15 वर्षों के लिये स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी समझौता है, जिसके अंतर्गत आपदा जोखिम को कम करने के लिये राज्य की भूमिका को प्राथमिक माना जाता है, लेकिन यह ज़िम्मेदारी अन्य हितधारकों समेत स्थानीय सरकार और निजी क्षेत्र के साथ साझा की जानी चाहिये।

सात वैश्विक लक्ष्य 

  • वर्ष 2030 तक 2005-2015 की अवधि के मुकाबले 2020-2030 के दशक में औसत वैश्विक मृत्यु दर को प्रति 100,000 तक कम करना।
  • वर्ष 2030 तक 2005-2015 की अवधि की तुलना में 2020-2030 के दशक में वैश्विक रूप से आपदा प्रभवित लोगों की औसत संख्या को प्रति 100,000 तक कम करने का लक्ष्य है। 
  • वर्ष 2030 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में प्रत्यक्ष आपदा से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करना।
  • वर्ष 2030 तक आपदा से होने वाली क्षति तथा साथ ही स्वास्थ्य और शैक्षिक सुविधाओं तथा महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और बुनियादी सेवाओं में व्यवधान को कम करना।
  • वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय और स्थानीय आपदा जोखिम में कमी की रणनीति अपनाने वाले देशों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि करना।
  • वर्ष 2030 तक इस फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन के लिये अपने राष्ट्रीय कार्यों की पूर्ति हेतु पर्याप्त और सतत समर्थन के माध्यम से विकासशील देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
  • वर्ष 2030 तक मल्टी-हज़ार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम, आपदा जोखिम की जानकारी तथा आकलन की उपलब्धता में पर्याप्त वृद्धि करके लोगों की पहुँच इन तक सुनिश्चित करना।

चार प्रमुख कार्य

  1. आपदा जोखिम का अध्‍ययन।
  2. आपदा जोखिम प्रबंधन में सुधार करना।
  3. ढाँचागत और गैर-ढाँचागत उपायों के ज़रिये आपदा जोखिम को कम करने के लिये निवेश करना।
  4. आपदा का सामना करने के लिये तैयारी, पूर्व सूचना एवं आपदा के बाद बेहतर पुनर्निर्माण कार्य करना।
  • उल्लेखनीय है कि सेंदाई फ्रेमवर्क को ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA) 2005-2015 के बाद लाया गया है।
  • ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन आपदाओं में कमी लाने के लिये राष्ट्रों और समुदायों के बीच लचीलेपन का व्यवहार किये जाने के साथ क्षेत्रों में सभी अलग-अलग लोगों को आवश्यक कार्यों को समझाने, वर्णन करने और विस्तार करने संबंधी पहली योजना है।
  • UNISDR, सेंदाई फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन, अनुवर्ती (फॉलो अप) और समीक्षा का कार्य करता है।

संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण रणनीति
(United Nations International Strategy for Disaster Reduction-UNISDR)

  • UNISDR संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का हिस्सा है और इसके कार्य सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवतावादी क्षेत्रों में विस्तारित हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1999 में आपदा न्यूनीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय रणनीति अपनाई और इसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये इसके सचिवालय के रूप में UNISDR की स्थापना की।
  • संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में आपदा जोखिम की कमी के लिये के क्षेत्रीय संगठनों और सामाजिक-आर्थिक तथा मानवीय गतिविधियों में बीच समन्वय और सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2001 में इसका जनादेश संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करने हेतु विस्तारित किया गया था।
  • UNISDR को 18 मार्च, 2015 को सेंदाई, जापान में आयोजित आपदा जोखिम में कमी पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।

योजना के विशेष तत्त्व

  • इस योजना के दायरे में आपदा प्रबंधन के सभी चरण शामिल हैं—रोकथाम, जोखिम कम करना, प्रत्‍युत्‍तर तथा बहाली।
  • इस योजना के तहत सरकार के समस्‍त विभागों और एजेंसियों के बीच हर प्रकार के एकीकरण का प्रावधान किया गया है।
  • इसमें सरकारी विभागों, एजेंसियों के बीच सभी स्तरों पर समन्वय की व्यवस्था शामिल है।
  • योजना में पंचायत और शहरी स्‍थानीय निकायों सहित प्रत्‍येक सरकारी स्‍तर पर भूमिका और दायित्‍व के विषय में उल्‍लेख किया गया है।
  • यह योजना क्षेत्रीय आधार को ध्‍यान में रखकर बनाई गई है, जो न केवल आपदा प्रबंधन के लिये बल्कि विकास योजना के लिये भी लाभकारी है।
  • इसका डिज़ाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि इसे आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में समान रूप से लागू किया जा सकता है।
  • पूर्व सूचना, सूचना का प्रसारण, चिकित्‍सा सेवा, र्इंधन, यातायात, खोज, बचाव आदि जैसी प्रमुख गतिविधियों को भी इसमें शामिल किया गया है ताकि आपदा प्रबंधन में संलग्‍न एजेंसियों को सुविधा भिन्न हो सके।
  • इस योजना के तहत बहाली के लिये एक सामान्य रूपरेखा भी बनाई गई है।
  • परिस्थितियों का आकलन करने और बेहतर पुनर्निर्माण के उपायों का भी इसमें उल्‍लेख किया गया है।
  • समुदायों को आपदा का मुकाबला करने में सक्षम बनाने के लिये इस योजना में सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों पर अधिक ज़ोर दिया गया है।

सरकार द्वारा आपदा जोखिम को कम करने की दिशा में प्रयासों के नवीकरण हेतु एक दस सूत्री एजेंडे की रूपरेखा तैयार की गई है, जो इस प्रकार है:

  • पहला- विकास के सभी क्षेत्रों में हमें आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन के सिद्धांतों को आत्मसात करना होगा। इसे विकास कार्यों के सभी क्षेत्रों मसलन, हवाई अड्डों, सड़कों, नहरों, अस्पतालों, स्कूलों और पुलों के निर्माण के दौरान उचित मानकों को सुनिश्चित करना होगा।
  • इसे सामुदायिक लचीलेपन से हासिल किया जा सकता है। इस प्रकार अगले दो दशकों में तैयार होने वाले दुनिया के सबसे बड़े बुनियादी ढाँचे हमारे क्षेत्र में होंगे।
  • हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि इनके निर्माण में आपदा सुरक्षा के उच्च मानकों का पालन किया जाए। यही स्मार्ट रणनीति होगी, जो दीर्घकालिक भी होगी।
  • हमें अपने सार्वजनिक व्यय के खाते के बारे में विचार करना होगा। भारत में ‘सभी के लिये  घर’ और ‘स्मार्ट सिटी’ योजना पहलों के चलते इस तरह के अवसर आएंगे।
  • इस क्षेत्र में भारत अपने अन्य भागीदार देशों और हितधारकों के साथ मिलकर आपदा से उबरने की क्षमता के बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिये एक गठबंधन या केंद्र का निर्माण करेगा।
  • इससे आपदा जोखिम मूल्यांकन, आपदा से उबरने की क्षमता वाली प्रौद्योगिकियों और तंत्र के विकास में बुनियादी ढाँचे  के एकीकृत वित्तपोषण में जोखिम कम करने के लिये ज्ञान का सृजन होगा।
  • दूसरा- हमें सभी को जोखिम से उबारने की दिशा में काम करने की ज़रूरत है। गरीब घरों से लेकर छोटे एवं मध्यम उद्योगों तक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लेकर राज्यों तक काम करने की ज़रूरत है।
  • अभी इस क्षेत्र में अधिकतर देशों ने केवल मध्यम से लेकर उच्च मध्यम वर्गों के लिये ही बीमा का सीमित प्रबंध किया है। हमें बड़ा और नवोन्मेषी तरीके से सोचने की ज़रूरत है।
  • सरकारों की भूमिका न सिर्फ इसके नियमन की है बल्कि आपदा पीड़ितों को उबारने वाले कार्यक्रमों के लिये प्रोत्साहित करने वाली भी होनी चाहिये जिसकी ज्‍यादा लोगों को ज़रूरत है।
  • भारत में सरकार ने गरीबों की खातिर वित्तीय समावेशन और जोखिम बीमा को सुनिश्चित करने को लेकर बड़े कदम उठाए हैं।
  • जन धन योजना ने करोड़ों लोगों को बैकिंग कार्य प्रणाली से जोड़ा है। सुरक्षा बीमा योजना ने उन करोड़ों लोगों को जोखिम बीमा मुहैया कराया है जिन्हें इसकी सख्‍त ज़रूरत है।
  • सरकार ने  फसल बीमा योजना भी शुरू की है जिससे करोड़ों किसानों को आपदा से राहत मिल सके। ये घरेलू स्तर पर किये जाने वाले बुनियादी उपाय हैं।
  • तीसरा- आपदा जोखिम प्रबंधन में अधिक-से-अधिक भागीदारी और महिलाओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित किया गया है। अधिकतर महिलाएँ ही आपदाओं से प्रभावित होती हैं।
  • आपदा से प्रभावित महिलाओं के लिये विशेष सहयोग की ज़रूरत होती है। इसलिये इस संकट से निपटने के लिये बड़े पैमाने पर महिलाओं को स्वयंसेवक के तौर पर प्रशिक्षित किये जाने की ज़रूरत है।
  • पुननिर्माण के लिये हमें महिला इंजीनियर, राजमिस्त्री, निर्माण कारीगरों और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को तैयार करने की ज़रूरत है ताकि प्रभावित महिलाओं को विशेष तरीके से मदद मुहैया कराई जा सके।
  • चौथा- विश्व स्तर पर जोखिम मानचित्रण में निवेश करने की ज़रूरत है। आपदाओं से संबंधित मानचित्रण तैयार करने की आवश्यकता है।
  • मसलन, भूकंप के लिये हमें व्यापक तौर से मानकों एवं मानदंडों को स्वीकार करने की ज़रूरत है। इस आधार पर, भारत में सिस्मिक जोन का मापचित्र तैयार किया गया है।
  • इसमें पाँच उच्च खतरे वाले और दो कम खतरे वाले सिस्मिक जोन हैं। इस तरह रासायनिक खतरों, जंगल की आग, चक्रवात, विभिन्न प्रकार की बाढ़ और अन्य खतरों से संबंधित आपदा जोखिम के लिये हमें विश्व स्तरीय जोखिम श्रेणियाँ विकसित करने की ज़रूरत है।
  • इससे हमें प्रकृति और दुनिया के विभिन्न भागों में आपदा जोखिम की गंभीरता को लेकर एक आम समझ बनाने में मदद मिलेगी।
  • पाँचवाँ- हमें आपदा जोखिम प्रबंधन के प्रयासों की दक्षता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना होगा।
  • एक ई-प्लेटफार्म के ज़रिये संगठनों, व्यक्तियों को एक मंच पर लाना होगा जिससे कि दक्षता, प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उचित आदान-प्रदान द्वारा आपदा जोखिम प्रबंधन की क्षमता को बढ़ाया जा सकेगा तथा इसमें  हमारे प्रयासों का प्रभाव ज्यादा होगा।
  • छठवाँ- आपदा के मुद्दे पर विश्वविद्यालयों का एक नेटवर्क तैयार करना होगा। आखिरकार, विश्वविद्यालयों का भी सामाजिक दायित्व होता है।
  • सेंदाई फ्रेमवर्क के पाँच वर्षों के बाद हमें वैश्विक स्तर पर विश्वद्यालों का एक नेटवर्क तैयार करना चाहिये, जिससे वे साथ मिलकर आपदा जोखिम प्रबंधन के लिये कार्य करें।
  • इस नेटवर्क के अलावा, विभिन्न विश्वविद्यालय आपदा मुद्दों पर इन दोनों क्षेत्रों में विशेषज्ञतापूर्ण अनुसंधान के कार्य को अंजाम दे सकेंगे, जो ज्यादा प्रासंगिक साबित होगा। तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित विश्वविद्यालय तटीय खतरों से जोखिम के प्रबंधन में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं और इसी तरह पहाड़ी शहरों में स्थित लोगों द्वारा पहाड़ के खतरों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • सातवाँ- सोशल मीडिया और मोबाइल तकनीकी से मिले अवसरों का भी इस दिशा में इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
  • सोशल मीडिया आपदा प्रतिक्रिया को बदल रहा है। यह तेजी से एजेंसियों की मदद कर रहा है और इससे आसानी से नागरिक, संबंधित प्राधिकारियों से संपर्क स्थापित कर लेते हैं।
  • आपदा में और आपदा के बाद प्रभावित लोग एक दूसरे की मदद करने के लिये  सामाजिक मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। हमें सोशल मीडिया की संभावनाओं का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है और ऐसे एप्लीकेशन तैयार करने की ज़रूरत है जो आपदा जोखिम प्रबंधन में मददगार साबित हो सकें।
  • आठवाँ- स्थानीय क्षमता और पहल का निर्माण करें। आपदा जोखिम प्रबंधन के कार्य, विशेष रूप से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में, जो कि राज्य के औपचारिक संस्थानों को सबसे अच्छा, सक्षम बनाने के लिये परिस्थितियों के निर्माण में सहायक हो सकते हैं।
  • विशिष्ट कार्य योजना तैयार किया जा रहा है और उसे स्थानीय स्तर पर लागू किया जा रहा है। पिछले दो दशकों में समुदाय आधारित प्रयासों को अल्पावधि के लिये आपदा तैयारियों की आकस्मिक योजना तक ही सीमित कर दिया गया है।
  • हमें समुदाय आधारित प्रयासों  औऱ सतत जीवन के दायरों का विस्तार करने की ज़रूरत है। हमें आपदा जोखिम में कमी के लिये स्थानीयकरण को सुनिश्चित करने हेतु सर्वोत्तम पारंपरिक प्रथाओं और स्वदेशी ज्ञान को सदृढ़ बनाना होगा।
  • आपदा से उबारने वाली एजेंसियों को अपने स्थानीय समुदाय से संवाद स्थापित करना होगा और उन्हें आपदा से निपटने के लिये आवश्यक रूप से सक्षम बनाना होगा। उदाहरण के तौर देखें तो, अगर एक अग्नि शमन दल हर हफ्ते अपने इलाके के एक स्कूल का दौरा करता है तो साल भर स्कूल के बच्चे इसे लेकर संवनेदनशील बनेंगे।
  • नौवाँ- यह सुनिश्चित करें कि आपदा प्रबंधन को लेकर अर्जित ज्ञान बेकार नहीं जाएगा। हर आपदा के बाद तैयार किये गए कागज़ात एवं रिपोर्टों से मिले ज्ञान का इस्तेमाल मुश्किल से ही हो पाता है।
  • इस तरह की गलतियाँ अक्सर दोहराई जाती हैं। हमें सीखने के लिये प्रणाली को अधिक-से-अधिक उपयोगी बनाने की ज़रूरत है। 
  • संयुक्त राष्ट्र ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता की शुरुआत की है ताकि आपदा के समय के हालातों, राहत एवं बचाव कार्यों को रिकॉर्ड किया जा सके।
  • आपदा से उबरने के बाद भौतिक ढाँचा तैयार करना न सिर्फ एक ‘निर्माण कार्य’ है बल्कि यह आपदाओं से निपटने हेतु संस्थागत प्रणाली में सुधार का भी मौका होता है। इन सब प्रणालियों को खड़ा करने की ज़रूरत है ताकि तेज़ी से आपदा का मूल्यांकन किया जा सके।
  • आपदा के बाद घरों के पुनर्निर्माण के लिये तकनीकी सहायता संबंधी सुविधा प्राप्त करने के लिये भारत अपने भागीदार देशों और बहुपक्षीय विकास एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा।
  • दसवाँ- आपदाओं से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक-से-अधिक सामंजस्य को व्यवहार में लाना होगा। एक आपदा के बाद इसकी ज़िम्मेदारी सारी दुनिया को लेनी होगी। अगर हम एक आम छतरी के नीचे काम करना स्वीकार करें तो यह हमारी सामूहिक ताकत और एकजुटता को आगे बढ़ा सकता है ।