एडिटोरियल (08 Aug, 2022)



भारतीय हिमालयी क्षेत्र

यह एडिटोरियल 06/08/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Policies and People / Don’t destroy the Himalayas for tourism gains” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय हिमालयी क्षेत्र और असंवहनीय पर्यटन से संबद्ध मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अपनी विशाल चोटियों, भव्य भूदृश्यों, समृद्ध जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत के साथ भारतीय हिमालयी क्षेत्र (Indian Himalayan Region- IHR) दीर्घकाल से भारतीय उपमहाद्वीप और दुनिया भर से आगंतुकों एवं तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता रहा है।

  • इन गतिशीलताओं ने पर्यटन को सामाजिक आर्थिक विकास के प्रमुख चालक में बदल दिया है। स्थानीय पर्वतीय आबादी के लिये पर्यटन मूल्यवान आर्थिक एवं व्यावसायिक अवसर प्रदान करता है और राज्य सरकारों एवं निजी उद्यमियों के लिये यह राजस्व और लाभ प्रदान करता है।
  • लेकिन IHR में पर्यटन के वर्तमान प्रचलित मॉडल को पर्यावरणीय क्षति एवं प्रदूषण, सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के लिये खतरा, दुर्लभ संसाधनों के भारी दोहन और समाज में नकारात्मक बाह्यताओं के संभावित कारण के स्रोत के रूप में देखा जाता है।

भारत के लिये हिमालय का महत्त्व

  • नदियों का उद्गम: प्रचुर मात्रा में वर्षा और विशाल हिम-क्षेत्रों के साथ-साथ हिमालय में मौजूद बड़े हिमनद भारत की विशाल नदियों के पोषण के आधार हैं।
    • हिमालय से नीचे उतरती ये नदियाँ अपने साथ भारी मात्रा में जलोढ़ मृदा लेकर आती हैं।
    • यह जलोढ़ उपजाऊ मृदा के रूप में उत्तर भारत के विशाल मैदान में जमा होती है, जिससे यह मैदान विश्व के सबसे उपजाऊ भूमि क्षेत्रों में से एक बनता है।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण: देश की लगभग 33% तापीय बिजली और 52% जलविद्युत हिमालय से निकलने वाली नदियों के जल पर ही निर्भर है।
    • ये नदियाँ अपने जल का एक बड़ा भाग हिमनदों के पिघलने से प्राप्त करती हैं, इस प्रकार ये भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं जल सुरक्षा आवश्यकताओं के महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
  • मानसून को सहयोग: भारत की जलवायु में हिमालय अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपनी उच्च तुंगता, लंबाई एवं अवस्थिति के कारण वे बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाले ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावी ढंग से रोकते हैं और वर्षा या बर्फ के रूप में वर्षण का कारण बनते हैं।
    • इसके अलावा, वे मध्य एशिया की ठंडी महाद्वीपीय वायु राशियों को भारत में प्रवेश करने से रोकते हैं।
  • वन संपदा: हिमालय पर्वतमाला वन संसाधनों से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ समुद्र तल से ऊँचाई के अनुरूप उष्णकटिबंधीय वनस्पति से अल्पाइन वनस्पति तक विविधतापूर्ण वनस्पति आवरण मौजूद है।
    • हिमालय के वन ईंधन लकड़ी और वन-आधारित उद्योगों के लिये विभिन्न तरह का कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, हिमालयी क्षेत्र में कई औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं।
  • पर्यटन: इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और स्वस्थ वातावरण के कारण यहाँ बड़ी संख्या में पर्यटन स्थलों का विकास हुआ है।
  • हिमालय के पहाड़ी क्षेत्र ठंडी और आरामदायक जलवायु प्रदान करते हैं जब पड़ोस के मैदानी इलाके भीषण गर्मी की चपेट में होते हैं।

भारत में हिमालय से संबद्ध चुनौतियाँ

  • उपयुक्त अपशिष्ट प्रबंधन का अभाव: हिमालय क्षेत्र के शहर बड़े होते जा रहे हैं और मैदानी शहरों की ही तरह कचरे एवं प्लास्टिक के बड़े ढेर, अनुपचारित सीवेज, अनियोजित शहरी विकास और यहाँ तक कि वाहनों के कारण स्थानीय वायु प्रदूषण की स्थिति का सामना करने लगे हैं।
    • अधिकांश पहाड़ी गाँवों में अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान के लिये कोई स्थानीय, विकेंद्रीकृत सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिये वे या तो इन्हें जलाते हैं या ढलान की ओर फेंक देते हैं।
  • असंवहनीय पर्यटन (Unsustainable Tourism): दुर्भाग्य से हमारे पहाड़ों को केवल पर्यटन के दृष्टिकोण से देखा जाता है और इस बात की अनदेखी की जाती है कि एक बिंदु से अधिक संसाधनों का दोहन विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
    • उल्लेखनीय है कि पर्वतीय क्षेत्रों का अपनी एक सूक्ष्म-जलवायु (Micro climate) होती है। इसके अद्वितीय जीवों और वनस्पतियों की एक संक्षिप्त प्रजनन समय-सीमा होती है और ये किसी भी हस्तक्षेप या परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं। असंवहनीय पर्यटन प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण हिम और बर्फ के पिघलने से नई हिमनद झीलें बनती हैं, साथ ही मौजूदा झीलों के जलस्तर में वृद्धि होती है। इससे हिमनद-झील के फटने से उत्पन्न बाढ़ (Glacial-lake outburst floods) का खतरा बढ़ सकता है।
    • हिमालय क्षेत्र में लगभग 8,800 हिमनद झीलें हैं जो कई राष्ट्रों में विस्तृत हैं। इनमें से 200 से अधिक झीलों को खतरनाक या संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • दोषपूर्ण अवसंरचना परियोजनाएँ: जलविद्युत का विकास महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देश को ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत प्रदान करता है और राज्य के लिये राजस्व का स्रोत है।
    • लेकिन यह भी प्रकट है कि जलविद्युत परियोजनाओं की बढ़ती संख्या और बदतर निर्माण के कारण बाढ़ का खतरा एवं प्रभाव और बढ़ गया है।

चार धाम राजमार्ग विकास परियोजना

  • चार धाम राजमार्ग विकास परियोजना एक केंद्रीय राजमार्ग विस्तार परियोजना है जिसकी परिकल्पना वर्ष 2016 में की गई थी। इसके तहत उत्तराखंड के चार प्रमुख तीर्थस्थलों- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को शामिल करते हुए चार धाम सर्किट में सभी मौसमों में कनेक्टिविटी प्रदान करने के उद्देश्य से 889 किलोमीटर पहाड़ी सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना है।
  • यद्यपि परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक रूप से चार धाम यात्रा को सुविधाजनक बनाना और और पर्यटन को बढ़ावा देना था, लेकिन इसका एक रणनीतिक कोण भी है क्योंकि ये राजमार्ग चीन सीमा के निकट के क्षेत्रों तक सैन्य दलों की आवाजाही को भी सुगम करेंगे।
  • यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि बार-बार जाम लगने, भूस्खलन एवं ढलान के ढहने के लिये प्रवण चौड़ी सड़क के बजाय आपदा-रोधी सड़क अधिक उपयोगी होगी, इसलिये हिमालयी राजमार्गों के लिये एक मध्यम चौड़ाई ही रखी जानी चाहिये जो तीर्थयात्रा के साथ-साथ देश की रक्षा आवश्यकताओं के लिये अधिक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण होगा।

आगे की राह

  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment): राज्य को पर्यटन को प्रोत्साहित करना चाहिये, लेकिन लक्ष्य उत्तरदायी पर्यटन हो, जिसका अभिप्राय यह है कि नए पर्यटन क्षेत्रों को खोले जाने से पहले इस तरह के प्रयासों का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया जाए।
  • अखिल-हिमालयी रणनीति: एक अखिल-हिमालयी रणनीति (Pan-Himalayan Strategy) पर विचार करने की ज़रूरत है ताकि राज्य साझा नीतियाँ विकसित कर सकें और मानदंडों के पतन की स्थिति से बचें।
    • इन रणनीतियों में वन, जल, जैव विविधता, जैविक एवं विशिष्ट खाद्य पदार्थ, प्रकृति पर्यटन सहित भूभाग के प्राकृतिक संसाधनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये, साथ ही विशिष्ट खतरों को संबोधित करना चाहिये ताकि विकास पर्यावरणीय क्षरण का कारण नहीं बने।
    • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem) इस दिशा में स्वागतयोग्य कदम है।
  • संवहनीय अवसंरचना परियोजनाएँ: हिमालयी क्षेत्र के शहरों के बिल्डिंग डिज़ाइन में भूकंपीय नाजुकता और सुंदरता को शामिल करते हुए स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिये। अप्रबंधित और अनियंत्रित शहरी विकास की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये। इसके लिये इन शहरों में सुदृढ़ नियामक संस्थाओं की आवश्यकता होगी।
    • इसके साथ ही, ऊर्जा उत्पादन के लिये उपलब्ध जल के उपयोग को अधिकतम करने के लिये संवहनीय जलविद्युत परियोजनाएँ तैयार की जानी चाहिये।
    • नदियों का रूप-परिवर्तन या रि-इंजीनियरिंग नहीं की जा सकती (न ही ऐसा किया जाना चाहिये), लेकिन उपलब्ध जल के अधिकतम उपयोग के लिये बांधों की रि-इंजीनियरिंग की जा सकती है।
    • परस्पर-संबद्ध ग्रिड के माध्यम से स्थानीय लोगों को भी परियोजनाओं का लाभ प्रदान किया जाना चाहिये।
  • नीतियों का पुनरीक्षण: पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि अभ्यासों पर विचार कर हिमालयी राज्यों में वन मूल्य में सुधार के लिये एक साझा नीति विकसित की जानी चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, सिक्किम ने जैविक इलायची की फसल को बढ़ावा दिया है, लेकिन पाया है कि वन कानून वन भूमियों पर इस तरह की खेती का लाभ लेने की अनुमति नहीं देते हैं, जबकि वनों को कोई भी क्षति पहुँचाए बिना इस खेती का अभ्यास किया जाता है।
  • संवहनीय पर्यटन (Sustainable Tourism): इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास को संवहनीय तरीके से प्राप्त करने के लिये उपयुक्त तंत्र तैयार किया जाना जो जैव विविधता पर न्यूनतम प्रभाव डालने के साथ ही स्थानीय समुदाय के लिये संवहनीय आजीविका विकल्प प्रदान करे।
    • वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ से मिले सबक को याद रखना चाहिये कि संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में तीर्थयात्री-आधारित पर्यटन के विकास हेतु संवहनीय मॉडल को अपनाया जाना आवश्यक है।
    • पारिस्थितिक पर्यटन की दिशा में कदम को सावधानीपूर्वक बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि सर्वोत्तम अभ्यासों को सीखा जा सके और उनका प्रसार किया जा सके।
  • सतर्कता और नियमित गश्त: हिमालयी भूभाग के संरक्षित क्षेत्रों, जैसे लद्दाख के हेमिस राष्ट्रीय उद्यान और काराकोरम अभयारण्य में अवांछित वन्यजीव-पर्यटक संपर्क को कम करने के साथ-साथ ऑफ-रोड ड्राइविंग एवं अतिक्रमण के कारण पर्यावास विनाश को कम करने के लिये सतर्कता और नियमित गश्त की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: हिमालय क्षेत्र के देशों को एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का निर्माण करने की आवश्यकता है जो विभिन्न जोखिमों (जैसे हिमनद झीलों से उत्पन्न खतरे) की निगरानी करे और आसन्न खतरों के लिये पूर्व-चेतावनी दे। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर क्षेत्र में पिछले दशक में स्थापित सुनामी चेतावनी प्रणालियों ने इसके खतरे को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और हिमालय क्षेत्र में पूर्व-चेतावनी प्रणालियों की स्थापना ऐसी ही भूमिका निभा सकती हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत में हिमालय से संबद्ध चुनौतियों की चर्चा कीजिये। भारतीय हिमालय क्षेत्र में मौजूदा पर्यावरणीय समस्याओं को कम करने में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन क्या भूमिका निभा सकता है?

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्र. जब आप हिमालय की यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)

1. गहरे खड्डे
2. यू-घुमाव वाले नदी मार्ग
3. समानांतर पर्वत शृंखला
4. भूस्खलन के लिये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता

उपर्युक्त में कौन-से हिमालय के तरुण वलित पर्वत के साक्ष्य कहे जा सकते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4