एडिटोरियल (04 Mar, 2023)



कपास क्षेत्र को बेहतर करने का प्रयास

यह एडिटोरियल 01/03/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Cotton: Crying out for change” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में कपास क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं और अन्य संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत विश्व में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और इसके उत्पादन में गिरावट वैश्विक मूल्यों एवं व्यापार की गतिशीलता को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। कपास उत्पादन सदियों से भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण घटक रहा है।

  • हाल के वर्षों में देश ने कपास के उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण गिरावट का अनुभव किया है, जिससे इस उद्योग की संवाहनीयता और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में चिंता उत्पन्न हुई है। मौसम की स्थिति से लेकर सरकार की नीतियों और बाज़ार की शक्तियों तक कई कारक इस गिरावट के लिये ज़िम्मेदार हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित मौसम विपथन, गुलाबी बोलवर्म का व्यापक संक्रमण, नई तंबाकू स्ट्रीक वायरस रोग और बीजकोष सड़न (boll rot) ने हाल में कपास किसानों को खतरे में डाल दिया है।
  • कपास आधारित कपड़ा उद्योग विभिन्न कारकों से व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है, जिसमें चीन के झिंजियांग क्षेत्र से फैशन एवं कपड़ा उत्पादों के आयात पर अमेरिकी प्रतिबंध के परिणामस्वरूप घरेलू बाज़ार की कीमतों में वृद्धि, जमाखोरी और व्यापार संबंधी विकास शामिल हैं। इस प्रतिबंध का उद्योग पर वृहत प्रभाव पड़ा है, क्योंकि इस क्षेत्र के कई निर्माता भारत से प्राप्त कच्चे कपास पर निर्भर हैं। इसके अलावा, तुर्की में आए भूकंप से उसका कपड़ा निर्माण उद्योग भी प्रभावित हुआ है, जिससे स्थिति और बदतर हो गई है।
  • इस परिदृश्य में नीति निर्माताओं, किसानों और उपभोक्ताओं के लिये एक समान रूप से कपास उत्पादन में गिरावट के कारणों एवं प्रभावों को संबोधित किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

भारत में कपास क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख समस्याएँ

  • कीट प्रकोप:
    • भारत में कपास की फसलें कीटों के संक्रमण के लिये प्रवण हैं, जो फसल की उपज और गुणवत्ता को कम कर सकती हैं।
    • कीटों के संक्रमण के कई कारण हैं, जैसे फसल चक्र की कमी, मोनोकल्चर, मौसम की स्थिति, मृदा की खराब गुणवत्ता, कीट प्रबंधन की कमी आदि।
  • निम्न उत्पादकता:
    • भारत की प्रति हेक्टेयर कपास उत्पादकता अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देशों की तुलना में कम है। यह मुख्य रूप से पुरानी कृषि पद्धतियों के उपयोग, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाओं और खराब बीज गुणवत्ता के कारण है।
  • सिंचाई की कमी:
    • कपास की खेती के लिये सिंचाई आवश्यक है, लेकिन भारत में कई कपास किसानों की पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
  • उच्च इनपुट लागत:
    • भारत में बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसे इनपुट की लागत बहुत अधिक है, जिससे छोटे पैमाने के कपास किसानों के लिये उन्हें वहन करना कठिन हो जाता है।
  • मानसून पर निर्भरता:
    • भारत में कपास की खेती काफी हद तक मानसून की वर्षा पर निर्भर है, जो अप्रत्याशित और अनिश्चित हो सकती है, जिससे फसल के विफल होने का जोखिम उत्पन्न होता है।
  • किसान ऋण:
    • भारत में कपास किसानों की एक बड़ी संख्या ऋण के बोझ तले दबी हुई है, जो गरीबी और ऋणग्रस्तता के एक दुष्चक्र को जन्म दे सकती है।
    • कपास की खेती लगभग 5.8 मिलियन किसानों को आजीविका प्रदान करती है, जबकि अन्य 40-50 मिलियन लोग कपास प्रसंस्करण एवं व्यापार जैसी संबंधित गतिविधियों से संलग्न हैं।
    • परिवारों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को, प्रायः उत्तरजीविता के लिये शोषणकारी कार्य रूपों में संलग्न होने के लिये विवश किया जाता है।
    • कपास उगाने वाले क्षेत्रों में बढ़ते ऋण के बोझ के कारण किसान आत्महत्याओं की घटनाएँ सामने आई हैं।
  • बाज़ार पहुँच का अभाव:
    • भारत में कई कपास किसानों की बाज़ारों तक पहुँच सीमित है और उन्हें बिचौलियों को कम कीमत पर अपनी उपज बेचने के लिये विवश होना पड़ता है।

कपास उत्पादन के बारे में प्रमुख तथ्य

  • यह खरीफ फसल है जिसे परिपक्व होने में 6 से 8 महीने का समय लगता है।
  • यह सूखा प्रतिरोधी फसल है जो शुष्क जलवायु के लिये आदर्श है।
  • विश्व की 2.1% कृषि योग्य भूमि कपास के अंतर्गत है और यह विश्व की वस्त्र आवश्यकताओं में 27% का योगदान करता है।
  • तापमान: 21-30 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा: लगभग 50-100 सें.मी.
  • मृदा का प्रकार: अच्छी अपवाह वाली काली कपास मृदा (Regur Soil)
  • उदाहरण: दक्कन के पठार की मृदा
  • उत्पाद: फाइबर, तेल और पशु चारा।
  • शीर्ष कपास उत्पादक देश: भारत> चीन> संयुक्त राज्य अमेरिका
  • भारत में शीर्ष कपास उत्पादक राज्य: गुजरात> महाराष्ट्र> तेलंगाना > आंध्र प्रदेश> राजस्थान।
  • कपास की चार कृष्य प्रजातियाँ: गॉसिपियम अर्बोरियम (Gossypium arboreum), जी.हर्बेसम (G.herbaceum), जी.हिरसुटम (G.hirsutum) व जी.बारबडेंस (G.barbadense
    • गॉसिपियम आर्बोरियम और जी.हर्बेसम को ‘ओल्ड-वर्ल्ड कॉटन’ या ‘एशियाटिक कॉटन’ के रूप में जाना जाता है।
    • जी.हिरसुटम को ‘अमेरिकन कॉटन’ या ‘अपलैंड कॉटन’ और जी.बारबडेंस को ‘इजिप्शियन कॉटन’ के रूप में भी जाना जाता है। ये दोनों नई वैश्विक कपास प्रजातियाँ हैं।
  • संकर कपास/हाईब्रिड कॉटन: इन्हें कपास के दो मूल नस्लों के क्रॉसिंग से बनाया जाता है जिनके अलग-अलग आनुवंशिक गुण होते हैं। संकर नस्ल प्रायः प्रकृति में अनायास और यादृच्छिक ढंग से सृजित होते हैं जब खुले-परागण वाले पौधे अन्य संबंधित किस्मों के साथ स्वाभाविक रूप से पार-परागण करते हैं।
  • बीटी कपास: यह कपास की आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव या आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट-प्रतिरोधी किस्म है।

आगे की राह

  • फसल प्रणाली बदलना:
    • कपास की फसल प्रणाली को धीरे-धीरे उच्च घनत्व रोपण प्रणाली (High Density Planting System- HDPS) की ओर एक व्यवस्थित परिवर्तन से गुज़रना होगा।
      • HDPS प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक पौधों को समायोजित करने के लिये एक नई फसल प्रणाली है जिसमें खरपतवार प्रबंधन, विपत्रण और यांत्रिक चुनाई के लिये तकनीकी इनपुट का उपयोग किया जाता है।
    • नई फसल प्रणाली के लिये एक पूरी तरह से नए प्रकार के पौधे की आवश्यकता होती है, जिसमें हाइब्रिड से वैरायटल बीज की ओर आगे बढ़ने के साथ ही मशीन से बुवाई, खरपतवार प्रबंधन, विपत्रण और यांत्रिक चुनाई के लिये नए युग की तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
    • किसान वर्तमान में झाड़ीदार, लंबी अवधि के संकर कपास के बीजों को डिबलिंग पैटर्न में प्रति एकड़ कम पौधों को समायोजित करते हुए अधिक दूरी पर बोते हैं और 180 से 280 दिनों के मौसम में बीज कपास की तीन से चार बार कटाई करते हैं।
  • साक्ष्य आधारित नीतियों को लागू करना:
    • कपास पर सरकार के नीति प्रतिमान को बीजों के मूल्य और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा पर प्रगतिवादी साक्ष्य आधारित नीतियों के लिये जगह छोड़ देनी चाहिये। ऐसा न केवल भारतीय पेटेंट अधिनियम के तहत बायोटेक लक्षणों के लिये बल्कि पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम (PPVFRA) के तहत प्रजनकों एवं किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये किया जाना चाहिये।
    • किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करते हुए HDPS के लिये उपयुक्त नई किस्मों पर IPR का प्रवर्तन R&D और उच्च घनत्व उपयुक्त जीनोटाइप की ब्रीडिंग में निवेश को आकर्षित करने के लिये सशक्त किया जाना चाहिये।
  • बाज़ार लिंकेज को मज़बूत करना:
    • बाज़ार लिंकेज को मज़बूत करने से किसानों को अपने कपास की बेहतर कीमत प्राप्त हो सकती है। सरकार कपास के लिये एक सुदृढ़ खरीद प्रणाली स्थापित कर सकती है, मूल्य स्थिरीकरण कोष का सृजन कर सकती है और कपास ग्रेडिंग एवं मानकीकरण तंत्र स्थापित कर सकती है।
  • मूल्यवर्द्धन को प्रोत्साहन देना:
    • कपास क्षेत्र में मूल्यवर्द्धन को प्रोत्साहित करने से आय बढ़ाने और रोज़गार के अवसर सृजित करने में मदद मिल सकती है। यह कपड़े, परिधान और होम फर्निशिंग जैसे कपास आधारित उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देकर किया जा सकता है।
  • अनुसंधान और विकास को बढ़ाना:
    • अनुसंधान और विकास में निवेश करने से कपास की नई किस्में विकसित करने, कीट प्रबंधन अभ्यासों में सुधार लाने और कपास की खेती में सुधार के लिये नवीन तकनीकों का विकास करने में मदद मिल सकती है।
  • अवसंरचनात्मक सुधार:
    • सरकार कपास उत्पादन क्षेत्रों में सड़कों, सिंचाई सुविधाओं और भंडारण सुविधाओं का निर्माण कर अवसंरचना में सुधार ला सकती है। इससे किसानों को बाज़ार अभिगम्यता, अपनी उपज के परिवहन और कीमतों के अनुकूल होने तक अपने कपास का भंडारण करने में मदद मिल सकती है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में ख़स्ताहाल कपास क्षेत्र को रूपांतरित करने की मार्ग की चुनौतियों एवं रणनीतियों की चर्चा करें और कपास किसानों के समक्ष विद्यमान समस्याओं के समाधान एवं उनके कल्याण को सुनिश्चित करने के उपायों के सुझाव दें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न. भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है?

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी  ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • काली मृदा, कपास उगाने के लिये आदर्श है इसे रेगुर मृदा या काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है। काली मृदा के निर्माण के लिये चट्टान सामग्री के साथ-साथ जलवायु परिस्थितियाँ भी महत्त्वपूर्ण कारक हैं। काली मृदा दक्कन (बेसाल्ट) क्षेत्र की प्रमुख पहचान है जो उत्तर-पश्चिमी दक्कन के पठारमें फैपायी जाती है और इसका निर्माण लावा प्रवाह या विदरी ज्वालामुखीय चट्टान से हुआ है।
  • दक्कन के पठार में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से शामिल हैं। काली मृदा, गोदावरी व कृष्णा के ऊपरी भाग तथा उत्तरी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से में पाई जाती हैं।
  • रासायनिक रूप से काली मृदा चूना, लोहा, मैग्नेशिया और एल्युमीनियम के संदर्भ में समृद्ध है। इसमें पोटाश भी होता है। लेकिन इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। मृदा का रंग गहरे काले से लेकर भूरे रंग तक होता है।

अतः विकल्प (b) सही है।


Q2. कलमकारी पेंटिंग किसे संदर्भित करती है? (वर्ष 2015)

(a) दक्षिण भारत में सूती वस्त्र में हाथ से की गई चित्रकारी
(b) पूर्वोत्तर भारत में बाँस के हस्तशिल्प पर हाथ से किया गया चित्रांकन
(c) भारत के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में ऊनी वस्त्र पर ठप्पे (ब्लॉक-पेंट) से की गई चित्रकारी
(d) उत्तर-पश्चिमी भारत में सजावटी रेशमी वस्त्र में हाथ से की गई चित्रकारी

उत्तर: (a)

  • कलमकारी दक्षिण भारतीय राज्यों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके इमली की कलम से सूती या रेशमी वस्त्रों पर की जाने वाली हाथ की पेंटिंग की एक प्राचीन शैली है।
  • कलमकारी शब्द फारसी शब्द से लिया गया है जहाँ ‘कलम’ का अर्थ है कलम और 'कारी' शिल्प कौशल को संदर्भित करती है।
  • इस कला में रंगाई, ब्लीचिंग, हैंड पेंटिंग, ठप्पे (ब्लॉक प्रिंटिंग), स्टार्चिंग, सफाई आदि के 23 कठिन चरण शामिल हैं।
  • कलमकारी रूपांकनों में फूल, मोर और पैस्ले से लेकर रामायण एवं महाभारत जैसे पवित्र हिंदू महाकाव्यों के पात्र शामिल हैं।
  • वर्तमान में यह कला मुख्य रूप से कलमकारी साड़ियाँ बनाने के लिये की उपयोग की जाती है। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

Q3. भारत में एक राज्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: (वर्ष 2011)

  1. इसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्धशुष्क है।
  2. इसके मध्य भाग में कपास पैदा होता है।
  3. नकदी फसलों की खेती खाद्य फसलों से अधिक होती है।

निम्नलिखित में से किस राज्य में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हैं?

 (a) आंध्र प्रदेश
 (b) गुजरात
 (c) कर्नाटक
 (d) तमिलनाडु

 उत्तर: (b)

  • गुजरात में अलग-अलग स्थलाकृतिक विशेषताएँ हैं, हालाँकि राज्य के एक बड़े हिस्से में सूखा और सूखा क्षेत्र है। 8 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में से, पाँच प्रकृति में अर्ध-शुष्क हैं, जबकि शेष तीन शुष्क उप-आर्द्र प्रकृति के हैं।
  • राज्य में गहरी काली से मध्यम काली मिट्टी मिट्टी के प्रकार पर हावी है। राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में औसत वर्षा 25 से 150 सेमी के बीच व्यापक रूप से भिन्न होती है।
  • कुल उपलब्ध भूमि का 50% से अधिक कृषि के लिए उपयोग किया जा रहा है। मुख्य खाद्य फसलें बाजरा, ज्वार, चावल और गेहूँ हैं।
  • मूंगफली, तम्बाकू और कपास, अलसी, गन्ना, आदि राज्य की प्रमुख व्यावसायिक फ़सलें या नकदी फसलें हैं। अन्य महत्वपूर्ण नक़दी फसलें हैं ईसबगुल, जीरा, आम और केले।
  • राज्य ने कपास, अरंडी और मूंगफली के उत्पादन और उत्पादकता परिदृश्य में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। कपास राज्य की एक महत्त्वपूर्ण फसल है जो 27.97 लाख हेक्टेयर में आती है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


Q4. पिछले पाँच वर्षों में भारत में खरीफ फसलों की कृषि के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2019)

  1. चावल का कृषि क्षेत्रफल सबसे अधिक है।
  2. ज्वार की खेती का क्षेत्रफल तिलहन की तुलना में अधिक है।
  3. कपास की खेती का क्षेत्रफल गन्ने से अधिक है।
  4. गन्ने की खेती का क्षेत्र लगातार घटा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

 (a) केवल 1 और 3
 (b) केवल 2, 3 और 4
 (c) केवल 2 और 4
 (d) 1, 2, 3 और 4

 उत्तर: (a)

  • चावल सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है। भारत में चावल की खेती के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र है।
  • अतः कथन 1 और 3 सही हैं और कथन 2, 4 और 5 सही नहीं हैं।
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

मुख्य परीक्षा

Q. भारत में अत्यधिक विकेन्द्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के कारकों का विश्लेषण कीजिये।