पूर्वोत्तर में कोयला खनन | 08 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले में मूलमिलिआंग (Moolamylliang) गाँव ने रैट-होल खनन से प्रभावित होने के बावजूद पर्यावरणीय नुकसान को कम करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि
    • जयंतिया कोल माइनर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन का दावा है कि पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले के 360 गाँवों में लगभग 60,000 कोयला खदानें हैं।
    • ध्यातव्य है कि मूलमिलिआंग भी वर्ष 2014 तक ऐसे गाँवों में से एक हुआ करता था, किंतु वर्ष 2014 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने जयंतिया हिल्स ज़िले में रैट-होल खनन पर रोक लगा दी थी और उस समय तक खनन किये गए कोयले के परिवहन के लिये भी एक समयसीमा निर्धारित कर दी थी।
    • यद्यपि राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा लगाए प्रतिबंध इस क्षेत्र में अवैध खनन को रोकने में असमर्थ रहे, किंतु इसकी वजह से मूलमिलिआंग गाँव ने सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की।
  • पूर्वोत्तर में कोयला खनन
    • पूर्वोत्तर भारत में कोयला खनन, प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास के बड़े ट्रेंड का हिस्सा है।
      • उदाहरण के लिये मेघालय के गारो और खासी हिल्स में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जा रही है, इसके अलावा जयंतिया हिल्स ज़िले में चूना पत्थर खनन भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
      • ध्यातव्य है कि असम पहले ही अपने वन कवरेज क्षेत्र का व्यापक हिस्सा खो चुका है, इसके बावजूद असम के दीमा हसाओ ज़िले में अवैध शिकार, असम के ऊपरी हिस्सों में कोयला खनन और नदी तल में रेत.बालू का खनन अनवरत जारी है।
    • जयंतिया हिल्स और मेघालय के अन्य स्थानों पर कोयला खनन के मुख्यतः तीन लक्षण दिखाई देते हैं:
      • एक आदिवासी राज्य होने के नाते इस क्षेत्र में संविधान की छठी अनुसूची लागू होती है और संपूर्ण भूमि निजी स्वामित्व के अधीन है, इसलिये कोयला खनन पूर्णतः आम लोगों द्वारा ही किया जाता है। छठी अनुसूची में स्पष्ट तौर पर खनन का उल्लेख नहीं किया गया है।
      • मेघालय का अधिकांश कोयला भंडार (मुख्यतः जयंतिया हिल्स ज़िले में) पहाड़ी इलाकों में ज़मीन से केवल कुछ फीट नीचे मौजूद है, जिसके कारण इस क्षेत्र में ओपन कास्ट खनन के बजाय रैट-होल खनन को अधिक पसंद किया जाता है।
      • रैट-होल खनन में संलग्न अधिकांश श्रमिक (जिसमें बच्चे भी शामिल हैं) असम के गरीब इलाकों और नेपाल तथा बांग्लादेश के गरीब इलाकों से आते हैं। चूँकि मेघालय में गरीब आदिवासी और गैर-आदिवासी लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है, इसलिये उनकी सुरक्षा के प्रति अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है।

रैट-होल खनन

  • इस प्रकार की खनन प्रक्रिया में बहुत छोटी सुरंगों की खुदाई की जाती है, जो आमतौर पर केवल 4-5 फीट ऊँची होती हैं जिसमें प्रवेश कर श्रमिक (अक्सर बच्चे भी) कोयला निष्कर्षण का कार्य करते हैं, इसलिये रैट-होल खनन को सबसे मुश्किल और खतरनाक खनन तकनीक के रूप में जाना जाता है।

ओपन कास्ट खनन

  • यह पृथ्वी से चट्टान या खनिज निकालने की एक सतही खनन तकनीक है, जो कि तुलनात्मक रूप से कम जोखिमपूर्ण होती है।

चिंताएँ

  • पारिस्थितिकी संबंधी मुद्दे: पहाड़ी क्षेत्रों में निरंतर अरक्षणीय खनन के कारण कृषि योग्य क्षेत्र और आस-पास की नदियाँ दूषित होती हैं, जिससे उस क्षेत्र की जैव विविधता और स्थानीय विरासत को नुकसान पहुँचता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: खनन गतिविधियों के कारण उस क्षेत्र के श्रमिक विभिन्न गंभीर रोगों जैसे- फाइब्रोसिस, न्यूमोकोनिओसिस और सिलिकोसिस आदि के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
  • बाल श्रम और तस्करी: रैट-होल खनन में अधिकांशतः बच्चों को शामिल किया जाता है, क्योंकि वे छोटी सुरंगों में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। यही कारण है कि रैट-होल खनन ने बाल श्रम और तस्करी की गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
  • भ्रष्टाचार: प्रायः पुलिस अधिकारी खदान मालिकों के साथ साँठगाँठ कर लेते हैं, जिससे श्रमिकों के शोषण और अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।

उपाय

  • उपरोक्त चुनौतियों से निपटने के लिये जयंतिया हिल्स ज़िला प्रशासन ने आसपास की कोक फैक्ट्रियों और सीमेंट प्लांटों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (CSR) के तहत पर्यावरणीय नुकसान को कम करने से संबंधित कार्यक्रमों में योगदान देने के लिये प्रेरित किया।
  • इस क्षेत्र में शुरू की गई परियोजनाओं में कम लागत वाली वर्षा जल संचयन परियोजना भी शामिल है, जिसका उद्देश्य कोयला खनन के कारण सूख चुके इस संपूर्ण क्षेत्र को पुनः जल प्रदान करना है।
  • पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले के कुछ हिस्सों में खनन के प्रभाव से बची हुईं गुफाओं, घाटियों और झरनों को देखने के लिये आने वाले पर्यटकों हेतु मूलमिलिआंग गाँव को एक ‘बेस कैंप’ के रूप में विकसित किया गया है, जिससे इस क्षेत्र के कारण स्थानीय राजस्व में बढ़ोतरी होगी।
  • चूँकि संविधान की छठी अनुसूची में स्पष्ट तौर पर खनन का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिये यहाँ के पर्यावरण कार्यकर्त्ता स्थानीय कोयला व्यापार को केंद्रीय खनन और पर्यावरण कानूनों के तहत विनियमित करने की मांग कर रहे हैं।

खनन से संबंधित सरकार के प्रयास

  • वर्ष 2018 में कोयला मंत्रालय ने कोयले की गुणवत्ता की निगरानी के लिये उत्तम (UTTAM- अनलॉकिंग ट्रांसपेरेसी बाई थर्ड पार्टी असेसमेंट ऑफ माइंड कोल) एप लॉन्च किया था।
  • सरकार ने राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) को 2019 में मंज़ूरी दी थी, जिसमें स्थायी खनन, अन्वेषण को बढ़ावा देने, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने और कौशल विकास जैसे विषयों पर ज़ोर दिया गया है।
  • वर्ष 2019 में सरकार ने कोयले की बिक्री और कोयले के खनन से संबंधित गतिविधियों में स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत FDI की अनुमति थी।
  • जनवरी 2020 में संसद ने खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया था।
    • यह विधेयक खान और खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनियम 1957 तथा कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 में संशोधन का प्रावधान करता है।
      • खान और खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनियम 1957 भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है और खनन कार्यों के लिये खनन लीज़ प्राप्त करने और जारी करने संबंधी नियमों का निर्धारण करता है।
      • कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 का उद्देश्य कोयला खनन कार्यों में निरंतरता सुनिश्चित करने और कोयला संसाधनों के इष्टतम उपयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रतिस्पर्द्धी बोली (Bidding) के आधार पर कोयला खानों का आवंटित करने के लिये सरकार को सशक्त बनाना है।
    • यह विधेयक बिना किसी अंतिम-उपयोग संबंधी प्रतिबंध के स्थानीय और वैश्विक फर्मों को वाणिज्यिक कोयला खनन की अनुमति देता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस