एडिटोरियल (04 May, 2022)



सेमीकॉन डिप्लोमेसी एक्शन प्लान

यह एडिटोरियल 30/04/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Blueprint for Semicon Diplomacy” लेख पर आधारित है। इसमें ‘सेमीकंडक्टर्स’ (Semiconductors) के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है और सेमीकंडक्टर चिप विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनने हेतु ‘सेमीकॉन डिप्लोमेसी एक्शन प्लान’ (Semicon Diplomacy Action Plan) का सुझाव दिया गया है।

संदर्भ 

सेमीकंडक्टर्स या अर्द्धचालक बुनियादी विनिर्माण पदार्थ हैं जो सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये केंद्रीय इकाई के रूप में कार्य करते हैं। ये सेमीकंडक्टर चिप्स अब समकालीन ऑटोमोबाइल, घरेलू गैजेट्स और ईसीजी मशीन जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों का अभिन्न अंग हैं।भारत ने पिछले कुछ वर्षों में सेमीकंडक्टर चिप्स के घरेलू विनिर्माण पर अपना विशेष ध्यान केंद्रित किया है। यद्यपि इस संबंध में की गई कई पहलें सराहनीय हैं, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं। चिप विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनने के लिये भारत को एक ‘सेमीकंडक्टर डिप्लोमेसी एक्शन प्लान’ (Semiconductor Diplomacy Action Plan) की ज़रूरत है। 

सेमीकंडक्टर्स का महत्त्व: 

  • सेमीकंडक्टर चिप्स आधुनिक सूचना युग की जीवनदायिनी हैं। वे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को क्रियाओं की संगणना को सक्षम बनाते हैं जो हमारे जीवन  आसान बनाते हैं। 
  • सूक्ष्म/कुशल सेमीकंडक्टर चिप्स के विनिर्माण की प्रक्रिया शांतिकालीन वैश्विक सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। 
  • उदाहरण के लिये, यह कल्पना करना कठिन नहीं है कि हमारे द्वारा उपयोग किये जा रहे उपकरणों में लगा चिप एक जापानी इंजीनियर द्वारा डच मशीनरी पर काम करते हुए वेफर्स के उत्पादन  हेतु ताइवान में स्थित एक अमेरिकी फाउंड्री में बनाया गया हो, जिसे पैकेजिंग  के लिये मलेशिया भेजा गया हो और फिर वह अंतिम तैयार उत्पाद के रूप में भारत आया हो। 
  • ये सेमीकंडक्टर चिप्स सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी (Information and Communication Technologies) विकास के चालक हैं और विश्व के वर्तमान ‘फ्लैटनिंग’ के प्रमुख कारणों में से एक हैं। (उल्लेखनीय है कि थॉमस एल. फ्राइडमैन ने ‘World is flattening’ वाक्यांश का प्रयोग किया है जिसका अभिप्राय यह है औद्योगिक देशों और उभरते बाज़ार वाले देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धी अवसर एक समान स्तर पर आ रहे हैं।)  
  • सेमीकंडक्टर्स का उपयोग संचार, विद्युत पारेषण जैसे महत्त्वपूर्ण अवसंरचना में किया जाता है, जिनका राष्ट्रीय सुरक्षा  प्रभाव पड़ता है। 
  • ‘सेमीकंडक्टर एंड डिस्प्ले इकोसिस्टम’ (Semiconductor and Display Ecosystem) के विकास का वैश्विक मूल्य शृंखला से गहन एकीकरण के साथ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में गुणक प्रभाव उत्पन्न होगा। 

सेमीकंडक्टर बाज़ार की विकास गाथा में भारत की स्थिति  

  • भारत वर्तमान में सभी चिप्स का आयात करता है और अनुमान है कि वर्ष 2025 तक यह बाज़ार 24 बिलियन डॉलर के वर्तमान स्तर से 100 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा। हालाँकि सेमीकंडक्टर चिप्स के घरेलू विनिर्माण के लिये भारत ने हाल ही में कई पहलों की शुरुआत की है: 
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘सेमीकंडक्टर्स एंड डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम’ के विकास को समर्थन देने के लिये 76,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है। 
  • भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों और सेमीकंडक्टर्स के विनिर्माण के लिये ‘इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना’ (Scheme for Promotion of manufacturing of Electronic Components and Semiconductors-SPECS) भी शुरू की है। 
  • इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (Design Linked Incentive (DLI) योजना भी शुरू की है ताकि सेमीकंडक्टर डिज़ाइन से संलग्न कम से कम 20 घरेलू कंपनियों का संपोषण किया जा सके और वे अगले 5 वर्षों में 1500 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हासिल कर सकें। 
  • चूँकि अनुमान है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार 1.2 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा, भारत को इसमें अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त रूप से तैयार होने की ज़रूरत है। 
  • हाल ही में घोषित ‘सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम’ (Semicon India Programme), जो 10 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता एवं अन्य गैर-वित्तीय साधन प्रदान करता है, सही दिशा में बढ़ाया गया कदम है। 
  • अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष तथा अन्य राजनीतिक-सामरिक-आर्थिक कारणों से हाल के समय में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) अपनी उत्पादन गतिविधियों को चीन से बाहर स्थानांतरित कर रही हैं। 
  • यह उपयुक्त अवसर है कि सेमीकॉन चिप्स के लिये प्रोडक्शन हाउसों की स्थापना के लिये भारत को एक मज़बूत विकल्प के रूप में पेश किया जाए। 

सेमीकंडक्टर्स के घरेलू विनिर्माण से संबद्ध समस्याएँ  

  • कुछ देशों का प्रभुत्व: सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षमता कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित रही है। लगभग समस्त अग्रणी (Sub 10nm) अर्द्धचालक विनिर्माण क्षमता ताइवान एवं दक्षिण कोरिया तक सीमित है और इनमें भी लगभग 92% ताइवान में स्थित है। 
  • इसके अलावा अर्द्धचालक विनिर्माण क्षमता का 75% पूर्वी एशिया और चीन में केंद्रित है। 
  • क्षमताओं का यह संकेंद्रण कई चुनौतियाँ उत्पन्न करता है और कई देश कुछ देशों के समक्ष कमज़ोर पड़ जाते हैं। 
  • आशय यह है कि भारत और प्रमुख शक्तियों के बीच तनाव और संघर्ष के क्षण भी उभर सकते हैं। 
  • स्वायत्त रहने की क्षमता को बनाए रखने के लिये भारत को न केवल कुशल गठबंधन बल्कि स्वदेशी क्षमता की भी आवश्यकता है। 
  • पश्चिमी कंपनियों का सहयोग: हालाँकि भारत में चिप डिज़ाइन हेतु कुशल प्रतिभा मौजूद है, इसने कभी भी चिप फैब क्षमता (chip fab capacity) का विनिर्माण नहीं किया। इसके लिये पश्चिमी कंपनियों को भारत में उन्नत सिलिकॉन फैब्स (silicon Fabs) स्थापित करने हेतु राजी करने की भी आवश्यकता होगी। 
  • हालाँकि भारत में कई सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना भर ही पर्याप्त नहीं होगी। इस क्षेत्र में वैश्वीकरण को प्रोत्साहन और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण के बीच एक संतुलन बनाए रखने की भी आवश्यकता होगी। 

भारत की ‘सेमीकंडक्टर डिप्लोमेसी’ एवं समस्याएँ 

  • हालिया अवसरों का लाभ उठाना: वर्तमान दशक भारत के लिये एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है, क्योंकि— 
  • कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखला में विविधता लाना चाहती हैं और चीन में अपने ठिकानों के लिये विकल्पों की तलाश कर रही हैं। 
  • कोविड-19 के कारण चिप की कमी से वाहन निर्माताओं को वर्ष 2021 में 110 बिलियन डॉलर की राजस्व हानि पहुँचाई। 
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष और सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला के लिये कच्चे माल की आपूर्ति पर इसके प्रभाव ने भी चिप निर्माताओं को सेमीकॉन आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करने हेतु निवेश करने के लिये प्रेरित किया है। 
  • भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये और सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिये एक आकर्षक वैकल्पिक गंतव्य के रूप में उभरना चाहिये। 
  • ‘सेमीकॉन डिप्लोमेसी एक्शन प्लान’ की संकल्पना: सेमीकॉन डिप्लोमेसी को भारत की विदेश नीति के केंद्र में रखना रणनीतिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यक है। 
  • अर्द्धचालकों के लिये मूल्य शृंखला की स्थापना से समग्र अर्थव्यवस्था पर गुणक प्रभाव सुनिश्चित होगा। 
  • इसके अलावा, चूँकि इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुएँ तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों के बाद सबसे अधिक आयातित वस्तुओं में से एक हैं, घरेलू उत्पादन भारत के लिये विदेशी मुद्रा की बचत करेगा और भुगतान संतुलन को कम करेगा (विशेष रूप से चीन के परिप्रेक्ष्य में)। 
  • ‘सेमीकॉन डिप्लोमेसी’ को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के साथ संयुक्त करना: सेमीकॉन डिप्लोमेसी भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) के लिये महत्त्वपूर्ण है जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लचीले संबंधों के विनिर्माण का लक्ष्य रखता है। 
  • चूँकि सेमीकंडक्टर विनिर्माण और परीक्षण ठिकाने पूर्वी एशिया में बहुत अधिक केंद्रित हैं, एक्ट ईस्ट नीति क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ियों के साथ संपर्क और संबंधों को मज़बूत बनाने का अवसर प्रदान करती है। 
  • इसके साथ ही, वृहत लक्ष्य पर नज़र बनाए रखते हुए आसियान (ASEAN) जैसे क्षेत्रीय समूह और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit) एवं आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN regional forum) जैसे मंचों के माध्यम से लगातार तकनीकी सहयोग और आदान-प्रदान लाभप्रद होगा।  
  • सेमीकॉन डिप्लोमेसी में ‘क्वाड’ की क्षमता: सेमीकॉन डिप्लोमेसी का लाभ उठाने का एक तरीका यह है कि बहुपक्षीय और द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाया जाए। इस संबंध में अपार संभावनाओं वाला एक प्रमुख माध्यम ‘क्वाड’ (Quad) है। 
  • अर्द्धचालक के लिये आवश्यक कच्चे माल के मामले में समृद्ध ऑस्ट्रेलिया भारत की कमी को पूरा करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता साबित हो सकता है। 
  • क्षमता विनिर्माण के लिये और लॉजिक एवं मेमोरी खंडों में उनकी उन्नत अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी के लिये अमेरिका और जापान का लाभ उठाया जा सकता है। 
  • ‘क्वाड सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला पहल’ (Quad Semiconductor Supply Chain Initiative) एक आशाजनक आरंभिक बिंदु है; भारत को भू-राजनीतिक और भौगोलिक जोखिमों से आपूर्ति शृंखला की प्रतिरक्षा के लिये एक ‘क्वाड सप्लाई चेन रेजिलियेशन फंड’ (Quad Supply Chain Resilience Fund) की स्थापना पर बल देना चाहिये। 
  • प्रमुख सेमीकॉन केंद्रों के साथ संलग्नता को मज़बूत करना: वियतनाम के साथ प्रौद्योगिकी सहयोग पर बल दिया जाना चाहिये क्योंकि वहाँ प्रशिक्षित और कुशल जनशक्ति की अपार उपलब्धता के साथ ही माइक्रोचिप डिज़ाइन एवं विकास के क्षेत्र में कई तकनीकी अनुसंधान एवं शैक्षणिक संस्थान अवस्थित हैं। 
  • सेमीकंडक्टर डिज़ाइन और विनिर्माण के लिये एक प्रमुख वैश्विक केंद्र ताइवान (जिसकी ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी जैसी अग्रणी चिप उत्पादक कंपनियाँ Apple, Intel, AMD, Nvidia जैसे प्रौद्योगिकी दिग्गजों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं) के साथ रणनीतिक भागीदारी का विनिर्माण भी इस दिशा में एक अच्छी शुरुआत होगी। 

अभ्यास प्रश्न: “भारत का पड़ोस उसकी राजनयिक नीति में हमेशा से एक विशेष स्थान रखता रहा है। भारत द्वारा सेमीकंडक्टर विनिर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने का अर्थ होगा-दक्षिण एशियाई क्षेत्र का सामूहिक विकास।’’ टिप्पणी कीजिये।