रेपो रेट में कटौती | 27 May 2020

प्रीलिम्स के लिये

रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट

मेन्स के लिये

मौद्रिक नीति से संबंधित मुद्दे और उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने रेपो रेट (Repo Rate) में 0.4 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • RBI की घोषणा के साथ ही रेपो रेट अब 4.40 प्रतिशत से घटकर 4.0 प्रतिशत पर पहुँच गया है और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) 3.35 प्रतिशत पर आ गया है।
  • RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, बीते 2 महीने में लॉकडाउन के कारण घरेलू आर्थिक गतिविधियाँ काफी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।’ ज्ञात हो कि शीर्ष 6 औद्योगीकृत राज्यों के अनुसार, औद्योगिक उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा रेड अथवा ऑरेंज ज़ोन में है।
  • उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष फरवरी माह से RBI ने नीतिगत रेपो दर में समग्र तौर पर 250 बेसिस पॉइंट्स की कमी की है, जिसके कारण रेपो रेट 6.5 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक पहुँच गया है।
  • इसके अतिरिक्त RBI ने ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं को आवधिक ऋण (Term Loan) की किस्तों के निलंबन को आगामी तीन महीनों (1 जून, 2020 से 31 अगस्त, 2020 तक) तक बढ़ाने की अनुमति दी है।
    • इससे उधारकर्त्ताओं, विशेष रूप से ऐसी कंपनियों, जिन्होंने उत्पादन को रोक दिया है और जो नकदी प्रवाह की समस्याओं का सामना कर रही हैं, को अपनी इकाइयों को फिर से शुरू करने में मदद मिलेगी।

प्रभाव

  • केंद्रीय बैंक की घोषणा के साथ ही ऋण EMI विशेष रूप से होम लोन (Home Loan) के सस्ता होने की उम्मीद है।
  • विभिन्न आर्थिक संकेतक मार्च 2020 में शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग कम होने का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। 
    • ऐसे में RBI के इस निर्णय को मौजूदा आर्थिक स्थिति में मांग को बढ़ाने के लिये एक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
  • आमतौर पर, जब भी केंद्रीय बैंक अपनी प्रमुख ब्याज दरों में कटौती करता है, तो देश के विभिन्न सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक भी इसका पालन करते हुए अपने ग्राहकों के लिये अपनी उधार की दरों को कम करते हैं। 
  • इस संबंध में घोषणा करते हुए RBI ने कहा कि COVID-19 महामारी का सर्वाधिक प्रभाव घरेलू खपत पर देखने को मिला है। महामारी जनित लॉकडाउन के कारण मार्च माह में औद्योगिक उत्पादन 17 प्रतिशत कम हो गया, जबकि विनिर्माण गतिविधि 21 प्रतिशत तक गिर गईं।
  • RBI के इस नवीनतम कदम से विस्तारित लॉकडाउन के कारण व्यवसायों के समक्ष मौजूद आर्थिक चुनौतियों के कुछ कम होने की उम्मीद है।

आलोचना

  • कई जानकारों का मानना है कि RBI द्वारा घोषित इस कटौती से केवल मौजूदा उधारकर्त्ताओं को ही लाभ प्राप्त होगा, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों की स्थिति अच्छी न होने के कारण इस निर्णय का लाभ प्राप्त करने के लिये कोई विशेष प्रस्ताव बैंकों के समक्ष नहीं होगा।
  • छोटी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) और छोटे निगम आवश्यक तरलता प्रदान करने के बावजूद तनावग्रस्त रह सकते हैं।
  • वित्त विशेषज्ञों को उम्मीद है कि RBI के निर्णय से गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets) में काफी वृद्धि होगी, क्योंकि लगभग छह महीने तक ऋण न चुकाने से देश की ऋण संस्कृति (Credit Culture) पर भी असर पड़ेगा।

रेपो रेट

  • जैसा कि हम जानते हैं कि बैंकों को अपने काम-काज के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है।
  • बैंक इसके लिये RBI से अल्पकालिक ऋण मांगते हैं और इस ऋण पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

रिवर्स रेपो रेट 

  • यह रेपो रेट के ठीक विपरीत होता है अर्थात् जब बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं जिस पर रिज़र्व बैंक उन्हें ब्याज देता है। रिज़र्व बैंक जिस दर पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

स्रोत: द हिंदू