एडिटोरियल (30 Jan, 2021)



समृद्ध प्रौद्योगिकी कंपनियों का एकाधिकार

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में बाज़ार पर बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के एकाधिकार के कारण उत्पन्न चिंताओं व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

वर्तमान में जब हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में इंटरनेट की केंद्रीय भूमिका मज़बूत होती जा रही है, ऐसे में कुछ बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने बाज़ार पर उल्लेखनीय रूप से अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ जिन्हें GAFA (गूगल, अमेज़ॅन, फेसबुक, एप्पल) के रूप में भी जाना जाता है, संयुक्त राज्य अमेरिका के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में सबसे बड़ी और सबसे प्रमुख कंपनियाँ हैं।  कई लोगों का अनुमान है कि वर्तमान में इन कंपनियों द्वारा बनाए गए डिजिटल वर्ल्ड इकोसिस्टम के बाहर रहना संभव नहीं है। वर्तमान में ये बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ ग्लोबल साउथ और विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में उपलब्ध संभावनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही हैं। 

हालाँकि इन बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के एकाधिकार संबंधी व्यवहार जैसे- शिथिल विनियमन, अनुचित प्रतिस्पर्द्धा, गोपनीयता आदि के संदर्भ में कई चिंताएँ भी बनी हुई हैं। अतः भविष्य में डिजिटल प्रौद्योगिकियों की केंद्रीयता को देखते हुए एक व्यापक नियामक ढाँचे की स्थापना करना बहुत ही आवश्यक को गया है।

बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के एकाधिकार की प्रक्रिया: 

  • अनुचित प्रतिस्पर्द्धा (Unfair Competition): पिछले कुछ दशकों में नवाचारों और तकनीकी के क्षेत्र में हुई तीव्र प्रगति के कारण बहुत ही कम समय में अप्रत्याशित रूप से कई बड़े प्रौद्योगिकी दिग्गज उभरकर सामने आए हैं। अपनी इस शीर्ष स्थिति को बनाए रखने के लिये ये बड़ी कंपनियाँ प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी व्यवहार का सहारा ले सकती हैं। उदाहरण के लिये:
    • ये कंपनियाँ अपने प्रतिस्पर्द्धी एप या कंपनियों के साथ इंटरकनेक्ट और इंटरऑपरेट करने से इनकार करते हुए उनके विकास के मार्ग में बाधाएँ खड़ी करने का प्रयास करती हैं।
    • ये अपनी व्यापक पूंजी आधार का लाभ उठाते हुए सेवाओं के शुल्क निर्धारण में आक्रामक रवैया अपनाकर प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित करने का प्रयास करती हैं।
    • कुछ कंपनियों के लिये विशेष व्यवस्था और व्यावसायिक समूहन।
  • गोपनीयता से जुड़ी चिंताएँ: बड़ी तकनीकी फर्मों की यह बाज़ार शक्ति लोगों के डेटा पर आधारित है, इन कंपनियों द्वारा लोगों के डेटा के अनैतिक संग्रह और प्रसंस्करण तथा उन पर कुछ विशेष उत्पादों को थोपकर  बाज़ार में अपनी स्थिति को मज़बूत किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त तकनीकी कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं के डेटा को प्रसंस्कृत करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव भी गंभीर चिंता का कारण रहा है।
  • शिथिल विनियमन: हाल के वर्षों में बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा नवाचार और विकास के क्षेत्र में तीव्र प्रगति की गई है, हालाँकि इस बीच नियामक इस दौड़ में बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ बराबर कदम बढ़ाने में सफल नहीं रहे हैं जिसके कारण वे किसी भी अनियमितता से निपटने के लिये तत्पर रहने की बजाय संबंधित मामले में केवल प्रतिक्रिया करने में सक्षम हैं, जो उनकी स्थिति को कमज़ोर करता है।
    • भारत में बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ एक नियामकीय वैक्यूम में काम करने में सफल रही हैं।
    • एक मज़बूत नियामकीय व्यवस्था के अभाव के कारण वे श्रम के लिये पर्याप्त मुआवज़े, स्थानीय निगमन और कराधान कानून तथा पर्याप्त डेटा सुरक्षा मानकों को बनाए रखने के संदर्भ में निरंतर उल्लंघन जैसे किसी नकारात्मक परिणाम (जैसे- कानूनी कार्रवाई आदि) से बच सकते हैं।

आगे की राह: 

  • व्यक्तिगत डेटा विनियमन को प्राथमिकता देना: वर्तमान में जब बाज़ार में व्यक्तिगत डेटा एक नया मानक बन गया है, ऐसे में प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिये उपभोक्ताओं के व्यक्तिगत डेटा का उपयोग करने की प्रक्रिया का विनियमन इस क्षेत्र में आवश्यक सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु होना चाहिये।  
  • गोपनीयता का अधिकार सुनिश्चित करना: विश्व भर की सरकारों द्वारा उपभोक्ताओं के गोपनीयता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये कड़े सुरक्षा कानून लागू किये गए हैं। इसके तहत प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिये कुछ बुनियादी और आवश्यक डेटा सुरक्षा तथा गोपनीयता प्रावधानों का पालन करने की अनिवार्यता निर्धारित की गई है।  
  • व्यापक नियामकीय ढाँचा:  वर्तमान में बाज़ार के एक बड़े हिस्से पर बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों का निर्विवादित रूप से एकाधिकार है, जिसका लाभ उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त होता है। साथ ही नियामकीय तंत्र में व्याप्त कमियाँ और इन कंपनियों के प्रति उपभोक्ताओं की निष्ठा ने इस एकाधिकार को पनपने में सक्षम बनाया है।
    • इसके अतिरिक्त उपभोक्ता इन कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं को छोड़ने के लिये तैयार नहीं होंगे, इसलिये उपभोक्ता हितों पर केंद्रित नियामक और सुरक्षा उपायों के एक नेटवर्क को स्थापित किया जाना बहुत ही आवश्यक है। 
    • साथ ही इस प्रकार के विनियमन को क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों के प्रति जागरूक/संवेदनशील होना होगा और इसके लिये सबसे अधिक प्रभावी बहु-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिये।
  • सूचना का मुद्रीकरण: बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को अन्य संस्थानों की सामग्री (कंटेंट) का उपयोग अथवा प्रसारण (जैसे- फेसबुक की न्यूजफीड और गूगल सर्च में) करने के बदले उचित भुगतान का निर्धारण करने हेतु सभी हितधारकों के साथ बातचीत करनी चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारतीय बाज़ार के आकार और इसके प्रभाव को देखते हुए विश्व के सभी देशों का भारत की किसी भी नियामकीय कार्रवाई पर बारीकी से निगाह बनाए रखना एक सामान्य बात है और ऐसी कार्रवाई के विश्व के दूसरे हिस्सों में भी दूरगामी प्रभाव देखे जा सकते हैं।

अतः वर्तमान में नीति निर्माताओं के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह होगा कि धनात्मक बाह्यकरण और उपभोक्ता अधिशेष में इंटरनेट फर्मों के योगदान को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इन कंपनियों को अपनी एकाधिकार शक्ति का दुरुपयोग करने से रोकने हेतु किस प्रकार विनियमित किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भविष्य में डिजिटल तकनीकों की केंद्रीयता और बाज़ार पर बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के एकाधिकार से उत्पन्न चिंताओं को देखते हुए एक व्यापक नियामकीय ढाँचे की स्थापना करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। चर्चा कीजिये।