संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नए अस्थायी देश
स्रोत: संयुक्त राष्ट्र
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने बहरीन, कोलंबिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC), लातविया और लाइबेरिया को 1 जनवरी, 2026 से शुरू होने वाले 2 वर्ष के कार्यकाल हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में चुना है।
- वे डेनमार्क, ग्रीस, पाकिस्तान, पनामा, सोमालिया (वर्ष 2024 में निर्वाचित, वर्ष 2026 तक सेवारत) में शामिल हो जाएंगे।
- इसके अलावा, पाकिस्तान को वर्ष 2025 के लिये UNSC 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है और वह परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में वर्ष 2025-26 के कार्यकाल के दौरान UNSC आतंकवाद-रोधी समिति के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य करेगा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत की गई थी, संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी सौंपी गई है ।
- परिषद में 15 सदस्य हैं, जिनमें 5 स्थायी सदस्य (P5) - चीन, फ्राँस, रूस, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका (जिनके पास वीटो शक्ति है) और 10 गैर-स्थायी सदस्य हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा 2 वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।
- ये अस्थायी सीटें क्षेत्रीय आधार पर आवंटित की जाती हैं: अफ्रीकी और एशियाई राज्यों के लिये 5, पूर्वी यूरोपीय राज्यों के लिये 1, लैटिन अमेरिकी एवं कैरेबियाई राज्यों के लिये 2 तथा पश्चिमी यूरोपीय व अन्य राज्यों के लिये 2।
- चुनाव प्रतिवर्ष गुप्त मतदान के माध्यम से आयोजित किये जाते हैं, जिसमें दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, भले ही उम्मीदवार निर्विरोध हों।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एकमात्र ऐसा संयुक्त राष्ट्र निकाय है, जिसके निर्णयों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत लागू करना सदस्य देशों के लिये अनिवार्य है।
- सुरक्षा परिषद में भारत की भागीदारी वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 और 2021-22 की अवधि के दौरान एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में रही है।
1988 तालिबान प्रतिबंध समिति क्या है?
- परिचय: इसे UNSC 1988 प्रतिबंध समिति के नाम से भी जाना जाता है। यह समिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्ताव 1988 (2011) के तहत स्थापित की गई थी।
- इसमें UNSC के सभी 15 सदस्य शामिल होते हैं। यह समिति सर्वसम्मति से निर्णय लेती है और विश्लेषणात्मक समर्थन एवं प्रतिबंध निगरानी टीम द्वारा सहायता प्राप्त करती है।
- अधिदेश: इसका उद्देश्य उन व्यक्तियों एवं संगठनों के विरुद्ध लक्षित प्रतिबंधों (जैसे- संपत्ति फ्रीज करना, यात्रा प्रतिबंध एवं हथियारों का बहिष्कार) को लागू करना तथा उनकी निगरानी करना है, जो तालिबान से जुड़े हैं और अफगानिस्तान की शांति, स्थिरता व सुरक्षा के लिये खतरा हैं।
- अध्यक्षता: भारत ने दिसंबर 2021 तक इस समिति की अध्यक्षता की थी।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद निरोधक समिति (CTC) क्या है?
- परिचय: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आतंकवाद निरोधक समिति (CTC) की स्थापना प्रस्ताव 1373 के माध्यम से की गई थी, जिसे अमेरिका में 9/11 आतंकवादी हमलों के बाद वर्ष 2001 में सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
- सदस्य: यह समिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सभी 15 सदस्य देशों (5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्यों) से मिलकर बनी है।
- अधिदेश: संकल्प 1373 के कार्यान्वयन की निगरानी और प्रोत्साहन करना, जो सदस्य राज्यों को निम्नलिखित प्रतिबद्धताएँ करता है:
- आतंकवाद के वित्तपोषण को अपराध मानना और संबंधित संपत्तियों को ज़ब्त करना,
- आतंकवादियों को वित्तीय और सामग्री समर्थन देने से मना करना,
- आतंकवादी समूहों के लिये सुरक्षित ठिकाने, प्रशिक्षण और सहायता को रोकना,
- आतंकवादी गतिविधियों पर जानकारी साझा करके अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- वर्ष 2025 का अध्यक्ष: वर्ष 2025 में अल्जीरिया CTC की अध्यक्षता करेगा, जबकि फ्राँस, रूस और पाकिस्तान उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगे।
- भारत ने वर्ष 2022 में CTC की अध्यक्षता की थी, जो उसके वर्ष 2021–22 के UNSC कार्यकाल के दौरान था और उसने पाकिस्तान द्वारा UN-निर्धारित आतंकवादियों को आश्रय देने की चिंता को सक्रिय रूप से उजागर किया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्य महासभा द्वारा कितनी अवधि के लिये चुने जाते हैं? (2009) (a) 1 वर्ष उत्तर: (b) |
स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये नए तरीकों की खोज कर रहे हैं, जैसे कि स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (SAI)। यह एक जियोइंजीनियरिंग तकनीक है, जो ज्वालामुखी विस्फोटों से प्रेरित है और पृथ्वी को तेज़ी से एवं कम लागत में ठंडा कर सकती है।
स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन क्या है?
- परिचय: SAI एक प्रस्तावित सौर जियोइंजीनियरिंग (या सौर विकिरण संशोधन) तकनीक है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी के जलवायु तापमान को कम करना है। यह तकनीक सूर्य के प्रकाश के एक छोटे हिस्से को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर पृथ्वी को ठंडा करने के लिये इजाद की गई है।
- यह तकनीक प्राकृतिक रूप से बृहत् ज्वालामुखीय विस्फोटों के बाद देखे गए शीतलन प्रभाव की नकल करती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 1991 में फिलीपींस के माउंट पिनातुबो के विस्फोट ने स्ट्रैटोस्फीयर में सल्फेट एरोसोल छोड़े थे, जिससे उस वर्ष वैश्विक तापमान में अस्थायी रूप से लगभग 0.5°C की गिरावट आई थी।
- SAI की कार्यप्रणाली: SAI के अंतर्गत छोटे परावर्तक कणों (सामान्यतः सल्फेट एरोसोल या कैल्शियम कार्बोनेट जैसे विकल्प) को स्ट्रैटोस्फीयर (10–50 किमी ऊँचाई) में छोड़ा जाता है।
- ये कण आने वाली सौर विकिरण के एक हिस्से को बिखेरते और परावर्तित करते हैं , जिससे पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली ऊष्मा की मात्रा कम हो जाती है।
- पृथ्वी की परावर्तकता (reflectivity) को बढ़ाकर, SAI ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाली ऊष्मा को कुछ हद तक कम कर सकता है ।
- प्रभावशीलता: SAI आमतौर पर अधिक प्रभावी है, क्योंकि कण महीनों से लेकर वर्षों तक समताप मंडल में बने रहते हैं। इसके विपरीत, कम ऊँचाई पर उत्सर्जित कण अक्सर बादलों में फँसने के बाद वर्षा से बह जाते हैं ।
- शीतलन प्रभाव आमतौर पर ध्रुवीय क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट होता है, जबकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, अधिक ऊष्मा का अनुभव करने के बावजूद , SAI का कम प्रभाव दिखाई देता है।
- संबद्ध जोखिम:
- पर्यावरणीय जोखिम: ओज़ोन परत को नुकसान (इसकी रिकवरी में देरी), सल्फर डाइऑक्साइड से अम्लीय वर्षा और असमान शीतलन (ध्रुवीय क्षेत्रों में अधिक मज़बूत, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कमज़ोर)।
- दीर्घकालिक प्रभाव: यह केवल ऊष्मा को कम कर देता है, मूल कारण (CO₂ उत्सर्जन) को हल नहीं करता है। यह वर्षा प्रतिरूप और वायु परिसंचरण को बदल सकता है, जिसका मानसून क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
- इससे समतापमंडलीय रसायन विज्ञान में भी व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे मीथेन का जीवनकाल, बर्फ निर्माण और बादलों की सूक्ष्मभौतिकी प्रभावित हो सकती है।
सौर विकिरण संशोधन के अन्य तरीके क्या हैं?
- मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (MCB): इसमें निम्न-स्तर के समुद्री बादलों (समुद्री स्ट्रेटोक्यूम्यलस) में बारीक समुद्री जल की बूंदों का छिड़काव किया जाता है, जिससे बादल संघनन नाभिक के रूप में कार्य करके उनकी परावर्तकता एवं स्थायित्व को बढ़ाया जाता है ।
- MCB को SAI की तुलना में अधिक स्थानीयकृत और प्रतिवर्ती माना जाता है, लेकिन यह तकनीकी रूप से अधिक चुनौतीपूर्ण एवं मौसम पर निर्भर भी है।
- स्पेस सनशेड्स: इसमें ऑर्बिट में या लैग्रेंज पॉइंट 1 (वह बिंदु, जहाँ पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल आपस में संतुलित होते हैं) पर बड़े दर्पण या स्क्रीन लगाए जाते हैं, जो आने वाली सौर विकिरण को रोकते या मोड़ते हैं, जिससे पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा कम हो जाती है।
- सिरस क्लाउड थिनिंग (CCT): CCT का उद्देश्य उच्च-ऊँचाई वाले सिरस बादलों को संशोधित करके वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करना है, क्योंकि ये बादल अपनी उच्च हिम सामग्री के कारण गर्मी को रोकते हैं।
- CCT बिस्मथ ट्राइआयोडाइड जैसे बर्फ के कणों को इंजेक्ट करता है, ताकि हिम कणों का आकार बढ़ सके, जिससे सिरस बादल कम स्थायी बन जाते हैं, गर्मी का निकास बढ़ जाता है और हिम कणों के तेज़ी से गिरने से उनका ताप बढ़ाने वाला प्रभाव कम हो जाता है।
- डायमंड डस्ट का छिड़काव: इसमें स्ट्रैटोस्फ़ीयर में सिंथेटिक नैनोडायमंड (1–100 नैनोमीटर) छिड़कने का सुझाव दिया गया है।
- यह अत्यधिक परावर्तक और रासायनिक रूप से निष्क्रिय होते हैं, जो सौर विकिरण को परावर्तित कर पृथ्वी की गर्मी अवशोषण को कम करते हैं तथा ग्रह को ठंडा करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: वायु प्रदूषण कम करने हेतु कृत्रिम वर्षा कराने के तरीके में किनका प्रयोग होता है? (2025) (a) सिल्वर आयोडाइड और पोटैशियम आयोडाइड उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में, कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समतापमंडल में सल्फेट वायुविलय अंतःक्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019) (a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये उत्तर: (d) |
उन्नत भारत अभियान
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शिक्षा मंत्रालय के उन्नत भारत अभियान (UBA) ने एक दशक पूरा कर लिया है, जो ग्रामीण विकास में उच्च शिक्षा की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित करता है।
- उन्नत भारत अभियान: उन्नत भारत अभियान (2014) का उद्देश्य सतत् और समावेशी प्रथाओं के माध्यम से स्थानीय विकास चुनौतियों को हल करने के लिये उच्च शिक्षण संस्थानों (HEI) के संसाधनों का लाभ उठाकर ग्रामीण भारत में परिवर्तनकारी बदलाव लाना है।
- आवश्यकता: उन्नत भारत अभियान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत की 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जिसमे 54-55% कार्यबल कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में लगे हुए हैं, वे राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में केवल 15-18% का योगदान देते हैं, जो व्यापक ग्रामीण विकास की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।
- कार्यान्वयन और पहुँच: IIT दिल्ली एक राष्ट्रीय समन्वय संस्थान है जो उन्नत भारत अभियान की देख-रेख करता है, जिसके 4,000 से अधिक संस्थान 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 19,000 से अधिक गाँवों के साथ कार्य कर रहे हैं।
- प्रमुख फोकस क्षेत्र: जैविक कृषि, जल और ऊर्जा प्रणाली, स्वास्थ्य देखभाल तथा स्वच्छता, ग्रामीण शिल्प एवं आवास, ई-गवर्नेंस व बुनियादी सुविधाएँ।
- ग्राम अध्ययन (सहभागी शिक्षा) UBA का केंद्रीय तत्त्व है, जो समाधानों को टॉप डाउन के बजाय बॉटम उप नियोजन को बढ़ावा देता है।
- उल्लेखनीय सफलता:
- IIT दिल्ली की लेमनग्रास की खेती और तेल निष्कर्षण इकाई ने फसल के दौरान किसानों की आय 8,000-10,000 रुपए प्रति माह बढ़ा दी है।
- NIT मणिपुर का वाटर प्यूरीफायर 2,000 से अधिक ग्रामीणों को स्वच्छ जल प्रदान करता है।
- UBA 2.0 (2018) एक चैलेंज मोड पर आधारित है, जिसके तहत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) को स्वेच्छा से कम-से-कम 5 गाँवों को गोद लेने की आवश्यकता होती है। यह UBA 1.0 (इनविटेशन मोड) से अलग है, जहाँ संस्थानों को भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जाता था।
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राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC)
स्रोत: पी.आई.बी
रक्षा राज्य मंत्री ने पूरे देश में राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) के 3 लाख कैडेटों की संख्या बढ़ाने की घोषणा की है।
राष्ट्रीय कैडेट कोर
- परिचय: NCC रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वैच्छिक त्रि-सेवा संगठन (सेना, नौसेना और वायु सेना) है, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा इसकी स्थापना NCC अधिनियम, 1948 के तहत की गई है।
- यह विश्व का सबसे बड़ा वर्दीधारी युवा संगठन है जिसके देशभर में 15 लाख से अधिक कैडेट हैं।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: कैडेट प्रशिक्षण की अवधारणा जर्मनी में 1666 में शुरू हुई। भारत में, इसकी शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय रक्षा अधिनियम, 1917 के तहत स्थापित विश्वविद्यालय कोर से हुई।
- भारत में इसकी शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय रक्षा अधिनियम, 1917 के तहत स्थापित विश्वविद्यालय कोर से हुई।
- वर्ष 1920 के भारतीय प्रादेशिक अधिनियम के बाद, विश्वविद्यालय कोर को विश्वविद्यालय प्रशिक्षण कोर (UTC) के रूप में पुनर्गठित किया गया और बाद में वर्ष 1942 में इसका नाम बदलकर विश्वविद्यालय अधिकारी प्रशिक्षण कोर (UOTC) कर दिया गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसके सीमित प्रभाव के कारण एच.एन. कुंज़रू समिति की रिपोर्ट (1946) में एकीकृत युवा निकाय की सिफारिश की गई, जिसके परिणामस्वरूप NCC अधिनियम, 1948 बना। लैंगिक समावेशन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1949 में गर्ल्स डिवीज़न को जोड़ा गया।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य युवाओं को अनुशासित, देशभक्त और ज़िम्मेदार नागरिक बनाना है।
- युद्ध एवं सुधार में भूमिका: वर्ष 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान NCC कैडेटों ने महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की रक्षा, रसद पहुँचाने तथा बचाव एवं यातायात नियंत्रण में सहायता करके रक्षा प्रयासों में सहयोग किया।
- वर्ष 1971 के बाद NCC ने युद्ध प्रशिक्षण पर अपना ध्यान कम करते हुए नेतृत्व, समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया।
- संरचना एवं प्रशिक्षण: महानिदेशक (लेफ्टिनेंट जनरल का पद) के नेतृत्व में।
- पूरे भारत के हाई स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों से नामांकन।
- कैडेटों को बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण और प्रमाण-पत्र (A, B, C) प्राप्त होते हैं, जो सैन्य भर्ती के लिये पात्रता बढ़ाते हैं।
और पढ़ें: राष्ट्रीय कैडेट कोर
माउंट एटना
स्रोत: द हिंदू
यूरोप का सबसे बड़ा और विश्व के सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक माउंट एटना में विस्फोट शुरू हो गया है।
माउंट एटना
- यह भूमध्य सागर में सिसिली के पूर्वी तट पर स्थित है और इटली का एक हिस्सा है।
- यह एक निरंतर सक्रिय स्ट्रैटोवोलकैनो है, जिसके पाँच शिखर ज्वालामुखी क्रेटर हैं और यह विस्फोटक, प्रवाही तथा मिश्रित प्रकार के विस्फोटों के लिये जाना जाता है।
- एटना वर्ष 2013 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल रहा है।
- माउंट एटना के विस्फोट को प्रारंभ में स्ट्रॉम्बोलियन विस्फोट के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिसमें गैस के बुलबुले फूटने के कारण मध्यम स्तर के गैस-चालित विस्फोट शामिल होते हैं।
- हालाँकि, इसकी एश प्लूम कई किलोमीटर तक पहुँचने के कारण, कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि यह एक अधिक विस्फोटक प्लिनियन विस्फोट हो सकता है।
और पढ़ें: ज्वालामुखीय भँवर वलय
असामान्य रक्त के थक्के से निपटने के लिये नैनोज़ाइम
स्रोत: द हिंदू
शोधकर्त्ताओं ने एक धातु-आधारित नैनोजाइम विकसित किया है, जो असामान्य रक्त के थक्के बनने को प्रभावी ढंग से रोकता है तथा फुफ्फुसीय थ्रोम्बेम्बोलिज्म (PTE, रक्त के थक्के फेफड़ों में धमनियों को अवरुद्ध करते हैं) और थ्रोम्बोसिस (नसों या धमनियों में रक्त का थक्का जमना) जैसी स्थितियों के लिये आशाजनक उपचार प्रदान करता है।
- सामान्य रक्त का थक्का जमना (हेमोस्टेसिस) चोट वाले स्थान पर प्लेटलेट्स का समूहन होता है, जो कोलेजन और थ्रोम्बिन जैसे शारीरिक एगोनिस्ट से संकेतों द्वारा सक्रिय होता है।
- PTE या कोविड-19 जैसे विकारों में, ऑक्सीडेटिव तनाव और विषाक्त रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (ROS) बढ़ जाते हैं, जिससे अत्यधिक प्लेटलेट सक्रियण और खतरनाक थक्का गठन (थ्रोम्बोसिस) होता है।
- रेडॉक्स-सक्रिय नैनोमटेरियल (नैनोजाइम) प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट एंजाइमों की नकल करते हैं, जो प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों (ROS) को नष्ट करने और प्लेटलेट अति-सक्रियण को रोकने में मदद करते हैं।
- उनमें से, गोलाकार वैनेडियम पेंटोक्साइड (V₂O₅) नैनोजाइम सबसे प्रभावी थे, जो ग्लूटाथियोन पेरोक्सीडेज, जो एक प्रमुख प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट एंजाइम है, की नकल करते थे।
- यह रक्त वाहिकाओं में रुकावट के कारण होने वाले इस्केमिक स्ट्रोक को रोकने में मदद कर सकता है और कोविड-19 से संबंधित थक्के संबंधी जटिलताओं के प्रबंधन में भी सहायता कर सकता है ।
- नैनोजाइम एक नैनोमटेरियल (1-100 NM) है, जो प्राकृतिक एंजाइमों की गतिविधि की नकल करता है, जैविक एंजाइमों जैसी जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं को उत्प्रेरित करता है।
- नैनोजाइम विभिन्न सामग्रियों से बनाए जा सकते हैं, जैसे- धातु, धातु ऑक्साइड, कार्बन-आधारित पदार्थ और धातु-कार्बनिक फ्रेमवर्क (MOF)।
और पढ़ें: नैनोटेक्नोलॉजी