भारत के लिये दो मोर्चों पर युद्ध की चुनौती
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत के लिये चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चों पर युद्ध की संभावनाओं व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
पिछली शताब्दी में सुरक्षा की दृष्टि से भारत की रणनीतिक सोच पाकिस्तान और उसके कारण उत्पन्न वाली सुरक्षा चुनौतियों पर ही केंद्रित रही है। परंतु हाल के दशकों में भारत के सैन्य विशेषज्ञों का मत इस दृष्टिकोण को लेकर दृढ़ हुआ है कि भारत के लिये चीन-पाकिस्तान का साझा सैन्य खतरा एक वास्तविक संभावना हो सकता है।
मई 2020 में लद्दाख में चीनी सेना की घुसपैठ और इससे जुड़ी वार्ताओं के गतिरोध ने चीनी सैन्य खतरे को अधिक स्पष्ट और वास्तविक बना दिया है। हालाँकि कुछ मीडिया खबरों के अनुसार, पाकिस्तान ने हाल में गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में 20,000 अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती करते हुए इस क्षेत्र में अपनी सैन्य शक्ति को लद्दाख में चीनी सैन्य तैनाती के बराबर कर लिया है।
इसे देखते हुए दो मोर्चों (LOC और LAC के संदर्भ में) पर खतरे के लिये तैयार रहना भारत का एक समझदारी भरा निर्णय माना जाएगा।
चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य साझेदारी:
- सैन्य क्षेत्र में चीन-पाकिस्तान की साझेदारी कोई नई बात नहीं हैं परंतु वर्तमान में इसके प्रभाव पहले से कहीं अधिक गंभीर हो गए हैं।
- चीन दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते प्रभुत्व को चुनौती देने के लिये पाकिस्तान को अपने अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के साधन के रूप में देखता है।
- चीन अपनी ‘चेक बुक कूटनीति’ (Chequebook Diplomacy) के माध्यम से दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों पर भी इसी प्रकार का प्रभाव/आधिपत्य स्थापित करना चाहता है। ऐसा करते हुए चीन सैन्य संघर्ष में ही भारत के आर्थिक संसाधनों को खत्म करना चाहेगा।
- ऐसे में दोहरे मोर्चे पर युद्ध की स्थिति दक्षिण एशिया में भारत के प्रभुत्व को कम करने के संदर्भ में चीन की एक संभावित रणनीति हो सकती है।
- पिछले कुछ वर्षो में चीन और पाकिस्तान के संबंधों में निरंतर मज़बूती आई है, इसके साथ ही उनकी रणनीतिक विचारधारा में भी व्यापक समन्वय देखने को मिला है।
- इस बात को चीन द्वारा ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (China Pakistan Economic Corridor-CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान में किये गए व्यापक निवेश के रूप में समझा जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग में भी वृद्धि हुई है, गौरतलब है कि वर्ष 2015-19 के बीच पाकिस्तान के कुल सैन्य आयात में चीन की भागीदारी लगभग 73% थी।
भारत और दो मोर्चों पर युद्ध से जुड़ी चुनौतियाँ:
- क्षेत्रीय शांति के लिये संकट: दो मोर्चों पर संघर्ष की स्थिति जो कि दक्षिण एशिया के तीन परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच एक वास्तविक युद्ध में भी बदल सकती है, इस क्षेत्र की स्थिरता के लिये बड़ी चुनौती होगी।
- भारत की दुविधा: दो मोर्चो पर संघर्ष की स्थिति भारतीय सेना के समक्ष संसाधन और रणनीति की दो प्रमुख दुविधाएँ खड़ी करेगी।
- संसाधन: दो मोर्चों पर संघर्ष की स्थिति में उपलब्ध संसाधनों के आवंटन के दौरान उनकी मात्रा का निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण और अत्यधिक जटिल निर्णय होगा।
- उदाहरण के लिये कुछ अनुमानों के अनुसार, दो मोर्चों पर ऐसे गंभीर खतरे से निपटने के लिये लगभग 60 लड़ाकू स्क्वाड्रन की आवश्यकता होगी जो भारतीय वायु सेना के तहत कार्यरत वर्तमान स्क्वाड्रन की संख्या का दोगुना है।
- रणनीति: यदि भारतीय थल सेना और वायु सेना की अधिकांश संसाधनों को उत्तरी सीमा की ओर भेज दिया जाता है, तो ऐसी स्थिति में पश्चिमी सीमा के लिये सेना को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा।
- इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ आक्रामक रणनीति को अपनाना हमें सीमित संसाधनों के साथ एक बड़े संघर्ष के लिये खड़ा कर सकता है।
- आर्थिक चुनौतियाँ: गौरतलब है कि देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए आने वाले वर्षों में रक्षा बजट में कोई बड़ी वृद्धि करना संभव नहीं होगा। ऐसे में सैन्य क्षमता बढ़ाने पर भी गहन चर्चा की आवश्यकता होगी।
- संसाधन: दो मोर्चों पर संघर्ष की स्थिति में उपलब्ध संसाधनों के आवंटन के दौरान उनकी मात्रा का निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण और अत्यधिक जटिल निर्णय होगा।
आगे की राह:
- सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता: एक सुरक्षा रणनीति/सिद्धांत के विकास के लिये राजनीतिक नेतृत्त्व से व्यापक समन्वय की आवश्यकता होगी। बगैर राजनीतिक उद्देश्य और मार्गदर्शन के तैयार किया गया कोई भी सिद्धांत अपने कार्यान्वयन के परीक्षण में सफल नहीं होगा।
- तकनीकी के साथ समन्वय: वर्तमान में रक्षा क्षेत्र में विमान, जहाज़ और टैंक जैसे प्रमुख प्लेटफाॅर्मों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि भविष्य की तकनीकों जैसे कि रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध आदि पर पर्याप्त निवेश नहीं किया जा रहा है।
- भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए तथा चीन और पाकिस्तान की युद्ध लड़ने की रणनीतियों के विस्तृत आकलन के आधार पर सैन्य क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग के संदर्भ में सही संतुलन स्थापित करना बहुत आवश्यक होगा।
- कूटनीति की महत्त्वपूर्ण भूमिका: भारतीय सीमा सुरक्षा के संदर्भ में इस दोहरी चुनौती से निपटने में कूटनीति की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होगी।
- दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ संबंधों में सुधार: चीन और पाकिस्तान हमेशा ही भारत को इस क्षेत्र में सीमित करने और रोकने का प्रयास करेंगे, ऐसे में एक अमत्रिवत पड़ोस में फँसे रहने की बजाय अन्य पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करना भारत के लिये लाभदायक होगा।
- विस्तारित पड़ोस के साथ संबंधों में सुधार: ऊर्जा सुरक्षा, समुद्री सहयोग और अपने विस्तारित पड़ोस के बीच सहयोग को बढ़ाने के लिये भारत को ईरान सहित पश्चिमी एशिया के अन्य देशों के साथ वर्तमान साझेदारी को और अधिक मज़बूती प्रदान करनी होगी।
- रूस के साथ संबंधों में सुधार: भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भारत-अमेरिका संबंधों की मज़बूती के लिये रूस के साथ उसे अपने संबंधों का बलिदान न देना पड़ सकता है। गौरतलब है कि भारत के खिलाफ किसी क्षेत्रीय गठजोड़ की गंभीरता को कम करने में रूस एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- कश्मीर पर विशेष ध्यान: भारत के समक्ष उत्पन्न यह दोहरी चुनौती कश्मीर में शांति और स्थिरता के संदर्भ में भारतीय राजनीतिक नेतृत्त्व के लिये एक बड़ी चेतावनी है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण से कश्मीर में प्रभावित नागरिकों की समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से राजनीतिक पहुँच का प्रयास एक सकारात्मक कदम होगा।
निष्कर्ष:
अपनी सैन्य आक्रामकता के साथ एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरता हुआ चीन वर्तमान में भारत के लिये एक बड़ी रणनीतिक चुनौती है और साथ ही पाकिस्तान भी क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व को सीमित करने की चीनी रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। इस संदर्भ में यह स्पष्ट है कि चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चों पर युद्ध के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता, ऐसे में भारत को इस संभावित चुनौती से निपटने के लिये अपने सिद्धांतों और सैन्य क्षमता दोनों के विकास पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न: चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चों पर युद्ध की संभावनाओं को देखते हुए भारत को इस संभावित चुनौती से निपटने हेतु अपने सिद्धांतों और सैन्य क्षमता दोनों के विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।