भ्रष्टाचार विरोधी रणनीतियाँ | 26 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के लोकपाल (Lokpal of India) ने ‘ब्रिंगिंग सिनर्जीज़ इन एंटी-करप्शन स्ट्रेटजीज़’ (Bringing Synergies in Anti-Corruption Strategy) विषय पर वेबिनार का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु

  • भ्रष्टाचार को निजी लाभ के लिये शक्ति के दुरुपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह देश के विकास को विभिन्न तरीकों से प्रभावित कर सकता है।

भ्रष्टाचार का प्रभाव:

  • राजनीतिक लागत: इससे राजनीतिक संस्थानों के प्रति लोगों के विश्वास और राजनीतिक भागीदारी में कमी, चुनावी प्रक्रिया में विकृति, नागरिकों के लिये उपलब्ध राजनीतिक विकल्प सीमित हो जाते हैं तथा लोकतांत्रिक प्रणाली की वैधता को हानि होती है।
  • आर्थिक लागत: भ्रष्टाचार, रेंट सीकिंग (Rent Seeking) गतिविधियों के पक्ष में संसाधनों के गलत आवंटन और सार्वजनिक लेन-देन की लागत में वृद्धि करता है, साथ ही व्यापार पर एक अतिरिक्त कर के रूप में कार्य करता है, जिससे निवेश तथा वास्तविक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा  में कमी लाकर अंततः आर्थिक दक्षता को कम करता है।

रेंट सीकिंग

  • यह सार्वजनिक पसंद के एक सिद्धांत के साथ-साथ अर्थशास्त्र की एक अवधारणा भी है, जिसके अंतर्गत नए निवेश के बिना मौजूद संपत्ति को बढ़ाया जाता है।
  • इसके परिणामस्वरूप संसाधनों की कमी, धनार्जन में कमी, सरकारी राजस्व में कमी, आय में असमानता और संभावित आर्थिक गिरावट के माध्यम से आर्थिक दक्षता में कमी आती है।
  • सामाजिक लागत: भ्रष्टाचार मूल्य प्रणालियों को विकृत करता है और गलत तरीके से उन व्यवसायों को ऊँचा दर्जा देता है जिनके पास रेंट सीकिंग के अवसर हैं। इससे जनता का एक कमज़ोर नागरिक समाज (Civil Society) से मोहभंग होता है, साथ ही बेईमान राजनीतिक नेता इसकी तरफ आकर्षित होते हैं।
  • पर्यावरणीय लागत: पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी परियोजनाओं के वित्तपोषण को  प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि यह सार्वजनिक धन को निजी हित में उपयोग करने का आसान तरीका है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे: सुरक्षा एजेंसियों के भीतर भ्रष्टाचार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बन सकता है, जिसमें धनशोधन, अयोग्य व्यक्तियों की भर्ती, देश में हथियारों और आतंकवादी तत्त्वों की तस्करी को सुविधा प्रदान करना आदि शामिल हैं।

भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये कानूनी ढाँचा:

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988 में लोक सेवकों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार के संबंध में दंड का प्रावधान है और उन लोगों के लिये भी जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में शामिल हैं।
    • वर्ष 2018 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसके अंतर्गत रिश्वत लेने के साथ ही रिश्वत देने को भी अपराध की श्रेणी के तहत रखा गया।
  • धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act), 2002 का उद्देश्य भारत में धन शोधन (Money Laundering) के मामलों को रोकना और आपराधिक आय के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
    • इसमें धन शोधन के अपराध के लिये  सख्त सज़ा का प्रावधान है, जिसमें 10 साल तक की कैद और आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति की कुर्की (यहाँ तक कि जाँच के प्रारंभिक चरण में ही) भी शामिल है।
  • कंपनी अधिनियम (The Companies Act), 2013 कॉर्पोरेट क्षेत्र को स्वनियमन का अवसर देकर इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की रोकथाम करता है। 'धोखाधड़ी' शब्द की एक व्यापक परिभाषा है, इसे कंपनी अधिनियम के अंतर्गत एक दंडनीय (Criminal) अपराध माना गया है।
    • विशेष रूप से धोखाधड़ी से जुड़े मामलों के लिये भारत सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affair) के अंतर्गत गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (Serious Frauds Investigation Office) की स्थापना की गई है, जो  सफेदपोश (White Collar) और कंपनियों में अपराधों से निपटने हेतु ज़िम्मेदार है।
    • SFIO कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत जाँच करता है।
  • भारतीय दंड संहिता (The Indian Penal Code- IPC), 1860 के अंतर्गत रिश्वत, धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात से संबंधित मामलों को कवर किया गया है।
  • विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 व्यक्तियों, संगठनों और कंपनियों को विदेशी योगदान की मंज़ूरी और उपयोग को विनियमित करता है।
    • विदेशी योगदान की प्राप्ति के लिये गृह मंत्रालय का पूर्व अनुमोदन आवश्यक है और इस तरह के अनुमोदन की अनुपस्थिति में विदेशी योगदान की प्राप्ति को अवैध माना जा सकता है।

नियामक ढाँचा:

  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम (The Lokpal and Lokayukta Act), 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों के लिये एक लोकपाल की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

    इन निकायों को सरकार से स्वतंत्र रूप से कार्य करने की आवश्यकता है जिसके लिये इसे लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार दिया गया है, इसमें प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्री भी शामिल हैं।

  • हालाँकि केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) को सरकार ने फरवरी 1964 में स्थापित किया था जिसे बाद में संसद द्वारा अधिनियमित केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 द्वारा सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।
    • यह योग भ्रष्टाचार या कार्यालय के दुरुपयोग से संबंधित शिकायतें सुनता है और इस दिशा में उपयुक्त कार्रवाई की सिफारिश करता है।

लोकपाल और लोकायुक्त

  • लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की है।
    • इस अधिनियम को वर्ष 2013 में संसद के दोनों सदनों ने पारित किया, जो 16 जनवरी, 2014 को लागू हुआ।
  • ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं।
  • ये "लोकपाल" (Ombudsman) का कार्य करते हैं और कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करते हैं।
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त शब्द प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ. एल.एम. सिंघवी ने पेश किया।

संरचना:

  • लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसका गठन एक चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्यों से हुआ है।
  • आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा न्यूनतम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।
  • लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व उत्कृष्ट योग्यता वाला प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये।
    • लोकपाल संस्था के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है।
    • लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए, बी, सी और डी अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।
  • लोकपाल का क्षेत्राधिकार प्रधानमंत्री पर केवल भ्रष्टाचार के उन आरोपों तक सीमित रहेगा जो कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबद्ध न हों।
  • संसद में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के मामले में मंत्रियों या सांसदों पर लोकपाल का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।

आगे की राह

  • निरीक्षण संस्थानों को आवश्यक संसाधनों तक पहुँचने के लिये मज़बूत होना चाहिये, साथ ही भ्रष्टाचार-रोधी प्राधिकरणों और निरीक्षण संस्थानों के पास अपने कर्तव्यों के निर्वाह हेतु पर्याप्त धन, संसाधन तथा स्वतंत्रता होनी चाहिये।
  • सूचनाओं तक आसान, समय पर और सार्थक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये प्रासंगिक आँकड़ों को प्रकाशित किया जाना चाहिये।
  • भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये सभी एजेंसियों के सहयोग और निवारक भ्रष्टाचार उपायों की सराहना करनी चाहिये तथा इसे "रोकथाम इलाज से बेहतर है" (Prevention is Better Than Cure) के रूप में अपनाया जाना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.