भारत में लैंगिक आधार पर कुपोषण
प्रिलिम्स के लिये:पोषण अभियान, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, एनीमिया, समेकित बाल विकास योजना मेन्स के लिये:भारत में महिला एवं बाल पोषण, लैंगिक आधारित कुपोषण के सामाजिक-आर्थिक निर्धारक |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के निशुल्क खाद्यान्न कार्यक्रम से वर्तमान में लगभग 800 मिलियन लोग लाभान्वित होते हैं फिर भी भूख और कुपोषण से संबंधित चुनौतियाँ (विशेषकर महिलाओं और बालिकाओं में) बनी हुई हैं।
- आर्थिक विकास के साथ POSHAN अभियान (प्रधानमंत्री समग्र पोषण योजना) के कार्यान्वयन के बावजूद, लैंगिक आधार पर पोषण संबंधी असमानताएँ स्पष्ट रूप से बनी हुई हैं।
भारत में लैंगिक आधार पर कुपोषण हेतु कौन-से कारक उत्तरदायी हैं?
- एनीमिया और कम वज़न की उच्च दर: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, 15-49 वर्ष आयु वर्ग की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं जबकि पुरुषों में यह संख्या केवल 26% है। लगभग 5 में से 1 महिला कम वज़न की है।
- महिलाओं को मासिक धर्म, गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान पोषण की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसे में आवश्यक पोषण न मिल पाने के कारण एनीमिया और कम वज़न जैसी समस्याएँ होती हैं, जिससे मातृ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- सीमित शिक्षा: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल साक्षरता दर 72.98% है जिसमें पुरुषों में यह 80.9% और महिलाओं में केवल 64.63% है।
- शिक्षा में इस असमानता से पोषण, स्वास्थ्य प्रथाओं और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच के बारे में महिलाओं में सीमित जागरूकता बनी हुई है, जिससे लैंगिक आधार पर कुपोषण को बढ़ावा मिलता है।
- रूढ़िवादी सामाजिक मानदंड: आर्थिक रूप से वंचित कई भारतीय परिवारों में महिलाएँ और बालिकाएँ अक्सर सबसे अंत में खाती हैं जिससे उन्हें खाने को कम मिल पाता है।
- ऐसे मामलों में कुपोषण न केवल खाद्यान्न की कमी बल्कि रूढ़िवादी सामाजिक मानसिकता को भी दर्शाता है।
- पुरुषों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने वाले रूढ़िवादी सामाजिक मानदंडों से महिलाओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- आर्थिक निर्भरता: लगभग 49% महिलाओं के पास अपनी आय पर निर्णय लेने की शक्ति नहीं है, जिसका अर्थ है पोषण से समझौता। आर्थिक कमज़ोरी महिलाओं की पौष्टिक भोजन तक पहुँच को सीमित करती है, जिससे कुपोषण बढ़ता है।
- नीतिगत अंतराल: बड़े निवेश (वर्ष 2022-23 के लिये 24,000 करोड़ रुपए) के बावजूद, पोषण अभियान ने दिसंबर 2022 तक अपने धन का केवल 69% ही उपयोग किया था।
- इस योजना ने पोषण के बारे में जागरूकता तो उत्पन्न की, लेकिन महिलाओं में एनीमिया या कुपोषण को कम करने जैसे प्रमुख परिणामों में सुधार करने में असफल रही।
- पोषण 2.0 महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के उद्देश्य से बनाई गई योजनाओं से अलग-थलग बना हुआ है। अगर महिलाओं के पास पौष्टिक भोजन तक पहुँचने के लिये वित्तीय साधन और एजेंसी की कमी है, तो अकेले पोषण हस्तक्षेप अपर्याप्त हैं।
पोषण अभियान क्या है?
- पोषण अभियान: पोषण अभियान (जिसे पहले राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में जाना जाता था), वर्ष 2018 में शुरू किया गया भारत सरकार का प्रमुख पोषण मिशन है।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य बच्चों (0-6 वर्ष), किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये समयबद्ध तरीके से पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करना है।
- इसका लक्ष्य बौनापन, कुपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोरियों में) को कम करना तथा जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में क्रमशः 2%, 2%, 3% एवं 2% प्रति वर्ष की कमी लाना है।
- यह जन आंदोलन और पोषण वाटिकाओं के विकास के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देता है, ताकि पौष्टिक भोजन तक स्थानीय एवं विविध पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
- पोषण अभियान के स्तंभ:
- गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक पहुँच: एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) जैसी योजनाओं के माध्यम से आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना, विशेष रूप से बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिनों के दौरान।
- क्रॉस-सेक्टोरल कन्वर्जेंस: स्वच्छ भारत मिशन के तहत जल और स्वच्छता तथा राष्ट्रीय पेयजल मिशन के माध्यम से पेयजल तक पहुँच सहित कई मंत्रालयों के प्रयासों में समन्वय करना।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: पोषण ट्रैकर एप्लिकेशन जैसे उपकरण वास्तविक समय डेटा संग्रह और हस्तक्षेप को सक्षम करते हैं।
- जन आंदोलन: पोषण के संबंध में व्यापक जागरूकता लाने और व्यवहारिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिये सामुदायिक सहभागिता महत्त्वपूर्ण है।
- पोषण 2.0: प्रारंभ में तीन वर्ष के कार्यक्रम के रूप में शुरू किये गए पोषण अभियान को वर्ष 2021 में मिशन पोषण 2.0 में विस्तारित किया गया, जिसने एक ही छत्र के नीचे कई पोषण संबंधी योजनाओं को एकीकृत किया।
- इनमें ICDS - आंगनवाड़ी सेवाएँ, पूरक पोषण कार्यक्रम, पोषण अभियान, किशोरियों के लिये योजना और राष्ट्रीय क्रेच योजना शामिल हैं।
- इस एकीकृत पहल को अब मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 के रूप में कार्यान्वित किया गया है, जिसे आमतौर पर पोषण 2.0 के रूप में जाना जाता है।
- कार्यान्वयन और वित्तपोषण: पोषण 2.0 एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लागत अनुपात 60:40 है।
- प्रगति: मिशन पोषण 2.0 में 8.9 करोड़ बच्चे (0-6 वर्ष) शामिल हैं। पोषण अभियान से 69.42 लाख गर्भवती महिलाओं (PW) और 42.54 लाख स्तनपान कराने वाली माताओं (LM) को लाभ मिला है।
भारत में लैंगिक कुपोषण को दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- वित्तीय स्वतंत्रता और पोषण: नोबेल पुरस्कार विजेता एस्थर डुफ्लो के शोध से पता चलता है कि जिन महिलाओं के पास वित्तीय संसाधनों पर नियंत्रण होता है, वे पोषण और बच्चों की भलाई को प्राथमिकता देती हैं।
- महिला कार्यबल भागीदारी वर्ष 2017–18 में 23% से बढ़कर वर्ष 2023–24 में 47.6% होने के बावजूद, अधिकांश महिलाएँ कम वेतन वाली और असुरक्षित नौकरियों में कार्यरत हैं, तथा औसतन पुरुषों की तुलना में 53% कम आय अर्जित करती हैं।
- यह तथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि केवल कार्यबल में प्रवेश पर्याप्त नहीं है, महिलाओं को सुरक्षित और न्यायसंगत पारिश्रमिक वाली नौकरियाँ की आवशयकता है।
- महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण, वित्तीय साक्षरता तथा ऋण सुविधा के माध्यम से सशक्त बनाना पोषण संबंधी परिणामों में सुधार लाने की दिशा में एक प्रमुख उपाय है।
- पोषण और आजीविका के लिये एकीकृत दृष्टिकोण: महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिये पोषण 2.0 को कौशल विकास, सूक्ष्म वित्त और रोज़गार योजनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिये। उच्च कुपोषण वाले ज़िलों में स्वास्थ्य, पोषण और आजीविका से संबंधित मानकों की संयुक्त निगरानी आवश्यक है।
- आंगनवाड़ी केंद्रों का उपयोग बहु-सेवा केंद्रों के रूप में किया जाना चाहिये, न केवल पोषण और प्रसवपूर्व देखभाल के लिये, बल्कि कौशल विकास, वित्तीय साक्षरता तथा सरकारी आजीविका योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये भी।
- स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाना चाहिये कि वे महिलाओं को जन धन योजना और स्टैंड अप इंडिया जैसी सरकारी योजनाओं से जोड़ सकें।
- लक्षित सरकारी पहल: PM मुद्रा योजना और दीनदयाल अंत्योदय योजना जैसी योजनाओं में उच्च कुपोषण वाले ज़िलों की महिलाओं के लिये लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
- मापनीय लक्ष्यों की स्थापना: केवल एनीमिया और बौनेपन को कम करने के लिये ही नहीं, बल्कि महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने के लिये भी स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिये। नियमित ऑडिट और निधियों के पारदर्शी उपयोग की रिपोर्ट अनिवार्य होनी चाहिये।
- सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को तोड़ना: भोजन वितरण और महिलाओं के पोषण से संबंधित सामाजिक मान्यताओं में बदलाव लाने हेतु समुदाय आधारित पहलों को प्रोत्साहित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- अभियानों का उद्देश्य उन धारणाों में परिवर्तन लाना होना चाहिये जो पुरुषों के पोषण को महिलाओं के स्वास्थ्य से अधिक प्राथमिकता देती हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: "उच्च स्तर के निवेश और नीतिगत ध्यान के बावजूद, भारत में लैंगिक कुपोषण अब भी बना हुआ है।" चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं, जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस 2025
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य संकटों के विरुद्ध वैश्विक नेटवर्क (GNAFC), खाद्य सुरक्षा सूचना नेटवर्क (FSIN), खाद्य संकटों पर वैश्विक रिपोर्ट (GRFC), कुपोषण, गंभीर खाद्य असुरक्षा, अल-नीनो, US एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID)। मेन्स के लिये:पूरे विश्व में गंभीर खाद्य असुरक्षा और पोषण संकट (कुपोषण) की गंभीरता की स्थिति, गंभीर खाद्य असुरक्षा एवं पोषण संकट (कुपोषण) से निपटने के कारण और उपाय। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस (GRFC) 2025 के अनुसार 53 देशों में 295 मिलियन से अधिक लोगों को गंभीर भुखमरी से प्रभावित हुए हैं, जो वर्ष 2023 की तुलना में 13.7 मिलियन अधिक हैं।
- रिपोर्ट में जारी संघर्षों, गंभीर जलवायु घटनाओं, आर्थिक व्यवधानों और जबरन विस्थापन के कारण बढ़ते वैश्विक खाद्य असुरक्षा संकट पर प्रकाश डाला गया है।
ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस (GRFC):
- ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस (GRFC), 2025 को खाद्य सुरक्षा सूचना नेटवर्क (FSIN) के सहयोग से खाद्य संकटों के विरुद्ध वैश्विक नेटवर्क (GNAFC) द्वारा प्रकाशित किया गया है।
- GRFC एक वार्षिक प्रकाशन है जो पूरे विश्व में गंभीर खाद्य असुरक्षा और पोषण संकट (कुपोषण) का व्यापक विश्लेषण प्रदान करता है।
- गंभीर खाद्य असुरक्षा तब होती है जब भोजन की उपलब्धता, पहुँच, उपयोग या स्थिरता में व्यवधान से जीवन या आजीविका को खतरा होता है।
- पोषण संकट तब उत्पन्न होता है जब भोजन की कमी, बीमारी, संघर्ष और खराब स्वास्थ्य देखभाल जैसे कारकों के कारण 6-59 महीने की आयु के बच्चों में गंभीर कुपोषण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
GRFC 2025 रिपोर्ट के अनुसार खाद्य असुरक्षा के प्रमुख कारण क्या हैं?
- संघर्ष और विस्थापन: संघर्ष के कारण 20 देशों में खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है, जिससे 139.8 मिलियन लोग प्रभावित हो रहे हैं और विशेष रूप से नाइजीरिया, सूडान और म्याँमार में सर्वाधिक आपदा (एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (IPC)-5 अर्थात् भुखमरी, मृत्यु या गंभीर कुपोषण) के मामले सामने आ रहे हैं।
- इसके अतिरिक्त, शीर्ष 10 प्रभावित देशों में वैश्विक गंभीर कुपोषण के मामले वर्ष 2023 में 26.9 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2024 में 30.4 मिलियन हो गए थे, जिसमें सबसे गंभीर संकट सूडान और गाज़ा में देखने को मिला।
- चरम मौसमी घटनाएँ और विस्थापन: बढ़ते तापमान, बाढ़ और अल-नीनो के कारण फसलें नष्ट हो गईं, खाद्य आपूर्ति को नुकसान पहुँचा और कुपोषण का खतरा बढ़ गया।
- इसने 18 देशों में खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा दिया है, जिससे 96.1 मिलियन लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि वर्ष 2024 में 95.8 मिलियन विस्थापित व्यक्ति - जिनमें से 75% आंतरिक रूप से विस्थापित - 53 खाद्य संकट वाले देशों में बसे हुए थे।
- इसने 18 देशों में खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा दिया है, जिससे 96.1 मिलियन लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि वर्ष 2024 में 95.8 मिलियन विस्थापित व्यक्ति (जिनमें से 75% आंतरिक रूप से विस्थापित हैं) 53 खाद्य संकटग्रस्त देशों में रह रहे थे।
- आर्थिक संघर्ष: यह 15 देशों (जैसे, दक्षिण सूडान) में खाद्य असुरक्षा को बढ़ाता है, जिससे आय, रोज़गार और खाद्य आपूर्ति शृंखला बाधित होकर 59.4 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं, जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं, क्रय शक्ति कम हो जाती है तथा पौष्टिक भोजन तक पहुँच कम हो जाती है।
- वित्त पोषण में कटौती: वर्ष 2025 में US एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) के वित्त पोषण की अचानक समाप्ति से मानवीय प्रयासों पर असर पड़ेगा, जिससे अफगानिस्तान, DRC, इथियोपिया, हैती आदि में 14 मिलियन बच्चों के लिये गंभीर कुपोषण और मृत्यु का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
- कमज़ोर शासन व्यवस्था: खाद्य असुरक्षा के कारक पहले से मौजूद कमज़ोरियों जैसे कि दुर्बल स्वास्थ्य प्रणाली, अस्थायी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता को और भी गंभीर बना देते हैं, जबकि अपर्याप्त डेटा प्रभावी प्रतिक्रिया तथा निगरानी को बाधित करता है।
वैश्विक विकास पर खाद्य संकट के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं?
- गरीबी में वृद्धि: खाद्य संकट स्थानीय कृषि-आधारित अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से वहाँ जहाँ कृषि प्रमुख भूमिका निभाती है। बढ़ती खाद्य कीमतें महंगाई को बढ़ावा देती हैं, जिससे निम्न आय वाले लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है।
- मानव पूंजी की हानि: खाद्य संकट विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण संबंधी परिणामों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2023 के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 735 मिलियन से अधिक लोग दीर्घकालिक रूप से कुपोषित हैं।
- 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की लगभग 45% मृत्यु का कारण पोषण संबंधी कारक होते हैं।
- सामाजिक अस्थिरता: खाद्यान्न की कमी से प्रायः नागरिक अशांति फैलती है और मज़बूरी में पलायन होता है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)) की रिपोर्ट के अनुसार 23.5 मिलियन लोग जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित हुए हैं, जिनमें से अनेक लोग फसल खराब होने और खाद्य असुरक्षा के कारण पलायन कर रहे हैं।
- लैंगिक असमानता: खाद्य संकट असमान रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है, जो प्रायः घरेलू पोषण के लिये ज़िम्मेदार होती हैं, लेकिन भूमि, ऋण और सहायता तक उनकी पहुँच कम होती है।
- संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) के अनुसार, यह अनुमान है कि दीर्घकालिक भुखमरी से पीड़ित लोगों में 60% महिलाएँ और लड़कियाँ हैं।
- शैक्षिक प्रणालियों की हानि: खाद्य संकट से प्रभावित बच्चों को प्रायः भुखमरी या घरेलू आय का समर्थन करने की आवश्यकता के कारण स्कूल छोड़ने की उच्च दर का सामना करना पड़ता है।
- जबकि वर्ष 2015-2021 तक स्कूल न जाने वाले बच्चों की वैश्विक संख्या में 9 मिलियन की कमी आई है, लेकिन तब से पूरे विश्व में खाद्य आपूर्ति में ठहराव के कारण इसमें 6 मिलियन की वृद्धि हुई है।
खाद्य असुरक्षा और पोषण संकट का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है?
- पोषण सूचना प्रणाली: उन्नत पूर्व चेतावनी प्रणाली से कमज़ोर समूहों की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाने के साथ उन्हें गंभीर और व्यापक होने से पहले ही हल किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, उन्नत पूर्व चेतावनी प्रणालियों से वर्ष 2022-2023 में सोमालिया में अकाल (IPC चरण 5) को रोकने में मदद मिली।
- एकीकृत खाद्य सुरक्षा: कमज़ोर समूहों की पहचान करने, जोखिमों को समझने तथा इस संदर्भ में सहायता प्रदान करने के क्रम में संयुक्त कृषि तथा आजीविका डेटा का उपयोग करके देश एवं क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक खाद्य सुरक्षा और पोषण प्रणाली विकसित करनी चाहिये।
- आपातकालीन कृषि सहायता में वृद्धि की जानी चाहिये, जिसके लिये मानवीय खाद्य वित्तपोषण का केवल 3% आवंटित हो पाता है (वर्ष 2016-2024)।
- जलवायु अनुकूलन: कृषि उत्पादकता में सुधार तथा बेहतर आपूर्ति शृंखलाओं के विकास के साथ जलवायु-स्मार्ट कृषि को अपनाना चाहिये।
- खाद्य सुरक्षा को शांति स्थापना के कारक के रूप में देखते हुए संघर्ष वाले क्षेत्रों में किसानों तथा बाज़ारों की रक्षा करने के साथ विस्थापन से उत्पन्न भुखमरी को कम करने के क्रम में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण करना चाहिये।
- कृषि खाद्य प्रणालियों का रूपांतरण: कृषि में निवेश से खाद्य उत्पादन तथा आपूर्ति शृंखला में सुधार हो सकता है, जो दीर्घकालिक खाद्य संकट वाले तथा गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षित देशों (जहाँ अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं) के लिये निर्णायक है।
- चिकित्सीय आहार का विस्तार करने एवं प्रमुख खाद्य पदार्थों को उन्नत बनाने के साथ आहार विविधता को बढ़ावा देकर पोषण में सुधार करना चाहिये।
निष्कर्ष
GRFC 2024 रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर भूख संकट की स्थिति के और भी गंभीर होने पर प्रकाश डाला गया है, जो क्षेत्रीय संघर्ष, जलवायु असंतुलन एवं आर्थिक अस्थिरता से प्रेरित है। 295 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति में हैं और इस क्रम में फंडिंग में कटौती होने से इनकी पर्याप्त सहायता नहीं हो पा रही है। इसलिये इस संदर्भ में जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने, पोषण कार्यक्रमों को उन्नत करने तथा मानवीय सहायता को बढ़ावा देने के रूप में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि भूख एवं कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ा जा सके।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक स्तर पर विद्यमान खाद्य असुरक्षा के प्रमुख कारण क्या हैं। क्षेत्रीय संघर्ष और जलवायु परिवर्तन से इस संकट को किस प्रकार बढ़ावा मिलता है? उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौमिक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage Systems- GIAHS)' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016) 1- अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आइ० एफ० एस०) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019) |