जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम’ (DICGC) विधेयक, 2021 | 29 Jul 2021
प्रिलिम्स के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम मेन्स के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी की आवश्यकता एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम’ (DICGC) विधेयक, 2021 को मंज़ूरी दी है।
- पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक आदि की विफलता ने भारतीय बैंकों में ग्राहकों द्वारा जमा राशि के विरुद्ध बीमा के अभाव को लेकर एक बार पुनः बहस शुरू कर दी है।
नोट
- जमा बीमा: यदि कोई बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये पैसे नहीं होते हैं तथा उसे परिसमापन के लिये जाना पड़ता है, तो यह बीमा बैंक जमा को होने वाले नुकसान के खिलाफ एक सुरक्षा कवर प्रदान करता है।
- क्रेडिट गारंटी: यह वह गारंटी है जो प्रायः लेनदार को उस स्थिति में एक विशिष्ट उपाय प्रदान करती है जब उसका देनदार अपना कर्ज़ वापस नहीं करता है।
प्रमुख बिंदु
कवरेज
- यह विधेयक बैंकिंग प्रणाली में जमाकर्त्ताओं के 98.3% और जमा मूल्य के 50.9% हिस्से को कवर करेगा, जो कि वैश्विक स्तर पर क्रमशः 80% और 20-30% से अधिक है।
- इसके तहत सभी प्रकार के बैंक शामिल होंगे, जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंक भी शामिल हैं।
- यह पहले से ही अधिस्थगन की स्थिति में मौजूद बैंकों के साथ-साथ भविष्य में अधिस्थगन के तहत आने वाले बैंकों को भी कवर करेगा।
- अधिस्थगन ऋण के भुगतान में देरी की कानूनी रूप से अधिकृत अवधि है।
बीमा कवर:
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा लगाए गए स्थगन के तहत बैंक आगमन की स्थिति में 90 दिनों के भीतर एक खाताधारक को 5 लाख रुपए तक की धनराशि प्रदान करेगा।
- इससे पहले खाताधारकों को अपनी जमा राशि प्राप्त करने के लिये एक ऋणदाता के परिसमापन या पुनर्गठन का वर्षों तक इंतजार करना पड़ता था, जो कि डिफॉल्ट गतिविधियों के विरुद्ध बीमित होते हैं।
- 5 लाख रुपए का जमा बीमा कवर वर्ष 2020 में 1 लाख रुपए से बढ़ा दिया गया था।
- 'बैंकों में ग्राहक सेवा' (2011) पर दामोदरन समिति ने कैप 5 लाख रुपए में आय के बढ़ते स्तर और व्यक्तिगत बैंक जमाओं के बढ़ते आकार के कारण पाँच गुना वृद्धि की सिफारिश की थी। ।
- बैंक को स्थगन के तहत रखे जाने के पहले 45 दिनों के भीतर DICGC जमा खातों से संबंधित सभी जानकारी एकत्र करेगा। अगले 45 दिनों में यह जानकारी की समीक्षा करेगा और जमाकर्त्ताओं को उनकी धनराशि अधिकतम 90 दिनों के भीतर चुकाएगा।
बीमा प्रीमियम:
- यह जमा बीमा प्रीमियम को तुरंत 20% और अधिकतम 50% तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
- प्रीमियम का भुगतान बैंकों द्वारा DICGC को किया जाता है। बीमित बैंक पिछले छमाही के अंत में अपनी जमा राशि के आधार पर प्रत्येक वित्तीय छमाही की शुरुआत से दो महीने के भीतर अर्द्धवार्षिक रूप से निगम को अग्रिम बीमा प्रीमियम का भुगतान करते हैं।
- इसे प्रत्येक 100 रुपए जमा करने के लिये 10 पैसे से बढ़ाकर 12 पैसे कर दिया गया है और 15 पैसे की सीमा लगाई गई है।
- यह केवल एक सक्षम प्रावधान है। देय प्रीमियम में वृद्धि के निर्धारण हेतु RBI के साथ परामर्श करना होगा और सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम
परिचय:
- यह वर्ष 1978 में जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
- यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
कवरेज:
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्रीय बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित अन्य बैंकों को DICGC से जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
कवर की गई जमाराशियों के प्रकार: DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर अन्य सभी बैंक जमाओं जैसे- बचत, सावधि, चालू, आवर्ती, आदि का बीमा करता है।
- विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ।
- केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ।
- अंतर-बैंक जमा।
- राज्य भूमि विकास बैंकों की राज्य सहकारी बैंकों में जमाराशियाँ।
- भारत के बाहर प्राप्त किसी भी जमा राशि पर शेष कोई भी राशि।
- कोई भी राशि जिसे निगम द्वारा RBI की पिछली मंज़ूरी के साथ विशेष रूप से छूट दी गई है।
फंड:
- निगम निम्नलिखित निधियों का रखरखाव करता है:
- जमा बीमा कोष
- क्रेडिट गारंटी फंड
- सामान्य निधि
- पहले दो को क्रमशः बीमा प्रीमियम और प्राप्त गारंटी शुल्क द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तथा संबंधित दावों के निपटान के लिये उपयोग किया जाता है।
- सामान्य निधि का उपयोग निगम की स्थापना और प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने के लिये किया जाता है।