पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिये एनजीटी द्वारा उठाया गया कदम | 03 Sep 2018

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने केरल समेत छह पश्चिमी घाट वाले राज्यों को उन गतिविधियों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी देने से रोक दिया है जो पर्वत श्रृंखलाओं के पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • माधव गाडगिल के नेतृत्व वाली पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) की रिपोर्ट ने राज्य में राजनीतिक हंगामा खड़ा कर दिया था। इस रिपोर्ट का विरोध अधिकांश राजनीतिक दलों और चर्च के एक वर्ग ने किया था।
  • इस पैनल ने निर्देश दिया था कि पश्चिमी घाटों के पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की सीमा जिसे केंद्र सरकार ने पहले अधिसूचित किया था, को हाल ही में केरल में आई बाढ़ के संदर्भ में कम नहीं किया जाना चाहिये।
  • अधिकरण की न्यायपीठ ने अपने आदेश में इस बात की विशेष रूप से व्याख्या की कि इन क्षेत्रों की मसौदा अधिसूचना में कोई भी बदलाव पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, विशेष तौर पर केरल की हालिया घटनाओं को देखते हुए। न्यायपीठ द्वारा जारी किया गया यह आदेश गोवा फाउंडेशन की दायर याचिका के संदर्भ में था। 
  • पैनल की प्रमुख न्यायपीठ ने पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF and CC) को 26 अगस्त को समाप्त होने वाली पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर मसौदा अधिसूचना को दोबारा प्रकाशित करने की अनुमति दी थी। साथ ही पैनल ने आदेश दिया कि मामले का निपटारा छः महीने के भीतर किया जाए। 
  • इसने यह आदेश दिया कि पुन: प्रकाशित अधिसूचना का मसौदा ट्रिब्यूनल के रिकॉर्ड में रखा जाएगा।

न्यायपीठ ने देरी के लिये चेताया

  • अधिकरण ने अधिसूचना के संबंध में आपत्तियों को दर्ज करने में देरी के लिये पश्चिमी घाट वाले राज्यों की आलोचना की और पाया कि "राज्यों की आपत्तियों के कारण देरी पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये अनुकूल नहीं हो सकती है" और मामले को जल्द-से-जल्द अंतिम रूप दिया जाना चाहिये। 
  • इस पीठ की अध्यक्षता एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल द्वारा की गई तथा न्यायमूर्ति एसपी वांगडी सदस्य के रूप में और नागिन नंदा विशेषज्ञ सदस्य के रूप में इसमें शामिल थे। 
  • पूर्व में WGEEP ने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र में अधिक विस्तृत क्षेत्र को शामिल करने का प्रस्ताव दिया था। हालाँकि कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाले उच्च स्तरीय कार्य समूह जिसे पर्यावरण मंत्रालय द्वारा QSERP रिपोर्ट की जाँच के लिये नियुक्त किया गया था, ने इसे कम कर दिया था। मंत्रालय ने कस्तूरीरंगन रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को लेकर मसौदा अधिसूचनाएँ जारी कर दी थीं। 
  • अधिकरण की प्रमुख न्यायपीठ, जिसने यह उल्लेख किया था कि पश्चिमी घाट क्षेत्र की पारिस्थितिकी गंभीर खतरे में है, ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि पश्चिमी घाट क्षेत्र सबसे धनी जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण

  • पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के अंतर्गत 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों के निपटारे हेतु आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसकी अन्य चार पीठें भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई में हैं।
  • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं तथा इसमें 10 न्यायिक सदस्य होते हैं जो विभिन्न उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं। पर्यावरण संबंधी मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले 10 अन्य सदस्यों को भी न्यायाधिकरण में शामिल किया जाता है।
  • न्यायाधिकरण को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पर्यावरण संबंधी विभिन्न मुद्दों पर स्वत: संज्ञान ले सकता है। पर्यावरणीय क्षति पहुँचाने या नियमों का उल्लंघन करने के दोषी लोगों को दंडित कर सकता है, व्यक्तिगत रूप से 10 करोड़ रुपए या किसी कंपनी पर 25 करोड़ रुपए का दंड लगा सकता है तथा सश्रम कारावास की सज़ा भी सुना सकता है।