एडिटोरियल (07 Sep, 2021)



सकारात्मक कार्रवाई का पुन: अंशांकन

यह एडिटोरियल दिनांक 06/09/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘The key to revitalising India’s reservation system’’ लेख पर आधारित है। इसमें सकारात्मक कार्रवाई की नीति से जुड़ी समस्याओं और अन्य संबद्ध मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

हाल ही में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs)हेतु  आरक्षण शुरू करने के लिये सरकार की सराहना की गई और इस निर्णय से एक बार फिर जाति संबंधी जनगणना तथा सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action) पर बहस शुरू हो गई है।   

सकारात्मक कार्रवाई, जिसकी परिकल्पना गणतंत्र की स्थापना के समय की गई थी, वास्तव में हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा प्रस्तुत उल्लेखनीय प्रावधानों में से एक है। यह भारत जैसे एक भारी असमान और दमनकारी सामाजिक व्यवस्था वाले देश में न्याय के सिद्धांत को प्रतिपादित करने हेतु ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है।  

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आरक्षण के प्रावधान भारतीय लोकतंत्र की सफलता की कहानियों में से प्रमुख किरदार रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही इन्होंने कई समस्याओं को भी जन्म दिया है और इस संबंध में तत्काल नीतिगत ध्यान एवं बहस की आवश्यकता है।

आरक्षण की आवश्यकता

  • देश में पिछड़ी जातियों द्वारा झेले जा रहे ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिये।  
  • पिछड़े वर्गों के लिये उपयुक्त अवसर प्रदान करने हेतु क्योंकि वे उन लोगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकते हैं जिनके पास सदियों से संसाधनों और साधनों की पहुँच उपलब्ध है।  
  • राज्य के अधीन सेवाओं में पिछड़े वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये।  
  • पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिये। 
  • योग्यता के आधार के रूप में समानता सुनिश्चित करने के लिये अर्थात् सभी लोगों को पहले एकसमान स्तर पर लाना और फिर योग्यता के आधार पर उनका मूल्यांकन करना।

वर्तमान नीति के साथ समस्याएँ

  • समता नहीं: राज्य के राजनीतिक और सार्वजनिक संस्थानों में सीटों के आरक्षण के माध्यम से यह सोचा गया था कि अब तक हाशिये पर रहे समूह जो पीढ़ियों से उत्पीड़न और अपमान का सामना कर रहे हैं, अंततः सत्ता साझेदारी और निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में अपनी हिस्सेदारी पाने में सक्षम होंगे।  
    • हालाँकि, अक्षमताओं को दूर करने की यह रणनीति हमारे विषम समाज में कई समूहों के लिये जीवन अवसरों की समानता के निर्माण में अनिवार्य रूप से सफल नहीं हुई है।
  • वस्तुकरण की समस्या: वर्तमान परिदृश्य की वास्तविकता यह है कि यह व्यवस्था वस्तुकरण की समस्या से ग्रस्त है।  
    • अन्य पिछड़ा वर्गों के उप-वर्गीकरण पर न्यायमूर्ति जी. रोहिणी आयोग की रिपोर्ट द्वारा जारी आँकड़े इसे समझने के लिये एक अच्छा संक्षिप्त दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।    
    • अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये केंद्र सरकार की नौकरियों में नियुक्तियों और केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के मामले में पिछले पाँच वर्षों के आँकड़ों के आधार पर आयोग ने निष्कर्ष निकाला है कि केंद्रीय ओबीसी कोटा का 97% लाभ इस वर्ग की केवल 25% जातियों को प्राप्त होता है।
    • 983 ओबीसी समुदायों (जो कुल का 37% हैं) को केंद्र सरकार की नौकरियों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश में शून्य प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
    • इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि ओबीसी समुदायों के केवल 10% ने 24.95% नौकरियों और प्रवेश पर अधिकार जमा लिया है।
  • आँकड़ों की कमी: यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि रोहिणी आयोग के आँकड़े केवल उन संस्थानों पर आधारित हैं जो केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं।  
    • राज्य और समाज के अधिक स्थानीय स्तरों पर विभिन्न सामाजिक समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर किसी भी स्पष्ट या विश्वसनीय आँकड़े का अभाव है।
  • जाति अभी भी आय स्तर से संबद्ध है: मुक्ति के चरण में भी जातियाँ आय के अधिक पारंपरिक स्रोतों से ही जुड़ी हुई हैं और अर्थव्यवस्था के खुलने से उत्पन्न हुए अवसरों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं।  
    • ज़मीनी स्तर पर सामाजिक सुरक्षा के अभाव में हाशिये पर स्थित लोगों का बहुमत अभी भी इतिहास के प्रतीक्षालय में भटकने को विवश है और राज्य की नीति ग्रिड की रोशनी पाने की प्रतीक्षा कर रहा है।
  • समान अवसर आयोग (Equal Opportunities Commission, 2008) की विशेषज्ञ समिति ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को सौंपी गई अपनी व्यापक रिपोर्ट में कई सिफारिशें की थीं।   
    • हालाँकि, इस संबंध में बहुत कम नीतिगत प्रगति हुई है। उत्तरोत्तर सरकारें इस तरह के व्यापक परिवर्तनकारी नीति विकल्पों से संबद्ध होने के प्रति अनिच्छुक रही हैं और लगभग हमेशा ही तात्कालिक और अदूरदर्शी राजनीतिक लाभ के दृष्टिकोण से आगे बढ़ी हैं।
  • हाशिये पर स्थित वर्गों की माँगें: आराक्षण के लाभ से वंचित रहे हाशिये पर स्थित वर्गों की ओर से अब प्रबल माँग उठ रही है कि ऐसे नीति विकल्पों पर विचार किया जाए जो आरक्षण की मौजूदा प्रणाली को पूरकता प्रदान कर सके। 
  • आरक्षण का विषम वितरण: आरक्षण के विषम वितरण ने निम्न जाति समूहों के बीच एकजुटता को भी बाधित किया है।

आगे की राह 

  • सकारात्मक कार्रवाई का पुन: अंशांकन: यह आवश्यक है कि सकारात्मक कार्रवाई के लाभ किसी भी जाति के निर्धनतम हिस्से तक पहुँचे।  
    • एक तंत्र की आवश्यकता है जो सकारात्मक कार्रवाई के वर्तमान कार्यान्वयन में इस कमी को दूर कर सके और प्रणाली को अंतरा-समूह माँगों के प्रति अधिक उत्तरदायी और संवेदनशील बना सके।
  • साक्ष्य-आधारित नीति की आवश्यकता: संदर्भ-संवेदनशील और साक्ष्य-आधारित नीति विकल्पों की एक विस्तृत शृंखला विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है, जिसे विशिष्ट समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये तैयार किया जा सकता हो। 
  • संस्थागत व्यवस्था: संयुक्त राज्य अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम के ‘समान अवसर आयोग’ जैसी संस्था के गठन की आवश्यकता है जो दो महत्त्वपूर्ण लेकिन परस्पर संबंधित कार्य कर सकती है:  
    • जाति, लिंग, धर्म और अन्य समूह असमानताओं सहित विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक-आधारित जनगणना से संबंधित आँकड़े से एक वंचित सूचकांक (deprivation index) का निर्माण करना और अनुरूप नीतियों के निर्माण के लिये उनकी रैंकिंग करना। 
    • गैर-भेदभाव और समान अवसर पर नियोक्ताओं और शैक्षणिक संस्थानों के प्रदर्शन पर एक ऑडिट कार्य करना और विभिन्न क्षेत्रों में अच्छे अभ्यास के कोड जारी करना।  
      • इससे संस्थागत स्तर पर नीति निर्माण और उसकी निगरानी करना आसान हो जाएगा।
  • व्यापक जाति-आधारित जनगणना की आवश्यकता: भारत में सकारात्मक कार्रवाई व्यवस्था में किसी भी सार्थक सुधार के आरंभ के लिये एक सामाजिक-आर्थिक जाति-आधारित जनगणना आयोजित कराना एक आवश्यक पूर्व-शर्त बन जाता है।  
    • इस प्रकार, जाति जनगणना को सामान्य जनगणना के साथ शामिल करना वर्तमान समय की माँग है।
  • मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति: पिछड़ों के लिये न्याय, अगड़ों के लिये समानता और पूरी व्यवस्था के लिये दक्षता के बीच संतुलन की तलाश के लिये एक मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, आरक्षण के मुद्दे को एक नए ढाँचे में रखना आवश्यक है जो भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों का उचित ध्यान रखता हो। यह ढाँचा ऐसा हो जो गुणवत्ता और समानता को बेहतर तरीके से संतुलित करने में मदद करे। 

अभ्यास: आरक्षण के मुद्दे को एक नए ढाँचे में रखना आवश्यक है जो भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों का उचित ध्यान रखता हो। चर्चा कीजिये।