डेली न्यूज़ (24 Jun, 2025)



भारत में अंग प्रत्यारोपण

प्रिलिम्स के लिये:

अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम, आयुष्मान भारत, मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO)।                       

मेन्स के लिये:

भारत में अंग प्रतिरोपण की स्थिति और इससे संबंधित चुनौतियाँ तथा अंग प्रत्यारोपण को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक कदम।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट ने भारत के अंग प्रतिरोपण कार्यक्रम में गंभीर खामियों को उजागर किया है, जिससे जीवनरक्षक प्रक्रियाओं की बढ़ती मांग को पूरा करने की देश की क्षमता पर चिंता उत्पन्न हुई है।

  • वर्ष 2024 में केवल 13,476 किडनी प्रतिरोपण किये गए, जो कि अनुशंसित 1 लाख प्रतिरोपणों की तुलना में बहुत कम हैं। यह स्थिति हज़ारों रोगियों के लिये अंग प्रतिरोपण की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु व्यवस्था में व्यापक सुधार की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।

अंग प्रत्यारोपण क्या है?

  • परिभाषा: अंग प्रतिरोपण एक जीवनरक्षक प्रक्रिया है, जिसमें किसी विफल हो रहे अंग (जैसे—गुर्दा, यकृत, हृदय, फेफड़े) को किसी जीवित दाता (जैसे—गुर्दा या आंशिक यकृत) या मृत दाता (मस्तिष्क मृत्यु या हृदयगति रुकने के बाद) से प्राप्त स्वस्थ अंग से प्रतिस्थापित किया जाता है, ताकि अंतिम चरण के अंग विफलता की स्थिति में अंग की कार्यक्षमता बहाल की जा सके। सामान्यतः प्रतिरोपित किये जाने वाले अंगों में गुर्दा, यकृत, हृदय, फेफड़े, अग्न्याशय और आँतें शामिल हैं।
  • स्थिति: वर्ष भर में किये गए कुल प्रतिरोपणों की संख्या के आधार पर भारत, अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरे स्थान पर है।
    • बढ़ती मांग और निरंतर कमी: हर वर्ष लगभग 1.8 लाख गुर्दा विफलता के मामलों में केवल 6,000 प्रतिरोपण ही हो पाते हैं, जबकि अंग दान की दर प्रति 1 मिलियन जनसंख्या पर 1 से भी कम है, जबकि आवश्यकता 65 प्रति मिलियन की है।
    • दाता संख्या में धीमी वृद्धि: जीवित और मृत दोनों प्रकार के दाताओं की संख्या वर्ष 2014 में 6,916 से बढ़कर वर्ष 2022 में लगभग 16,041 तक ही पहुँच सकी है।
      • मृत अंग दान की दर पिछले एक दशक से प्रति दस लाख जनसंख्या पर एक दाता से भी कम बनी हुई है।
    • क्षेत्रीय विविधताएँ: मृत दाताओं की संख्या में तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र अग्रणी हैं, जबकि जीवित दाताओं की सर्वाधिक संख्या दिल्ली-NCR, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में दर्ज की गई है।
  • नियम और विनियम:
    • मानव अंग और ऊतक प्रतिरोपण अधिनियम, 1994 (वर्ष 2011 में संशोधित): यह भारत में अंग और ऊतक प्रतिरोपण को नियंत्रित करता है, जिसमें मृत्यु के पश्चात् अंग दान, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये नियमों का निर्धारण और उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान शामिल है।
      • वर्ष 2023 के संशोधित दिशानिर्देशों ने मृतक दाता अंग प्राप्त करने के लिये पंजीकरण हेतु 65 वर्ष की ऊपरी आयु सीमा को हटा दिया तथा ऐसे पंजीकरणों के लिये राज्य के निवासी होने की आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया।
    • राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम (NOTP): यह कार्यक्रम केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अंग दान तथा प्रत्यारोपण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया जा रहा है। इसके अंतर्गत कई संस्थाओं/निकायों की स्थापना की गई है:
    • राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO): स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत NOTTO की स्थापना मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुसार की गई थी।
      • इसका राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग भारत में अंग और ऊतक दान तथा प्रत्यारोपण के समन्वय, खरीद, वितरण एवं रजिस्ट्री के रखरखाव के लिये शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करता है।
      • क्षेत्रीय एवं राज्य स्तर पर नेटवर्क को प्रबल करने के लिये 5 क्षेत्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (ROTTO) तथा 14 राज्य अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (SOTTO) स्थापित किये गए।
    • NOTTO-ID: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को सभी अंग प्रत्यारोपणों के लिये एक अद्वितीय NOTTO-ID आवंटित करने का निर्देश दिया है। मृतक दाता अंग आवंटन के लिये यह अनिवार्य है और जीवित दाता प्रत्यारोपण सर्जरी के 48 घंटों के भीतर इसे तैयार किया जाना चाहिये।

भारत के अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम में क्या कमियाँ हैं?

  • बुनियादी अवसरंचना की कमी: कई सरकारी अस्पतालों में अंग पुनः प्राप्ति और प्रत्यारोपण के लिये समर्पित बुनियादी अवसरंचना का अभाव है तथा ब्रेन-स्टेम डेड (BSD) दाताओं और ऑपरेशन के बाद की देखभाल के लिये महत्त्वपूर्ण ICU बेड की भारी कमी का सामना करना पड़ता है।
    • ऑपरेशन थिएटर (OT) और ICU सामान्य रोगियों से भरे हुए हैं, जबकि कई केंद्रों, जिनमें कुछ एम्स (AIIMS) शाखाएँ भी शामिल हैं, में इन-हाउस ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) क्रॉस-मैचिंग प्रयोगशालाओं की कमी है, जिससे प्रक्रियाओं में देरी होती है।
  • कुशल प्रत्यारोपण पेशेवरों की कमी: सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षित प्रत्यारोपण सर्जनों, नेफ्रोलॉजिस्ट, यूरोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन और इंटेंसिविस्ट्स की कमी है।
    • बार-बार स्थानांतरण, समर्पित टीमों की अनुपस्थिति तथा प्रत्यारोपण स्टाफ के लिये प्रोत्साहनों की कमी से कार्य की निरंतरता बाधित होती है, प्रेरणा में गिरावट आती है और अंग प्रतिरोपण कार्यक्रमों के विस्तार में बाधा उत्पन्न होती है।
  • प्रक्रियात्मक बाधाएँ: ब्रेन-स्टेम डेड (BSD) समितियों की स्वीकृति और गठन में देरी, जो मृत व्यक्ति से अंग दान के लिये आवश्यक हैं, एक प्रमुख अवरोध बनी हुई हैं।
    • चिकित्सा-कानूनी मामलों (विशेषकर दुर्घटनाग्रस्त रोगियों) के जटिल संचालन और एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया की अनुपस्थिति के कारण महत्त्वपूर्ण प्रक्रियात्मक देरी होती है, जिससे अंग दान को हतोत्साहित किया जाता है।
  • वित्तीय दबाव: पर्याप्त वित्तपोषण की कमी के कारण फेफड़े के प्रत्यारोपण जैसी विशेष चिकित्सा योजनाओं की शुरुआत या पुनः प्रारंभ नहीं हो पाती। साथ ही प्रतिरक्षा-दमनकारी (Immunosuppressant) दवाओं की अधिक लागत रोगियों पर भारी बोझ डालती है, क्योंकि अधिकांश योजनाएँ केवल पहले वर्ष की दवाओं को ही शामिल करती हैं।
    • यकृत और हृदय प्रत्यारोपण तथा उनके आजीवन अनुवर्ती व्ययों को आयुष्मान भारत जैसी प्रमुख स्वास्थ्य योजनाओं से बाहर रखा गया है, जिससे गरीब मरीजों की पहुँच सीमित हो गई है।   
  • पेरि-ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर टिशू डैमेज: बढ़ती उम्र और बीमारियों के कारण डोनर ऑर्गन की गुणवत्ता कम हो जाती है, जिससे इस्केमिया-रीपरफ्यूजन इंजरी (IRI) हो जाती है। खराब गुणवत्ता के कारण कई अंगों को त्याग दिया जाता है, जिससे ट्रांसप्लांट की सफलता दर प्रभावित होती है।
  • अंग प्रत्यारोपण में दीर्घकालिक अस्वीकृति: पिछले 20 वर्षों में प्रत्यारोपित अंगों की दीर्घकालिक जीवन दर में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। वर्तमान प्रतिरक्षण-रोधी (anti-rejection) उपचारों में भी अधिकतर कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया है और इनसे जीवन दर में केवल मामूली सुधार ही देखा गया है।
  • सुलभता एवं जागरूकता की कमियाँ: भारत के अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, निजी क्षेत्र की प्रधानता के कारण गरीब रोगियों के लिये सुलभ और किफायती उपचार सीमित हो जाता है; ग्रीन कॉरिडोर की अनुपस्थिति से अंगों के त्वरित परिवहन में बाधा बनती है तथा अंग दान को लेकर जागरूकता की कमीभ्रांतियाँ सार्वजनिक भागीदारी को हतोत्साहित करती हैं।
  • नैतिक और कानूनी चुनौतियाँ: मानव अंगों का अवैध व्यापार, अंग दान का व्यावसायीकरण और अंगों का काला बाज़ार, मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 (THOT Act, 1994) जैसे कठोर कानूनों के बावजूद अब भी विद्यमान हैं।
    • मस्तिष्क-मृत्यु प्रमाणीकरण में सहमति संबंधी समस्याएँ तथा अंग की मांग का लाभ उठाने वाली आपराधिक गतिविधियाँ वैध दान प्रक्रियाओं को कमज़ोर करती हैं।

WHO's_Guiding_Principles_for_Organ_Donation

भारत में अंग प्रत्यारोपण प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये किन रणनीतियों को अपनाया जा सकता है?

  • संरचना का सुदृढ़ीकरण: सरकारी अस्पतालों में ICU और प्रत्यारोपण सुविधाओं को उन्नत किया जाए, जिनमें विशेष ट्रांसप्लांट ICU (TICU) और ऑपरेशन थिएटर शामिल हों। हाइपोथर्मिक/नॉर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूज़न जैसी उन्नत संरक्षण तकनीकों को अपनाया जाए। अंग संग्रहण और परिवहन की प्रक्रियाओं का मानकीकरण किया जाए, ताकि देरी और बर्बादी को कम किया जा सके।
    • डिजिटल प्रणाली और प्रशिक्षित कर्मियों के माध्यम से BSD समिति की स्वीकृतियों को त्वरित किया जाए और ट्रॉमा मामलों में चिकित्सकीय-वैधानिक प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाए, ताकि समय पर अंगों की निकासी (retrieval) संभव हो सके।
  • वित्तीय समर्थन और नीतिगत सुधार: यकृत और हृदय प्रत्यारोपण को आयुष्मान भारत योजना के तहत शामिल किया जाए, जिसमें जीवनभर के लिये इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं की लागत भी कवर की जाए।
    सरकारी अस्पतालों में प्रत्यारोपण कार्यक्रमों के लिये विशेष रूप से फेफड़ों जैसे महँगे प्रत्यारोपणों हेतु वित्तीय सहायता में वृद्धि की जाए।
    • प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने (इम्यूनोसप्रेसेंट) वाली दवाओं के लिये सब्सिडी प्रदान करना और ट्रांसप्लांट टीमों के लिये प्रदर्शन से संबंधित प्रोत्साहन प्रदान करना ताकि रोगी के बोझ को कम किया जा सके और प्रेरणा को बढ़ावा मिल सके।
  • जनशक्ति की कमी का समाधान: प्रत्यारोपण विशेषज्ञों (जैसे सर्जन, नेफ्रोलॉजिस्ट, इंटेंसिविस्ट) की नियुक्ति और स्थायित्व हेतु स्पष्ट नीतियाँ अपनाई जाएँ और कार्यक्रम की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये बार-बार होने वाले स्थानांतरणों में कमी लाई जाए।
    • अंग निकासी (organ retrieval), प्रत्यारोपण और ऑपरेशन के बाद की देखभाल के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएँ तथा एम्स (AIIMS) और चिकित्सा महाविद्यालयों के साथ सहयोग स्थापित कर प्रत्यारोपण शिक्षा का विस्तार किया जाए।
  • अनुसंधान और नैतिक आचरण को बढ़ावा देना: बायोइंजीनियर्ड अंगों, ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन और AI-आधारित अंग मिलान जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में निवेश किया जाए। साथ ही समानता पर आधारित अंग आवंटन और पारदर्शी सहमति प्रक्रियाओं के लिये नैतिक दिशा-निर्देशों का विकास किया जाए।
  • प्रत्यारोपण तकनीक में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए।
  • व्यापक लाभों पर बल: एक मज़बूत अंग और ऊतक प्रत्यारोपण पारिस्थितिकी तंत्र मेडिकल टूरिज़्म को बढ़ावा दे सकता है, भारत की सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ कर सकता है, प्रभावी साझा नेटवर्क के माध्यम से अंतर-राज्यीय समन्वय को प्रोत्साहित कर सकता है और राजस्व उत्पन्न करने तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य व्यय को कम करने के माध्यम से स्वास्थ्य बजट को दृढ़ बना सकता है।
  • जन जागरूकता को मज़बूत करना: अंग दान को बढ़ावा देने और मिथकों को दूर करने के लिये स्कूल तथा कॉलेज शिक्षा, उत्तरजीवी एवं दाता परिवार के प्रशंसापत्र के साथ सामुदायिक जुड़ाव धार्मिक नेताओं के साथ साझेदारी के साथ सोशल मीडिया, टीवी और सेलिब्रिटी समर्थन का उपयोग करके देशव्यापी जागरूकता अभियान शुरू करना।
  • दानदाताओं को सम्मानित करने और अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये प्रमाण पत्र, पट्टिका और स्मारक जैसी सार्वजनिक मान्यता पहल शुरू करना।

निष्कर्ष

भारत के अंग प्रत्यारोपण संकट को तत्काल सुधार की आवश्यकता है - नैतिक और प्रक्रियात्मक अंतराल को संबोधित करते हुए बुनियादी ढाँचे, वित्तपोषण तथा जागरूकता को बढ़ावा देना। आयुष्मान भारत कवरेज का विस्तार, विशेषज्ञों को प्रोत्साहित करना एवं प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना मांग-आपूर्ति के अंतर को पाट सकता है। जीवन बचाने एवं एक कुशल, नैतिक प्रत्यारोपण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: "भारत के अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम को बुनियादी ढाँचे की कमी से लेकर नैतिक चिंताओं तक प्रणालीगत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।" मुद्दों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने के लिये उचित उपाय सुझाइये।

   UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)   

प्रिलिम्स  

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
  1. भावी माता-पिता के अंड या शुक्राणु उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं में आनुवंशिक परिवर्तन किये जा सकते हैं।
  2. व्यक्ति के जीनोम जन्म से पूर्व प्रारंभिक भ्रूणीय अवस्था में संपादित किया जा सकता है।
  3. मानव प्रेरित बहुशक्त स्टेम कोशिकाओं को एक शूकर के भ्रूण में अंतर्वेशित किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d) 

प्रश्न: प्राचीनकालीन भारत में हुई वैज्ञानिक प्रगति के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? (2012)

  1. प्रथम शती ईसवी में विभिन्न प्रकार के विशिष्ट प्रकार के विशिष्ट शल्य औज़ारों का उपयोग आम था।
  2. तीसरी शती ईसवी के आरंभ में मानव शरीर के आंतरिक अंगों का प्रत्यारोपण शुरू हो चुका था।
  3. पाँचवीं शती ईसवी में कोण के ज्या का सिद्धांत ज्ञात था।
  4. सातवीं शती ईसवी में चक्रीय चतुर्भुज का सिद्धांत ज्ञात था।

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स

 प्रश्न: ल्यूकीमिया, थैलेसीमिया, क्षतिग्रस्त कॉर्निया व गंभीर दाह सहित सुविस्तृत चिकित्सीय दशाओं में उपचार करने के लिये भारत में स्टेम कोशिका चिकित्सा लोकप्रिय होती जा रही हैं। संक्षेप में वर्णन कीजिये कि स्टेम कोशिका उपचार क्या होता है और अन्य उपचारों की तुलना में उसके क्या लाभ हैं? (2017)