राज्य विभाजन और आरक्षण की व्यवस्था | 21 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अनुच्छेद-341, अनुच्छेद-342

मेन्स के लिये

आरक्षण व्यवस्था पर राज्य विभाजन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि एक अविभाजित राज्य में आरक्षित श्रेणी से संबंधित व्यक्ति उत्तराधिकारी राज्यों में से किसी एक में आरक्षण के लाभ का दावा करने का हकदार है।

  • झारखंड के एक निवासी (अनुसूचित जाति) द्वारा वर्ष 2007 की ‘राज्य सिविल सेवा परीक्षा’ में नियुक्ति से इनकार करने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के बाद यह निर्णय लिया गया है।
  • बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के तहत संसद द्वारा पारित एक नया राज्य, झारखंड बिहार के एक हिस्से के रूप में बनाया गया था।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-3 संसद को नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के परिवर्तन से संबंधित कानून बनाने का अधिकार देता है।

प्रमुख बिंदु

आरक्षण

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मुताबिक, आरक्षित वर्ग से संबंधित व्यक्ति बिहार या झारखंड के उत्तराधिकारी राज्यों में से किसी एक में आरक्षण के लाभ का दावा करने का हकदार है।
  • हालाँकि वह दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण के लाभ का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद-341(1) और 342(1) के विरुद्ध है।
    • अनुच्छेद-341: राष्ट्रपति किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में और जहाँ राज्य है वहाँ राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के हिस्सों को विनिर्दिष्ट कर सकता है  जिन्हें संविधान के प्रयोजन के लिये यथास्थिति उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जातियाँ समझा जाएगा।
    • अनुच्छेद- 342: राष्ट्रपति किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में और जहाँ राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के हिस्सों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा।

अन्य राज्य प्रवासी:

  • आरक्षित वर्ग के सदस्य जो उत्तरवर्ती बिहार राज्य के निवासी हैं, झारखंड में खुले चयन में भाग लेने के दौरान उन्हें प्रवासी माना जाएगा और वे आरक्षण के लाभ का दावा किये बिना इसके विपरीत सामान्य श्रेणी में भाग ले सकते हैं।

भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान

  • भाग XVI केंद्र और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण से संबंधित है।
  • संविधान का अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) राज्य और केंद्र सरकार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाता है।
  • संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 द्वारा संविधान में संशोधन किया गया और सरकार को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिये अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) जोड़ा गया।
  • बाद में आरक्षण देकर पदोन्नत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने के लिये संविधान (85वाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा खंड (4A) को संशोधित किया गया था।
  • संविधान 81वाँ संशोधन अधिनियम, 2000 में अनुच्छेद 16 (4 B) सम्मिलित किया गया है इस संशोधन के तहत राज्यों को अधिकृत किया गया कि वह किसी वर्ष खाली पड़ी हुई आरक्षित सीटों को अलग से रिक्त सीटें माने तथा उन्हें अगले किसी वर्ष में भरे जाने की व्यवस्था करें। इस तरह की अलग से रिक्त पड़ी सीटों को उस वर्ष भरी जाने वाली सीटों,   जो कि 50% आरक्षण की सीमा को पूरा करती हैं के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये। 
  • अनुच्छेद 330 और 332 क्रमशः संसद व राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं।
  • अनुच्छेद 243D प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों को आरक्षित  करता है।
  • अनुच्छेद 233T प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावों को प्रशासन की प्रभावकारिता के रखरखाव के साथ लगातार ध्यान में रखा जाएगा।
  • 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 ने केंद्र और राज्यों दोनों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में समाज के EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) वर्ग को 10% आरक्षण प्रदान करने का अधिकार दिया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस