केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (CIPET) | 29 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

पेट्रोरसायन, CIPET

मेन्स के लिये:

भारत में पेट्रोरसायन उद्योग तथा अर्थव्यवस्था में इसका योगदान, पृष्ठभूमि एवं वर्तमान स्थिति

चर्चा में क्यों?

रसायन और उर्वरक मंत्रालय (Ministry of Chemicals and Fertilizers) के तहत ‘केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Central Institute of Plastics Engineering & Technology- CIPET) का नाम परिवर्तित कर ‘केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Central Institute of Petrochemicals Engineering & Technology- CIPET) कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिवर्तित नाम को तमिलनाडु सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1975 (तमिलनाडु अधिनियम 27, 1975) के तहत पंजीकृत किया गया है। 
  • ‘केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान’ पूरी तरह से पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के विकास के लिये समर्पित होगा, जिसमें एकेडमिक्स, स्किलिंग, टेक्नोलॉजी सपोर्ट एंड रिसर्च इत्यादि क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • CIPET का प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा एवं अनुसंधान जैसे संयुक्त कार्यक्रम के माध्यम से प्लास्टिक उद्योग के विकास में योगदान देना रहा है।
  • संस्थान कई वर्षों की विकास प्रक्रिया से गुजरते हए प्लास्टिक के अभिनव प्रयोंगों पर आधारित ऐसे समाधान विकसित करने के लिये उद्योगों के साथ जुड़ रहा है जो संसाधनों के इस्‍तेमाल के मामले में युक्तिसंगत होने के साथ ही आसानी से बिकने वाले भी हैं।

CIPET के बारे में

  • केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (CIPET) की स्थापना वर्ष 1968 में भारत सरकार द्वारा ‘सयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) की मदद से चेन्नई में की गई।
  • वर्तमान समय में यह भारत सरकार के उर्वरक मंत्रालय के अधीन एक प्रमुख राष्ट्रीय संस्थान है।
  • इसका मुख्यालय गिण्‍डी, चेन्‍न्‍ई में है।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा एवं अनुसंधान के संयुक्त प्रयासों द्वारा देश में प्लास्टिक उद्योग के विकास में योगदान करना है।

National-Presence

पेट्रोरसायन (Petrochemicals):

  • पेट्रोरसायन विभिन्न रासायनिक यौगिकों के हाइड्रोकार्बन से प्राप्त किये जाते हैं। ये हाइड्रोकार्बन कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से व्युत्पन्न होते हैं। 
  • कच्चे तेल के आसवन द्वारा उत्पादित विभिन्न अंशों में से पेट्रोलियम गैस, नेफ्था (Naphtha), केरोसिन और गैस तेल पेट्रोरसायन उद्योग के लिये प्रमुख फीड स्टॉक हैं। 
  • प्राकृतिक गैस से प्राप्त ईथेन, प्रोपेन और प्राकृतिक गैस तरल पदार्थ पेट्रोरसायन उद्योग में उपयोग किये जाने वाले अन्य महत्त्वपूर्ण फीडस्टॉक हैं।

भारत में पेट्रोरसायन उद्योग:

पृष्ठभूमि:

  • 1970 के दशक में, जैविक रसायनों की की मांग में इतनी तेज़ी से वृद्धि हुई कि इस मांग को पूरा करना मुश्किल हो गया। उस समय पेट्रोलियम शोधन उद्योग का तेज़ी से विस्तार हुआ।
  • इस उद्योग ने 1980 और 1990 के दशक में तेज़ी से वृद्धि दर्ज की।
  • पेट्रोरसायन उद्योग में मुख्य रूप से सिंथेटिक फाइबर/यार्न, पॉलिमर, सिंथेटिक रबर (इलास्टोमर), सिंथेटिक डिटर्जेंट इंटरमीडिएट्स, परफार्मेंस प्लास्टिक और प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग शामिल हैं।

पेट्रोरसायन उद्योग का विज़न: 

पेट्रोरसायन क्षेत्र की परिकल्पना घरेलू पेट्रोरसायन उद्योग की संभावना को ध्यान में रखते हुए तथा उत्पादन और माँग में वैश्विक बदलाव द्वारा प्रदत्त विकास के अवसरों को देखते हुए की गई है। इसके दृष्टिकोण में प्रमुख रूप से शामिल हैं-

  • पर्यावरण अनुकूल प्रक्रियाओं एवं प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी कीमतों के आधार पर मूल्यवर्द्धित, गुणवत्तायुक्त पेट्रोरसायन उत्पादों का विकास करना।
  • सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ नए अनुप्रयोगों और उत्पादों का विकास करना।

महत्त्व:

  • पेट्रोरसायन उद्योग आर्थिक विकास और विनिर्माण क्षेत्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पेट्रोरसायन उद्योग में मूल्यवर्द्धन अन्य उद्योग क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
  • पेट्रोरसायन उत्पाद वस्त्र, आवास, निर्माण, फर्नीचर, ऑटोमोबाइल, घरेलू सामान, कृषि, बागवानी, सिंचाई, पैकेजिंग, चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रीकल आदि जैसे जीवन के लगभग हर क्षेत्र को कवर करते हैं।
  • रसायन एवं पेट्रोरसायन उद्योग संयुक्त रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं, जिसमें नमक से लेकर उपग्रह तक के 80,000 से अधिक उत्पाद शामिल हैं। ये उद्योग लगभग 2 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं।

भारतीय रसायन एवं पेट्रोरसायन उद्योग के चालक

मज़बूत आर्थिक विकास, दुनिया की दूसरी सर्वाधिक आबादी, शहरीकरण में तेज़ी और औद्योगिक माँग में भारी वृद्धि भारतीय रासायनिक और पेट्रोरसायन उद्योग के विकास के लिये प्रमुख चालक हैं।

आगे की राह

  • भारत में प्लास्टिक की मांग में वर्ष 2013-14 से वर्ष 2017-18 के बीच 8.9% की औसत दर वृद्धि हुई है। वर्ष 2022-23 तक यह मांग 24 मिलियन टन और वर्ष 2027-28 तक 35 मिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है। 
  • संगठित और असंगठित क्षेत्र में लगभग 50,000 से अधिक प्रसंस्करण इकाइयाँ हैं तथा प्रसंस्करण क्षमता प्रति वर्ष 45.1 मिलियन टन होने का अनुमान है। 
  • यह प्रसंस्करण क्षमता 8.8% CAGR (Compound Annual Growth Rate) की दर से बढ़ रही है और प्रसंस्करण उद्योग की क्षमता वर्ष 2022-23 तक 62.4 मिलियन टन एवं वर्ष 2027-28 तक 86 मिलियन टन तक बढ़ाने के लिये 10 अरब डॉलर का निवेश किये जाने की उम्मीद है।

स्रोत: पी.आई.बी.