एडिटोरियल (01 Feb, 2021)



युवा और महात्मा गांधी

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत के युवाओं को महात्मा गांधी के मूल्यों से प्रेरणा लेने व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

प्रतिवर्ष शहीद दिवस  के अवसर पर भारत और विश्व के विभिन्न हिस्सों में लोग महात्मा गांधी के त्याग को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। अहिंसा के आदर्श के प्रति प्रतिबद्धता के अलावा जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद की भावना से ऊपर उठने की आवश्यकता आदि कुछ ऐसे प्रमुख बुनियादी मूल्य हैं जिन्हें महात्मा गांधी ने आत्मसात किया था। 

हालाँकि तेज़ी से बढ़ते आधुनिकीकरण ने वैश्वीकरण के साथ मिलकर हमारी जीवनशैली और विशेष रूप से पिछले एक दशक में युवाओं के जीवन में व्यापक बदलाव किया है। 

इसके अतिरिक्त व्यापक जनसांख्यिकीय परिवर्तन, राजनीतिक अवनति, बढ़ती बेरोज़गारी और अत्यधिक बाज़ार उन्मुख अर्थव्यवस्था आदि ने नई पीढ़ी के लिये जीवन को बहुत जटिल बना दिया है। 

आधुनिक भारत के युवाओं को इन मुद्दों से निपटने में सहायता प्रदान करने और उन्हें देश-निर्माण के प्रति अधिक विवेकशील तथा सक्रिय भूमिका निभाने के लिये उनमें गांधीवादी मूल्यों को विकसित करने की आवश्यकता है।    

वर्तमान में युवाओं और आधुनिक जीवनशैली से संबंधित मुद्दे: 

  • समाज में बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा: आज का युवा असहिष्णुता, व्यग्रता और गलत धारणाओं का शिकार है, ये कारक मिलकर उनमें से अधिकांश को हिंसा के मार्ग पर ले जाते हैं। 
    • यह स्थिति तब और भी खराब हो जाती है जब एक आदर्श जीवनशैली प्राप्त करने की अपेक्षाओं का मानक काफी बढ़ जाता है परंतु उनके अनुरूप परिणाम नहीं प्राप्त हो पाते हैं।
  • भौतिकतावाद के कारण सुखवादी जीवनशैली को बढ़ावा: वर्तमान में समाज में भौतिकवादी प्रवृत्ति की वृद्धि देखी जा रही है, यह प्रवृत्ति लोगों को भौतिक दुनिया की अधिक-से-अधिक वस्तुओं की खोज करने के लिये विवश करती है। यह रवैया आगे चलकर सुखवादी (Hedonism) विचारधारा को बढ़ावा देता है। 
    • एक सुखवादी किसी भी तर्क, औचित्य या वस्तुओं की आवश्यकता-आधारित अभिवृद्धि का अनुसरण नहीं करता है।
  • शिक्षा विषमता: आज की युवा पीढ़ी एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का शिकार है जो उसे बाज़ार के योग्य मानकों पर प्रमाणित होने की परिकल्पना करती है।
    • हालाँकि इसने सार्वजनिक और निजी संस्थानों के बीच एक द्विभाजन पैदा किया, जिसके कारण युवाओं में शिक्षा तथा बेरोज़गारी के संदर्भ में व्यापक असमानता को बढ़ावा मिला है। 
  • रोज़गार का अभाव: रोज़गार के अवसरों की कमी हमारे देश के युवाओं के लिये सबसे गंभीर चिंताओं में से एक है। वर्तमान में भारतीय रोज़गार बाज़ार देश में नौकरी करने की इच्छा रखने वाले युवाओं की बढ़ती संख्या के साथ गति बनाए रखने में असमर्थ रहा है।
    • इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मौजूदा रोज़गार बाज़ार ग्रामीण-आधारित रोज़गार से दूर जा रहा है, बल्कि अधिकांश नौकरी तलाशने वाले लोग ग्रामीण क्षेत्रों में ही मौजूद हैं।

वर्तमान समय में युवाओं के लिये गांधीवादी विचारों का महत्त्व: 

  • असहिष्णुता और हिंसा का सामना करना: असहिष्णुता और हिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान सत्य, सत्याग्रह और शांति को सफलतापूर्वक अपना हथियार बनाया।
    • इन आदर्शों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला सहित दुनिया भर के कई महापुरुषों को प्रेरित किया।
    • अतः भारत के युवाओं को महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिये और यह सीखना चाहिये कि असहिष्णुता तथा हिंसा से शांतिपूर्वक कैसी निपटा जा सकता है। 
  • निस्वार्थ राष्ट्रवाद:  आज के युवाओं को पूरे मनोयोग से स्वयं को देश की सेवा में अर्पित करते हुए भारत की सफलता की कहानी लिखने में अपना योगदान देना चाहिये। 
    • इस संदर्भ में महात्मा गांधी की यह टिप्पणी सबसे उपयुक्त है कि "स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप दूसरों की सेवा में स्वयं को खो दें।" 
    • देश के युवाओं को ‘वोकल फॉर लोकल’ की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए कौशल और नवोन्मेष के माध्यम से भारत के विकास का मार्ग प्रसस्त करना चाहिये। 
  • साध्य और साधन का सिद्धांत: गांधीवादी सूत्र वाक्य ‘साधन, साध्य से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है,’ का अर्थ है कि हमें किसी भी कीमत पर साध्य को प्राप्त करने के बजाय इसके साधन पर भी ध्यान देना चाहिये।
    • गांधीजी के अनुसार, आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संचय करना एक प्रकार की चोरी होगी। ऐसे में समाज में सुखवाद को नियंत्रित करने के लिये युवाओं को स्थितप्रज्ञ के गांधीवादी मूल्यों से पूरी तरह अवगत कराया जाना बहुत ही आवश्यक है।  
    • गांधीजी के स्थितप्रज्ञ के अनुसार, इसमें तपस्या, वर्जना, वैराग्य, अध्यात्म, और त्याग की भावना शामिल है।
    • इस प्रकार स्थितप्रज्ञ का अनुसरण लोगों को भौतिकवाद या सुखवाद से अलग करने में सहायता कर सकता है
  • शिक्षा का गांधीवादी मॉडल: गांधीजी का मानना ​​था कि शिक्षा को मूल्य आधारित और जन-उन्मुख होना चाहिये। 
    • उन्होंने हमेशा सच्ची, राष्ट्रीय शिक्षा की वकालत की। सच्ची शिक्षा एक संतुलित बुद्धि का विकास करती है, जो शरीर, मन और आत्मा का सामंजस्यपूर्ण विकास सुनिश्चित करती है।
    • शिक्षा का यह गांधीवादी सिद्धांत इस तरह की असमानता को भले ही पूरी तरह से नहीं, परंतु बहुत हद तक दूर करने में सहायता कर सकता है।
  • आत्म-निर्भारता का विकास:  वर्तमान में बेरोज़गारी की स्थिति को देखते हुए शिक्षा प्रणाली के पुनर्संयोजन की आवश्यकता है और इसके साथ ही राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों स्तरों पर रोज़गार की मांग को पूरा करने के लिये देश में बड़े पैमाने पर उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
    • इस संदर्भ में गांधीजी ने युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने पर विशेष ज़ोर दिया था, क्योंकि शिक्षा से जुड़ा और व्यावहारिक अनुभव आधारित ऐसा प्रशिक्षण देश के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • व्यावसायिक शिक्षा युवाओं को आवश्यक कौशल प्रदान करेगी और यह विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी की समस्या को हल करने में सहायक होगी।  
    • यह एक ऐसे भारत के निर्माण में सहायता करेगा जो पूर्णतया आत्मनिर्भर हो।

निष्कर्ष: 

भारत का युवा जीवंत, ऊर्जावान और गतिशील होने के साथ किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम है, बशर्ते वह सही मार्ग पर चलता रहे। ऐसे में भारतीय युवाओं को महात्मा गांधी के इन शब्दों को सदैव याद रखना चाहिये कि “आपकी मान्यताएँ आपके विचार बन जाते हैं, आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं, आपके शब्द आपके कार्य बन जाते हैं, आपके कार्य आपकी आदत बन जाते हैं, आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं, आपके मूल्य आपकी नियति बन जाती हैं।”     

अभ्यास प्रश्न: भारत के युवाओं को अधिक जीवंत बनाने और राष्ट्र-निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु प्रेरित करने के लिये उनमें गांधीवादी मूल्यों को विकसित करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।