प्रीलिम्स फैक्ट्स: 22 जून, 2019

कोरिंगा मैन्ग्रोव

(Coringa Wildlife)

सरकार ने कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य (Coringa Wildlife Sanctuary) को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिलवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

  • एक बार यह दर्जा प्राप्त होने के बाद यूनेस्को यहाँ पर्यटन उद्योग को विकसित करने और वन्य जीवों को संरक्षित करने में मदद करेगा।
  • पर्यावरण, वन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी (The Environment, Forests, Science and Technology-EFS&T) विभाग ने इस संदर्भ में सभी मापदंडों को पूरा करने के लिये एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया है।
  • इस वन्यजीव अभयारण्य में पक्षियों की कुल 120 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें बगुला, राजहंस और तीतर आदि प्रमुख हैं।
  • इसके अतिरिक्त यहाँ पर सुनहरा सियार, समुद्री कछुआ और ऊदबिलाव भी पाए जाते हैं।
  • बड़ी मात्रा में खाद्य सामग्री उपलब्ध होने के कारण इस अभयारण्य में पक्षियों की विविधता पाई जाती है।
  • इस वन्य अभयारण्य की महत्त्वता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें विलुप्त होने की कगार पर खड़ी कुछ प्रजातियाँ जैसे - लंबी चोंच वाला गिद्ध और सफ़ेद इबिस आदि भी पाई जाती हैं।

कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य

  • कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य आंध्रप्रदेश के काकीनाडा के समीप स्थित है।
  • यह भारत में पश्चिम बंगाल के सुंदरवन डेल्टा के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है।
  • इस अभयारण्य में पक्षियों की 120 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • इस अभयारण्य का कुल क्षेत्रफल 235. 70 वर्ग किमी. है।

कुटियाट्टम (Kutiyattam)

हाल ही में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कपिला वेणु ने ‘पार्वती विरहम’ का किरदार निभाया। पार्वती विरहम सदियों पुराने कुटियाट्टम नामक नाटक संग्रह का एक भाग है।

  • कुटियाट्टम केरल के सबसे पुराने पारंपरिक थिएटर में से एक है जो संस्कृत परंपराओं पर आधारित है।

Kutiyattam

  • यह मलयालम भाषा में ‘कुटी’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘संयुक्त’ या ‘एक साथ’ एवं ‘अट्टम’ का अर्थ है, ‘अभिनय’ अतैव ‘कुटियाट्टम’ का अर्थ ‘संयुक्त अभिनय’ होता है।
  • इसमें शैलीबद्ध और संहिताबद्ध रंगमंचीय भाषा में नेत्र अभिनय (आँख की अभिव्यक्ति) और हस्त अभिनय (इशारों की भाषा) प्रमुख हैं। इसमें मुख्य चरित्र के विचारों और भावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • पारंपरिक रूप से इसका अभ्यास कुट्टमपालम नामक सिनेमाघरों में किया जाता है, जो हिंदू मंदिरों में स्थित होते हैं।
  • कुटियाट्टम का प्रदर्शन पुरुष अभिनेताओं के समुदाय द्वारा किया जाता है जिन्हें ‘चक्यार’ कहा जाता है और महिला कलाकारों को ‘नंगियार’ कहा जाता है, इन्हें ‘नंबियार’ नामक ढोलवादकों द्वारा संगीत दिया जाता है।
  • पाकरनट्टम, कुटियाट्टम का ही एक स्वरुप है जिसमें पुरुष और महिला भूमिकाओं को भावनात्मकता के साथ प्रदर्शित किया जाता है। पुरुषों एवं महिलाओं का आपस में प्रतिस्थापन तथा एक ही समय में कई भूमिकाओं का व्याख्यान करना इस प्रकार के प्रदर्शनों के अंतर्गत एक चुनौतीपूर्ण कार्य माना जाता है।
  • कुटियाट्टम में नंगियार कुथु महिला प्रदर्शन का एकल खंड है।
  • कुटियाट्टम में संस्कृत भाषा के लगभग सभी प्रमुख नाटककारों के नाटक शामिल हैं, जिनमें भास, हर्ष, शक्तिभद्र, कुलशेखर, नीलकंठ, बोधायन और महेंद्रविक्रमवर्मन शामिल हैं। लेकिन इसके अपवाद के तौर पर महाकवि कालिदास और भवभूति को भी शामिल किया गया हैं, जिनके नाटक पारंपरिक रूप से इस नृत्य कला के प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं हैं।
  • कुटियाट्टम को यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची (Representative List of the Intangible Cultural Heritage of Humanity) में शामिल किया गया है।

वाशी पेपर/कागज़ (‘Washi’ Paper)

वाशी जापान में निर्मित एक प्रकार का कागज़ है। वाशी शब्द जापानी भाषा के शब्द ‘वा’ से ज़लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जापानी’ और ‘शी’ जिसका अर्थ है ‘कागज’।

washi paper

  • इस हस्तनिर्मित कागज़ को वागामी के रूप में भी जाना जाता है और इसे तीन प्रमुख घटकों से बनाया गया है:
    • कोज़ो या ‘शहतूत की छाल’ (Kozo or ‘mulberry bark)’
    • मित्सुमाता झाड़ियाँ (Mitsumata shrubs)
    • गम्पी ट्री (Gampi tree)
  • इन तीन घटकों का उपयोग अकेले या उनकी विशिष्टता के लिये संयोजन में किया जाता है।
    • कोज़ो एक पर्णपाती वृक्ष है जो विश्व के कई हिस्सों में पाया जाता है, यह जापान में क्यूशू द्वीप और शिकोकू में बहुतायत से बढ़ता है। इसकी कठोरता कपड़े के सामान है और जलरोधी के तौर पर भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
    • मित्सुमता एक झाड़ी है यह मूलरूप से चीन का है और इसका उपयोग जापानी मुद्रा बनाने में किया जाता है। यह हाथीदांत के रंग की, महीन सतह वाली होती है और इसका इस्तेमाल छपाई में किया जाता है। इसका उपयोग मीजी काल (Meiji Period) में कागज़ के पैसे छापने के लिये किया जाता था।
    • गम्पी वृक्ष मूलतः जापान का ही है। सामान्यतः यह दुनिया के अन्य हिस्सों में नही पाया जाता। इसका उपयोग पुस्तकों और शिल्प के लिये किया जाता है।
  • कभी-कभी कुछ अन्य रेशे जैसे अबका, रेयान, गेहूँ, चावल, बांस, गांजा, आदि को भी वाशी पेपर बनाने के लिये मिलाया जाता है।
  • वाशी एक अत्यंत पतला पेपर/कागज है, जो कभी लेखन और पेंटिंग से लेकर लैंपशेड, छतरियों और स्लाइडिंग दरवाज़ों आदि के लिये उपयोग किया जाता था। लचीलेपन और टिकाऊपन जैसी विशेषताओं के कारण इसका उपयोग जापान में प्राचीन पत्रों और वृत्तचित्रों को संरक्षित करने के लिये किया जाता है।