एडिटोरियल (23 Feb, 2021)



प्रकृति आधारित समाधान

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में प्रकृति आधारित समाधान के सिद्धांत व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है, जो जलवायु लचीलेपन के निर्माण और संसाधन प्रबंधन में सहायता कर सकते हैं। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

पेरिस समझौते (Paris Agreement) को अपनाए जाने के पाँच वर्ष पूरे होने के बाद इसमें शामिल हस्ताक्षरकर्त्ता देश इस वर्ष के अंत में आयोजित होने वाले COP26  की पृष्ठभूमि में एक बार पुन अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution) का पुनरीक्षण कर रहे हैं। 

इसके अतिरिक्त वर्ष 2021 में ‘पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक’ (The United Nations Decade on Ecosystem Restoration) की शुरुआत के साथ COP26 में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीति के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों (Nature-Based Solutions or NbS) पर अधिक व्यापक चर्चा की परिकल्पना की गई है।

इस संदर्भ में प्रकृति-आधारित समाधान (NbS) की अवधारणा जलवायु लचीलेपन के निर्माण और संसाधन प्रबंधन में सहायक हो सकती है।

प्रकृति-आधारित समाधान क्या है?

  • प्रकृति आधारित समाधान (NbS) से आशय सामाजिक-पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिये प्रकृति के स्थायी प्रबंधन और उपयोग से है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा NbS को प्राकृतिक और संशोधित पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा, स्थायी प्रबंधन और पुनर्स्थापना करने के कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जो सामाजिक चुनौतियों को प्रभावी और अनुकूल ढंग से संबोधित करने के साथ मानव कल्याण एवं जैव विविधता से जुड़े लाभ प्रदान करते हैं।
  • यह अन्य क्षेत्र-विशिष्ट घटकों जैसे कि ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्राकृतिक अवसंरचना, पारिस्थितिक इंजीनियरिंग, पारिस्थितिक तंत्र-आधारित शमन एवं अनुकूलन और पारिस्थितिकी-आधारित आपदा जोखिम में कमी से जुड़ा हुआ है।
  • NbS लोगों और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने के साथ ही पारिस्थितिक विकास को सक्षम बनाता है तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक समग्र मानव केंद्रित प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है।
  • साथ ही NbS जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के समग्र वैश्विक प्रयास का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
    • पेरिस समझौते का अनुच्छेद 5.2 जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन रणनीतियों में प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्व को स्वीकार करता है।
    • इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 7 आर्थिक विविधीकरण और प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी प्रबंधन के माध्यम से सामाजिक आर्थिक और पारिस्थितिक प्रणालियों के लचीलेपन के निर्माण के विचार को बढ़ावा देता है।

प्रकृति-आधारित समाधान का उदाहरण: 

  • स्थानीय लोगों की सहायता: NbS जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में सुधार और कार्बन भंडारण में स्थानीय लोगों की सहायता करने में बड़े पैमाने पर सफल रहा है।
    • उदाहरण के लिये ‘लेक डिस्ट्रिक्ट नेशनल पार्क’ (यूनाइटेड किंगडम) में शुरू की गई पुनर्स्थापना परियोजना से न केवल स्थानीय जैव विविधता में सुधार करने में सफलता प्राप्त हुई  बल्कि इससे पर्यटन के माध्यम से राजस्व अर्जन का रास्ता भी खुला।
  • आपदा न्यूनीकरण के लिये NbS:  समुद्र तटों पर मैंग्रोव की पुन:स्थापन या संरक्षण कई लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक प्रकृति-आधारित समाधान का उपयोग करता है।
    • मैंग्रोव तटीय बस्तियों या शहरों पर लहरों और हवा के प्रभाव को कम करता है।
    • वे समुद्री जीवन के लिये सुरक्षित नर्सरी भी प्रदान करते हैं जो मछली की आबादी को बनाए रखने का आधार हो सकता है और इस पर स्थानीय आबादी पर निर्भर करती है।
    • इसके अतिरिक्त मैंग्रोव वन तटीय क्षरण को नियंत्रित करने में सहायता कर सकते हैं, गौरतलब है कि तटीय क्षरण समुद्र-स्तर की वृद्धि का एक प्रमुख कारक है।
  • शहरी मुद्दों को संबोधित करना: पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने में NbS के उपयोग के अतिरिक्त मानव स्वास्थ्य और शहरी जैव विविधता को लाभ पहुँचाने हेतु शहरों में मानव निर्मित बुनियादी ढाँचे के संयोजन में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
    • इसी तरह शहरों में हरित छतें या दीवारें प्रकृति आधारित समाधान के रूप में कार्य कर सकती हैं जिनका उपयोग उच्च तापमान के प्रभाव को कम करने, वर्षाजल को एकत्र करने, प्रदूषण को कम करने और जैव विविधता को बढ़ाते हुए कार्बन सिंक के रूप में किया जा सकता है।
    • पानी की कमी का सामना कर रहे क्षेत्रों में भूजल को पुनः भरने में सहायता करने के लिये पारगम्य कंक्रीट क्षेत्रों का निर्माण एक प्रभावी विकल्प होगा।
    • बड़े होटल और रिज़ार्ट पानी के पुनर्चक्रण के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि जैसे समाधानों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सकते हैं, जो स्थानीय परिदृश्य के सौंदर्य में वृद्धि करेगा।

प्रकृति आधारित समाधान की आवश्यकता: 

जलवायु परिवर्तन आज मानव जाति के समक्ष उपस्थित सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से शहरों और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों को सबसे अधिक नुकसान होगा।

    • शहरों की बढ़ती सुभेद्यता: विशेष रूप से भूमि-उपयोग परिवर्तन की अतिरिक्त जटिलताओं, जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि, कंक्रीट क्षेत्रफल का विस्तार, सामाजिक असमानता, खराब वायु गुणवत्ता और कई अन्य संबद्ध मुद्दों के कारण शहरों की सुभेद्यता में वृद्धि हुई है। 
      • यह मानव स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और जीवन की गुणवत्ता के लिये एक गंभीर चुनौती (विशेष रूप से समाज के वंचित वर्गों के लिये) प्रस्तुत करता है।
    • प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जोखिम: जैव विविधता और जल संसाधनों में गिरावट के रूप में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का व्यापक क्षरण देखा जा सकता था।
      • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दूर या कम करने के लिये स्थानीय नेतृत्व वाले अनुकूलन के विचार पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है, जो हमें NbS की ओर निर्देशित करता है।   

    लोकल लेड एडेप्टेशन (Local-led Adaptation):

    • स्थानीय नेतृत्व चालित अनुकूलन या लोकल लेड एडेप्टेशन से आशय स्थानीय समुदायों और स्थानीय सरकारों द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये प्रभावी निर्णय लेने के सशक्त प्रयासों से है।   
    • लोकल लेड एडेप्टेशन को अक्सर स्वदेशी समाधानों के आधार पर परिभाषित किया जाता है, जो प्रायः प्रकृति से जुड़े होते हैं।   
    • ध्यातव्य है सबसे सुभेद्य आबादी वह होती है जो प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक निर्भर है, ऐसे में यह अपेक्षित है कि किसी समस्या का मुकाबला करने वाले समाधान भी अक्सर उसी स्रोत (समस्या से जुड़े) से उत्पन्न होते हैं। 

    प्रकृति आधारित समाधान के लिये चुनौतियाँ:  

    • अत्यधिक परिस्थिति-विशिष्ट: NbS अत्यधिक परिस्थिति-विशिष्ट होते हैं और बदलती जलवायु परिस्थितियों में उनकी प्रभावशीलता भी अनिश्चित होती है। प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होते हैं परंतु भविष्य के जलवायु परिदृश्यों में NbS की प्रभावशीलता संदिग्ध है।
    • धन की आवश्यकता:  NbS से जुड़ी अनिश्चितताओं के अलावा इसके लिये निवेश के निरंतर प्रवाह को बनाए रखना एक अतिरिक्त चुनौती है।
      • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (2020) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर NbS को लागू करने के लिये वर्ष 2030 तक सालाना 140 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के निवेश की आवश्यकता होगी,  जो वर्ष 2050 तक बढ़कर 280 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।

    प्रकृति आधारित समाधान को लागू करना: 

    IUCN द्वारा NbS को लागू करने के लिये कुछ मापदंड और संबद्ध संकेतकों के साथ एक वैश्विक मानक जारी किया गया, जिसमें सतत् विकास लक्ष्यों और लचीले परियोजना प्रबंधन को संबोधित किया गया है ।  

    कार्यान्वयन से पहले निर्णय लेने के लिये इन मानदंडों को समझने हेतु हम NbS का उपयोग करते हुए एक पहाड़ी क्षेत्र के जीर्णोद्धार का उदाहरण ले सकते हैं।

    कोई एक पहाड़ी क्षेत्र जहाँ खनिज संसाधनों को प्राप्त करने के लिये अत्यधिक खनन किया जाता है, वह क्षेत्र खनन के परिणामस्वरुप मिट्टी के कटाव, भूस्खलन और बढ़े हुए जलवायु जोखिम के लिये अतिसंवेदनशील हो जाता है।

    • ऐसे क्षेत्र का जीर्णोद्धार करना एक से अधिक सामाजिक चुनौतियों को संबोधित करेगा।
    • जीर्णोद्धार कार्यक्रम के डिज़ाइन के पैमाने का अनुमान लगाया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा नियोजित पुनर्स्थापना/जीर्णोद्धार क्षेत्र की जैव विविधता में सुधार करेगा या नहीं और इसके आर्थिक रूप से व्यावहारिक होने की भी समीक्षा की जानी चाहिये। 
    • समावेशी शासन के लिये पौधों की प्रजातियों का रोपण स्थानीय हितधारकों के परामर्श से किया जाना चाहिये क्योंकि अंततः वे ही पौधों की देख-रेख करेंगे। 
    • जब हम क्षेत्र की पुनर्स्थापना/जीर्णोद्धार कर रहे होते हैं, तो इससे क्षेत्र की जैव विविधता में सुधार हो सकता है, परंतु इसके परिणामस्वरूप बच्चों के खेल के मैदानों (या किसी अन्य प्रयोजन के लिये निर्धारित भूमि) का नुकसान भी हो सकता है।
    • हालाँकि इस तरह के लेन-देन पर पहले ही विचार किया जाना चाहिये और इस पर पारस्परिक सहमति होने के साथ इसे पूरे समय बनाए रखा जाना चाहिये। सातवें मापदंड को पूरा करने के लिये बहाल क्षेत्र को बनाए रखने के साथ इसका अध्ययन किया जाना चाहिये और भविष्य के निर्णय लेने की प्रक्रिया को समर्थन प्रदान करने हेतु इसे प्रभावी रूप से प्रलेखित किया जाना चाहिये।
    • वैश्विक NbS मानकों को समान वातावरण में व्यावहारिक समाधानों की प्रतिकृति के महत्त्व पर प्रकाश डालना चाहिये।

    निष्कर्ष:  

    यदि हम स्थायी निवेश प्राप्त करने के साथ-साथ NbS से जुड़ी जटिलताओं को संबोधित करने में सफल रहते हैं, तो हम अपने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा, संरक्षण और जीर्णोद्धार सुनिश्चित करने के अलावा जलवायु-अनुकूल (क्लाइमेट रिज़िलिएंट) भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

    अभ्यास प्रश्न: प्रकृति-आधारित समाधान हमारे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा, संरक्षण करने के साथ इसका जीर्णोद्धार करने में सहायता कर सकते हैं। चर्चा कीजिये।