चीन द्वारा बांग्लादेश को टैरिफ छूट की घोषणा | 20 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये: 

एशिया प्रशांत व्यापार समझौता 

मेन्स के लिये: 

चीन द्वारा बांग्लादेश को दी गई टैरिफ छूट का भारत के आर्थिक हितों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण एशिया में आर्थिक कूटनीतिक संबंधों के चलते चीन द्वारा बांग्लादेश से चीन में निर्यात होने वाले सामान पर 97% टैरिफ छूट देने की घोषणा की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय द्वारा इस बात की जानकारी दी गई है कि मत्स्य और चमड़े के उत्पादों को कवर करने वाली 97% वस्तुओं को चीनी टैरिफ से छूट दी जाएगी।
  • चीन का यह कदम ‘ढाका-बीजिंग संबंधों’ के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • एक महीने पहले बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा COVID-19 महामारी के चलते व्यापार में आई आर्थिक कठिनाई पर चर्चा करने के लिये इस संदर्भ में बात की गई थी। जिसे ध्यान में रखते हुए चीन द्वारा यह कदम उठाया गया है।
  • बांग्लादेश पहले ही ‘एशिया प्रशांत व्यापार समझौते’ (Asia-Pacific Trade Agreement -APTA) के तहत 3095 वस्तुओं के लिये टैरिफ-छूट प्राप्त करता है। 
  • चीन द्वारा की गई नवीनतम घोषणा के परिणामस्वरूप, बांग्लादेश के अब कुल 8256 सामानों को चीनी टैरिफ से छूट दी जाएगी। 

बांग्लादेश के लिये इस छूट का महत्त्व: 

  • बांग्लादेश चीन से लगभग 15 बिलियन डॉलर का आयात करता है। जबकि चीन में बांग्लादेश से निर्यात की जाने वाले वस्तुओं की कीमत आयात के मुकाबले काफी कम है।
  • इस छूट के माध्यम से बांग्लादेश के चीन के साथ व्यापार घाटे में कुछ कमी होने की आशा है साथ ही बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।

चीन की रणनीति:

  • भारत चीन के मध्य ‘लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल’ पर जारी तनाव के बीच चीन अपनी आर्थिक कूटनीति (Economic Diplomacy of China) के तहत भारत के पड़ोसी देशों को अपने पक्ष में करने का कार्य कर रहा है।
  • इससे पहले चीन द्वारा श्रीलंका, नेपाल तथा पाकिस्तान के साथ भी यही रणनीति अपनाई जा चुकी है। 
  • अब चीन का रुख बांग्लादेश की तरफ है। इसी कड़ी में चीन ने बांग्लादेश से निर्यात की जाने वाली 97 फीसदी वस्तुओं को टैक्स से छूट देने की घोषणा की है।

भारत की रणनीति: 

  • एक तरफ जहाँ चीन द्वारा भारत को सामरिक एवं आर्थिक मोर्चे पर घेरने की रणनीति बनाई  जा रही है तो भारत भी इसका जबाव दे रहा है।
  • भारत द्वारा अब चीन से आयातित वस्तुओं पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से जल्द ही ‘ई-कॉमर्स नीति’ घोषित करने की तैयारी कर ली गई है।
  • इस नीति के तहत कंपनियों के लिये यह स्पष्ट करना अनिवार्य होगा कि उनके द्वारा बेची जा रही वस्तुओं को भारत में उत्पादित किया गया है या नहीं।
  • दूसरी तरफ भारत द्वारा चीन समेत भारत की सीमा से लगे किसी भी देश से ‘पेंशन कोष’ में विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रस्ताव पेश किया है।
  •  ‘पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण’ (Pension Fund Regulatory and Development Authority) PFRDA के नियमन के तहत पेंशन कोष में स्वत: मार्ग से 49 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति है।
  • इस प्रस्ताव के तहत चीन समेत भारत की सीमा से लगने वाले किसी भी देश की किसी भी निवेश इकाई या व्यक्ति को निवेश के लिये सरकार की मंज़ूरी की जरूरत होगी। 

आगे की राह:

  • भारत की विदेश नीति पंचशील सिद्धांत पर आधारित है इस सिद्धांत को ध्यान में रखते  हुए ही वर्ष 1954 में नेहरू और झोउ एनलाई (Zhou Enlai) द्वारा ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे के साथ पंचशील सिद्धांत पर हस्ताक्षर किये गए थे, ताकि क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिये कार्ययोजना तैयार की जा सके।
  • वर्ष 2019 में भारत तथा चीन के बीच होने वाले व्यापार की मात्रा 92.68 बिलियन डॉलर रही। भारत में औद्योगिक पार्कों, ई-कॉमर्स तथा अन्य क्षेत्रों में 1,000 से अधिक चीनी कंपनियों द्वारा निवेश किया हुआ है। भारतीय की भी लगभग दो-तिहाई से अधिक कंपनियाँ चीन के बाज़ार में सक्रिय हैं।
  • 2.7 बिलियन से अधिक लोगों के संयुक्त बाज़ार तथा दुनिया के 20% के सकल घरेलू उत्पाद के साथ, भारत और चीन के लिये आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएँ विद्यमान हैं।अतः वर्तमान समय में उत्पन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर दोनों ही देशों को एक-दूसरे देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हुए पंचशील के सिद्धांतों की महत्ता को स्वीकार करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू