एडिटोरियल (04 Jun, 2022)



प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली

यह एडिटोरियल 02/06/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A Case for Community-Oriented Health Services” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली में आशा (ASHA) स्वयंसेवकों के महत्त्व, उनके समक्ष विद्यमान समस्याओं और उनकी स्थिति में सुधार के लिये उठाए जा सकने वाले आवश्यक कदमों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत की 1 मिलियन ‘आशा’ मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (Accredited Social Health Activists- ASHA) को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ‘ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड्स 2022’ के रूप में निश्चय ही अभी तक की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है। जिनेवा में आयोजित 75वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में घोषित छह पुरस्कार विजेताओं में आशा कार्यकर्ता भी शामिल थीं।

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और टीकाकरण जैसी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने की दिशा में आशा कार्यकर्ताओं का असाधारण योगदान रहा है। ऐसे महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद आशा कार्यकर्ताओं को भुगतान, सामाजिक सुरक्षा और नौकरियों के स्थायित्व से संबंधित विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

WHO द्वारा आशा कार्यकर्ताओं की पहचान करना एक ऐसा अवसर है कि आशा कार्यकर्ताओं के दृष्टिकोण से आशा कार्यक्रम को आगे और सुदृढ़ किया जाए।

आशामान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता

आशा कार्यक्रम का आरंभ

  • भारत ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के एक भाग के रूप में वर्ष 2005-06 में आशा कार्यक्रम (ASHA programme) शुरू किया था।
    • वर्ष 2013 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) के शुभारंभ के साथ इस कार्यक्रम का विस्तार शहरी क्षेत्र में भी कर दिया गया।
  • आशा कार्यक्रम का मूल उद्देश्य समुदाय के सदस्यों का क्षमता निर्माण है ताकि वे अपने स्वयं के स्वास्थ्य की देखभाल कर सकें और स्वास्थ्य सेवाओं में भागीदार बन सकें।

आशा कार्यक्रम के लिये प्रेरणा

  • आशा कार्यक्रम इससे पूर्व की दो पहलों से मिली सीख से प्रेरित था:
  • वर्ष 1975 में ‘जनता द्वारा स्वास्थ्य’ (Health by the People) शीर्षक WHO मोनोग्राफ का जारी होना।
  • वर्ष 1978 में तत्कालीन सोवियत संघ और अब कज़ाखस्तान में अवस्थित अल्मा अता (Alma Ata) में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन।
  • यद्यपि आशा कार्यक्रम को रूपाकार देने की सबसे बड़ी प्रेरणा छत्तीसगढ़ की ‘मितानिन’ पहल (छत्तीसगढ़ी में मितानिन का अर्थ है ‘एक महिला मित्र’) से मिली जो मई 2002 में शुरू की गई थी।
  • मितानिन प्रत्येक 50 घरों और 250 लोगों के लिये उपलब्ध महिला स्वयंसेवक थीं।

आशा की मुख्य विशेषताएँ

  • आशा कार्यकता 25-45 आयु वर्ग की एक सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता होती है जो स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में कठिनाई अनुभव करने वाले ग्रामीण आबादी के वंचित वर्गों (महिलाओं और बच्चों सहित) की किसी भी स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये संपर्क के पहले बिंदु के रूप में कार्य करती है।
  • आशा कार्यकर्ता उसी गाँव की होती है जहाँ वह अपनी सेवा देती है। इससे परिचय, बेहतर सामुदायिक संबंध और स्वीकृति की एक भावना सुनिश्चित होती है।
  • आम तौर पर ‘प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 आशा कार्यकर्ता’ कार्यरत होती है। यद्यपि जनजातीय, पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में कार्य के बोझ के आधार पर इस मानदंड में ‘1 आशा प्रति बस्ती’ तक छूट भी दी जा सकती है।
  • ‘आशा’ में निहित ‘कार्यकर्ता’ शब्द का उद्देश्य यह दर्शाना है कि वे स्वास्थ्य प्रणाली में समुदाय की प्रतिनिधि हैं, न कि समुदाय में कार्यरत सबसे निचले स्तर की सरकारी कर्मचारी (जैसा पूर्ववर्ती ‘सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक’ को समझा जाता था)।

भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में आशा कार्यकर्ताओं का योगदान कितना महत्त्वपूर्ण है?

  • वे लोगों को पोषण, बुनियादी स्वच्छता एवं साफ-सफाई संबंधी अभ्यासों, स्वस्थ जीवन शैली एवं कार्य स्थिति आदि के बारे में सूचना प्रदान कर स्वास्थ्य निर्धारकों के संबंध में जागरूकता का सृजन करती हैं।
  • वे महिलाओं को शिशु जन्म की तैयारी, सुरक्षित प्रसव के महत्त्व, स्तनपान, गर्भनिरोधक के प्रयोग, टीकाकरण, बच्चे की देखभाल और प्रजनन पथ संक्रमण/यौन संचारित संक्रमण (RTIs/STIs) की रोकथाम के बारे में सलाह देती हैं।
  • बुखार, दस्त और छोटी-मोटी चोटों जैसे मामूली विकारों के लिये वे प्राथमिक चिकित्सा देखभाल प्रदान करती है ।
  • वे उप-केंद्रों/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को अपने गाँव में प्रत्येक जन्म व मृत्यु और समुदाय में किसी भी बीमारी के प्रकोप या असामान्य स्वास्थ्य चिंताओं के बारे में सूचित भी करती रहती हैं।

आशा कार्यकर्ताओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त वेतन और नौकरी की असुरक्षा: ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत 3As (AWW, ANM और ASHA) में से केवल आशा ही ऐसी हैं जिन्हें निश्चित वेतन नहीं दिया जाता है। उनके पास करियर में प्रगति के अवसर भी नहीं हैं।
    • इन मुद्दों को लेकर आशा कार्यकर्ताओं में असंतोष रहा है और समय-समय पर आंदोलन एवं विरोध प्रदर्शन द्वारा उन्होंने अपनी अपेक्षाएँ सरकार के सामने प्रकट की हैं।
    • इसके अलावा आशा के लिये काम का बोझ भी कम नहीं होता; उन्हें सुबह से लेकर रात तक काम करना पड़ता है और उनके आराम के लिये कोई जगह नहीं होती।
  • सामाजिक कलंक और अपमान: आशा कार्यकर्ता प्रायः न केवल सार्वजनिक स्थान पर बल्कि निजी जीवन में भी कलंक का अनुभव करती हैं; बेहद कम मानदेय के कारण घर के लोग प्रायः उन पर काम छोड़ देने का दबाव बनाए रखते हैं।
    • यहाँ तक कि मरीजों के परिजनों की ओर से भी उन पर प्रायः अपना काम ठीक से न करने के आरोप लगते रहते हैं।
    • इससे भी अधिक निराशाजनक तथ्य यह है कि आशा कार्यकर्ताओं को अपने फील्ड कार्य के दौरान यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है।
  • सुविधाओं की अनुपलब्धता: आशा कार्यकर्ताओं के लिये कार्य कर सकने की सुविधाओं की अनुपलब्धता रही है। संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में उनके लिये कार्य करना अत्यंत कठिन हो जाता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि असम के कोकराझार और कार्बी आंगलोंग जैसे संवेदनशील और संघर्षग्रस्त क्षेत्र में कार्यरत आशा कार्यकर्ताओं की चुनौतियों और भेद्यताओं को संबोधित करने के लिये कोई प्रयास नहीं किया गया है।
    • कई आशा कार्यकर्ताओं ने सूचना दी कि संघर्ष के दौरान और तुरंत बाद स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें दूरस्थ स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों तक परिवहन की व्यवस्था करने और सेवाओं के अभाव की स्थिति में कठिनाई का अनुभव हुआ।

आशा कार्यकर्ताओं की यथास्थिति में सुधार के लिये क्या किया जा सकता है?

  • राज्य सरकारों की भूमिका: आशा कार्यकताओं को वैश्विक मान्यता के वर्तमान उत्प्रेरण का उपयोग समाधान के दृष्टिकोण से कार्यक्रम की नए सिरे से समीक्षा करने के अवसर के रूप में किया जाना चाहिये।
    • राज्य सरकारों को आशा कार्यकर्ताओं के लिये उच्च पारिश्रमिक हेतु एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
    • प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों की व्याख्या यह नहीं होनी चाहिये कि आशा कार्यकर्ता, चाहे वे कितना भी कार्य करें या कितनी भी मेहनत करें, उन्हें सभी स्वास्थ्यकर्मियों में से सबसे कम भुगतान ही प्रदान किया जाए।
  • कौशल उन्नयन और क्षमता निर्माण: समय आ गया है कि आशा कार्यकर्ताओं के क्षमता निर्माण के लिये अंतर्निर्मित संस्थागत तंत्र का निर्माण हो और उनके लिये ANM, सार्वजनिक स्वास्थ्य नर्स और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों जैसे अन्य संवर्गों की ओर करियर की प्रगति के रास्ते खोले जाएँ।
    • कुछ भारतीय राज्यों ने इस तरह की पहल शुरू की है लेकिन ये अभी छोटे पैमाने पर और आरंभिक चरणों में हैं। उच्च स्तर पर इसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना: स्वास्थ्य बीमा (आशा और उनके परिवारों के लिये) सहित विभिन्न सामाजिक क्षेत्र सेवाओं के लाभों का विस्तार करने पर विचार किया जाना चाहिये।
    • विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिये आशा कार्यकर्ता की पात्रता और पहुँच की संभावना को संस्थागत रूप देने की आवश्यकता है।
  • नौकरियों का स्थायित्व: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में कई अस्थायी पदों को नियमित करने और आशा कार्यकर्ताओं को स्थायी सरकारी कर्मचारी बनाने के पक्ष में मज़बूत तर्क मौजूद हैं।
    • सभी स्तरों पर और विशेषकर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में कार्यबल में कर्मियों की व्यापक कमी को ध्यान में रखते हुए और आशा कार्यकर्ताओं द्वारा किये जा रहे कार्यों की निरंतर आवश्यकता को देखते हुए उन्हें स्थायी सरकारी कर्मचारी बनाया जाना एक तार्किक नीति विकल्प है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये।
  • संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में आशा को विशेष प्रोत्साहित करना: राज्य और केंद्र स्तर पर सरकारों को सर्वप्रथम उन चुनौतियों और भेद्यताओं की पहचान करने की ज़रूरत है, जिसका सामना संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में कार्यरत आशा कार्यकर्ताओं को करना पड़ता है।
    • संघर्ष काल के दौरान सेवाओं के लिये उन्हें विशेष प्रोत्साहन राशि प्रदान करने पर स्वास्थ्य प्रशासन को विचार करना चाहिये।
    • उन्हें इस तथ्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिये कि आशा कार्यकर्ता उपयुक्त प्रशिक्षण, समर्थन, मान्यता और विशेष भुगतान/मुआवजे (उन क्षेत्रों और स्थितियों में अपने कार्य के लिये जहाँ अन्य संवर्ग के कर्मी और कार्यकर्ता उपलब्ध नहीं हैं) की पात्र हैं।
    • इन सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिये मनोवैज्ञानिक समर्थन भी उतना ही आवश्यक है।

निष्कर्ष

हालाँकि वे बेहतर स्वास्थ्य परिणामों में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं, उनकी सरकारी उपेक्षा बनी हुई है। यही कारण है कि बेहतर पारिश्रमिक, स्वास्थ्य लाभ एवं स्थायी पदों की मांग के साथ वे लगातार आंदोलन के लिये बाध्य हैं। उन्हें नियुक्त करने वाली सरकारी एजेंसियों का यह कर्तव्य है कि वे उनके कल्याण, बचाव और सुरक्षा को सुनिश्चित करें।

आशा कार्यकताओं को मिले इस पुरस्कार का जश्न ज़रूर मनाएँ, लेकिन अधिक मायने यह रखता है कि भारत सरकार अपने अंतिम मील की इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कैसे ध्यान रखेगी जो ज़मीन पर उसके आधार का निर्माण करती हैं।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत की आशा कार्यकर्ताओं को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चिह्नित किया जाना केवल शीर्ष के लोगों को श्रेय देने के गलत दृष्टिकोण के सुधार की दिशा में एक कदम है। भारत सरकार को भी चाहिये कि आशा कार्यकर्ताओं के समक्ष विद्यमान समस्याओं की पहचान करे और उनका त्वरित समाधान करे।’’ विचार-विमर्श कीजिए