महासागरों का अम्लीकरण : प्रवाल भित्तियों के लिये संकट | 17 Mar 2018

चर्चा में क्यों?

  • ‘साइंस’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार महासागरों की अम्लीयता बढ़ने से प्रवाल भित्तियों का निर्माण करने वाले तलछटों (Sediments) का इस शताब्दी के अंत तक घुलना (Dissolving) शुरू हो सकता है।
  • इस अध्ययन के आधार पर शोधकर्त्ताओं की टीम ने वर्तमान में कोरल निर्माण और तलछट विघटन के मौजूदा दर सहित कई कारकों को शामिल करते हुए प्रवालों में होने वाले परिवर्तनों की भविष्यवाणी की है।

क्या है प्रवाल भित्तियाँ?

  • प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं। प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) होते हैं।
  • इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से रंगीन शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) पाए जाते हैं। 
  • आमतौर पर प्रवाल भित्तियाँ उष्ण एवं उथले जल वाले सागरों, विशेषकर प्रशांत महासागर में स्थित, अनेक उष्ण अथवा उपोष्ण देशीय द्वीपों के सामीप्य में बहुतायत से पाई जाती हैं।
  • प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्णस्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है।
  • प्रवालों के निर्माण के लिये निम्नलिखित परिस्थितियाँ सहायक होती हैं-
  • प्रवाल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधों में पाए जाते हैं, क्योंकि इनके जीवित रहने के लिये 20°C - 21°C तापक्रम की आवश्यकता होती है।
  • प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते हैं क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है।
  • प्रवालों के विकास के लिये स्वच्छ एवं अवसाद रहित जल आवश्यक है क्योंकि अवसादों के कारण प्रवालों का मुख बंद हो जाता है और वे मर जाते हैं।
  • सागरीय धाराएँ प्रवालों के लिये लाभदायक होती हैं क्योंकि ये प्रवालों के लिये भोजन उपलब्ध कराती हैं। इसी कारण बंद सागरों में कम प्रवाल पाए जाते हैं।
  • प्रवाल भितियों का निर्माण कोरल पॉलिप्स नामक जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित अस्थि-पंजरों के अलावा कार्बोनेट तलछट से भी होता है जो इन जीवों के ऊपर हज़ारों वर्षों से जमा हो रही है।

महासागरीय अम्लीकरण (Ocean Acidification)

  • महासागरीय अम्लीकरण को समुद्री जल की pH में होने वाली निरंतर कमी के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • महासागरों में प्रवेश करने के बाद कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ संयुक्त होकर कार्बोनिक अम्ल का निर्माण करती है जिससे महासागर की अम्लता बढ़ जाती है और समुद्र के पानी की pH कम हो जाती है। 
  • महासागरीय अम्लीकरण प्रवाल जीवों को उनके कठोर कंकाल को निर्मित करने से रोकता है। ऐसा महासागरों द्वारा मानव-जनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की अधिक मात्रा को अवशोषित करने से होता है।
  • ऑस्ट्रेलिया में दक्षिणी क्रॉस विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों के वैज्ञानिकों ने प्रशांत और अटलांटिक महासागरों के पाँच प्रवालों में 57 स्थानों पर तलछट विघटन के उपेक्षित पहलू का अध्ययन किया।
  • उन्होंने पाया कि अम्लीकरण और तलछट विघटन के बीच संबंध प्रवाल गठन और अम्लीकरण की तुलना में अधिक मजबूत है।
  • उनके अनुमानों के मुताबिक़ 2050 तक प्रवाल तलछट घुलने शुरू हो जाएंगे और 2080 तक इनके निर्माण की तुलना में इनके घुलने की दर अधिक होगी। 
  • यह अध्ययन दर्शाता है कि महासागरीय अम्लीकरण की वज़ह से कोरल रीफ सिस्टम बढ़ने की बजाय कम हो रहा है।

प्रवाल भित्तियों के अस्तित्व के लिये अन्य चुनौतियाँ

  • वर्तमान में प्रवाल निर्माण की प्रक्रिया भी खतरे में है। 1998 में लक्षद्वीप के प्रवालों में प्रवाल विरंजन की घटना देखी गई थी।
  • जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल जूजैंथिली को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं।
  • 2010 और 2016 में विरंजन की दो और घटनाएँ हुई थी। बार-बार होने वाले विरंजन, जलवायु परिवर्तन की वज़ह से आने वाले चक्रवातों और अब महासागर अम्लीकरण, जो प्रवाल-निर्माण को धीमा करने के अलावा तलछट विघटन का कारण बनता है, के कारण लक्षद्वीप में प्रवालों को एक साथ तीन-तीन बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और कैरिबियाई महासागर में कोरल ब्लीचिंग की घटनाएँ सामान्य रूप से घटित होती रही हैं परंतु वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार समुद्र के बढ़ते तापमान व अल-नीनो के कारण प्रवाल या मूंगे का बढ़े पैमाने पर क्षय हो रहा है।
  • इसके अतिरिक्त अति-मत्स्यन (Over-Fishing) जैसे स्थानीय कारक भी प्रवालों को प्रभावित करते हैं।

भारत में प्रवाल भित्तियाँ

  • भारत में प्रवाल भितियाँ 3,062 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत हैं।
  • कई प्रवाल प्रजातियों को बाघों के समान ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 की अनुसूची-I में शामिल कर संरक्षण प्रदान किया गया हैं।
  • एक तरफ जहाँ प्रवाल भितियाँ मछलियों की प्रजातियों की विविधता को बनाए रखने में सहायता करती हैं वहीं उन पर स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका के लिये निर्भर रहते हैं।
  • लक्षद्वीप में ये चक्रवातों के लिये अवरोधक का कार्य कर तटीय कटाव की रोकथाम में भी सहायता करते हैं।
  • लक्षद्वीप द्वीप समूह के प्रवाल तंत्रों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि महासागरीय अम्लीकरण काफी चिंता का विषय है क्योंकि हिंद महासागर में बहुत से प्रवाल पहले से ही निवल रूप से नष्ट होने की अवस्था में हैं।