एडिटोरियल (03 Oct, 2025)



एक सशक्त और भविष्य-सक्षम स्टार्टअप इकोसिस्टम का निर्माण

यह एडिटोरियल “A startup revolution, the goal of ‘innovation capital” पर आधारित है, जो 03/10/2025 को The Hindu में प्रकाशित हुआ था। यह लेख तमिलनाडु के समावेशी स्टार्टअप मॉडल को उजागर करता है, जहाँ राज्य-प्रेरित पहलों ने स्टार्टअप्स में छह गुना वृद्धि को प्रोत्साहित किया, जिनमें से आधे महिलाओं द्वारा संचालित हैं। यह दर्शाता है कि कैसे भारत की स्टार्टअप कहानी अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय हब्स और लक्षित समर्थन नए उद्यमशील संभावनाओं को गति कर रहे हैं।

प्रिलिम्स के लिये: डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, फिनटेक क्रांति, क्विक कॉमर्स, स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स, बौद्धिक संपदा अधिकार, राष्ट्रीय डीप-टेक स्टार्टअप नीति, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023

मेन्स के लिये: भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम की वृद्धि को प्रेरित करने वाले कारक, भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम संबंधी प्रमुख मुद्दे

तमिलनाडु रणनीतिक राज्य हस्तक्षेप के माध्यम से समावेशी स्टार्टअप इकोसिस्टम बनाने में एक प्रभावशाली केस स्टडी के रूप में उभरा है। केवल 4 वर्षों में, राज्य में पंजीकृत स्टार्टअप्स में छह गुणा वृद्धि हुई है, जो 12,100 से अधिक हो गई हैं, जिनमें से आधे स्टार्टअप्स महिलाओं द्वारा संचालित हैं। जबकि अब देश के पास विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, वास्तविक परिवर्तन केवल प्रमुख मूल्यांकन में नहीं बल्कि इस बात में निहित है कि राज्य किस प्रकार व्यवस्थित रूप से उद्यमिता को लोकतांत्रिक बना रहे हैं। भारत की स्टार्टअप कहानी अब केवल बेंगलुरु और गुरुग्राम तक सीमित नहीं है, बल्कि टियर-II और टियर-III शहरों में भी लिखी जा रही है, जहाँ क्षेत्रीय हब्स, स्थानीय भाषाओं में समर्थन प्रणाली और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये लक्षित फंड पहले से अनछुए उद्यमशील संभावनाओं को गति प्रदान क्र रहे हैं।

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास को कौन-से कारक प्रेरित कर रहे हैं?

  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) और वित्तीय समावेशन: भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI), विशेषकर यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और आधार के व्यापक प्रसार ने पहुंच और लेन-देन की लागत को बेहद कम कर दिया है, जिससे फिनटेक और ई-कॉमर्स स्टार्टअप्स के लिये एक उपजाऊ जमीन तैयार हुई है।
    • यह फिनटेक क्रांति पहले से बैंकों से वंचित लाखों लोगों के लिये वित्तीय समावेशन को बढ़ा रही है, जिससे स्टार्टअप्स तुरंत उपयोगकर्त्ताओं को सत्यापित कर सकते हैं और छोटे मूल्य के भुगतान बड़े पैमाने पर प्रोसेस कर सकते हैं, यह वैश्विक स्तर पर एक विशिष्ट लाभ है।
    • सितंबर 2025 में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के माध्यम से 19.63 बिलियन लेन-देन हुए, जिनकी कुल कीमत ₹24.90 लाख करोड़ थी, जो डिजिटल अपनाने की अभूतपूर्व दर को दर्शाता है और नए बिज़नेस मॉडल जैसे क्विक कॉमर्स के लिये आधार प्रदान करता है।
      • उदाहरण के लिये, ज़ेप्टो (Zepto) ने UPI-सक्षम माइक्रोट्रांजैक्शन्स के सहारे तेज़ी से विस्तार किया, दिखाते हुए कि डिजिटल प्लेटफार्म सीधे नए उपभोग मॉडल को कैसे सक्षम कर रहे हैं।
  • समर्थक सरकारी नीतियाँ और नियामक ढाँचा: स्टार्टअप इंडिया जैसी सरकारी पहल और स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS) जैसी योजनाओं ने एक अधिक अनुकूल नियामक और वित्तीय पर्यावरण तैयार किया है, जिससे नए उद्यमों के लिये अनुपालन को सरल बनाना और लक्षित फंडिंग प्रदान करना आसान हो गया है।
    • यह राज्य समर्थन, कर छूट और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) के त्वरित प्रोसेसिंग के साथ मिलकर उद्यमिता के जोखिम को कम करता है, विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में।
    • DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या दिसंबर 2024 तक लगभग 502 से बढ़कर 1,57,706 हो गई है, जिनमें से 51% से अधिक नए स्टार्टअप्स गैर-मेट्रो क्षेत्रों से उभरे हैं, जो विकेंद्रीकृत समर्थन प्रणाली की सफलता को दर्शाता है।
  • मैच्योरिंग वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी परिदृश्य: सावधान वैश्विक बाज़ार के बावजूद, भारत का वेंचर कैपिटल (VC) इकोसिस्टम रणनीतिक समुत्थानशीलता दिखा रहा है, जिसमें कंपनियों का समर्थन करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिनकी यूनिट इकोनॉमिक्स दृढ़ है और प्रारंभिक चरण और डीप-टेक निवेशों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
    • यह मैच्योर होता पूंजी बाज़ार फंडिंग की सतत् आपूर्ति सुनिश्चित करता है, केवल लेट-स्टेज मेगाडील्स पर ध्यान केंद्रित किये बिना, जिससे नवाचार की अगली लहर को पोषण मिलता है।
    • भारत में VC फंडिंग ने 2024 में दृढ़ पुनरुद्धार देखा, जो वर्ष-दर-वर्ष 43% बढ़कर $13.7 बिलियन तक पहुँच गई, जिसमें सीड-स्टेज स्टार्टअप्स ने सबसे अधिक 29% की वृद्धि दर्ज की, जो प्रारंभिक, गुणवत्ता वाले उद्यमों में निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
  • विशाल और तेज़ी से डिजिटाइज हो रहा घरेलू बाज़ार: भारत की विशाल और बढ़ती आबादी, साथ ही इंटरनेट और स्मार्टफोन की गहन पहुंच, एक असाधारण उपभोक्ता बाज़ार अवसर प्रस्तुत करती है, जो सभी क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं की भारी मांग को बढ़ावा देती है।
    • इस विशाल बाज़ार आकार के कारण स्टार्टअप्स तेज़ी से स्केल हासिल कर सकते हैं, स्थानीय समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं जिन्हें अंततः वैश्विक बाज़ारों के लिये अनुकूलित किया जा सकता है, विशेषकर रिटेल-टेक, हेल्थ-टेक और एड-टेक में।
    • भविष्यवाणी है कि वर्ष 2050 तक भारत वैश्विक खपत का 16% (Purchasing Power Parity- PPP) हिस्सा दर्ज करेगा, जो वर्ष 1997 में 4% था और कंज़्यूमर टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्र वर्ष 2024 में फंडिंग में प्रमुख रहे, $5.4 बिलियन सुरक्षित करते हुए, जो इस खपत के बढ़ते रुझान से प्रेरित है।
  • डीप-टेक और AI नवाचार पर बढ़ता ध्यान: स्टार्टअप इकोसिस्टम डीप-टेक, जिसमें जनरेटिव AI, क्लीनटेक और स्पेसटेक शामिल हैं, की ओर स्पष्ट रूप से अग्रसर हो रहा है, जिसका उद्देश्य जटिल और उच्च-प्रभाव वाले समस्याओं का समाधान करना है और यह राष्ट्रीय डीप-टेक स्टार्टअप नीति जैसी समर्पित सरकारी नीतियों द्वारा समर्थित है।
    • सीमा-तकनीकों पर यह फोकस नवाचार की गुणवत्ता को बढ़ा रहा है और भारतीय स्टार्टअप्स को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बौद्धिक संपदा (IP) बनाने में मदद कर रहा है।
      • उदाहरण के लिये, निरामई, जो गैर-आक्रामक स्तन कैंसर स्क्रीनिंग के लिये AI का उपयोग करता है, दिखाता है कि कैसे भारतीय डीप-टेक उद्यम महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं का समाधान करते हुए सुरक्षित IP निर्माण कर रहे हैं।
    • डीप-टेक क्षेत्र में निवेश वर्ष 2024 में 78% बढ़कर $1.6 बिलियन पहुँच गया, जिसमें से 87% निवेश AI-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स को निर्देशित किया गया, जो निवेश थ्योरी में रणनीतिक परिवर्तन को दर्शाता है।
  • प्रचुर और कुशल प्रतिभा का भंडार: भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, बड़ी, युवा और बढ़ती शिक्षा प्राप्त कार्यबल के साथ, जो इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थानों से उभर रहा है, एक व्यापक टैलेंट पूल (प्रतिभा भंडार) प्रदान करता है, वह भी प्रतिस्पर्द्धी लागत पर।
    • यह प्रतिभा उपलब्धता, विशेष रूप से सॉफ्टवेयर, डेटा साइंस और इंजीनियरिंग में, टेक और नवाचार क्षेत्रों की तेज़ वृद्धि को बनाए रखने के लिये मूल है।
      • स्केलर (Scaler) जैसे प्लेटफॉर्म्स इंजीनियरों को डेटा साइंस और AI जैसी उभरती हुई क्षमताओं में पुनः प्रशिक्षित करके रोज़गार योग्यता संबंधी कमी को समाप्त कर रहे हैं, जिससे स्टार्टअप-तैयार प्रतिभा की दृढ़ आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
    • भारत की कार्यशील आयु की जनसंख्या 2047 तक 1 बिलियन तक बढ़ने का अनुमान है और देश वैश्विक स्तर पर अनुसंधान पत्रों का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो नवाचार के लिये उपलब्ध मानव संसाधन की पुष्टि करता है।
  • वैश्विक इकोसिस्टम एकीकरण और सीमा-पार सहयोग: भारत सक्रिय रूप से अपने स्टार्टअप इकोसिस्टम को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ रहा है, G20 स्टार्टअप 20 इंगेजमेंट ग्रुप और अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग एवं बाज़ार पहुँच कार्यक्रमों जैसी पहलों के माध्यम से।
    • यह ज्ञान के आदान-प्रदान को सुगम बनाता है, विदेशी निवेश को आकर्षित करता है और भारतीय स्टार्टअप्स को अपने व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित करने के मंच प्रदान करता है, जिससे इकोसिस्टम की परिपक्वता और विश्वसनीयता बढ़ती है।
    • विदेशी उद्यम पूंजी निवेशक (Foreign Venture Capital Investor- FVCI) पंजीकरण को सरल बनाया गया है और एंजेल टैक्स (Angel Tax) जैसी नीतिगत सुधारों ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है, जिससे भारत वर्ष 2024 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा VC गंतव्य बन गया।

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम से संबंधी प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • दीर्घकालिक फंडिंग विंटर और मूल्यांकन सुधार: स्टार्टअप इकोसिस्टम एक गंभीर "फंडिंग विंटर" से जूझ रहा है, जिसे चरम निवेशक सतर्कता और पूर्व "प्रत्येक कीमत पर विकास (growth-at-all-costs)" दर्शन से तीव्र परिवर्तन ने चिह्नित किया है, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक मूल्यांकन सुधार और लंबी रनवे बनी हुई है।
    • यह रूढ़िवादी दृष्टिकोण प्रारंभिक और विकास-स्तरीय कंपनियों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, क्योंकि VC स्पष्ट लाभप्रदता के रास्तों की मांग करते हैं, जिससे नए यूनिकॉर्न के निर्माण की गति धीमी होती है और स्टार्टअप विफलता या डिस्टेस सेल का जोखिम बढ़ता है।
    • भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में वेंचर कैपिटल प्रवाह में तीव्र गिरावट आई, 2023 में फंडिंग लगभग $10 बिलियन तक गिर गई (हालाँकि हाल ही में पुनर्प्राप्त हुई)।
  • डीप-टेक में गंभीर प्रतिभा की कमी और कौशल अंतर: बड़ी स्नातक जनसंख्या होने के बावजूद, विशेष रूप से उभरते और डीप-टेक क्षेत्रों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और साइबर सुरक्षा में गंभीर कौशल असंगति विद्यमान है।
    • पारंपरिक शिक्षा प्रणाली उद्योग की मांगों के साथ समन्वय स्थापित करने में संघर्ष कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप नवाचार-प्रधान स्टार्टअप्स के लिये आवश्यक उच्च गुणवत्ता वाली "पहले दिन तैयार (Day 1 ready)" प्रतिभा की कमी हो रही है।
    • इस स्थिति के कारण स्टार्टअप्स को पुनः प्रशिक्षण (reskilling) पर उच्च लागत उठानी पड़ती है या शीर्ष स्तरीय प्रतिभा के सीमित भंडार के लिये कड़ी प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है, जो डीप-टेक नवाचार को प्रभावित करता है।
    • 2024 में केवल 42.6% भारतीय स्नातक को रोज़गार योग्य पाया गया, जो वर्ष 2023 में 44.3% की तुलना में गिरावट को दर्शाता है।
      • इसके अतिरिक्त, 2023 PwC रिपोर्ट के अनुसार, 77% भारतीय CEO ने विकास के लिये प्रमुख बाधा के रूप में कौशल की कमी को बताया, जो इस संकट की गंभीरता को रेखांकित करता है।
  • स्टार्टअप गतिविधियों का उच्च भौगोलिक एकाग्रता: स्टार्टअप वृद्धि और निवेश केवल कुछ प्रमुख महानगरों में असमान रूप से केंद्रित हैं, जिससे एक असमान इकोसिस्टम बनता है जो टियर-2 और टियर-3 शहरों की उद्यमशील संभावनाओं का पूरा उपयोग नहीं कर पाता।
    • इस भौगोलिक एकाग्रता के कारण प्रतिष्ठित क्षेत्रीय स्टार्टअप्स के लिये बाज़ार पहुँच, मेंटरशिप और फंडिंग के अवसर सीमित हो जाते हैं, जिससे ब्रेन ड्रेन होता है और प्रतिभा प्रमुख हब्स जैसे बेंगलुरु, दिल्ली-एनसीआर और मुंबई की ओर चली जाती है।
      • वर्ष 2021 तक, ये तीन प्रमुख क्लस्टर- बेंगलुरु, दिल्ली-एनसीआर और मुंबई, भारत के यूनिकॉर्न्स (India's Unicorns) का 83% हिस्सा बनाते थे, जो उच्च-मूल्य वाले स्टार्टअप निर्माण और पूंजी निवेश की केंद्रित प्रकृति को दर्शाता है।
    • हालाँकि स्टार्टअप्स धीरे-धीरे टियर-2 और टियर-3 शहरों से उभर रहे हैं, उनकी स्केलेबिलिटी अभी भी सीमित है।
  • निरंतर लिंग असमानता और फंडिंग अंतर: स्टार्टअप नेतृत्व और पूंजी आवंटन दोनों में महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानता विद्यमान है, जो इकोसिस्टम की विविध नवाचार और आर्थिक समावेशन की संभावनाओं को बाधित करता है।
    • महिला-नेतृत्व वाले उद्यमों को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में असमान रूप से कम फंडिंग प्राप्त होती है, अक्सर वेंचर कैपिटल पिच प्रक्रिया में प्रणालीगत पूर्वाग्रह और वरिष्ठ निवेशक निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में महिलाओं की कमी के कारण।
    • वर्ष 2022 में केवल 18% स्टार्टअप्स की स्थापना या नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया गया और महिलाओं के लिये वेंचर कैपिटल (VC) फंडिंग वर्ष 2023 में 9.3% तक गिर गई।
  • जटिल और परिवर्तित नियामक परिदृश्य: सरकार के ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, स्टार्टअप्स अब भी एक जटिल और लगातार बदलते नियामक वातावरण को नेविगेट करने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, विशेष रूप से कराधान, डेटा गोपनीयता और क्षेत्रीय अनुपालन से संबंधित मामलों में।
    • हाल ही में लागू हुआ डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023, यद्यपि महत्त्वपूर्ण है, सख्त अनुपालन आवश्यकताओं की एक नई परत जोड़ता है जो छोटे स्टार्टअप्स पर असमान रूप से भारी पड़ती है।
    • स्टार्टअप्स को अनेक कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और ऐतिहासिक रूप से, इससे वित्तपोषण में देरी होती है तथा अनावश्यक अनुपालन लागत बढ़ती है, विशेष रूप से प्रारंभिक चरण के विदेशी निवेशों के लिये।
  • सीमित निकासी विकल्प और निवेशक लॉक-इन: स्टार्टअप इकोसिस्टम में बड़े पैमाने पर, स्थिर निकासी अवसरों की कमी है, जैसे प्रबल इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) या रणनीतिक विलय और अधिग्रहण (Mergers and Acquisitions या M&A), जो VC के लिये अपने सीमित साझेदार (LP) को पूंजी लौटाने और फंडिंग चक्र पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • यह सीमित तरलता लंबी अवधि के निवेशक लॉक-इन का जोखिम उत्पन्न करती है, जिससे भविष्य में बाज़ार के विकास और लेट-स्टेज में निवेश को हतोत्साहित किया जा सकता है।
    • हालाँकि वर्ष 2021 के बाद IPO में वृद्धि हुई, कई प्रमुख टेक लिस्टिंग के प्रदर्शन ने सार्वजनिक बाज़ार में सतर्कता बनाए रखी।
      • भारतीय स्टार्टअप्स ने 2024 में सेकेंडरी ट्रांजैक्शन्स, IPOs और ब्लॉक डील्स के माध्यम से 5 अरब डॉलर से अधिक की निकासी देखी।

स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • नियामक सरलीकरण और सिंगल-विंडो क्लियरेंस: भारत को एक सुगम अनुपालन संरचना की आवश्यकता है, जहाँ स्टार्टअप्स सभी अनुमोदन, पंजीकरण और रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को सिंगल-विंडो डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से पूरा कर सकें।
    • यह नियामक अनिश्चितता को कम करता है, लेन-देन की लागत घटाता है और टाइम-टू-मार्केट को तेज़ करता है।
    • व्यवसाय के आकार और चरण के आधार पर ग्रेडेड अनुपालन प्रणाली प्रारंभिक उद्यमों पर बोझ को कम कर सकती है, जबकि उनके बढ़ने के साथ जवाबदेही सुनिश्चित करती है। इससे एक पूर्वानुमेय नियामक वातावरण बनता है जो नवाचार को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • डीप-टेक और अनुसंधान एवं विकास (R&D) नवाचार हब्स: केवल सेवा-उन्मुख स्टार्टअप्स तक सीमित न रहकर, भारत को डीप-टेक इनक्यूबेशन क्लस्टर्स में निवेश करना चाहिये, जो AI, बायोटेक, क्लीन एनर्जी और रक्षा तकनीकों पर केंद्रित हों।
    • विश्वविद्यालय-उद्योग नवाचार संघ स्थापित करने से अनुसंधान और वाणिजीकरण के बीच की दूरी को समाप्त किया जा सकता है।
    • कर प्रोत्साहन और समुत्थानशील IP-शेयरिंग मॉडल लैब-टू-मार्केट संक्रमण को बढ़ावा देंगे। ऐसे हब्स भारत को केवल उपभोक्ता ऐप्स के बजाय सीमा-तकनीकी उद्यमिता का वैश्विक केंद्र बनाने में सहायता करेंगे।
  • पूंजी तक विकेंद्रीकृत पहुँच: जबकि वेंचर कैपिटल शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है, भारत क्षेत्रीय स्टार्टअप फंड्स विकसित कर सकता है, जिनमें सरकारी सीड कैपिटल, प्राइवेट इक्विटी और CSR फंड्स को मिलाकर ब्लेंडेड फाइनेंसिंग मॉडल लागू किया जाए।
    • स्तरीकृत वित्त पोषण तंत्र, जो माइक्रो, प्रारंभिक चरण और विकास-चरण की पूंजी सुनिश्चित करे, समावेशन को व्यापक बनाएगा।
    • नियंत्रित क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से निवेश को लोकतांत्रिक बनाना खुदरा निवेशकों को सुरक्षित रूप से शामिल कर सकता है। इससे भौगोलिक रूप से संतुलित स्टार्टअप वृद्धि सुनिश्चित होगी।
  • वैश्विक बाजार पहुँच प्लेटफ़ॉर्म्स: स्टार्टअप्स को अंतर्राष्ट्रीय विस्तार के लिये संरचित सॉफ्ट-लैंडिंग प्रोग्राम्स की आवश्यकता होती है। सरकार-प्रेरित ट्रेड मिशन, FTA के तहत प्राथमिकता वाली पहुँच और विदेशों में भारत स्टार्टअप एंबेसी स्टार्टअप्स को वैश्विक इनक्यूबेटर्स और निवेशकों से जोड़ सकते हैं।
    • राष्ट्रीय सीमा-पार ई-कॉमर्स ढाँचा बनाने से छोटे उद्यमों को वैश्विक मांग तक पहुँचने में सहायता मिलेगी।
    • यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय स्टार्टअप्स वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी यूनिकॉर्न्स (Globally Competitive Unicorns) के रूप में विकसित हों, बजाय इसके कि केवल घरेलू दृष्टिकोण तक सीमित रहें।
  • प्रतिभा की गतिशीलता और उद्यमशील कौशल विकास: एक मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिये शैक्षणिक संस्थानों, कॉर्पोरेट्स और स्टार्टअप्स के बीच प्रतिभा की गतिशीलता आवश्यक है। उद्यमशील अवकाश (entrepreneurial sabbaticals), गिग-फ्रेंडली लेबर लॉज़ और स्टार्टअप जुड़ाव के लिये शैक्षणिक क्रेडिट्स को लागू करने से जोखिम लेने की प्रवृत्ति सामान्य होगी।
    • राष्ट्रीय स्तर के उद्यमशीलता कौशल कार्यक्रम, जो भविष्य की तकनीकों और डिज़ाइन थिंकिंग के अनुरूप हों, मजबूत मानव संसाधन तैयार कर सकते हैं। यह स्टार्टअप्स की तेज़ी और नवाचार संस्कृति के अनुकूल कार्यबल तैयार करता है।
  • स्टार्टअप उत्प्रेरक के रूप में सार्वजनिक खरीद: राज्य GeM जैसे प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से स्टार्टअप्स को सार्वजनिक खरीद में व्यवस्थित रूप से शामिल करके मार्केट-मेकर की भूमिका निभा सकता है।
    • स्मार्ट सिटी, रक्षा तकनीक और ग्रीन मोबिलिटी प्रोजेक्ट्स में समर्पित कोटा स्टार्टअप्स को स्थिर मांग की दृश्यता प्रदान करेगा।
    • पारदर्शी ई-टेंडरिंग प्लेटफॉर्म्स और हल्के/लाइटर प्री-क्वालिफिकेशन मानक प्रवेश बाधाओं को कम कर सकते हैं। इससे सरकार केवल नियामक नहीं बल्कि एंकर कस्टमर बनती है, जिससे स्टार्टअप्स को विश्वसनीयता और स्केल मिलता है।
    • उदाहरण के लिये, लॉग नाइन मैटेरियल्स (Log 9 Materials) ने ईवी बैटरी तकनीक के लिये सरकारी पायलट प्रोजेक्ट्स प्राप्त किये, जो दर्शाता है कि सार्वजनिक खरीद कैसे देशीय नवाचार को मान्य और स्केल कर सकती है।
  • सतत और समावेशी स्टार्टअप नीतियाँ: इकोसिस्टम को सशक्त बनाने के लिये भारत को स्टार्टअप नीति में ESG-लिंक्ड प्रोत्साहन को शामिल करना चाहिये।
    • सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल, ग्रीन इनोवेशन और महिला-नेतृत्व वाली स्टार्टअप्स को लक्षित समर्थन के माध्यम से प्रोत्साहित करना समावेशी उद्यमिता को बढ़ावा देता है। सततता अनुपालन से क्रेडिट की पहुँच जोड़ने से व्यवसायिक प्रोत्साहन को वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं के अनुरूप बनाया जा सकता है।
      • इससे यह सुनिश्चित होता है कि भारत का स्टार्टअप बूम सामाजिक रूप से समान और पर्यावरणीय रूप से सतत् हो।

निष्कर्ष:

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम मेट्रो-केंद्रित विकास से आगे बढ़कर एक व्यापक नवाचार आंदोलन में बदल रहा है, जो गहन तकनीक (डीप-टेक), समावेशिता और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर द्वारा संचालित है। जैसा कि पर्प्लेक्सिटी के सीईओ अरविंद श्रीनिवास ने सही कहा है कि भारतीय केवल कंपनियों का प्रबंधन नहीं कर सकते, वे कंपनियाँ बना भी सकते हैं, जो देश की मौलिक मूल्य सृजन की क्षमता को दर्शाता है। इसे प्राप्त करने के लिये, इकोसिस्टम को सततता, विविधता और अग्रिम तकनीकों को अपनाना होगा, साथ ही पूंजी और प्रतिभा तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी होगी। इन स्तंभों को सुदृढ़ करना भारतीय स्टार्टअप्स के लिये आत्मनिर्भर, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी और समुत्थानशील भविष्य सुनिश्चित करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है, फिर भी इसकी दीर्घकालीन स्थिरता समावेशिता, गहन-तकनीकी नवाचार (डीप-टेक इनोवेशन) और नियामक समुत्थानशीलता पर निर्भर करती है। इस विकास को बढ़ावा देने वाले कारकों, इसके सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों तथा इसे अधिक न्यायसंगत एवं वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी बनाने के उपायों पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 

1. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का वर्तमान आकार और स्थिति क्या है?
दिसंबर 2024 तक, भारत में 1,57,706 से अधिक DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप हैं, जिनमें से 51% से अधिक नॉन-मेट्रो क्षेत्रों से उत्पन्न हुए हैं। केवल तमिलनाडु में ही 4 वर्षों में छह गुना वृद्धि हुई और 12,100 से अधिक स्टार्टअप हुए, जिनमें से 50% महिलाओं द्वारा संचालित हैं, जो बढ़ती समावेशिता को दर्शाता है।

2. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम की वृद्धि को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
प्रमुख प्रेरक कारकों में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे UPI और आधार), सहायक सरकारी नीतियाँ, परिपक्व वेंचर कैपिटल परिदृश्य, तेजी से घरेलू डिजिटलीकरण, डीप-टेक पर बढ़ता ध्यान, कुशल टैलेंट पूल और वैश्विक इकोसिस्टम एकीकरण शामिल हैं।

3. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
चुनौतियों में फंडिंग विंटर और मूल्यांकन सुधार, डीप-टेक क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कौशल अंतर, मेट्रो में भौगोलिक एकाग्रता, नेतृत्व और फंडिंग में लगातार लैंगिक असमानता, जटिल नियामक ढाँचे और निवेशकों के लिये सीमित एग्जिट विकल्प शामिल हैं।

4. भारत अपने स्टार्टअप इकोसिस्टम को अधिक समावेशी और सतत् बनाने के लिये क्या कर सकता है?
भारत उपाय अपना सकता है जैसे कि नियामक सरलीकरण, डीप-टेक R&D हब, पूंजी तक विकेंद्रीकृत पहुँच, संरचित वैश्विक बाज़ार पहुँच प्लेटफॉर्म, उद्यमिता कौशल विकास, स्टार्टअप-अनुकूल सार्वजनिक खरीद और ESG-लिंक्ड समावेशी नीतियाँ।

5. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का भविष्य कैसा दिखता है?
भविष्य मेट्रो-केंद्रित मूल्यांकन से राष्ट्रीय स्तर पर समावेशी वृद्धि की ओर बढ़ने में है, जिसे सततता, विविधता और अग्रणी प्रौद्योगिकियों द्वारा संचालित किया जाएगा। सही सुधारों के साथ, भारत एक वैश्विक प्रतिस्पर्द्धी, आत्मनिर्भर और प्रभाव-केंद्रित नवाचार केंद्र में विकसित हो सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. जोखिम पूंजी से क्या तात्पर्य है? (2014) 

(a) उद्योगों को उपलब्ध कराई गई अल्पकालिक पूंजी
(b) नए उद्यमियों को उपलब्ध कराई गई दीर्घकालिक प्रारंभिक पूंजी
(c) उद्योग को हानि उठाते समय उपलब्ध कराई गई निधियाँ
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन और नवीकरण के लिये उपलब्ध कराई गई निधियाँ

उत्तर: (b)