एडिटोरियल (23 Aug, 2021)



दक्षिण एशियाई भू-राजनीति का भविष्य

यह एडिटोरियल दिनांक 21/08/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘The fall of Kabul, the future of regional geopolitics’’ पर आधारित है। इसमें तालिबान सैन्य बलों के समक्ष अफगानिस्तान के पतन और इस क्षेत्र की भू-राजनीति पर भविष्य के प्रभावों के संबंध में चर्चा की गई है।

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्यबल की वापसी के मद्देनज़र काबुल का पतन इस भू-भाग और इसकी भू-राजनीति के भविष्य के लिये एक निर्णायक क्षण साबित होगा। यह अधिक नहीं तो कम-से-कम वर्ष 1979 में सोवियत हस्तक्षेप और वर्ष 2001 में अमेरिकी हस्तक्षेप के ही समान निर्णायक सिद्ध होगा।

हालाँकि बहुत कुछ इस पर निर्भर करता कि आगामी कुछ महीनों में घरेलू स्तर पर और साथ ही साथ दक्षिणी एवं पश्चिमी एशियाई भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात पर तालिबान का वास्तविक आचरण कैसा रहता है, लेकिन संभावित है कि इस भू-भाग में उभरती वृहत शक्ति प्रतिस्पर्द्धा में तालिबान एक 'उपयोगी खलनायक' बना रहेगा।  

भारत और इस पूरे भू-भाग के लिये अफगानिस्तान का पतन एक आत्ममंथन का क्षण है और उसे अपनी क्षेत्रीय रणनीतियों तथा विकल्पों पर पुनर्विचार करना चाहिये।

तालिबान के समक्ष अफगानिस्तान के पतन के कारण

  • अमेरिका की शर्तरहित वापसी: अमेरिका ने एक सहमत राजनीतिक समझौते की प्रतीक्षा किये बिना ही अपने सैनिकों की शर्तरहित वापसी का निर्णय ले लिया जबकि इसके परिणामों का अनुमान पहले से था और वस्तुतः अनुमानों से भी अधिक त्वरित गति से ये परिणाम सामने आए। 
  • मानसिक तैयारी का अभाव: अफगान मानसिक रूप से स्वीकार ही नहीं कर सके थे कि अमेरिका वास्तव में अपने सैन्य बलों की वापसी कर लेगा। इसके साथ ही अफगान सैन्य रणनीति की कमी, आपूर्ति और रसद की बदहाली, रक्षा पोस्टों की दुर्बलता और वहाँ सैनिकों की कम संख्या, वेतन का बकाया, फिजूलखर्ची और विश्वासघात, आत्मसमपर्ण और दुर्बल मनोबल की भावना—इन सभी ने तालिबान के समक्ष राज्य के समर्पण में अपनी भूमिका निभाई।  
    • हवाई सहायता, हथियार प्रणाली, खुफिया सूचनाओं आदि के लिये अफगान अमेरिका पर तकनीकी निर्भरता रखते थे।
  • तैयारी का अभाव: अफगान सेना प्रबल प्रतिरोध हेतु तैयार नहीं थी और तालिबान के आक्रमण के घेरे में आ गई। 
  • अफगान बलों के प्रशिक्षण की कमी: बीहड़ इलाकों में पर्याप्त गतिशीलता, तोपखाना, आर्मर, इंजीनियरिंग, रसद, खुफिया सूचना, हवाई सहायता आदि के साथ क्षेत्र की रक्षा कर सकने की सक्षमता के लिये अफगान सेना को कभी भी पर्याप्त प्रशिक्षत नहीं किया गया, न ही उन्हें आवश्यक सैन्य-सामग्री उपलब्ध हुई। क्षेत्र की रक्षा के उद्देश्य से पैदल सेना बटालियन और सैन्य-सिद्धांत के अनुकरण पर भी ध्यान नहीं दिया गया। 

क्षेत्रीय भू-राजनीति का भविष्य

  • क्षेत्रीय शक्ति शून्यता का निर्माण: चीन, पाकिस्तान, रूस और तालिबान जैसी क्षेत्रीय शक्तियों की धुरी ने पहले से ही इस शक्ति शून्यता को भरना शुरू कर दिया है जहाँ यह अपने व्यक्तिगत और साझा हितों के आधार पर क्षेत्र की भू-राजनीति को आकार दे रहे हैं।  
    • चीनी नेतृत्त्व के अंतर्गत ईरान भी इस अवसरवादी परिदृश्य का लाभ उठा सकता है।
  • अमेरिका-विरोधी धुरी: इस क्षेत्र के अधिकांश देशों में अलग-अलग स्तर की गहन अमेरिका-विरोधी भावनाएँ पाई जाती हैं जो इस यूरेशियाई केंद्रीय क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को और कम कर देगी। 
  • चीन के लिये लाभप्रद परिदृश्य: अमेरिका की वापसी से क्षेत्र में बनी शक्ति शून्यता की स्थिति विशेष रूप से चीन और इस भू-भाग में उसकी वृहत रणनीतिक योजनाओं के लिये लाभप्रद होगी। 
    • चीन, भारत के अतिरिक्त इस क्षेत्र के प्रत्येक देश को अपनेबेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के अंतर्गत लाने के अपने प्रयासों को और सुदृढ़ करेगा, जिससे क्षेत्र का भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक आधार ही बदल जाएगा। 
    • चीन को प्राप्त लाभ की स्थिति से उत्पन्न चुनौतियाँ: 
      • चीन द्वारा भारत को घेरने की प्रबल आशंका और अधिक स्पष्ट हो जाएगी।  
      • अपनी स्थिति की सुदृढ़ता के साथ चीन वास्तविक रेखा नियंत्रण (LAC) सहित अन्य विषयों में भारत के प्रति कम अनुदार रवैया अपना सकता है।    
      • यहाँ तक ​​कि व्यापार के मामले में भी भारत को चीन की अधिक आवश्यकता है। जब तक भारत चीन के साथ सामंजस्य सुनिश्चित करने के तरीके नहीं खोज लेता, चीन प्रत्येक उपलब्ध अवसर पर भारत को चुनौती देता रहेगा।  
  • आतंकवाद का केंद्र: आतंकवाद और चरमपंथ में वृद्धि इस भू-भाग के लिये एक सबसे बड़ी चुनौती होगी।  
    • अफगानिस्तान में अमेरिका की उपस्थिति, तालिबान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव और पाकिस्तान पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के माध्यम से कुछ नियंत्रण का इस क्षेत्र के आतंकी पारितंत्र पर एक अपेक्षाकृत शांतिकारी प्रभाव रहा था। अब अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के साथ इस परिदृश्य का बदलना निश्चित है।  
    • इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास तालिबान शासन को मान्यता देने के अलावा अन्य कोई विकल्प मौजूद नहीं है। चीन और रूस जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य पहले ही ऐसी मंशा का संकेत दे चुके हैं।   
      • इसका अर्थ यह भी होगा कि तालिबान के पास आतंक के मुद्दे पर सौदेबाजी की अधिक शक्ति होगी।
  • क्षेत्रीय हितों पर प्रभाव: अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी ने प्रभावी रूप से भारत के 'मिशन (कनेक्ट) सेंट्रल एशिया' को विराम दे दिया है।    
    • भारत की राजनयिक और असैन्य उपस्थिति के साथ-साथ उसके असैन्य निवेश अब तालिबान तथा कुछ हद तक पाकिस्तान की दया पर निर्भर होंगे।
    • यदि अफगानिस्तान से भारत की उपस्थिति की समाप्ति के लिये चीन, पाकिस्तान और तालिबान ने मिलकर कोई ठोस प्रयास किया तो भारत के लिये कई अन्य चुनौतियाँ उत्पन्न होंगी।
  • भारत-पाकिस्तान संबंध: अफगानिस्तान का घटनाक्रम भारत को पाकिस्तान के साथ यदि शांति नहीं तो कम से कम संबंधों की स्थिरता के लिये, प्रयास करने की विवशता उत्पन्न कर सकता है। जबकि भारत में वर्तमान में पाकिस्तान के साथ व्यापक आधार वाली किसी वार्ता प्रक्रिया को पुनः शुरू करने की इच्छा बहुत कम है, इसमें एक 'शीत शांति' (cold peace) की स्थिति भी प्राप्त कर लेना भारत के हित में होगा।  
    • पाकिस्तान के लिये भी इस तरह की 'शीत शांति' की स्थिति अनुकूल होगी जहाँ उसे अफगानिस्तान में अपने हितों और लाभों को सुदृढ़ करने पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करने का समय मिलेगा।
    • नतीजतन, दोनों पक्ष किसी प्रतिस्पर्द्धी जोखिम में शामिल होने से बचने का प्रयास करेंगे, जब तक कि कोई नाटकीय घटनाक्रम सामने न आ जाए जिसकी संभावना हमेशा ही दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच बनी रहती है।
    • भारत-पाकिस्तान संबंधों की स्थिरता बहुत हद तक कश्मीर में राजनीति की स्थिति और घाटी को शांत रखने में भारत की सक्षमता पर निर्भर है।
  • सामरिक उद्देश्य के लिये आतंकवाद का उपयोग: इस बात की संभावना कम है कि तालिबान सक्रिय रूप से अन्य देशों में आतंक का निर्यात करेगा, हालाँकि सामरिक उद्देश्यों के लिये (उदाहरण के लिये, भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की कोई चाल) ऐसा हो सकना संभव भी है। 
    • वास्तविक चिंता यह है कि विश्व की एकमात्र महाशक्ति (अमेरिका) के विरुद्ध तालिबान की जीत से भू-भाग के चरमपंथी तत्व प्रेरणा प्राप्त करेंगे।
  • पाकिस्तान के लिये चुनौतियाँ: अफगानिस्तान में तालिबान की जीत पर पाकिस्तान का जश्न अंततः पाकिस्तान के लिये प्रतिकूल भी साबित हो सकता है।  
    • चाहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान को ऐसी शक्ति के रूप में संदर्भित किया हो जिसने 'गुलामी की जंजीरों को खोल दिया' या देश का ‘डीप स्टेट’ उन्हें एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखता हो, वास्तविकता यह है कि तालिबान की जीत से कई पाकिस्तान विरोधी आतंकवादी संगठनों का भी हौसला बढ़ेगा।

आगे की राह 

  • अमेरिका की नई भूमिका: यह निर्धारित कर सकना अभी जल्दबाजी होगी कि अमेरिका-विरोधी धुरी देशों के हाथ एक अवसर लगा है अथवा वे आसन्न संकट में प्रवेश कर रहे हैं जिसके घातक परिणाम सामने आएँगे।   
    • इस धुरी के निर्माण के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में अमेरिका यदि चाहे तो भू-भाग की स्थिरता के लिये उनके साथ सहयोग के नए तरीकों का पता लगाने का निर्णय ले सकता है और इस प्रकार क्षेत्र के लिये प्रासंगिक बना रह सकता है। 
  • क्षेत्रीय समाधान: अफगानिस्तान में एक स्थिर समाधान की तलाश में भारत और तीन प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों—चीन, रूस और ईरान के बीच हितों (अवसंरचनात्मक विकास और व्यापार के मामले में) का अभिसरण भी दिख रहा है। 
    • इसलिये, इस मोर्चे पर समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।
  • वैश्विक सहयोग: 1990 के दशक की तुलना में आज आतंकवाद को बेहद कम वैश्विक स्वीकृति प्राप्त है। 
    • कोई भी बड़ी शक्ति अफगानिस्तान को आतंकवाद के वैश्विक आश्रयस्थल के रूप में फिर से उभरते हुए नहीं देखना चाहेगी।
    • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे तंत्रों के माध्यम से विश्व ने आतंकवाद को पाकिस्तान के समर्थन पर नियंत्रण के लिये कई उल्लेखनीय कदम उठाये हैं। 
  • तालिबान से संवाद: क्षेत्र में किसी भी तरह के विकास (राजनीतिक या आर्थिक) के लिये तालिबान को अब विश्वास में लिया जाना चाहिये। 
    • तालिबान से संवाद भारत को निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिज्ञाओं के बदले विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी प्राप्त करने का अवसर देगा और इसके साथ ही पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता की संभावना का भी पता लगाया जा सकेगा।

निष्कर्ष

इन घटनाक्रमों के मद्देनज़र भारत के लिये सबक स्पष्ट है—सबक यह कि उसे अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। इसलिये उसे विवेकपूर्ण ढंग से अपने शत्रु की पहचान करनी होगी और सतर्कता से मित्र बनाने होंगे, उसे धूमिल पड़ते मित्रता-संबंधों को नई ऊर्जा सौंपनी होगी और जब तक संभव हो शांति बनाए रखनी होगी।

अभ्यास प्रश्न: अफगानिस्तान में अमेरिका की वापसी से उत्पन्न शक्ति शून्यता की स्थिति चीन के लिये लाभप्रद होगी और भारत के रणनीतिक विकल्पों और आचरण को आकार देगी टिप्पणी कीजिये।