दक्षिण-दक्षिण सहयोग को विस्तार देंगे भारत-क्यूबा | 25 Jun 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ग्रीस, सूरीनाम और क्‍यूबा यात्रा के अंतिम चरण में क्‍यूबा में थे। यह यात्रा इसलिये महत्त्वपूर्ण थी कि 1959 के बाद पहली बार कोई भारतीय नेता क्यूबा गया था। राष्ट्रपति के इस दौरे में क्यूबा की राजधानी हवाना में जैव प्रौद्योगिकी और दवा की पारंपरिक प्रणाली और औषधीय पौधों पर समझौते हुए। चूँकि दोनों देश दक्षिण-दक्षिण एकजुटता के भी पक्षधर हैं, इसलिये भारत ने क्यूबा से विकासशील देशों को मज़बूत बनाने के लिये दक्षिण-दक्षिण सहयोग को और विस्तार देने को कहा।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • वैश्विक क्रम में बेहतर स्थान हासिल करने के लिये भी दोनों देशों ने परस्पर सहयोग और बढ़ाने की ज़रूरत महसूस की। भारत ने 'इंडिया एंड ग्लोबल साउथ' की चर्चा करते हुए कहा कि विकास के लिये साझेदारी दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के केंद्र में रही है। 
  • इसके अलावा दोनों देश इस बात पर एकमत थे कि विकासशील देशों के बीच परस्पर सम्मान और एकजुटता दक्षिण-दक्षिण सहयोग का केंद्र है। भारत लैटिन अमेरिका को अपने दक्षिण-दक्षिण सहयोग की आधारशिला के रूप में देखता है।
  • गौरतलब है कि भारतीय राष्ट्रपति का यह दौरा क्यूबा से कास्त्रो युग के शासन की समाप्ति के बाद हुआ। वर्तमान में नवनिर्वाचित मिगेल डियाज़ कनेल क्यूबा के राष्ट्रपति हैं। 

पृष्ठभूमि

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन के ज़माने से भारत और क्यूबा के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। जब अन्य पुराने गठबंधन और सहयोग कमजोर पड़ गए और बदलते वक्त की ज़रूरतें पूरी करने में अक्षम हो गए, तब दक्षिण-दक्षिण सहयोग का जन्म हुआ।
  • विकासशील देशों के मध्य आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये आपसी सहयोग के आधार की खोज को नाम दिया गया दक्षिण-दक्षिण सहयोग। दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विकासशील देशों के लिये ‘दक्षिण’ और विकसित देशों के लिये 'उत्तर' शब्द का प्रयोग किया जाने लगा था।
  • वैश्विक व्यापार को निष्पक्ष, पारदर्शी  बनाने के लिये वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में दक्षिण-दक्षिण सहयोग अनिवार्य और आवश्यक है।
  • वर्तमान परिस्थितियों में यह 2030 तक के लिये निर्धारित 17 लक्ष्यों और 169 टारगेट वाले सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 

क्या है दक्षिण-दक्षिण सहयोग? 

  • नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिये विकसित और विकासशील देशों में उत्तर-दक्षिण संवाद की शुरुआत हुई। परंतु विकसित राष्ट्रों के उपेक्षापूर्ण व अड़ियल व्यवहार के कारण उत्तर-दक्षिण सहयोग के मुद्दे को आशानुरुप बल नहीं मिला।
  • विकासशील देशों पर ऋणों का भार लगातार बढ़ता जा रहा था। उन्हें प्राप्त होने वाली अधिकतर विदेशी सहायता का इस्तेमाल ब्याज के भुगतान के रूप में किया जा रहा था, जिसके परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध और भी जटिल होते गए।
  • विकासशील देशों को यह महसूस होने लगा कि उत्तर-दक्षिण सहयोग की बात से उनके हितों को कोई विशेष फायदा नहीं होगा। यही कारण है कि दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Co-operation) के मुद्दे को बल दिया गया।

भारत और दक्षिण-दक्षिण सहयोग

  • जहाँ तक भारत का प्रश्न है, वह दक्षिण-दक्षिण सहयोग को उत्तर-दक्षिण सहयोग के विकल्प के रूप में नहीं अपितु पूरक के रूप में देखता है।
  • भारत ने व्यापार और निवेश से संबद्ध द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों, खास तौर पर द्विपक्षीय निवेश संवर्द्धन एवं संरक्षण समझौते, मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए), समग्र आर्थिक सहयोग समझौते, दोहरे कराधान से बचाव समझौतों के संबंध में विशेष रूप से अपना ध्यान केंद्रित किया है।
  • इतना ही नहीं भारत ने स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकियों का रुख करते हुए, ऊर्जा के हरित एवं अक्षय स्रोतों को विकसित तथा उनका इस्तेमाल करने की प्रौद्योगिकी के संबंध में भी निरंतर प्रगतिशील है।
  • गौरतलब है कि विकासशील देशों में सतत् विकास परियोजनाओं को समर्थन देने के लिये भारत और संयुक्त राष्ट्र के दक्षिण-दक्षिण सहयोग कार्यालय यानी UNOSSC ने एक भागीदारी कोष की स्थापना की है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र प्रतिवर्ष 12 सितंबर को दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस का आयोजन भी करता है।

दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लाभ

  • लाभ बाजार निकटता, उत्पादों और प्रक्रियाओं में समानता तथा कारोबारी संस्कृति के संबंध विकासशील देशों के निवेशकों को व्यापार और निवेश के संबंध में व्यापक अवसरों की पेशकश करते हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन के मंत्री-स्तरीय सम्मेलन और दोहा विकास एजेंडे के क्रियान्वयन में लगातार विफलता की वजह से अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक प्रणाली में विकासशील देशों के हितों के बेहतर प्रतिनिधित्व और इस लक्ष्य की पूर्ति के लिये देशों के बीच व्यापक एकजुटता की आवश्यकता है।
  • दक्षिण-दक्षिण संपर्क और सहयोग से जलवायु परिवर्तन, संयुक्त राष्ट्र सुधार, वैश्विक वित्तीय संकट से निपटते हुए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में सुधार जैसे महत्त्वपूर्ण मसलों के प्रति समान रुख तय करने में मदद मिलेगी। इसलिये भारत को दक्षिण-दक्षिण व्यापार बढ़ाने पर बल देना चाहिये।
  • साथ ही विकासशील देशों की ओर से बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये निरंतर दक्षिण-दक्षिण व्यापार को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये। जहाँ एक ओर दक्षिण का उदय द्विपक्षीय साझेदारी और क्षेत्रीय सहयोग जैसे मुद्दों को बढ़ावा दे रहा है वहीं दूसरी ओर इसके परिणामस्वरूप दक्षिण के भीतर रियायती वित्तीय ढांचागत निवेश एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के कई विकल्प भी तैयार हो रहे हैं।