ग्राम न्यायालय | 05 Feb 2020

प्रीलिम्स के लिये:

ग्राम न्यायालय

मेन्स के लिये:

ग्राम न्यायालयों के गठन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आठ राज्यों पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना न करने के कारण जुर्माना लगाया है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने गैर-सरकारी संगठन ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटी फॉर फास्ट जस्टिस’ (National Federation of Societies for Fast Justice) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया था।

क्या था मामला?

  • PIL जारी करने के समय केवल 208 ग्राम न्यायालय कार्य कर रहे थे जबकि 12वीं पंचवर्षीय योजना के मुताबिक, देश में 2500 ग्राम न्यायालयों की आवश्यकता थी।
  • आवश्यक कार्यवाही न करने वाले राज्यों असम, चंडीगढ़, गुजरात, हरियाणा, ओडिशा, पंजाब, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों पर सर्वोच्च न्यायालय ने एक-एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।

जुर्माना लगाने का उद्देश्य:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब आबादी की न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2008 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम के मद्देनज़र ग्राम न्यायालय स्थापित करने में विफल रहने के मामले में कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर जुर्माना लगाया है।

ग्राम न्यायालय (Gram Nyayalaya):

  • विधि एवं न्याय मंत्रालय ने न्याय प्रणाली को आम जन-मानस के निकट ले जाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 39-A के अनुरूप ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008’, संसद में पारित किया।
  • इसके तहत 2 अक्तूबर, 2009 से कुछ राज्यों में ग्राम न्यायालयों ने कार्य करना शुरू किया।

अनुच्छेद-39 (a):

समान न्याय और नि:शुल्क कानूनी सहायता का प्रावधान; राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी व्यवस्था का संचालन समान अवसर के आधार पर हो जो न्याय को बढ़ावा देता हो और विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगा,साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित नहीं किया गया है।

ग्राम न्यायालय की संरचना:

  • ग्राम न्यायालय में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट स्तर का न्यायाधीश होता है जिसे ‘न्यायाधिकारी’ कहा जाता है।
  • इसकी नियुक्ति संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य सरकार करती है।

ग्राम न्यायालय का कार्यक्षेत्र:

  • ग्राम न्यायालय सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार के मामले देखता है। यह आपराधिक मामलों में उन्हीं को देखता है जिनमें अधिकतम 2 वर्ष की सज़ा होती है।
  • सिविल मामलों में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम 1948, सिविल अधिकार अधिनियम 1955, बंधुआ मज़दूरी (उन्मूलन) अधिनियम 1976, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के मामले आते हैं।

ग्राम न्यायालय की कार्यप्रणाली:

  • इसमें सिविल मामलों को आपसी समझौतों से, जबकि आपराधिक मामलों में ‘प्ली बार्गेनिंग’ (Plea Bargaining) के माध्यम से अभियुक्तों को अपना अपराध स्वीकार करने का मौका दिया जाता है।

अपील का तरीका:

  • आपराधिक मामलों में अपील सत्र न्यायालय में की जा सकती है जहाँ इस तरह की अपील की सुनवाई तथा निपटान अपील दायर करने की तारीख से छह महीने के भीतर किया जाएगा।
  • दीवानी मामलों में अपील ज़िला न्यायालय के पास की जाएगी, जिसकी सुनवाई और निपटान अपील दायर करने की तारीख से छह महीने के भीतर किया जाएगा।

आगे की राह:

ऐसा अनुमान है कि ग्राम न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों में विलंबित मामलों की संख्या में 50% तक की कमी ला सकते हैं, अतः लोगों को अधिक जागरूक करने के साथ-साथ ग्राम न्यायालयों को अधिक स्वयायत बनाने की आवश्यकता है ताकि सामाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।

स्त्रोत: पीआईबी