15वें वित्त आयोग की सिफारिशें: संसाधन आवंटन | 04 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 से आगामी पाँच वर्ष की अवधि के लिये करों के वितरण पूल में राज्यों की हिस्सेदारी को 41 प्रतिशत तक बनाए रखने से संबंधित 15वें वित्त आयोग की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है।

  • 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट हाल ही में संसद में प्रस्तुत की गई है।
  • इसके अलावा सरकार ने रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के आधुनिकीकरण के लिये एक अलग नॉन-लैप्सेबल फंड के निर्माण को भी मंज़ूरी दी है।

15वाँ वित्त आयोग

  • वित्त आयोग (FC) एक संवैधानिक निकाय है, जो केंद्र और राज्यों के बीच तथा राज्यों के बीच संवैधानिक व्यवस्था और वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप कर से प्राप्त आय के वितरण के लिये विधि और सूत्र निर्धारित करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति के लिये प्रत्येक पाँच वर्ष या उससे पहले एक वित्त आयोग का गठन करना आवश्यक है।
  • 15वें वित्त आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा नवंबर, 2017 में एन.के. सिंह की अध्यक्षता में किया गया था। इसकी सिफारिशें वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये मान्य होंगी।

प्रमुख बिंदु

वर्टिकल हिस्सेदारी (केंद्र और राज्यों के बीच कर की हिस्सेदारी)

  • 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की वर्टिकल हिस्सेदारी को 41 प्रतिशत बनाए रखने की सिफारिश की है, जो कि आयोग की वर्ष 2020-21 में दी गई अंतरिम रिपोर्ट के समान है।
    • यह राशि वर्तमान वितरण पूल के 42 प्रतिशत के स्तर के समान ही है, जिसकी सिफारिश 14वें वित्त आयोग द्वारा की गई थी। 
  • हालाँकि इसमें जम्मू-कश्मीर राज्य की स्थिति में बदलाव के बाद बने नए केंद्रशासित प्रदेशों (लद्दाख और जम्मू-कश्मीर) की स्थिति के मद्देनज़र 1 प्रतिशत का आवश्यक समायोजन भी किया गया है।

हाॅरिजेंटल हिस्सेदारी (राज्यों के बीच कर का विभाजन)

  • राज्यों के बीच कर राजस्व के विभाजन के लिये आयोग ने जो सूत्र प्रस्तुत किया है, उसके मुताबिक राजस्व हिस्सेदारी का निर्धारण करते समय जनसांख्यिकीय प्रदर्शन को 12.5 प्रतिशत, आय के अंतर को 45 प्रतिशत, जनसंख्या और क्षेत्रफल प्रत्येक के लिये 15 प्रतिशत, वन और पारिस्थितिकी के लिये 10 प्रतिशत तथा कर एवं राजकोषीय प्रयासों के लिये 2.5 प्रतिशत भार दिया जाएगा। 

राज्यों के लिये राजस्व घाटा अनुदान

  • राजस्व घाटा अनुदानों की संकल्पना राज्यों के राजस्व खातों पर उन राजकोषीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये की गई है, जिसकी पूर्ति उनके स्वयं के कर और गैर-कर राजस्व तथा संघ से उनको प्राप्त होने वाले कर राजस्व के बावजूद नहीं हो पाती है।
  • सामान्य बोलचाल की भाषा में किसी वित्तीय वर्ष में कुल सरकारी आय और कुल सरकारी व्यय का अंतर राजस्व घाटा कहलाता है।
  • आयोग ने वित्तीय वर्ष 2026 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये लगभग 3 ट्रिलियन रुपए राजस्व घाटा अनुदान की सिफारिश की है।
    • राजस्व घाटे के अनुदान के लिये योग्य राज्यों की संख्या वित्त वर्ष 2022 के 17 से घटकर वर्ष 2026 तक 6 रह जाएगी।

राज्यों के लिये प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन एवं अनुदान

  • ये अनुदान मुख्यतः चार विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
  • पहला विषय सामाजिक क्षेत्र है, जहाँ स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • दूसरा विषय ग्रामीण अर्थव्यवस्था है, जहाँ कृषि और ग्रामीण सड़कों के रखरखाव पर ध्यान केंद्रित किया है।
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इसमें देश की दो-तिहाई आबादी, कुल कार्यबल का 70 प्रतिशत और राष्ट्रीय आय का 46 प्रतिशत हिस्सा शामिल है।
  • तीसरा विषय शासन और प्रशासनिक सुधार है, जिसके तहत आयोग ने न्यायपालिका, सांख्यिकी और आकांक्षी ज़िलों तथा ब्लॉकों के लिये अनुदान की सिफारिश की है।
  • इस श्रेणी में बिजली क्षेत्र के लिये आयोग द्वारा विकसित एक प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन प्रणाली शामिल है, जो अनुदान से संबंधित नहीं है, बल्कि यह राज्यों को अतिरिक्त उधार प्राप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण विंडो प्रदान करती है।

राजस्व में केंद्र की हिस्सेदारी

  • 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को किया गया कुल हस्तांतरण (कर वितरण + अनुदान) केंद्र सरकार की अनुमानित सकल राजस्व प्राप्तियों का लगभग 34 प्रतिशत है, जिससे केंद्र सरकार के पास अपनी आवश्यकताओं और राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं के दायित्त्वों को पूरा करने के लिये पर्याप्त राजस्व बचता है।

स्थानीय सरकारों को अनुदान

  • आयोग ने अपनी सिफारिशों में नगरपालिकाओं और स्थानीय सरकारी निकायों के लिये अनुदान के साथ-साथ, नए शहरों के इन्क्यूबेशन हेतु प्रदर्शन-आधारित अनुदान तथा स्थानीय सरकारों के लिये स्वास्थ्य अनुदान को भी शामिल किया है।
  • शहरी स्थानीय निकायों के लिये अनुदान की व्यवस्था के तहत मूल अनुदान केवल उन शहरों/कस्बों के लिये प्रस्तावित है, जिनकी आबादी दस लाख है। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को 100 प्रतिशत अनुदान मिलियन-प्लस सिटीज़ चैलेंज फंड (MCF) के माध्यम से प्रदर्शन के आधार पर दिया जाएगा। 
    • दस लाख से अधिक आबादी के शहरों का प्रदर्शन उनकी वायु गुणवत्ता में सुधार और शहरी पेयजल आपूर्ति, स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आदि मापदंडों के आधार पर मापा जाएगा। 

चुनौती

  • प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन, स्वतंत्र निर्णय और नवाचार को प्रभावित करता है। राज्य की उधार लेने की क्षमता पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंध से राज्य द्वारा किये जाने वाले खर्च पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिससे राज्य का विकास प्रभावित होगा, परिणामस्वरूप यह सहकारी वित्तीय संघवाद को कमज़ोर करेगा। 
  • आयोग द्वारा एक ओर राज्यों का आकलन उनके प्रदर्शन के आधार पर करने की बात की गई है, वहीं वह केंद्र सरकार के संबंध में राजकोषीय निर्णयों के लिये कोई भी उत्तरदायित्त्व निर्धारित नहीं किया गया है।

हाॅरिजेंटल वितरण मापदंड

जनसंख्या

  • किसी राज्य की जनसंख्या, उस राज्य की सरकार के लिये अपने नागरिकों को बेहतर सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु अधिक व्यय करने की आवश्यकता को दर्शाती है, यानी जिस राज्य की जनसंख्या जितनी अधिक होगी राज्य सरकार को उतना ही अधिक व्यय करना होगा।
  • यह एक सरल और पारदर्शी संकेतक भी है, जिसका महत्त्वपूर्ण समकारी प्रभाव है।

क्षेत्रफल

  • क्षेत्रफल जितना अधिक होता है, सरकार के लिये व्यय की आवश्यकता भी उतनी ही अधिक होती है।

वन और पारिस्थितिकी

  • इसका आकलन सभी राज्यों के कुल सघन वन क्षेत्र में प्रत्येक राज्य के सघन वनों की सापेक्ष भागीदारी से किया जा सकता है।

आय-अंतर

  • आय-अंतर अधिकतम सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वाले राज्य तथा किसी अन्य राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अंतर का प्रतिनिधित्त्व करता है। 
  • अंतर-राज्यीय समानता बनाए रखने के लिये कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों को अधिक हिस्सेदारी दी जाएगी।

जनसांख्यिकीय प्रदर्शन

  • यह जनसंख्या को नियंत्रित करने के राज्यों के प्रयासों को पुरस्कृत करता है।
  • इस मापदंड की गणना वर्ष 1971 की जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार, प्रत्येक राज्य के कुल प्रजनन अनुपात (TFR) के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) के आधार पर की गई है।
    • वर्ष 1971 की जनगणना के बजाय वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों का उपयोग हस्तांतरण में भेदभाव को लेकर दक्षिण भारत के राज्यों की आशंकाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से किया गया है।
  • कम प्रजनन अनुपात वाले राज्यों को इस मापदंड में अधिक अंक प्राप्त होंगे।
    • कुल प्रजनन दर (TFR): किसी एक विशिष्ट वर्ष में प्रजनन दर का अभिप्राय प्रजनन आयु (जो कि आमतौर पर 15 से 49 वर्ष के बीच मानी जाती है) के दौरान एक महिला से जन्म लेने वाले अनुमानित बच्चों की औसत संख्या को दर्शाता है।

कर संग्रह के प्रयास:

  • इस मापदंड का उपयोग उच्च कर संग्रह दक्षता वाले राज्यों को पुरस्कृत करने के लिये किया गया है।
  • इसकी गणना प्रति व्यक्ति कर राजस्व एवं वर्ष 2016-17 और 2018-19 के बीच तीन-वर्ष की अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति राज्य जीडीपी अनुपात के रूप में की गई है।

14th-15th-Finance-commissions

स्रोत: पी.आई.बी.