एडिटोरियल (12 Aug, 2022)



भारत में शिक्षा प्रौद्यौगिकी

यह एडिटोरियल 10/08/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “The Indian edtech industry is taking India to the world” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में शिक्षा प्रौद्योगिकी और इससे संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में भारत में, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान, एडटेक (Edtech– Education + Technology) उद्योग का तेज़ी से विकास हुआ है।

  • शिक्षा का ‘वन-साइज़-फिट्स-ऑल’ का पारंपरिक मॉडल लंबे समय से शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों के लिये एक बाधा रहा है, हालाँकि एडटेक व्यक्ति-अनुकूल कक्षाएँ प्रदान करता है और छात्रों को ‘इंटरएक्टिव लर्निंग’ के कई विकल्प प्रदान करता है।
  • लेकिन भारत में 4 में से केवल 1 छात्र की ही डिजिटल लर्निंग तक पहुँच है। हालाँकि ‘वर्चुअल लर्निंग’ के लिये एडटेक समाधानों की वृद्धि हो रही है, फिर भी वे विभिन्न कारणों से लाखों परिवारों की पहुँच से बाहर हैं।

भारत के लिये एडटेक का महत्त्व

  • ‘इंटरएक्टिव और इनोवेटिव लर्निंग’: व्याख्यान, मल्टीमीडिया ग्राफिक्स और इंटरएक्टिव तत्वों के साथ ऑनलाइन रूप से लर्निंग सीखने की प्रक्रिया को और अधिक आकर्षक बनाता है और एक विज़ुअल दृष्टिकोण के साथ सीखने की अवधारणाओं को संपुष्ट करता है।
    • भारत में एडटेक के तीव्र विकास को उत्साही उद्यमियों की उपस्थिति से भी बल मिला है जो इतने विविध देश की आवश्यकताओं के अनुरूप बहुसांस्कृतिक दृष्टिकोण अपना रहे हैं और नवीन उत्पादों एवं दृष्टिकोणों को विकसित कर रहे हैं।
  • ‘ऑन-डिमांड लर्निंग’ की आवश्यकता: जो छात्र पारंपरिक स्कूल प्रणाली की कठोर समय सारिणी से संगतता रखने में असमर्थ हैं, वे अपने घर से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षा के उम्मीदवार प्रायः काम और पढ़ाई एक साथ कर सकने में सक्षम हो पाते हैं।
    • प्रायः कक्षा के समय और उनके कार्य समय के बीच ओवरलैपिंग की स्थिति होती है। ऑन-डिमांड प्रशिक्षण परिदृश्य को छात्रों के पक्ष में मोड़ देता है जहाँ वे कहीं भी, कभी भी और किसी भी माध्यम से पाठ्यक्रम और अध्ययन सामग्री प्राप्त कर सकते हैं।
  • शिक्षकों की उपलब्धता: पूर्व में एक प्राध्यापक अधिकतम 100 छात्रों तक के बैच को संभाल सकता था।
    • एडटेक शिक्षकों को छात्रों की एक बड़ी संख्या के लिये स्वयं को उपलब्ध कराने में सक्षम बनाता है।
      • अब ऐसे भौतिक स्थान की आवश्यकता नहीं रह गई है जहाँ छात्र और शिक्षक कक्षा सत्र के लिये एकत्र हों।
  • व्यक्ति-अनुकूल मूल्यांकन (Personalized Evaluation): छात्रों को उनके पिछले लर्निंग पैटर्न और प्रदर्शन के डेटा के आधार पर व्यक्ति-अनुकूल अनुशंसाएँ प्राप्त होती हैं।
    • जिन छात्रों को सीखने की धीमी गति के कारण अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है, उन्हें उचित मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है।
  • आयु बाधाओं की समाप्ति: ऑनलाइन कार्यक्रम और पाठ्यक्रम किसी भी आयु वर्ग के लोगों को अपनी गति से, बिना किसी संकोच या असहजता के और अपनी अन्य प्रतिबद्धताओं से समझौता किये बिना लर्निंग की अनुमति देते हैं जो स्थिति पहले नहीं रही थी।
  • समान अवसर और ‘पे-वॉल’ की कमी: भारत का एडटेक उद्योग धीरे-धीरे अमीर और गरीब के बीच शिक्षा-गुणवत्ता की खाई को पाट सकता है, जिससे सभी पृष्ठभूमि के भारतीयों को सफलता के अधिक समान अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
    • एडटेक की लागत-प्रभावशीलता छात्रों को उनके और प्रीमियम शिक्षकों के बीच के पे-वॉल को दूर करने की अनुमति देती है और लर्निंग की यह वर्चुअल प्रकृति भौगोलिक बाधाओं को समाप्त करती है।
      • ‘पे-वॉल’ (Pay-Wall) वह व्यवस्था है जहाँ किसी वेबसाइट पर केवल भुगतान करने वाले ग्राहकों को ही पहुँच प्राप्त होती है।

एडटेक से संबद्ध चुनौतियाँ

  • लर्निंग से व्यावहारिक रूप से संलग्नता की सीमितता: विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी अध्ययन में सैद्धांतिक अध्ययन के पूरक के रूप में व्यावहारिक प्रयोगशाला सत्र, शोध प्रबंध परियोजनाएँ और क्षेत्र यात्राएँ (Field trips) भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती हैं।
    • ऑनलाइन शिक्षा में सीखने का यह पहलू गंभीर रूप से सीमित होता है।
  • सीमित सामाजिक कौशल वृद्धि: शिक्षा का अर्थ केवल विषय संबंधी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह छात्रों के बीच सामाजिक कौशल और खेल भावना के विकास का भी लक्ष्य रखती है जिनका विकास वर्षों की अंतःक्रिया के साथ होता है।
    • पूर्णतः ऑनलाइन शिक्षा पर निर्भर रहने से बच्चों के समग्र विकास में बाधा आ सकती है और भविष्य में वे अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में निष्पादन की कमी की स्थिति प्रदर्शित कर सकते हैं।
  • डिजिटल अवसंरचना की कमी: यद्यपि भारत एक व्यापक भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता रखता है, यह एक वृहत सामाजिक-आर्थिक विभाजन से भी ग्रस्त है जिसमें डिजिटल अवसंरचना सुविधाओं की गैर-एकरूपता भी शामिल है।
    • बाधित बिजली आपूर्ति और खराब या गैर-मौजूद इंटरनेट कनेक्टिविटी ज़मीनी स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा के प्रसार के मार्ग में बड़ी चुनौतियाँ हैं।
  • लैंगिक असमानता में वृद्धि की आशंका: ऑनलाइन शिक्षा से व्यापक लैंगिक असमानता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 733 छात्रों पर किये गए हाल के एक सर्वेक्षण में पता चला कि 36% बालकों के विपरीत केवल 28% बालिकाओं के घरों में स्मार्टफोन मौजूद था।
      • बालिकाएँ बालकों की तुलना में घर के कामों में अधिक संलग्न भी पाई गईं और उनकी यह संलग्नता प्रायः इन पाठों के प्रसारण के समय से ओवरलैप होती थी।
  • व्यावसायिक कदाचार: डिजिटल शिक्षा के बढ़ते बाज़ार के साथ एडटेक कंपनियाँ अधिकाधिक उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक कदाचार में संलग्न होने की संभावना रखती हैं।
    • हाल ही में भ्रामक विज्ञापनों और अनुचित व्यापार अभ्यासों के मुद्दे सामने आए हैं।
    • स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने बताया है कि एड-टेक कंपनियाँ निःशुल्क सेवाएँ देने की आड़ में अभिभावकों को लुभा रही हैं और उनसे इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (EFT) मैंडेट पर हस्ताक्षर करा रही हैं या ऑटो-डेबिट सुविधा को सक्रिय कर रही हैं जहाँ विशेष रूप से भेद्य परिवारों को लक्षित किया जा रहा है।
  • शिक्षक-शिक्षार्थी अनुकूलन क्षमता संबंधी चिंता: मनोरंजन के लिये इंटरनेट का उपयोग करना आम बात है, लेकिन ऑनलाइन पाठों के लिये यह एक बड़ी चुनौती है।
    • संभव है कि शिक्षक डिजिटल सामग्री के निर्माण में और इसे प्रभावी ढंग से ऑनलाइन प्रसारित करने में सुप्रशिक्षित न हों।
    • इसके साथ ही, उनसे डिजिटल माध्यम के लिये तुरंत ही अपग्रेड होने और छात्रों से इसके अनुकूल होने की उम्मीद करना अनुचित है।

भारत में हाल में अपनाये गए ज़मीनी स्तर के इनोवेटिव एडटेक कार्यक्रम

  • असम का ऑनलाइन करियर गाइडेंस पोर्टल कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों के लिये स्कूल-टू-वर्क और उच्च शिक्षा संक्रमण को सुदृढ़ कर रहा है।
  • झारखंड का डिजीसैट (DigiSAT) सुदृढ़ अभिभावक-शिक्षक-छात्र संबंध स्थापित कर व्यवहार परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है।
  • हिमाचल प्रदेश की ‘हरघर पाठशाला’ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (special needs children) को डिजिटल शिक्षा प्रदान कर रही है।
  • मध्य प्रदेश का ‘DigiLEP’ सभी संकुलों और माध्यमिक विद्यालयों को कवर करने वाले 50,000 से अधिक व्हाट्सएप समूहों के साथ एक सुसंरचित तंत्र के माध्यम से लर्निंग संवर्द्धन के लिये सामग्री/कंटेंट वितरित कर रहा है।
  • केरल की ‘अक्षरवृक्षम’ पहल खेल और अन्य गतिविधियों के माध्यम से लर्निंग एवं कौशल विकास का समर्थन करने के लिये डिजिटल ‘शिक्षा-मनोरंजन’ या ‘एजुटेनमेंट’ (Edutainment) पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

आगे की राह

  • ‘डिजिटल डिवाइड’ को दूर करना: ऑनलाइन लर्निंग के विस्तार के लिये भारत में मौजूदा डिजिटल डिवाइड को दूर करना आवश्यक है।
    • ओड़िशा सरकार का ‘5T’ पहल (Transparency, Teamwork, Technology, and Timeliness leading to Transformation) के अंतर्गत सरकारी स्कूल परिवर्तन कार्यक्रम (Government School Transformation Programme) इस दिशा में एक सराहनीय कदम है।
  • समावेशी शिक्षा नीति: महामारी के दौरान समावेशी शिक्षा नीतियों की आवश्यकता को वैश्विक स्तर पर चिह्नित किया गया है।
    • ऑनलाइन शिक्षा को अधिक प्रभावी, सुलभ और सुरक्षित बनाने के लिये ऑनलाइन संसाधनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और नवीन योजनाओं का विकास आवश्यक है।
      • शिक्षण समुदाय शिक्षकों के एक राष्ट्रव्यापी अनौपचारिक और स्वैच्छिक नेटवर्क के निर्माण हेतु एक साथ आया है, जिसे ‘ऑनलाइन शिक्षण चर्चा मंच’ (Discussion Forum of Online Teaching- DFOT) का नाम दिया गया है। यह स्वागतयोग्य पहल है।
  • अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियाँ अभिनव एवं व्यक्ति-अनुकूल दृष्टिकोणों के लिये नई संभावनाओं के द्वार खोल सकती हैं जो विभिन्न लर्निंग योग्यताओं के विकास में मदद करेंगी।
    • आईआईटी खड़गपुर ने नेशनल एआई रिसोर्स प्लेटफॉर्म (NAIRP) विकसित करने के लिये अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के साथ सहयोग स्थापित किया है। यह भविष्य में बेहतर टीचिंग और लर्निंग के लिये आँखों की गति, संकेत और अन्य मापदंडों की निगरानी जैसे तंत्रों का उपयोग करेगा।
  • ‘‘What is Told is What is Sold’’: एडटेक कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध चेतावनी और पारदर्शिता पर बल के साथ ही पेशेवर कदाचार की निगरानी और समयबद्ध शिकायत निवारण के लिये एक उपयुक्त तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है।
  • लर्निंग का हाइब्रिड मोड: एडटेक कोई जादू की छड़ी नहीं है जो भारत में लर्निंग संबंधी संकट को क्षण में दूर कर देगी। यह स्कूलों में शिक्षकों द्वारा शिक्षण का प्रतिस्थापन विकल्प भी नहीं है। वस्तुतः लर्निंग के ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों के बीच संतुलन रखना उपयुक्त दृष्टिकोण होगा।
    • उल्लेखनीय है कि Byju’s और Unacademy जैसे प्रमुख ऑनलाइन खिलाड़ियों ने अब ऑफलाइन या हाइब्रिड लर्निंग मॉडल की ओर भी कदम बढ़ाया है।

निष्कर्ष

यह तथ्य है कि ऑनलाइन शिक्षा छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिये कई संभावनाओं के द्वार खोलती है, लेकिन यह भारत में सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा भी दे सकती है। ऑनलाइन शिक्षा के संबंध में हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हमारी सभी नीतियाँ और हस्तक्षेप समावेशी हों। भारत को उपयुक्त दृष्टिकोण और ईमानदार प्रयासों के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘ऑनलाइन शिक्षा छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिये कई संभावनाओं के द्वार खोलती है, लेकिन यह भारत में सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा भी दे सकती है।’’ व्याख्या कीजिये।