प्रिलिम्स फैक्ट्स (21 Oct, 2025)



संयुक्त राष्ट्र वैश्विक भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन (UN-GGIM)

स्रोत: पी. आई. बी.

भारत को 2025-2028 के कार्यकाल हेतु एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र वैश्विक भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन (UN-GGIM-AP) का सह-अध्यक्ष चुना गया है।

  • भू-स्थानिक डेटा समय-आधारित डेटा है जो पृथ्वी की सतह पर किसी विशिष्ट स्थान से संबंधित होता है। यह विभिन्न चरों (Variables) के बीच संबंधों की जानकारी प्रदान कर सकता है और पैटर्न और प्रवृत्तियों को उजागर कर सकता है।
  • सह-अध्यक्ष का चुनाव एशिया-प्रशांत देशों में भू-स्थानिक नवाचार, क्षमता निर्माण और क्षेत्रीय सहयोग में भारत के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
  • भारत UN-GGIM रणनीतिक ढाँचे के अंतर्गत सुरक्षित डिजिटल परिवर्तन, सुशासन और डेटा-संचालित निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

UN-GGIM

  • संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के नेतृत्व में UN-GGIM का उद्देश्य विकास एजेंडा सहित भू-स्थानिक सूचना के उपयोग से संबंधित वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना तथा भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन के क्षेत्र में वैश्विक नीति निर्माण के लिये एक निकाय के रूप में कार्य करना है।
  • UN-GGIM-AP, पाँच क्षेत्रीय UN-GGIM समितियों में से एक है, जो 56 एशिया-प्रशांत देशों का प्रतिनिधित्व करती है और भू-स्थानिक सहयोग, क्षमता निर्माण तथा आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय लाभों के लिये साझा समाधानों को बढ़ावा देती है।

और पढ़ें: संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कांग्रेस


जम्मू-कश्मीर में ‘दरबार मूव’ की वापसी

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चार वर्ष के अंतराल के बाद, दरबार मूव, जम्मू-कश्मीर के सिविल सचिवालय और सरकारी कार्यालयों का 150 वर्ष पुराना द्विवार्षिक स्थानांतरण, जो श्रीनगर (ग्रीष्मकालीन राजधानी) और जम्मू (शीतकालीन राजधानी) के बीच होता है, इस शीतकाल पुन: शुरू होने जा रहा है।

  • ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्त्व: इसे वर्ष 1872 में महाराजा गुलाब सिंह (तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रथम डोगरा शासक) ने शुरू किया था, ताकि प्रशासन लोगों के करीब लाया जा सके और क्षेत्रों के बीच खराब सड़क संपर्क की चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
    • स्वतंत्रता के बाद भी यह जारी रहा और जम्मू-कश्मीर के बीच क्षेत्रीय एकीकरण का प्रतीक बन गया।
  • व्यवहार में अवरोध: वर्ष 2020 के जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि दरबार मूव के लिये  कोई ‘कानूनी औचित्य या संवैधानिक आधार’ नहीं था।
    • वर्ष 2021 में, LG प्रशासन ने दरबार मूव की प्रथा को समाप्त करने का निर्णय लिया और अनुमान लगाया कि इससे सरकार को प्रतिवर्ष 200 करोड़ रुपए की बचत होगी।
  • प्रभाव: पारंपरिक ‘दरबार मूव’ को पुनर्जीवित करने से अनुच्छेद 370 के बाद के शासन में क्षेत्रीय समानता को मज़बूत किया जा सकता है और प्रत्येक स्थानांतरण के दौरान मेज़बान शहरों में स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।
    • हालाँकि, लॉजिस्टिक दबाव, प्रशासनिक निरंतरता में विघटन और पर्यावरण व सुरक्षा संबंधी चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ बनी रहती हैं।
  • महाराजा गुलाब सिंह: उन्होंने वर्ष 1846 में जम्मू और कश्मीर का रियासी राज्य स्थापित किया। वह जम्मू शाही परिवार के प्रत्यक्ष वंशज थे और अपने भाइयों ध्यान सिंह और सुचेत सिंह के साथ प्रसिद्ध डोगरा त्रिमूर्ति के हिस्से थे।
    • उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में लाहौर में शामिल होकर एक प्रमुख सैन्य कमांडर के रूप में नाम कमाया।

और पढ़ें: भारत का संघीय ढाँचा और जम्मू-कश्मीर राज्य


कुरिंजी ब्लूम

स्रोत: द हिंदू

तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में हाल ही में अधिसूचित गुडालुर रिज़र्व फॉरेस्ट में आठ वर्षों के बाद कुरिंजी के सामूहिक पुष्पन (Mass Flowering) का होना जैव विविधता की पुनर्प्राप्ति का संकेत देता है और यह समृद्ध घास के मैदान (Grasslands) तथा बदलती जलवायु परिस्थितियों का एक संकेतक भी है।

  • नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलांथेस कुंथियाना) सहित कुरिंजी की 60 से अधिक प्रजातियाँ, नीलगिरी में 33 किस्मों के साथ, पश्चिमी घाट की स्थानिक हैं।
    • गुडालुर में हाल ही में स्ट्रोबिलांथेस सेसिलिस नामक कुरिंजी किस्म का सामूहिक पुष्पन हुआ है, जो प्रत्येक आठ वर्ष में एक बार पुष्पित होता है।
    • कुरिंजी फूल बाँस की तरह अपने जीवनकाल में केवल एक बार खिलता है। पुष्पन के बाद यह मुरझा जाता है और अगली पीढ़ी के लिये बीज अंकुरण (Seed Germination) पर निर्भर करता है।
    • रंग विविधताओं में बैंगनी, नीला, सफेद और गुलाबी शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक के लिये कई शेड्स हैं।
  • नीलकुरिंजी: यह पश्चिमी घाट के शोला वनों की मूल निवासी झाड़ी है। यह तमिलनाडु के कोडईकनाल क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
    • यह पौधा प्रति 12 वर्ष में एक बार खिलता है और IUCN की रेड लिस्ट में इसे संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। नीलगिरि ("नीला पर्वत") को यह नाम इसके नीले फूलों से मिला है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय मिथकों में कुरिंजी फूल का संबंध भगवान मुरुगन से जोड़ा जाता है। मुथुवन और टोडा जनजातियों के बीच कुरिंजी प्रेम और भावनाओं का प्रतीक माना जाता है।
  • पारिस्थितिक महत्त्व: कुरिंजी का सामूहिक पुष्पन तितलियों, मधुमक्खियों और अन्य कीटों को आकर्षित करता है, जिससे परागण में सहायता मिलती है।
    • यह समृद्ध घास के मैदानों और हाथियों, बाघों और हॉर्नबिल सहित संपन्न वन्य जीवन का सूचक है।

और पढ़ें: नीलकुरिंजी संकटग्रस्त प्रजाति घोषित