प्रिलिम्स फैक्ट्स (12 Jul, 2021)



प्रिलिम्स फैक्ट्स : 12 जुलाई, 2021

इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक

India Industrial Land Bank

GIS-आधारित पोर्टल इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक (India Industrial Land Bank- IILB) ने अप्रैल 2021 से अपने पृष्ठ को देखे जाने (पेज व्यू) के मामले में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है।

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प्रमुख बिंदु

इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक (IILB):

  • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने संसाधनों के अनुकूलन, औद्योगिक उन्नयन तथा स्थिरता के प्रति प्रतिबद्ध दृष्टिकोण अपनाने के लिये देश भर के औद्योगिक क्षेत्रों/समूहों का एक GIS-सक्षम डेटाबेस IILB पोर्टल विकसित किया है।
  • यह पोर्टल औद्योगिक बुनियादी ढाँचे से संबंधित सूचनाओं जैसे- संपर्क (कनेक्टिविटी), आधारभूत संरचनाओं (इंफ्रा), प्राकृतिक संसाधन एवं क्षेत्र, खाली भूखंडों पर प्लॉट-स्तरीय जानकारी, कार्य प्रणाली तथा संपर्क विवरण तक निशुल्क एवं आसान पहुँच प्राप्त करने हेतु वन स्टॉप सोल्यूशन के रूप में कार्य करता है। 
  • इसका उद्देश्य देश में इकाइयाँ स्थापित करने के इच्छुक संभावित निवेशकों को उपलब्ध भूमि के संदर्भ में जानकारी प्रदान करना है।
  • यह राज्य भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) पोर्टल्स और राज्य भूमि बैंकों के लिंक भी प्रदान करता है।

भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS):

  • वेब आधारित भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) में वेब तथा अन्य परिसंचालनों का उपयोग कर स्थानिक जानकारी का अनुप्रयोग, सूचनाओं को संसाधित एवं प्रसारित किया जाता है। 
  • यह उपयोगकर्त्ताओं के आँकड़ों के एकत्रीकरण, विश्लेषण एवं परिणामों को अधिक-से- अधिक व्यक्तियों तक प्रसारित करने में मदद करता है तथा नीति निर्माताओं के लिये उपयुक्त आँकड़ों को उपलब्ध कराने में मदद करता है।
  • GIS ऐसी किसी भी जानकारी का उपयोग कर सकता है जिसमें स्थान शामिल है। स्थान को कई अलग-अलग तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है, जैसे- अक्षांश और देशांतर, पता या ज़िप कोड।
  • GIS में लोगों से संबंधित आँकड़े जैसे- जनसंख्या, आय या शिक्षा का स्तर आदि डेटा शामिल हो सकता है।
    • इसमें कारखानों, खेतों, स्कूलों, तूफानों, सड़कों और विद्युत लाइनों आदि के संबंध में जानकारी भी शामिल हो सकती है।

आयुष सेक्टर से संबंधित नए पोर्टल

New Portals on Ayush Sector

हाल ही में भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धति के तहत शोध, चिकित्‍सा शिक्षा से संबंधित पाँच पोर्टल्स का लोकार्पण किया गया। ये पाँच पोर्टल हैं- CTRI (क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्रेशन ऑफ इंडिया), RMIS (रिसर्च मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम), SAHI/साही (शोकेस ऑफ आयुर्वेद हिस्टोरिकल इम्प्रिंट्स), AMAR (आयुष मैन्यूस्क्रिप्ट्स एडवांस्ड रिपॉज़िटरी) तथा e-Medha/ई्-मेधा (इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल हेरिटेज एक्सेसन)।

  • ‘आयुष’ (AYUSH) का अर्थ:  स्वास्थ्य देखभाल और उपचार की पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक प्रणालियाँ जिनमें आयुर्वेद (Ayurveda), योग (Yoga), प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी (Unani), सिद्ध (Siddha), सोवा-रिग्पा (Sowa-Rigpa) तथा होम्योपैथी (Homoeopathy) आदि शामिल हैं। 

प्रमुख बिंदु:

नए पोर्टल:

  • क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्रेशन ऑफ इंडिया (CTRI): विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के इंटरनेशनल क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री प्लेटफॉर्म के तहत तैयार किया गया क्लीनिकल ट्रायल्स का प्राथमिक रजिस्टर है।
    • CTRI में शामिल इस आयुर्वेदिक डेटासेट से आयुर्वेद के क्षेत्र में होने वाले क्लीनिकल ट्रायल्स के लिये आयुर्वेदिक चिकित्सीय शब्दावली का प्रयोग वैश्विक स्तर पर मान्य होगा।
    • क्लीनिकल स्टडी अर्थात् नैदानिक अध्ययन वह शोध है जो नए परीक्षणों तथा उपचारों का अध्ययन करता है और मानव स्वास्थ्य परिणामों पर उनके प्रभावों का मूल्यांकन करता है।
  • रिसर्च मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम (RMIS): यह आयुर्वेद आधारित अध्ययनों में अनुसंधान एवं विकास के लिये वन स्टॉप सोल्यूशन के रूप में कार्य करेगा।
  • शोकेस ऑफ आयुर्वेद हिस्टोरिकल इम्प्रिंट्स पोर्टल (SAHI): यह पुरा-वानस्पतिक (Archeo-Botanical) जानकारियों, शिलालेखों पर मौजूद उत्कीर्णो और उच्च स्तरीय पुरातात्त्विक अध्ययनों को प्रदर्शित करेगा।
    • यह स्वदेशी स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ भारतीय ज्ञान प्रणाली को समझने में बहुत उपयोगी होगा।
  • आयुष मैन्यूस्क्रिप्ट्स एडवांस्ड रिपॉज़िटरी (AMAR): यह एक डिजिटल डैशबोर्ड है जिसमें आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और सोवा-रिग्पा से जुड़ी पाण्डुलिपियों के देश-दुनिया में मौजूद खजाने के बारे में जानकारी मौजूद रहेगी। 
  • इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल हेरिटेज एक्सेसन (e-Medha): इसमें राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) की मदद से ई-ग्रंथालय प्लेटफॉर्म में संग्रहीत 12000 से भी अधिक भारतीय चिकित्सीय विरासत संबंधी पांडुलिपियों और पुस्तकों का कैटलॉग ऑनलाइन उपलब्ध हो सकेगा।
    • ई-ग्रंथालय (e-Granthalaya): यह NIC द्वारा सरकारी पुस्तकालयों के लिये इन-हाउस गतिविधियों के स्वचालन के साथ-साथ सदस्य सेवाओं और संसाधन साझाकरण की नेटवर्किंग हेतु विकसित एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।

संबंधित पहल:

  • आयुष क्लीनिकल केस रिपोज़िटरी (ACCR) पोर्टल और आयुष संजीविनी एप:
    • ACCR पोर्टल: इसका उद्देश्य विभिन्न रोग स्थितियों के उपचार के लिये आयुष प्रणालियों की शक्तियों को चित्रित करना है।
    • आयुष संजीवनी एप तीसरा संस्करण: यह आयुष विज्ञान के तरीकों एवं उनकी प्रभावकारिता के बारे में महत्त्वपूर्ण अध्ययन और प्रलेखन की सुविधा प्रदान करेगा, जिसमें आयुष-64 तथा ‘कबसुरा कुदिनीर दवाएँ’ शामिल हैं जो स्पर्शोन्मुख और हल्के से मध्यम लक्षणों वाले कोविड-19 रोगियों के प्रबंधन में शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय आयुष मिशन (National Ayush Mission): भारत सरकार आयुष चिकित्सा प्रणाली के विकास और संवर्द्धन हेतु राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) नामक केंद्र प्रायोजित योजना लागू कर रही है।
  • आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र।
  • हाल ही में एक सरकारी अधिसूचना के माध्यम से विशिष्ट सर्जिकल प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध किया गया है तथा कहा गया है कि आयुर्वेद के स्नातकोत्तर मेडिकल छात्रों को इस प्रणाली से परिचित होने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से प्रदर्शन करने हेतु व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित होना चाहिये।

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

Jagannath Puri Rath Yatra

ओडिशा में जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह यात्रा 12 जुलाई, 2021 से 20 जुलाई, 2021 तक चलेगी।

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प्रमुख बिंदु

जगन्नाथ रथ यात्रा: 

  • रथ यात्रा एक हिंदू त्योहार है जिसका संबंध भगवान जगन्नाथ से है तथा इसका आयोजन पुरी, ओडिशा में किया जाता है।
  • इस रथ यात्रा की शुरुआत आषाढ़ मास (पारंपरिक उड़िया कैलेंडर के अनुसार तीसरा महीना) के शुक्त पक्ष की द्वितिया तिथि को होती है। 
  • यह 9 दिन तक चलने वाला कार्यक्रम है तथा भगवान कृष्ण की अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पुरी के सारदा बाली के निकट मौसी माँ मंदिर से होते हुए गुंडिचा मंदिर में वापसी का प्रतीक है।
  • उत्सव के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को ले जाने वाले तीन पवित्र रथों को भारत के साथ-साथ विदेशों से आने हज़ारों भक्तों द्वारा खींचा जाता है।

जगन्नाथ मंदिर:

  • ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में पूर्वी गंग राजवंश (Eastern Ganga Dynasty) के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था।
  • जगन्नाथ पुरी मंदिर को ‘यमनिका तीर्थ’ भी कहा जाता है, जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पुरी में भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो गई है।
  • इस मंदिर को "श्वेत पैगोडा" कहा जाता था और यह चारधाम तीर्थयात्रा (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक हिस्सा है।
  • मंदिर के चार (पूर्व में ‘सिंह द्वार’, दक्षिण में 'अश्व द्वार’, पश्चिम में 'व्याघरा द्वार' और उत्तर में 'हस्ति द्वार’) मुख्य द्वार हैं। प्रत्येक द्वार पर नक्काशी की गई है।
    • प्रत्येक द्वार पर विभिन्न प्रकार की नक्काशी है।
  • इसके प्रवेश द्वार के सामने अरुण स्तंभ या सूर्य स्तंभ स्थित है, जो मूल रूप से कोणार्क के सूर्य मंदिर में स्थापित था।

ओडिशा के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक:


केसरिया बौद्ध स्तूप : बिहार
Kesaria Buddha Stupa: Bihar

बिहार के पूर्वी चंपारण में विश्व प्रसिद्ध केसरिया बुद्ध स्तूप, ज़िले के कुछ हिस्सों में बाढ़ के बाद जलमग्न हो गया है।

Kesaria-Buddha-Stupa

प्रमुख बिंदु:

संदर्भ:

  • स्तूप को विश्व का सबसे ऊँचा और सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप माना जाता है।
  • यह बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले में पटना से 110 किलोमीटर की दूरी पर केसरिया में स्थित है।
  • इसकी परिधि लगभग 400 फीट है और यह लगभग 104 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।

इतिहास:

  • स्तूप का प्रथम निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है। मूल केसरिया स्तूप संभवतः अशोक (लगभग 250 ईसा पूर्व) के समय का है, क्योंकि यहाँ अशोक के एक स्तंभ के शीर्ष के अवशेष पाए गए थे।
  • वर्तमान स्तूप 200 ईस्वी और 750 ईस्वी के बीच गुप्त राजवंश के समय का है और यह चौथी शताब्दी के शासक राजा चक्रवर्ती से संबंधित हो सकता है।
  • स्तूप के टीले के उद्भव संभवतः बुद्ध के समय में हुआ होगा, क्योंकि यह कई मायनों में वैशाली के लिच्छवियों द्वारा भिक्षा कटोरे (बुद्ध द्वारा दिये गए) को रखने के लिये बनाए गए स्तूप के वर्णन से संबंधित है।
    • प्राचीन काल में केसरिया, मौर्यों और लिच्छवियों के शासनाधीन था।
  • दो महान विदेशी यात्रियों, फैक्सियन (फाह्यान) और जुआन जांग (हुआन त्सांग/ह्वेनसांग) ने प्राचीन काल में इस स्थान का दौरा किया था तथा अपनी यात्रा के दिलचस्प तथा सूचनात्मक विवरण प्रस्तुत किये हैं।
  • कुषाण वंश के प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क (30 ई. से 375 ई.) की मुहर वाले सोने के सिक्कों की खोज केसरिया की प्राचीन विरासत को और अधिक समृद्ध बनाती है।

खोज/अन्वेषण:

  • वर्ष 1814 में कर्नल मैकेंज़ी के नेतृत्व में खोज के बाद इसके अन्वेषण का कार्य शुरू शुरू हुआ।
  • इसके उपरांत वर्ष 1861-62 में जनरल कनिंघम द्वारा इसकी खुदाई की गई और वर्ष 1998 में पुरातत्वविद् के.के. मुहम्मद द्वारा इस स्थल का विस्तृत अन्वेषण किया गया।

बिहार के अन्य प्रसिद्द बौद्ध स्थल

  • महाबोधि मंदिर
  • नालंदा महाविहार
    • उपरोक्त दोनों स्थल यूनेस्को विश्वधरोहर स्थल हैं।
  • रोहतासगढ़ का किला

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 जुलाई, 2021

अंटार्कटिका में सक्रिय झीलें

हाल ही में अमेरिकी स्पेस एजेंसी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि अंटार्कटिका की जल प्रणाली में 130 से अधिक सक्रिय झीलें हैं और इसका विकास भविष्य में बर्फ की चादर की गतिशीलता के लिये एक बड़ी अनिश्चितता बन सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, अंटार्कटिक बर्फ, जो ऊपर से शांत एवं स्थिर दिखाई देती है, धीरे-धीरे अपनी नींव से कमज़ोर होती जा रही है और ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। बर्फ के पिघलने से उसके नीचे कई झीलें बन गई हैं, जिससे जलमार्ग की एक प्रणाली विकसित हुई है जो अंततः समुद्र तक पहुँचती है। अंटार्कटिक जल प्रणाली की खोज सर्वप्रथम वर्ष 2007 में स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी के ग्लेशियोलॉजिस्ट हेलेन फ्रिकर द्वारा की गई थी। अब वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे से जुड़ी सक्रिय झीलों के पूरे नेटवर्क का पता लगाया है, जो समय के साथ और सक्रिय होती जा रही हैं। अंटार्कटिक की सतह में सक्रिय झीलों का निर्माण विभिन्न कारकों जैसे- ऊपरी बर्फ का भारी वज़न, बर्फ की चादर की सतह एवं चट्टानों के बीच घर्षण और पृथ्वी से आने वाली गर्मी आदि का परिणाम होता है। विदित हो कि हाल ही में अंटार्कटिका में एक विशाल बर्फ से ढकी झील कुछ ही दिनों में गायब हो गई थी, जिससे वैज्ञानिकों के बीच ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंता और अधिक बढ़ गई थी। शोधकर्त्ताओं का मत है कि शेल्फ के नीचे बनी सक्रिय झीलें इस बड़े बदलाव का प्रमुख कारण हैं। इस घटना के कारण अनुमानित 21 अरब से 26 अरब क्यूबिक फीट पानी समुद्र में पहुँच गया था। 

मलाला दिवस

संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिवर्ष 12 जुलाई को महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का सम्मान करने के लिये वैश्विक स्तर पर ‘मलाला दिवस’ का आयोजन किया जाता है। 12 जुलाई, 1997 को पाकिस्तान में जन्मी मलाला यूसुफज़ई एक सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं, जो महिला शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में अनवरत संघर्ष कर रही हैं। उन्होंने पाकिस्तान में बालिका शिक्षा पर प्रतिबंध का सार्वजनिक और ज़ोरदार विरोध किया तथा बालिकाओं को शिक्षित करने की आवश्यकता की वकालत की। मलाला को अंतर्राष्ट्रीय ख्यति तब प्राप्त हुई जब मात्र 15 वर्ष की आयु में कट्टरपंथियों द्वारा उनकी हत्या का प्रयास किया गया। गौरतलब है कि 10 अक्तूबर, 2014 को मलाला युसुफजई को ‘बच्चों और महिलाओं की शिक्षा के लिये संघर्ष करने हेतु भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्त्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस तरह वह सबसे छोटी उम्र की नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता हैं। इसके अलावा वर्ष 2012 में उन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने युवा लड़कियों को स्कूल जाने में मदद करने के लिये एक गैर-लाभकारी संगठन ‘मलाला फंड’ की भी स्थापना की है। मलाला को कनाडा की मानद नागरिकता से भी नवाज़ा जा चुका है। 

‘ग्रेवेलिया बोरो’ और ‘डेक्सिपस क्लेनी’ मकड़ियाँ

हाल ही में पश्चिमी असम के चिरांग रिज़र्व फॉरेस्ट की ‘झारबारी रेंज’ में भूमिगत मकड़ियों की दो नई प्रजातियों - ग्रेवेलिया बोरो और डेक्सिपस क्लेनी की खोज की गई है। इन दोनों मकड़ियों को बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र में खोजा गया है। पहली मकड़ी यानी ‘ग्रेवेलिया बोरो’ का नाम बोडो समुदाय के नाम पर रखा गया है और यह मिट्टी, वनस्पति तथा रेशम से बने कॉर्क जैसे जाल के साथ बिलों का निर्माण करती है। ये मकड़ियाँ रेतीली-दोमट सतह से लगभग 10-15 सेंटीमीटर नीचे भूमिगत रहती है। वहीं ‘डेक्सिपस क्लेनी’ एक ओरिएंटल जंपिंग मकड़ी है, जिन्हें पहली बार इस क्षेत्र में देखा गया है। इस मकड़ी को मूलतः  129 वर्ष पूर्व स्वीडिश पुरातत्त्वविद् टॉर्ड टैमरलान थोरेल द्वारा खोजा गया था। ‘डेक्सिपस क्लेनी’ ‘साल्टिसिडे’ परिवार की सदस्य है, जो पृथ्वी पर मकड़ियों का सबसे बड़ा परिवार है।