एडिटोरियल (22 Sep, 2022)



विज्ञान और तकनीक चालित कूटनीति

यह एडिटोरियल दिनांक 19/09/2022 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “India needs a holistic and effective ‘techplomacy’ strategy” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के लिये एक विश्वसनीय विदेश नीति और कूटनीति उपकरण के रूप में प्रौद्योगिकी के उपयोग के संबंध में चर्चा की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कूटनीति, अर्थशास्त्र और प्रौद्योगिकी किसी भी राष्ट्र के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं। ऐतिहासिक रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी मानव समाजों और संप्रभु राष्ट्रों के बीच विनिमय एवं संवाद के प्रमुख माध्यमों में से एक रही है।

आधुनिक समय में यह तकनीकी-आर्थिक शक्ति के एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में उभर रही है जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक विषयों की बदलती गतिशीलता को आकार देगी। तकनीकी रूप से निपुण राष्ट्र अपनी विदेश नीति और राजनयिक पहलों के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के लिये अपनी स्वयं की रणनीति का विकास कर रहे हैं।

भारत भी अपने ‘सॉफ्ट पावर’ शस्त्रागार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सरलता से शामिल कर सकता है। वैश्विक भू-राजनीति पर एक बहु-संरेखित रुख के साथ, भारत के लिये यह उपयुक्त समय है वैश्विक भू-अर्थशास्त्र में अपने विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधों को अधिक व्यापक और सुविस्तारित करे।

विज्ञान और प्रौद्योगिकीय कूटनीति वैश्विक भू-राजनीति को कैसे आकार दे सकती है?

  • कूटनीति में विज्ञान: इसका अर्थ है कूटनीति और विदेश नीति निर्माण में वैज्ञानिक इनपुट का प्रवेश कराना।
    • सामूहिक विनाश के हथियार, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, ऊर्जा एवं पर्यावरण, बाह्य अंतरिक्ष जैसी वैश्विक चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने के लिये इन सभी विषयों में वैज्ञानिक इनपुट की आवश्यकता है।
    • ये चुनौतियाँ किसी एक देश की सीमाओं तक सीमित नहीं हैं और इनके समाधान के लिये सामान्य राजनयिक प्रयासों के साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC)।
  • कूटनीति के लिये विज्ञान: यह उन देशों के बीच संलग्नता के वैकल्पिक चैनल प्रदान करता है जिनके बीच राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं; इस प्रकार संप्रभु राष्ट्रों के बीच शक्ति-संतुलन की गतिशीलता को प्रभावित कर यह एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • तर्कसंगतता, पारदर्शिता और सार्वभौमिकता के वैज्ञानिक मूल्य दुनिया भर में एकसमान हैं। इस प्रकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग विचारों के मुक्त आदान-प्रदान और भागीदारी के लिये एक विचारधारा-रहित वातावरण प्रदान करता है।
  • विज्ञान के लिये कूटनीति: इसका अर्थ है विज्ञान और प्रौद्योगिकी में लाभ प्राप्त करने के लिये कूटनीति का द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों ही रूपों में उपयोग करना।
    • यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और क्षमता को मज़बूत करने तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी अंतर्राष्ट्रीय विमर्शों में अधिक प्रभावी भागीदारी करने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी ज्ञान प्राप्त करने का ध्येय रखता है।

भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचालित कूटनीति की वर्तमान स्थिति

  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (STIP), 2013 उन कुछ दृष्टांतों में से एक है जब किसी आधिकारिक सरकारी दस्तावेज़ में प्रौद्योगिकी और कूटनीति के इंटरसेक्शन का उल्लेख किया गया।
  • दस्तावेज़ में कहा गया है कि ‘‘नीतिगत ढाँचा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग, दोनों के माध्यम से अन्य देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी और गठबंधन को सक्षम करेगा।’’
  • विज्ञान कूटनीति, प्रौद्योगिकी तालमेल और प्रौद्योगिकी अधिग्रहण मॉडल को विवेकपूर्ण तरीके से कूटनीतिक संबंधों के आधार पर लागू किया जाएगा।
  • विकासशील देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत और फ्राँस द्वारा वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) का गठन किया गया था।
  • यह 121 हस्ताक्षरकर्ता सदस्य देशों का एक संघ है जो मुख्यतः ‘सनशाइन कंट्रीज़’ हैं (कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित देश)। ISA आधुनिक विज्ञान कूटनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2020 के मसौदे में भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं को पुनर्व्यवस्थित करने और वैश्विक प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका के संबंध में चर्चा की गई है।
  • वर्ष 2020 में विदेश मंत्रालय (MEA) ने साइबर डिप्लोमेसी डिवीजन, ई-गवर्नेंस एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी डिवीजन और न्यू इमर्जिंग एंड स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजी डिवीजन जैसे तकनीकी रूप से विशिष्ट प्रभागों का गठन किया।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी-संचालित कूटनीति के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • बाह्य अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण का बढ़ता जोखिम: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में हो रही प्रगति के साथ ही अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग के कई क्षेत्र दोधारी तलवार बनते जा रहे हैं और बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण एवं शस्त्रीकरण का खतरा बढ़ता जा रहा है।
    • ऐसे उपग्रह जिनका उपयोग नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है, ने एंटी-सैटेलाईट हथियार प्रौद्योगिकी (Anti-Satellite Weapons Technology) के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन और भारत सहित कई देशों ने इस प्रौद्योगिकी का परीक्षण किया है।
    • इसके अलावा, जैसे-जैसे हम चंद्रमा और मंगल के अभियान से फिर उनके दोहन की ओर आगे बढ़ेंगे, आकाशीय निकायों पर खनिज एवं अन्य अधिकारों के प्रश्नों के भी उभरने की संभावना है।
  • साइबर-युद्ध और साइबर-सेना का उभार: प्रौद्योगिकी ने युद्ध की प्रकृति को बदल दिया है। अब यह दृश्य स्थूल सैन्य कार्रवाई और हिंसा के बजाय सूक्ष्म एवं अदृश्य लेकिन निर्णायक साइबर युद्ध (Cyber-Warfare) में बदल रहा है जहाँ एक युद्ध जैसी स्थिति में शत्रु के सूचना वातावरण को पंगु बनाया जाता है।
    • दुनिया भर के कई देश ऐसी सैन्य इकाइयों का रखरखाव कर रहे हैं जिन्हें विशेष रूप से साइबर युद्ध के माहौल में संचालित करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है। इन्हें साइबर सेना (Cyber-Armies) के रूप में जाना जाता है।
  • जैव-हथियारों का खतरा: जैव प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ संघर्ष या युद्ध की स्थिति में मनुष्यों, जानवरों या पौधों को जानबूझकर क्षति पहुँचाने के लिये सूक्ष्मजीवों (जैसे बैक्टीरिया, वायरस या कवक) का जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • डेटा गोपनीयता संबंधी चिंता: बिग डेटा को प्रायः 21वीं सदी के ‘ब्लैक गोल्ड’ के रूप में देखा जाता है।
    • चूँकि इंटरनेट बाज़ारों एवं उपभोक्ताओं के समुच्चयन और वैश्वीकरण की अनुमति देता है, सीमा-पार डेटा प्रवाह डेटा गोपनीयता और वैश्विक शासन का एक विवादित मुद्दा बनता जा रहा है।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: चीन ने पिछले दो दशकों में क्वांटम सूचना और इलेक्ट्रिक वाहन पारितंत्र जैसे महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी डोमेन में बड़ी छलांग लगाई है ।
    • इसके अलावा, चीन अपनी सीमाओं से परे भी अपने प्रौद्योगिकी अवसंरचना का सक्रिय रूप से प्रसार और निर्यात कर रहा है, जिससे उसके प्रभाव क्षेत्र की वृद्धि हो रही है।

भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचालित कूटनीति की संभावनाओं का दोहन कैसे कर सकता है?

  • एकीकृत भुगतान प्रणाली के साथ विश्व को एकीकृत करना: एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) भारत की भुगतान प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव साबित हुआ है
    • भारत में विकसित की गई भुगतान की इस खुली और बहुपक्षीय डिजिटल प्रणाली को विभिन्न देशों में अपनाने के लिये प्रेरित किया जा सकता है। यह एक आदर्श सॉफ्ट पावर अवसर के रूप में काम कर सकता है।
    • एक महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक जीत तब होगी जब भारत की मौजूदा डिजिटल भुगतान प्रणाली विश्व स्तर पर स्वीकृत मानक बन जाएगी। यह प्रक्रिया आगे बढ़ रही है जहाँ चार देशों (नेपाल, भूटान, सिंगापुर और यूएई) ने भारत की इस भुगतान प्रणाली को अपनाया है और उसका उपयोग कर रहे हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में अग्रणी: वैश्विक उपस्थिति के मामले में, भारत जेनेरिक दवाओं और औषध का दुनिया का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जो वैश्विक मांग के 20% की पूर्ति करता है। वैक्सीन निर्माण और ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ में भी भारत एक अग्रणी देश रहा है ।
    • इसने भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है जो नए संबंध आगे बढ़ा रहा है। अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के लिये और अधिक प्रोत्साहन एवं व्यय के साथ वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग के क्षेत्र में भारत के सॉफ्ट पावर में वृद्धि की जा सकती है।
  • बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना: प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कूटनीति किसी विशेष गठबंधन या क्लब में प्रवेश करने की इच्छा नहीं है, बल्कि मौजूदा वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ राज्य के एकीकरण को अधिकतम करने पर लक्षित है।
    • लाइसेंस के रूप में बहुत कम प्रवेश बाधाएँ रखने वाली ओपन सोर्स प्रौद्योगिकियों (खुले मानकों पर निर्मित) के विकास को बढ़ावा देना बहुपक्षीय मोर्चे पर एक प्राथमिकता हो सकती है। इस तरह, प्रौद्योगिकी संबंधी राजनयिक संलग्नता बढ़ेगी और साथ ही प्रमुख प्रौद्योगिकियों तक भारत की पहुँच में सुधार होगा।
  • विज्ञान पर्यटन: भारत विज्ञान पर्यटन की अवधारणा का विकास कर सकता है। इसके तहत राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र, दिल्ली और बिरला विज्ञान संग्रहालय, हैदराबाद जैसे विज्ञान केंद्रों को देश भर में बढ़ावा दिया जा सकता है, जहाँ दुनिया भर के लोग विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अपने ज्ञान की प्यास बुझाने के लिये आ सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत भी अपने ‘सॉफ्ट पावर’ शस्त्रागार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सरलता से शामिल कर सकता है। व्याख्या कीजिये।