सशस्त्र बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व | 27 May 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सेना विमानन कोर, लघु सेवा आयोग 

मेन्स के लिये:

सेना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व, पृष्ठभूमि और महत्त्व, महिलाओं से संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कैप्टन अभिलाषा बराक ने कॉम्बैट एविएटर (पायलट) के रूप में सेना विमानन कोर (Army Aviation Corps- AAC) में शामिल होने वाली पहली महिला अधिकारी बनकर इतिहास रच दिया। 

  • वर्तमान में उड्डयन विभाग में महिलाओं को केवल ट्रैफिक कंट्रोल और ग्राउंड ड्यूटी की ज़िम्मेदारी दी जातीै थी, लेकिन अब अभिलाषा बराक पायलट की ज़िम्मेदारी संभालेंगी। 
  • भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना में महिला अधिकारी जहाँ लंबे समय से हेलीकॉप्टर उड़ा रही हैं, वहीं भारतीय सेना ने 2021 में 'आर्मी एविएशन कोर्स' शुरू करके महिला पायलटों के लिये मार्ग प्रशस्त किया। 

सेना विमानन कोर: 

  • ‘सेना विमानन कोर’ भारतीय सेना का एक घटक है जिसका गठन 1 नवंबर, 1986 को किया गया था 
    • सेना विमानन कोर का नेतृत्व नई दिल्ली में स्थित सेना मुख्यालय के महानिदेशक द्वारा किया जाता है। 
  • ‘सेना विमानन कोर’ को इसके गठन के साथ ही 'ऑपरेशन पवन' में शामिल किया गया जो इस नवगठित कोर के लिये एक महत्त्वपूर्ण परीक्षा थी। 
  • भारतीय सेना की सेना विमानन वाहिनी मुख्य रूप से उच्च ऊंँचाई वाले क्षेत्रों में अभियानों या स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान घायल सैनिकों की निकासी करती है 
  • विमानन वाहिनी के हेलिकॉप्टरों का उपयोग अवलोकन, टोही, हताहत निकासी, लड़ाकू अनुसंधान एवं बचाव और आवश्यक लोड ड्रॉप के लिये भी किया जाता है। 

सेना में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति: 

  • पृष्ठभूमि: 
    • थल सेना, वायु सेना और नौसेना ने 1992 में महिलाओं को शॉर्ट-सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों के रूप में शामिल करना शुरू किया। 
      • यह पहली बार था जब महिलाओं को चिकित्सा के बाहर सेना में शामिल होने की अनुमति दी गई थी। 
    • सेना में महिलाओं के लिये महत्त्वपूर्ण समय 2015 में आया जब भारतीय वायु सेना (IAF) ने उन्हें लड़ाकू इकाई में शामिल करने का फैसला किया। 
    • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने 2020 में केंद्र सरकार को सेना की गैर-लड़ाकू सहायता इकाइयों में महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के समान स्थायी कमीशन (PC) देने का निर्देश दिया। 
      • सर्वोच्च न्यायालय ने महिला अधिकारियों की शारीरिक सीमाओं के सरकार के रुख को "लैगिक रूढ़िवादिता" और "महिलाओं के खिलाफ लैगिक भेदभाव" पर आधारित होने के रूप में खारिज कर दिया था। 
      • महिला अधिकारियों को उन सभी दस शाखाओं में भारतीय सेना में PC प्रदान किया गया है जहांँ महिलाओं को SSC के लिये शामिल किया गया है। 
      • महिलाएँ अब पुरुष अधिकारियों के समान सभी कमांड नियुक्तियों में पद ग्रहण करने के लिये पात्र हैं, जो उनके लिये उच्च पदों पर आगे पदोन्नति का रास्ता खोलेगा। 
    • वर्ष 2021 की शुरुआत में भारतीय नौसेना ने लगभग 25 वर्षों के अंतराल के बाद चार महिला अधिकारियों को युद्धपोतों पर तैनात किया। 
      • भारत के विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) और बेड़े के टैंकर आईएनएस शक्ति (INS Shakti) एकमात्र ऐसे युद्धपोत हैं जिन्हें 1990 के दशक के बाद से अपनी पहली महिला चालक दल सौंपी गई है। 
    • मई 2021 में सेना ने कोर ऑफ मिलिट्री पुलिस में महिलाओं के पहले बैच को शामिल किया, यह पहली बार था जब महिलाएँ गैर-अधिकारी कैडर में सेना में शामिल हुईं। 
      • हालाँकि महिलाओं को अभी भी इन्फैंट्री और आर्म्ड कॉर्प्स जैसे लड़ाकू हथियारों के प्रयोग वाले बेड़ों पर नियुक्ति करने की अनुमति नहीं है। 
  • संख्या में वृद्धि: 
    • पिछले छह वर्षों में यह संख्या लगभग तीन गुना बढ़ गई है और महिलाओं के लिये स्थिर गति से अधिक रास्ते खोले जा रहे हैं। 
    • वर्तमान में 9,118 महिलाएँ थल सेना, नौसेना और वायु सेना में सेवारत हैं। 
    • वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना में महिलाओं की संख्या केवल 3.8% है जबकि वायु सेना में इनकी संख्या 13% और नौसेना में 6% है। 
  • महत्त्व: 
    • लैंगिकता बाधक नहीं: यदि आवेदक किसी पद के लिये योग्य है तो लैंगिकता उसकी योग्यता में बाधा नहीं बन सकती। आधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी युद्धक्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता और निर्णय लेने के कौशल साधारण शक्ति की तुलना में अधिक मूल्यवान होते जा रहे हैं। 
    • सैन्य तैयारी: मिश्रित लैंगिक बल की अनुमति देने से सेना मज़बूत रहती है। वर्तमान में रिटेंशन और भर्ती दरों में गिरावट से सशस्त्र बल गंभीर रूप से परेशान हैं। महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में अनुमति देकर इस परेशानी को कम किया जा सकता है। 
    • प्रभावशीलता: महिलाओं पर पूर्ण प्रतिबंध, सेना में कमांडरों की नौकरी के लिये सबसे सक्षम व्यक्ति को चुनने की क्षमता को सीमित करता है। 
    • परंपरा: युद्ध इकाइयों में महिलाओं के एकीकरण की सुविधा के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समय के साथ संस्कृतियाँ बदलती हैं और इससे मातृ उपसंस्कृति भी विकसित हो सकती है। 
    • वैश्विक परिदृश्य: जब वर्ष 2013 में महिलाओं को आधिकारिक तौर पर अमेरिकी सेना में लड़ाकू पदों के लिये योग्य माना गया तो इसे व्यापक रूप से लिंग समानता की दिशा में एक और कदम के रूप में देखा गया। वर्ष 2018 में यूके की सेना ने महिलाओं के लिये करीबी युद्धक भूमिकाओं में सेवा करने पर प्रतिबंध हटा दिया, जिससे उनके लिये विशिष्ट बलों में सेवा करने की राह आसान हुई। 

आगे की राह 

  • महिलाओं को इस कारण से कमांड पोस्ट से बाहर रखा जा रहा था कि बड़े पैमाने पर रैंक और कमांडिंग ऑफिसर के रूप में महिलाओं के साथ समस्या होगी। इस प्रकार न केवल सेना की रैंक और फाइल बल्कि बड़े पैमाने पर समाज की संस्कृति, मानदंडों और मूल्यों में परिवर्तन होगा। इन परिवर्तनों को लाने की ज़िम्मेदारी वरिष्ठ सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व की है। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़रायल, उत्तर कोरिया, फ्राँस, जर्मनी, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की सेना उन वैश्विक सेनाओं में से हैं जो युद्ध की स्थिति में महिलाओं को अग्रिम पंक्ति में  नियुक्त करती हैं। 
  • हर महिला को अपनी पसंद के व्यवसाय को चुनने और शीर्ष पर पहुँचने का अधिकार है क्योंकि समानता का अधिकार एक संवैधानिक गारंटी है। 

स्रोत: द हिंदू