भारत सर्न (CERN) का सहायक सदस्य बना | 18 Jan 2017

सन्दर्भ

भारत के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है क्योंकि भारत अब यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन यानी ‘सर्न’ (का एसोसिएट सदस्य बन गया है। विदित हो कि इस सन्दर्भ में पिछले वर्ष नवंबर में ही भारत सरकार की तरफ से परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव और परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन शेखर बसु तथा सर्न की डायरेक्टर जनरल फेबिओला जाइनोटी के बीच समझौते पर हस्ताक्षर भी हो चुके हैं| लेकिन भारत को अपनी अंतिम स्वीकृति देनी थी और हाल ही में अंतिम स्वीकृति देने के साथ ही भारत औपचारिक तौर पर सर्न का सहयोगी सदस्य बन चुका है|

क्या है सर्न (CERN)

  • वस्तुतः ‘सर्न’ एक  फ्रेंच शब्द ‘कौंसिइल इरोपिन पाउर ला रिचरचे न्यूक्लियर’ का संक्षेपण है, जिसका अंग्रेज़ी अर्थ होता है- यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च और इसे हिंदी में यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन के नाम से जानते हैं लेकिन सर्वाधिक प्रचलित नाम ‘सर्न’ ही है|
  • गौरतलब है कि ‘सर्न’ कण भौतिकी (Particle physics) की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है जो फ्राँस एवं स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर जेनेवा के उत्तरी-पश्चिमी नगरीय क्षेत्र में अवस्थित है| सर्न में 22 सदस्य देश शामिल हैं और वर्तमान में विश्व के 70 देशों के सैकड़ों विश्वविद्यालयों से लगभग 8 हज़ार वैज्ञानिक और अभियंता इसमें कार्यरत हैं|
  • यह जानना दिलचस्प होगा कि वर्ष 2002 में भारत को ‘सर्न’ के पर्यवेक्षक सदस्य का दर्ज़ा दिया गया था| हालाँकि, भारत 1960 से ही सर्न में अपना योगदान देता आ रहा है| विदित हो कि सर्न के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में ही हिग्स बोसॉन कण (जिन्हें आमतौर पर गॉड पार्टिकल्स भी कहा जाता है) की मौजूदगी के बेहद ठोस संकेत एक महाप्रयोग द्वारा हासिल किये गए थे| इस महाप्रयोग में भारत की भागीदारी को बहुत ही सम्मान के साथ देखा जाता रहा है| ध्यातव्य है कि भारत ने इस महाप्रयोग में 3 करोड़ डॉलर का उच्च स्तरीय साज़ो-सामान उपलब्ध कराया था, और साथ ही विशेषज्ञों की सेवाएँ भी प्रदान की थी| 

सर्न की सदस्यता भारत के हित में क्यों?

यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन यानी ‘सर्न’ का एसोसिएट सदस्य बनने के बाद अब भारत इसकी परिषदीय बैठकों में हिस्सा ले सकेगा| इसके अलावा, सर्न के वैज्ञानिकों, प्रतिष्ठानों व संसाधनों में प्रशिक्षण लेने के साथ-साथ भारत को यहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान करने की अनुमति भी मिल सकेगी| ध्यातव्य है कि 31 जुलाई, 2015 को पाकिस्तान इसका पहला गैर-यूरोपीय सहयोगी  सदस्य बना था| 

सर्न की सबसे बड़ी उपलब्धि

सर्न प्रयोगशाला में गॉड पार्टिकल्स खोजने के उद्देश्य से अब तक का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग हुआ था| यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन ने 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद एक कोलाइडर को तैयार किया था जिसका मकसद विज्ञान के अनसुलझे रहस्यों से पर्दा हटाना था|

यह कोलाइडर दुनिया का सबसे बड़ा कण कोलाइडर है जिसको लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर कहते हैं| इस महाप्रयोग के दौरान इस कोलाइडर से जब प्रोटॉन और लेड आयन के कण आपस में प्रकाश की गति से टकराए तो प्राथमिक कण (god particle) उत्पन्न हुआ था| वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारा ब्रह्मांड बिग बैंग के बाद इन्हीं कणों से बना है|