एडिटोरियल (26 Nov, 2022)



प्राकृतिक खेती की ओर ध्यान केंद्रित करना

यह एडिटोरियल 24/11/2022 को ‘हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “Cultivate natural farming” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में कृषि अभ्यासों से संबंधित मुद्दों और ‘नेचुरल फार्मिंग’ की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अनुमान लगाया गया है कि बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिये वर्ष 2050 तक खाद्य उत्पादन में 60% वृद्धि लाने की आवश्यकता होगी। खाद्य की यह बढ़ती मांग दुनिया भर में किसानों को फसल उत्पादन बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित कर रही है, जो फिर पर्यावरण पर दबाव बढ़ा रही है और स्वयं की मरम्मत कर सकने या प्रतिस्थापित कर सकने की इसकी क्षमता के पार चली गई है। इससे फिर पर्यावरण की गंभीर क्षति की स्थिति बन रही है।

  • ‘नेचुरल फार्मिंग’ (Natural Farming) या प्राकृतिक खेतीपारंपरिक और आधुनिक कृषि अभ्यासों- दोनों में सुधार के लिये एक नया दृष्टिकोण है, जो पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और समुदायों की रक्षा पर लक्षित है। इसमें भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना खाद्य उत्पादन को सक्षम करने की क्षमता है।

नेचुरल फार्मिंग का महत्त्व

  • बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितता: चूँकि नेचुरल फार्मिंग में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं होता है; स्वास्थ्य संबंधी जोखिम और खतरे समाप्त हो जाते हैं। इस प्रकार उत्पादित खाद्य में उच्च पोषण घनत्व होता है और इसलिये यह बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  • किसानों की आय में वृद्धि: नेचुरल फार्मिंग का उद्देश्य लागत में कमी, जोखिम में कमी, समान पैदावार, अंतर-फसल से प्राप्त आय के रूप में किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करके खेती को व्यवहार्य और आकांक्षी बनाना है।
  • मृदा स्वास्थ्य का पुनरुद्धार: नेचुरल फार्मिंग का सबसे तात्कालिक प्रभाव मृदा के जीव विज्ञान—यानी सूक्ष्मजीवों और केंचुओं जैसे अन्य जीवित जीवों पर पड़ता है। यह मृदा के स्वास्थ्य में सुधार करता है और परिणामस्वरूप उत्पादकता बढ़ाता है।
  • उत्पादन की न्यूनतम लागत: नेचुरल फार्मिंग किसानों को खेत स्तर पर तथा प्राकृतिक एवं घरेलू संसाधनों का उपयोग करके आवश्यक जैविक इनपुट तैयार करने के लिये प्रोत्साहित करके उत्पादन लागत में भारी कटौती लाने पर लक्षित है।

ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग

  • यह एक अनूठा मॉडल है जो कृषि-पारिस्थितिकी (Agro-ecology) पर निर्भर करता है। यह सतत्/संवहनीय कृषि अभ्यासों पर आधारित रसायन मुक्त खेती का आह्वान करता है।
    • 1990 के दशक के मध्य में सुभाष पालेकर ने इसे हरित क्रांति में व्यवहृत रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों तथा सघन सिंचाई विधियों के विकल्प के रूप में विकसित किया था।
  • इस मॉडल का लक्ष्य उत्पादन लागत को कम करना और हरित क्रांति से पहले की कृषि पद्धतियों पर वापस लौटना है जहाँ उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई जैसे महंगे इनपुट की आवश्यकता नहीं होती है।

भारत में खेती से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • प्रति बूंद अधिक फसल: भारत के सकल फसल क्षेत्र (Gross Cropped Area- GCA) का केवल 52% ही राष्ट्रीय स्तर पर सिंचित है। भारत ने स्वतंत्रता के बाद से महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी कई खेत अभी भी सिंचाई के लिये मानसून पर ही निर्भर बने रहे हैं, जिससे अधिक फसल उत्पादन की उनकी क्षमता सीमित बनी रही है।
  • प्राकृतिक आदानों की तत्काल उपलब्धता का अभाव: किसान प्रायः रासायनिक मुक्त कृषि की ओर आगे बढ़ने के लिये आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों की कमी को बाधा के रूप में देखते हैं। प्रत्येक किसान के पास स्वयं का प्राकृतिक इनपुट विकसित करने के लिये समय, धैर्य या श्रम उपलब्ध नहीं होता है।
  • फसल विविधीकरण का अभाव: भारत में कृषि के तेज़ी से वाणिज्यीकरण के बावजूद, अधिकांश किसान मानते हैं कि अनाज ही हमेशा उनकी मुख्य फसल होगी (न्यूनतम समर्थन मूल्य के अनाज के पक्ष में अधिक झुके होने के कारण) और वे फसल विविधीकरण (Crop Diversification) की उपेक्षा करते हैं।
  • पैदावार में गिरावट: भारत के पहले जैविक राज्य सिक्किम में जैविक खेती अपनाने के बाद उपज में कुछ गिरावट देखी गई है। अपने ZBNF (ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग) रिटर्न में गिरावट देखने के बाद कई किसान पुनः पारंपरिक खेती की ओर मुड़ गए हैं।

सतत् कृषि से संबंधित हाल की प्रमुख सरकारी पहलें

आगे की राह

  • नेचुरल फार्मिंग में महिलाओं की भागीदारी: विभिन्न अध्ययनों में प्राथमिक उत्पादक के रूप में कृषि संसाधनों पर महिलाओं के नियंत्रण और उनके परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बीच सीधा संबंध देखा गया है।
    • चूँकि महिलाएँ ही अधिकांशतः अपने परिवारों के लिये खाना बनाती हैं, इसलिये वे अपने बच्चों के पोषण के लिये प्राकृतिक उत्पादों के महत्त्व को समझती हैं। इस परिदृश्य में महिलाओं द्वारा पुरुषों की तुलना में नेचुरल फार्मिंग को जल्द अपनाने की संभावना अधिक है।
      • नेचुरल फार्मिंग में महिलाओं की भागीदारी से निर्णय लेने में उनकी भागीदारी बढ़ेगी। यह परिवार के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
  • पारंपरिक और अग्रणी तकनीकों का एकीकरण: वर्षा जल संचयन, पादप पोषण के लिये जैविक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण, कीट प्रबंधन आदि पारंपरिक तकनीकों के उदाहरण हैं जिनका उपयोग उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिये टिशू कल्चर, जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसी अग्रणी तकनीकों की पूरकता के लिये किया जा सकता है।
  • ज्ञान-गहन कृषि: भारत कृषि पद्धतियों की विविधता के लिये जाना जाता है, जो उपयुक्त समाधान खोजने के लिये राष्ट्रीय कृषि संवाद में विविध दृष्टिकोणों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण बनाता है।
    • एक प्राकृतिक दृष्टिकोण के साथ संतुलित हाई-टेक खेती की दिशा में कुशल और सटीक कदम आगे बढ़ाने से किसानों की आय में वृद्धि होगी और स्केल संबंधी कई अन्य मुद्दों को संबोधित किया जा सकेगा।
  • खेती के लिये प्राकृतिक इनपुट का उद्यमीकरण: रसायन मुक्त कृषि के लिये इनपुट्स का उत्पादन करने वाले लघु उद्यमों को सरकार द्वारा सहायता दी जानी चाहिये ताकि प्राकृतिक इनपुट की अनुपलब्धता की चुनौती को दूर किया जा सके।
    • नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण स्तर पर इनपुट तैयार करने और बिक्री की दुकानों की स्थापना के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
  • प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के अनुकरण की ओर: कृषि उत्पादकता और प्रकृति के संरक्षण के बीच पारस्परिक रूप से सुदृढ़ संबंधों का विकास आवश्यक है।
    • खेती प्रणालियों को एक प्रतिकृति प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (Mimic Natural Ecosystem) बनाने के लिये उनमें संशोधन किये जा सकते हैं। पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से उपयोगी पेड़, झाड़ियाँ और बारहमासी घासों को खेतों में इस प्रकार एकीकृत किया जा सकता है जो प्राकृतिक वनस्पति संरचना का अनुकरण करते हैं।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत में कृषि संवहनीयता का मार्ग नेचुरल फार्मिंग से शुरू होता है।’’ चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

Q1. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है?  (वर्ष 2021)

  1. पर्माकल्चर कृषि मोनोकल्चर प्रथाओं को हतोत्साहित करती है लेकिन पारंपरिक रासायनिक खेती में मोनोकल्चर प्रथाएँ प्रमुख हैं।
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि से मिट्टी की लवणता में वृद्धि हो सकती है लेकिन पर्माकल्चर कृषि में ऐसी घटना नहीं देखी जाती है।
  3. अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में पारंपरिक रासायनिक कृषि आसानी से संभव है लेकिन ऐसे क्षेत्रों में पर्माकल्चर कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।
  4. पर्माकल्चर कृषि में मल्चिंग का अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है लेकिन पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसा जरूरी नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

 (A) 1 और 3
 (B) 1, 2 और 4
 (C) केवल 4
 (D) 2 और 3


Q2.निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है?  (वर्ष 2012)

 (A) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की खेती
 (B) एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों की खेती
 (C) पशुओं का पालन और फसलों की एक साथ खेती
 (D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

 उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

Q1. फसल विविधीकरण की वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधीकरण के लिये किस तरह अवसर प्रदान करती हैं?  (वर्ष 2021)

Q 2. सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस.  स्वामीनाथन के क्रमशः जल विज्ञान और कृषि विज्ञान के क्षेत्र में योगदान से भारत को लाभ कैसे हुआ है?  (वर्ष 2019)