डेली न्यूज़ (22 Nov, 2019)



एंटीबायोटिक साक्षरता

प्रीलिम्स के लिये:

केरल एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस स्ट्रेटेजिक एक्शन प्लान

मेन्स के लिये:

केरल द्वारा एंटीबायोटिक के प्रति साक्षरता फ़ैलाने के लिये प्रारंभ किया गया कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल राज्य ने एंटीबायोटिक (Antibiotic) दवाओं के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिये एक महा अभियान की शुरुआत की है।

Dos and dont's

मुख्य बिंदु:

  • यह अभियान ‘केरल एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस स्ट्रेटेजिक एक्शन प्लान’ (kerala Antimicrobial Resistance Strategic Action Plan-KARSAP) के तहत विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह (World Antibiotic Awareness Week- WAAW), (18-24 नवंबर) के साथ प्रारंभ किया गया है, ताकि केरल वर्ष 2020 तक ‘एंटीबायोटिक साक्षर’ (Antibiotic Literate) बन सके।
  • यह अभियान केरल में चल रहे आर्द्रम (Aardram) कार्यक्रम के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में प्रारंभ किया गया है।

आर्द्रम कार्यक्रम

(Aardram Programme):

  • केरल सरकार द्वारा यह कार्यक्रम वर्ष 2017 में प्रारंभ किया गया था।
  • यह कार्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के लिये प्रारंभ किया गया है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य सरकारी अस्पतालों को अधिक रोगी अनुकूल बनाकर उन्हें उच्च स्तर की स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
  • KARSAP के अनुसार, जब तक स्कूली बच्चों सहित आम जनता को एंटीबायोटिक दवाओं की बुनियादी जानकारी नहीं दी जाती है और उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि इन जीवन रक्षक दवाओं का इस्तेमाल कब और कैसे किया जाना चाहिये तब तक एंटीबायोटिक का दुरुपयोग जारी रहेगा।
  • यह अभियान ‘एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस’ (Antimicrobial Resistance- AMR) को लागों के बीच गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में शामिल करने तथा इससे बचाव के उपायों की जानकारी देने के लिये प्रारंभ किया गया है।

विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह

(World Antibiotic Awareness Week- WAAW):

  • WAAW का उद्देश्य एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रति वैश्विक जागरूकता को बढ़ाना और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार से बचने के लिये आम जनता, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच उचित प्रयासों को प्रोत्साहित करना है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध

(Antibiotic Resistance):

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध का अर्थ विभिन्न रोगों का कारण बनने वाले बैक्टीरिया द्वारा उन रोगों के इलाज के लिये प्रयोग की जाने वाली कई एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध को विकसित करना है।
  • KARSAP के तहत स्थानीय प्रशासन और मूलभूत स्तर के कार्यकर्त्ता लोगों को इस अभियान द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा इनके कारण होने वाले संक्रमण की रोकथाम के बारे में जानकारी देंगे।

स्रोत-द हिंदू


किशोरों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता

प्रीलिम्स के लिये 

अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता

मेन्स के लिये 

अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा किशोरों में शारीरिक सक्रियता (Physical Activity in Adolescents) पर एक अध्ययन किया गया जिसे द लांसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ (The Lancet Child and Adolescents Health) में प्रकाशित किया गया है।   

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन वर्ष 2001-2016 के दौरान 146 देशों के 298 स्कूलों में किया गया जिसमें 11 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 16 लाख छात्र शामिल थे। 
  • इस अध्ययन का शीर्षक ‘किशोरों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का वैश्विक प्रचलन’ (Global Trends in Insufficient Physical Activity among Adolescents) है। इसमें आँकड़ों को अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता (Insufficient Physical Activity) के रूप में दर्शाया गया है। 
  • इस अध्ययन में सक्रिय रूप से खेलना, मनोरंजन तथा खेल, सक्रिय घरेलू कार्य, टहलना तथा साइकिल चलाना आदि शारीरिक गतिविधियों को शामिल किया गया है।
  • अध्ययन का सुगमता से विश्लेषण करने के लिये विश्व बैंक के आय समूहों के आधार पर देशों को निम्न आय, निम्न-मध्यम आय, उच्च-मध्यम आय तथा उच्च आय समूहों में विभाजित किया गया।   

Physical Activity

  • इस अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2016 में स्कूल में पढ़ने वाले विश्व के 80% किशोर (Adolescents) प्रतिदिन 1 घंटे का शारीरिक व्यायाम नहीं करते। इसमें 85% लड़कियाँ तथा 78% लड़के शामिल हैं।  
  • वर्ष 2001 में यह आँकड़ा वैश्विक स्तर पर लगभग 83% था जहाँ अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता लड़कों में 80% तथा लड़कियों में 85% थी।    
  • अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता में पहले स्थान पर दक्षिण कोरिया (94%) है जहाँ लड़कों में यह आँकड़ा 91% है, वहीं लड़कियों में 97% (विश्व में सर्वाधिक) है। किशोर लड़कों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता सर्वाधिक फिलीपींस में (93%) पाई गई। 
  • भारत के लिये यह आँकड़ा 74% रहा जिसमें 72% लड़के तथा 76% लड़कियाँ शामिल हैं। हालाँकि भारत इसमें वैश्विक औसत से कुछ ही कम है, इसके बावजूद तीन-चौथाई किशोर अभी भी पर्याप्त तौर पर शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के कारण किशोर लड़कों में यह आँकड़ा लड़कियों तुलना में कम है। 
  • वर्ष 2001 में भारत में यह आँकड़ा 76.6% था जहाँ लड़कों तथा लड़कियों के लिये यह समान रूप से 76.6% था।  
  • अमेरिका में यह आँकड़ा 64% है। इसका मुख्य कारण स्कूलों में शारीरिक शिक्षा पर विशेष ध्यान, मीडिया द्वारा खेल-कूद को बढ़ावा देना तथा स्पोर्ट्स क्लबों की लोकप्रियता आदि शामिल है। 
  • हालाँकि अध्ययन में वर्ष 2001 से 2016 के दौरान कुल वैश्विक अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता में कमी आई है। इसके बावजूद जहाँ लड़कों में यह आँकड़ा 2.5% कम हुआ है, वहीं लड़कियों के मामले में इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। 
  • वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर किशोरों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता के बढ़ते प्रभाव में 15% की कमी करने का लक्ष्य रखा गया है। 
  • विश्व के चार देश- टोंगा, सामोआ, ज़ाम्बिया तथा अफ़गानिस्तान में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता के मामले में लड़कियाँ की स्थिति लड़कों की तुलना में बेहतर थी, जबकि अमेरिका तथा आयरलैंड में लड़कियों एवं लड़कों के बीच अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का अंतर सर्वाधिक 15% था। 

आगे की राह: 

  • शारीरिक सक्रियता में वृद्धि हेतु खेल-कूद तथा अन्य मनोरंजक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये प्रभावी नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करना चाहिये।
  • खेल-कूद तथा बाहरी कार्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने के लिये प्रयास करना चाहिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। 
  • स्कूलों में अनिवार्य रूप से 1 घंटे के लिये शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले क्रियाकलाप होने चाहिये जिससे बच्चों तथा किशोरों में मोटापे जैसी समस्याओं से निजात पाया जा सके।   

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नए साइकोएक्टिव पदार्थों पर नियंत्रण

प्रीलिम्स के लिये:

NPS, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 

मेन्स के लिये:

नशीले पदार्थों और औषधियों में उनके प्रयोग संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार सिंथेटिक दवाओं और नए साइकोट्रोपिक पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या से निपटने के लिये दवाओं के निर्माण में स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक पदार्थों को नियंत्रित करने पर विचार कर रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • सरकार द्वारा नशीले पदार्थों की तस्करी और प्रयोग को रोकने लिये एक उच्च स्तरीय सरकारी पैनल की बैठक आयोजित की गई।
  • इस बैठक में दर्दनिवारक दवा ट्रेमेडॉल और कोडीन (Codien) आधारित कफ़ सिरप की बांग्लादेश में तस्करी से संबंधित मुद्दे पर चर्चा की गई।
  • पड़ोसी देशों से बड़े पैमाने पर हेरोइन की तस्करी, नशीले पदार्थ वाली दवाओं के दुरुपयोग, नए साइकोट्रोपिक पदार्थों के निर्माण और देश में अफीम की खेती से संबंधित मुद्दों पर विचार किया गया।
  • राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अफीम की खेती करने वालों से अफीम निकालने के बाद बचे तने का पूर्ण हल सुनिश्चित करने के लिये कहा गया है।
    • पोस्ता स्ट्रॉ अफीम की फलियों से अफीम निकालने के बाद बचे भूसे को कहते हैं
    • जिसमें थोड़ी मात्रा में माॅर्फिन पाई जाती है और इसे नशे के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
    • किसानों द्वारा पोस्ता स्ट्रॉ का स्वामित्व, विक्रय और प्रयोग राज्य नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के नियमों के तहत विनियमित किया जाता है। 
    • एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत पोस्ता स्ट्रॉ मादक पदार्थों की श्रेणी में आता है। 
    • लाइसेंस या राज्य प्राधिकरण के आदेश के बिना पोस्ता स्ट्रॉ की बिक्री, खरीद या उपयोग करना, एनडीपीएस अधिनियम के तहत दंडनीय है।

नए साइकोट्रोपिक पदार्थ

(New Psychotropic Substance- NPS):

  • ऐसे नशीले पदार्थ जिनका निर्माण, क्रय-विक्रय और उपयोग संयुक्त राष्ट्र के नशीली दवाओं संबंधी अभिसमय (United Nation’s Drugs Convention) द्वारा नियंत्रित नहीं किये जाते और लोगों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं NPS की श्रेणी में आते हैं।
  • NPS को लीगल हाई (Legal high), बाथ सॉल्ट ( bath salt) या शोध रसायन भी कहते है, जिसे स्पष्ट करने के लिये यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम ने इसे NPS नाम दिया है। 

संयुक्त राष्ट्र औषधि नीति संबंधी अभिसमय

(United Nation’s Drugs Convention):

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा 3 अभिसमय अपनाए गए, जो एक साथ मिलकर औषधि नियंत्रण व्यवस्था के अंतर्राष्ट्रीय कानून की रूपरेखा तैयार करती हैं:
    • नारकोटिक्स ड्रग्स पर एकल अभिसमय, 1961
    • साइकोट्रोपिक औषधि पर अभिसमय, 1971
    • नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक औषधि की तस्करी के विरुद्ध अभिसमय, 1988
  • भारत इन तीनों अभिसमयों का हस्ताक्षरकर्त्ता है।

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985

(Narcotics Drugs and Psychotropic Substance Act 1985):

  • NDPS का अधिनियमन वर्ष 1985 में मादक औषधि नीति संबंधी संयुक्त राष्ट्र के अभिसमय को पूरा करने के लिये किया गया था।
  • इस अधिनियम में नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार से अर्जित संपत्ति को ज़ब्त करने तथा रसायनों व औषधियों के विनिर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थों पर नियंत्रण हेतु 1989 में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए थे। 
  • वर्ष 2001 में NDPS अधिनियम के सज़ा संबंधी प्रावधानों में संशोधन किया गया।
  • इसके तहत 10 से 20 वर्ष का कारावास, आर्थिक दंड और दोहराए गए अपराधों के लिये कुछ मामलों में जुर्माने के साथ मौत की सज़ा का भी प्रावधान है।

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम

(United nation’s Office on Drugs and Crime- UNODC):

  • इसकी स्थापना वर्ष 1997 में की गई।
  • यह संयुक्त राष्ट्र के औषधि और अपराध नियंत्रक कार्यालय के रूप में कार्य करता है।
  • UNODC वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट जारी करता है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


‘पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे’ कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

‘पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे’ कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

‘पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे’ कार्यक्रम से संबंधित विभिन्न तथ्य 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे- पीपीएच’ (Patent Prosecution Highway- PPH) नामक कार्यक्रम को मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘पेटेंट, डिजाइन एवं ट्रेडमार्क महानियंत्रक’ (Controller General of Patents, Designs & Trade Marks, India- CGPDTM) के अधीन भारतीय पेटेंट कार्यालय (Indian Patent Office- IPO) द्वारा विभिन्न देशों या क्षेत्रों के पेटेंट कार्यालयों के साथ पेटेंट प्राप्त करने में तेजी लाने और उसे कारगर बनाने वाले PPH कार्यक्रम को अपनाए जाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
  • PPH कार्यक्रम तीन वर्षों के प्रायोगिक आधार पर सबसे पहले जापान पेटेंट कार्यालय (Japan Patent Office) तथा भारतीय पेटेंट कार्यालय के बीच प्रारंभ होगा।  
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से भारतीय पेटेंट कार्यालय विद्युत्, कंप्यूटर विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी, भौतिकी, सिविल, यांत्रिकी, वस्त्र, मोटरवाहन और धातु विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे तकनीकी क्षेत्रों में पेटेंट के लिये आवेदन प्राप्त करेगा जबकि जापान पेटेंट कार्यालय प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में आवेदन प्राप्त करेगा। 

 ‘पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे’ कार्यक्रम के लाभ

(Benifits of Patent Prosecution Highway programme):

  • इस कार्यक्रम की सहायता से पेटेंट आवेदनों के निपटान में लगने वाले समय में कमी आएगी।
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से लंबित पेटेंट आवेदनों में कमी आएगी।
  • पेटेंट आवेदनों की जाँच प्रक्रिया की गुणवत्ता में सुधार आएगा।
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत के स्टार्टअप्स (Startsups), सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम  उद्योग उद्यमियों तथा अन्य भारतीय निवेशकों द्वारा जापान में किये गए पेटेंट आवेदनों के निपटान में तेजी आएगी।
  • इससे भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों में वृद्धि होगी।

स्रोत- PIB


प्रदूषण की स्थिति का आकलन करने के लिये उपग्रह

प्रीलिम्स के लिये: 

एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ 

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के मौसम उपग्रह इनसैट- 3D और 3DR का प्रयोग एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (Aerosol Optical Depth- AOD) की निगरानी के लिये किया जाएगा

एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (Aerosol Optical Depth- AOD):

  • AOD, जैवभार के जलने से दृश्यता को प्रभावित करने वाले धुँए और कणों की उपस्थिति तथा  वातावरण में PM2.5 व PM10 की सांद्रता के बढ़ने का सूचक है।
    • वायुमंडल में उपस्थित छोटे ठोस और तरल कणों को एरोसोल कहा जाता है।
    • समुद्री लवण, ज्वालामुखीय राख, जंगल और कारखानों से निकलने वाले धुंए , एरोसोल के उदाहरण हैं।
    • एरोसोल सतह को ठंडा कर सकता है या गर्म यह उनके आकार, प्रकार और स्थान पर निर्भर करता है।
    • एरोसोल बादलों के बनने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
    • एरोसोल लोगों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं।
  • उपग्रहों पर लगे हुए इमेज़र पेलोड द्वारा ज्ञात हुआ है कि  दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे क्षेत्रों में अक्तूबर तथा नवंबर के दौरान एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ, PM2.5 एवं PM10 की सांद्रता सबसे अधिक है।
  • उपग्रह आधारित जलवायवीय अध्यययन के अनुसार अक्तूबर और नवंबर के महीने में  वर्ष 2003 से वर्ष 2017 के बीच पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में 4% की वृद्धि दर्ज़ की गई।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान केंद्र (Indian Space Research Organisation-ISRO )वर्ष 2015 से पराली जाने की घटनाओं की निगरानी करता रहा है।

इनसैट 3D और 3DR 

  • इनसैट- 3D भारत का उन्नत मौसम उपग्रह है जो बेहतर इमेजिंग सिस्टम  के साथ विकसित किया गया है
  • इसको मौसम पूर्वानुमान और आपदा की चेतावनी के लिये,भूमि और समुद्र की सतहों की निगरानी के लिये बनाया गया है
  • इनसैट- 3DR में कुछ उल्लेखनीय सुधार किये गए हैं-
    • रात के समय कम बादलों और कोहरे में इमेज़ लेने की क्षमता
    • समुद्र सतह तापमान के बेहतर आकलन के लिये दो थर्मल इन्फ्रारेड बैंड में इमैजिंग
    • दृश्य और तापीय इन्फ्रारेड बैंड (Visible and Thermal Infrared bands) में उच्च स्थानिक विभेदन

स्रोत- PIB


RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (22 नवंबर)

विश्व मात्स्यिकी दिवस 

  • प्रतिवर्ष 21 नवंबर  को विश्व मात्सियिकी दिवस का आयोजन किया जाता है। 
  • इस दिन 1997 में 18 देशों के मत्स्य कृषकों और मत्स्य कर्मकारों के विश्व मंच का प्रतिनिधित्व करने वाले मछुआरों की बैठक नई दिल्ली में हुई थी।
  • इस बैठक में सतत् मत्स्य-आखेट के प्रयोगों और नीतियों के एक वैश्विक जनादेश का समर्थन करते हुए विश्व मात्स्यिकी मंच (World Fisheries Forum-WFF) की स्थापना की गई थी। 
  • इसके बाद से हर वर्ष 21 नवंबर को पूरे विश्व में विश्व मात्स्यिकी दिवस के रूप में इसका आयोजन किया जाता है।

भारतीय मत्स्य पालन एवं जल-कृषि खाद्य उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो 14 मिलियन से अधिक लोगों को आजीविका और लाभकारी रोज़गार के अलावा पोषण संबंधी सुरक्षा प्रदान करता है तथा कृषि निर्यात में योगदान देता है। गहरे समुद्रों से लेकर पर्वतों में झीलों तक तथा मत्स्य और सीपदार मछलियों की प्रजातियों के निबंधनों के अनुसार वैश्विक जैव-विविधता के 10% से अधिक के विविध संसाधनों के साथ, देश ने मत्स्य उत्पादन में स्वाधीनता से एक निरंतर तथा समर्थित वृद्धि दर्शाई है। वैश्विक मत्स्य उत्पादन में लगभग 6.3% का योगदान करते हुए, 11.60 मिलियन मीट्रिक टन का कुल मत्स्य उत्पादन वर्तमान समय में अंतर्देशीय क्षेत्र से लगभग 65% और लगभग वही मात्स्यिकी कृषि से 50% का योगदान कर रहा है।


ग्लोबल बायो-इंडिया कार्यक्रम

  • भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग अपने सार्वजनिक उपक्रम, जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद के सहयोग से ग्लोबल बायो-इंडिया सम्मेलन कार्यक्रम का आयोजन किया। इस आयोजन में भारतीय उद्योग परिसंघ, एसोसिएशन ऑफ बायोटेक्नोलॉजी लेड एंटरप्राइजेज और इनवेस्टर इंडिया भागीदार रहे।
  • भारत में पहली बार ग्लोबल बायो-इंडिया का आयोजन किया गया और इससे अकादमियों, नवोन्मेषकों, शोधकर्त्ताओं, मध्यम और बड़ी कंपनियों को एक मंच उपलब्ध होगा।
  • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वर्ष 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में योगदान करने के लिये एक प्रमुख इंजन माना जाता है।
  • इस सम्मेलन ने जैव-फार्मा, जैव-कृषि, जैव-औद्योगिक, जैव-ऊर्जा और जैव-सेवाओं तथा संबंधित क्षेत्रों की प्रमुख चुनौतियों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये भारत के जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता को प्रदर्शित करने, पहचान करने, अवसरों का सृजन करने और विचार-विमर्श करने का अवसर प्रदान किया।
  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों, केंद्रीय और राज्य मंत्रालयों, नियामक निकायों, MSMEs, बड़े-बड़े उद्यमियों, जैव समूहों, अनुसंधान संस्थानों, निवेशकों, इनक्यूबेटर, स्टार्ट-अप और अन्य सहित वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी हितधारकों को साथ लाने के लिये यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

उत्तराखंड में पशुओं की UID टैगिंग

  • प्रदेश के 12 ज़िलों में दुधारू पशुओं की नस्ल सुधारने के साथ ही उनकी UID टैगिंग की जाएगी। 
  • इसके लिये पशुपालन विभाग ने प्रत्येक जनपद में 100 गाँवों को चिन्हित किया है। 
  • मार्च 2020 तक एक गाँव से दो पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कर टैगिंग करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • टैगिंग के बाद नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड के एप पर पंजीकरण किया जाएगा। इससे पशुओं को लावारिस छोड़ने पर मालिक का पता चल सकेगा, साथ ही पशुओं के टीकाकरण का रिकॉर्ड भी ऑनलाइन किया जाएगा। केंद्र ने विदित हो कि पशुपालन व्यवस्था को बढ़ावा देने को पशु प्रजनन के लिये राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान योजना शुरू की है।
  • राज्य में पहले पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस योजना को ऊधमसिंह नगर व हरिद्वार जनपद में चलाया गया था। अब ऊधमसिंह नगर को छोड़ कर सभी 12 ज़िलों में छह माह के इस योजना को चलाया गया है। 
  • इसमें दुधारू पशु का कृत्रिम गर्भाधान करने के बाद UID टैगिंग की जाएगी, जिसमें 12 अंकों का टैग पशु को लगाया जाएगा। टैगिंग से पशु का पंजीकरण ऑनलाइन होगा।
  • इससे विभाग के पास पशु के उपचार का रिकॉर्ड उपलब्ध रहेगा। यदि कोई किसान पशु को लावारिस छोड़ देता है तो टैगिंग से मालिक की पहचान हो जाएगी। 
  • हर गाँव से 200 पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान करने का लक्ष्य रखा है। इससे प्रदेश में दुग्ध उत्पाद बढ़ेगा, पशु नस्ल में सुधार होगा तथा साथ ही UID टैगिंग से लावारिस पशुओं की समस्या भी दूर होगी।