प्रिलिम्स फैक्ट्स (26 Sep, 2025)



माल एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT)

स्रोत: PIB 

चर्चा में क्यों?  

केंद्रीय वित्त मंत्री ने वस्तु एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) का औपचारिक रूप से शुभारंभ किया, जो भारत की GST यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी। यह न्यायाधिकरण विवादों के समाधान को सुगम बनाने और भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में विश्वास को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा। 

वस्तु एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) क्या है? 

  • परिचय: जीएसटीएटी (GSTAT) एक वैधानिक निकाय है, जिसे केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य अपीलीय या पुनरीक्षण प्राधिकरणों द्वारा पारित आदेशों के विरुद्ध दायर अपीलों की सुनवाई करना है। 
    • यह करदाताओं को विशेषीकृत और स्वतंत्र मंच प्रदान करेगा, जिससे GST प्रणाली में व्यवस्था, पूर्वानुमेयता और विश्वसनीयता बढ़ेगी। 
  • उद्देश्य: जीएसटीएटी का लक्ष्य पूरे भारत में जीएसटी विवादों के लिए एक एकीकृत अपीलीय मंच तैयार करना है (“वन नेशन, वन फोरम”)। यह जीएसटी कानूनों में कानूनी टकराव और अस्पष्टता को कम करता है। 
    • इसका उद्देश्य विवादों का समयबद्ध समाधान करना है, ताकि नकदी प्रवाह और व्यापारिक निश्चितता में सुधार हो। 
    • जीएसटीएटी साधारण भाषा में निर्णय, सरल प्रारूप, चेकलिस्ट और वर्चुअल सुनवाई पर ध्यान केंद्रित करता है। यह ‘नागरिक देवो भव’ और अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधारों के सिद्धांतों के अनुरूप नागरिक-केंद्रित शासन को बढ़ावा देता है। 
  • कार्यप्रणालियाँ: 
    • जीएसटीएटी का संचालन नई दिल्ली में एक प्रधान पीठ (Principal Bench) और देशभर में 45 स्थानों पर 31 राज्य पीठों (State Benches) के माध्यम से किया जाता है, जिससे इसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहुँच सुनिश्चित होती है। 
    • प्रत्येक पीठ में 2 न्यायिक सदस्य, 1 केंद्रीय तकनीकी सदस्य और 1 राज्य तकनीकी सदस्य होते हैं, ताकि न्यायिक और तकनीकी विशेषज्ञता के समन्वय से निष्पक्ष और सुसंगत निर्णय दिये जा सकें। 
    • इसे तीन ‘S’ के आधार पर तैयार किया गया है: 
      • Structure (संरचना): न्यायिक + तकनीकी विशेषज्ञता 
      • Scale (विस्तार): राज्य पीठें और सरल मामलों के लिये एकल सदस्यीय पीठें 
      • Synergy (समन्वय): प्रौद्योगिकी, प्रक्रियाएँ और मानवीय विशेषज्ञता 
    • जीएसटीएटी ई-कोर्ट पोर्टल करदाताओं और प्रैक्टिशनरों के लिये ऑनलाइन दाखिला, मामले की ट्रैकिंग और वर्चुअल सुनवाई की सुविधा प्रदान करता है। 
  • लाभ: 
    • बड़े और छोटे दोनों प्रकार के करदाताओं के अधिकारों की रक्षा करता है तथा न्याय में अनावश्यक देरी नहीं होने देता। 
    • अस्पष्टता को कम तथा पूरे भारत में व्याख्या में समानता और सुसंगतता सुनिश्चित करता है। 
    • निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है और एमएसएमई, निर्यातकों, स्टार्टअप्स तथा नागरिकों के लिये कर अनुपालन को सरल बनाता है। 
    • डिजिटल पोर्टल करदाताओं को ऑनलाइन अपील दाखिल करने, मामलों को ट्रैक करने और वर्चुअल सुनवाई में भाग लेने की सुविधा प्रदान करता है। 
और पढ़ें…: अगली पीढ़ी के सुधारों के साथ GST 2.0 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा के पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. छिलका उतरे हुए अनाज 
  2. मुर्गी के अंडे पकाए हुए 
  3. संसाधित और डिब्बाबंद मछली 
  4. विज्ञापन सामग्री युक्त समाचार पत्र 

उपर्युक्त मदों में से कौन-सी वस्तु/वस्तुएँ जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं?  

(a) केवल 1  

(b) केवल 2 और 3  

(c) केवल 1, 2 और 4  

(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)

प्रश्न. 'वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स/GST)' के क्रियान्वित किये जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभ क्या है/हैं? (2017)  

  1. यह भारत में बहु-प्राधिकरणों द्वारा वसूल किये जा रहे बहुल करों का स्थान लेगा और इस प्रकार एकल बाज़ार स्थापित  करेगा।   
  2. यह भारत के 'चालू खाता घाटे' को प्रबलता से कम कर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने हेतु इसे सक्षम बनाएगा।   
  3. यह भारत की अर्थव्यवस्था की संवृद्धि और आकार को वृहद् रूप से बढ़ाएगा और उसे निकट भविष्य में चीन से आगे निकलने में सक्षम बनाएगा। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1  

(b) केवल 2 और 3  

(c) केवल 1 और 3  

(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 


कतर UPI अपनाने वाला 8वाँ देश बना

स्रोत: द हिंदू

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) ने कतर नेशनल बैंक (QNB) के साथ साझेदारी की है ताकि कतर में एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) को लागू किया जा सके। 

  • मुख्य लाभ: कतर आने वाले अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों में भारतीय दूसरा सबसे बड़ा समूह है। इस प्रणाली को अपनाने से पर्यटकों को सीधे तौर पर लाभ होगा, क्योंकि इससे नकदी की आवश्यकता कम हो जाएगी तथा मुद्रा विनिमय संबंधी परेशानियाँ समाप्त हो जाएंगी। 
  • UPI का वैश्विक विस्तार: UPI को वैश्वीकृत करने के भारत के प्रयासों के तहत कतर भूटान, फ्राँस, मॉरीशस, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात के बाद इसे अपनाने वाला आठवाँ देश बन गया है। 

UPI

  • भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा विकसित भारत का एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) एक अग्रणी डिजिटल भुगतान प्रणाली के रूप में उभरा है, जो रियल-टाइम, सुरक्षित और कम लागत वाले लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है। 
  • UPI तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) पर आधारित है और आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) को एकीकृत करता है। 
  • भारत का UPI अब दुनिया का सबसे प्रमुख रियल-टाइम भुगतान प्रणाली है, जो वीज़ा के 639 मिलियन से अधिक 640 मिलियन दैनिक लेनदेन को संसाधित करता है और भारत के डिजिटल भुगतानों का 85% तथा वैश्विक रियल-टाइम भुगतानों का लगभग 50% संचालित करता है। 
और पढ़ें: UPI 

न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 

भारत आगामी परमाणु ऊर्जा विधेयक के तहत एक न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड (परमाणु दायित्व कोष) स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 के कुछ पहलुओं में संशोधन करना है। 

  • इस कदम का उद्देश्य देश के परमाणु क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश को आकर्षित करना है। 
  • न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड की आवश्यकता: भारत की कुल विद्युत उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का योगदान 3% से भी कम है किंतु भारत 2047 तक अपनी क्षमता को 12 गुना बढ़ाने की योजना बना रहा है ताकि जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम किया जा सके और 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। 
    • पिछले कानूनों के तहत आपूर्तिकर्त्ताओं की जवाबदेही असीमित होती थी, जो विदेशी निवेश को हतोत्साहित करता था और वर्ष 2015 का न्यूक्लियर इंश्योरेंस पूल कानूनी दृष्टि से अनिश्चित था। 
    • प्रस्तावित न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड एक संरचित दुर्घटना क्षतिपूर्ति ढाँचा प्रदान करता है, जो निजी भागीदारी को बढ़ावा देता है और विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं को आकर्षित करता है। 
  • प्रस्तावित न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड की प्रमुख विशेषताएँ: यह कोष परमाणुवीय दुर्घटना क्षतिपूर्ति को कवर करता है, जो ₹1,500 करोड़ से अधिक होता है और ऑपरेटर के दायित्व को पूरक बनाता है। 
    • यह वैधानिक, संरचित ढाँचा प्रदान करता है, जो वर्तमान असंगठित भुगतान प्रणाली की जगह लेता है। 
    • यह निजी और विदेशी निवेशकों के लिये परमाणु ऊर्जा और यूरेनियम खनन में जोखिम को निम्न करता है।

परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 

  • यह परमाणु दुर्घटना पीड़ितों को क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करता है और ऑपरेटर की ज़िम्मेदारी को परिभाषित करता है। 
  • यह सप्लीमेंटरी कॉम्पेन्सेशन कन्वेंशन (CSC, 1997) के अनुरूप है, जिसे भारत ने वर्ष 2016 में अनुमोदित किया। 
  • अधिनियम ऑपरेटरों पर सख्त नो-फॉल्ट दायित्व लगाता है तथा उनकी देयता को ₹1,500 करोड़ तक सीमित करता है। यदि दावे इससे अधिक होते हैं, तो सरकार हस्तक्षेप करती है, जिसकी देयता 300 मिलियन विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) के रुपए समकक्ष तक सीमित होती है। 
  • अधिनियम के तहत, न्यूक्लियर डैमेज क्लेम्स कमीशन सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को न्यायसंगत क्षतिपूर्ति प्राप्त हो।
और पढ़ें: परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010