डेली न्यूज़ (18 Oct, 2019)



वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट के तथ्यात्मक पक्ष, यूनिसेफ

मेन्स के लिये:

वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट और बच्चों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनिसेफ (UNICEF) ने वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट (World’s Children Report) जारी की है।

  • यूनिसेफ ने पिछले 20 वर्षों में पहली बार बच्चों के पोषण से संबंधित रिपोर्ट जारी की है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में 5 वर्ष तक की उम्र के प्रत्येक 3 बच्चों में से एक बच्चा कुपोषण अथवा अल्पवज़न की समस्या से ग्रस्त है। पूरे विश्व में लगभग 200 मिलियन तथा भारत में प्रत्येक दूसरा बच्चा कुपोषण के किसी न किसी रूप से ग्रस्त है।

वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट में भारत की स्थिति निम्न है:

  • लंबाई के अनुपात में कम वज़न (Child Wasting):
    • इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में कम होता है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 17% बच्चे कुपोषण की इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
  • आयु के अनुपात में लंबाई का न बढ़ना- बौनापन (Child Stunting):
    • इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनकी लंबाई आयु के अनुपात में कम होती है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 35% बच्चे पोषण की कमी के कारण कुपोषण की इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
  • बाल मृत्यु दर ( Child Mortality Rate) :

    • एक वर्ष के भीतर 5 वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर को बाल मृत्यु दर कहते हैं।

    • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में कुपोषण के कारण 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8 लाख बच्चों की मृत्यु हुई जो कि नाइजीरिया (8.6 लाख), पाकिस्तान (4.09 लाख) और कांगो गणराज्य (2.96 लाख ) से भी अधिक है।

children Highest Death

वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट के अन्य पक्ष:

  • भारत में 5 वर्ष से कम आयु के 33% बच्चे अपनी आयु के आधार पर कम वज़न (Underweight) की समस्या से तथा इसी आयु वर्ग के 2% बच्चे आयु के अनुपात में अधिक वज़न (Overweight) की समस्या से ग्रस्त हैं।
  • सरकार के अनुसार, वर्ष 2016-2018 के बीच बौनेपन (Stunting) और अल्पवज़न (Wasting) की समस्या से जूझ रहे बच्चों की संख्या में 3.7% की कमी आई तथा अल्पवज़न (Unerweight) की समस्या से जूझ रहे बच्चों की संख्या में 2.3% की कमी आई।
  • दक्षिण एशिया के देशों में भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन, अल्पवज़न, अल्पवज़न की श्रेणियों में 54% की दर के साथ अत्यंत बुरी स्थिति है। अफगानिस्तान और बांग्लादेश में यह क्रमशः 49% और 46% है। दक्षिण एशिया में आनुपातिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करने वाले देश क्रमशः श्रीलंका (28%) और मालदीव (32%) हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, 6 महीने से 2 वर्ष की आयु वर्ग के 3 बच्चों में से 2 बच्चों को ऐसा खाना नहीं मिल पाता है जिससे उनका शरीर तथा मस्तिष्क अच्छी तरह से विकसित हो सके। इस कारण उनके अंदर प्रतिरोधक क्षमता की कमी, मस्तिष्क का कम विकास तथा उनमें संक्रमण के खतरे बढ़ जाते हैं और कई मामलों में मृत्यु भी हो जाती है।
  • यूनिसेफ के अनुसार, भारत में गरीबी, शहरीकरण के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन खराब आहार के लिये ज़िम्मेदार है।
  • केवल 61% भारतीय बच्चे, किशोर और माताएँ सप्ताह में कम से कम एक दिन दुग्ध उत्पादों का सेवन कर पाते हैं। उनमें से केवल 40% सप्ताह में एक दिन फलों का सेवन कर पाते हैं।
  • भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 5 बच्चों में से एक बच्चा विटामिन A की कमी से ग्रस्त है जो कि भारत के लगभग 20 राज्यों में गंभीर समस्या के रूप में विद्यमान है।
  • भारत में प्रत्येक दूसरी महिला एनीमिया से पीड़ित है तथा प्रत्येक 10 में से एक बच्चा प्री-डायबिटिक (Pre-Diabetic) है।
  • भारतीय बच्चे, वयस्कों को होने वाली बीमारियों जैसे- उच्च रक्तचाप, क्रोनिक (Chronic) किडनी तथा मधुमेह से ग्रस्त हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वैश्वीकरण तथा शहरीकरण के कारण भारत में मौसमी खाद्य पदार्थों और पारंपरिक खाद्य पदार्थों के स्थान पर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को बढ़ावा मिला है जिसके कारण विकसित देशों में ही नहीं बल्कि विकासशील देशों में भी बढ़ता हुआ मोटापा नियंत्रण से बाहर हो गया है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष- यूनिसेफ

(United Nations Childrens Fund)

  • यूनिसेफ की स्थापना 11 दिसंबर, 1946 को द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप और चीन में बच्चों तथा महिलाओं की आपातकालीन ज़रुरतों को पूरा करने के लिये की गई थी।
  • वर्ष 1950 में यूनिसेफ की कार्य सीमाओं को विकासशील देशों के बच्चों तथा महिलाओं की दीर्घकालिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विस्तारित कर दिया गया।
  • वर्ष 1953 में यह संयुक्त राष्ट्र का स्थायी अंग बन गया ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट-2019 और भारत

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, तपेदिक, मॉस्को घोषणा

मेन्स के लिये:

वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट- 2019 (Global Tuberculosis Report- 2019) जारी की है।

मुख्य बिंदु:

  • वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट-2019 के आँकड़े 202 देशों और क्षेत्रों से लिये गए हैं जो विश्व की लगभग 99% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • यह रिपोर्ट सतत् विकास लक्ष्य क्रमांक- 3 के लक्ष्यों को प्रभावी बनाने की दिशा में प्रगति प्रस्तुत करती है। सतत् विकास लक्ष्य क्रमांक-3 के अनुसार, सभी आयु के लोगों को स्वस्थ जीवन प्रदान करना तथा वर्ष 2030 तक तपेदिक का उन्मूलन करना है।
  • यह रिपोर्ट वर्ष 2018 में तपेदिक पर पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च-स्तरीय बैठक में निर्धारित लक्ष्यों की दिशा में प्रगति प्रस्तुत करती है।

भारत की स्थिति:

  • वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट-2019 के अनुसार, भारत में पिछले वर्ष तपेदिक के रोगियों की संख्या में 50000 की कमी आई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में तपेदिक रोगियों की संख्या 27.4 लाख थी जो वर्ष 2018 में घटकर 26.9 लाख हो गई।
  • वर्ष 2017 में प्रति एक लाख लोगों पर तपेदिक के रोगियों की संख्या 204 थी जो कि वर्ष 2018 में घटकर 199 हो गई।
  • एक परीक्षण के अनुसार रिफम्पिसिन (Rifampicin) प्रतिरोधक रोगियों की संख्या वर्ष 2017 के 32% से बढ़कर वर्ष 2018 में 46% हो गई।
  • वर्ष 2017 में तपेदिक के नए और पुनः तपेदिक (ड्रग सेंसिटिव) ग्रस्त रोगियों के इलाज की सफलता दर 81% हो गई जो कि 2016 में 69% थी।
  • भारत में वर्ष 2018 में तपेदिक के लगभग 2.69 मिलियन मामले सामने आए परंतु उनमें से 2.15 मिलियन मामलों की सूचना भारत सरकार के पास मौज़ूद थी तथा लगभग 5,40,000 रोगियों की पहचान नहीं हो पाई ।

तपेदिक उन्मूलन की दिशा में भारत के प्रयास:

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ‘इंडिया टी. बी. रिपोर्ट’ के अनुसार भारत ऑनलाइन अधिसूचना प्रणाली ‘निक्षय’ (NIKSHAY) के माध्यम से सभी तपेदिक मामलों को कवर करने के निकट है।
  • इंडिया टी.बी.रिपोर्ट में कहा गया है कि तपेदिक के सभी रोगियों को नि:शुल्क उपचार सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान कर उन्हें अत्याधुनिक नैदानिक ​​परीक्षण की सुविधा एवं गुणवत्तापूर्ण दवाएँ उपलब्ध कराई गईं हैं।
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निक्षय पोषण योजना के अंतर्गत तपेदिक से प्रभावित रोगियों को प्रत्यक्ष हस्तांतरण योजना के अंतर्गत पोषक आहार के लिये आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है।
  • MDR (Multi Drug Resistance) तपेदिक के मामलों में ओरल ड्रग्स (Oral Drugs) को बेडाक्युलिन (Bedaquiline) जैसी दवाओं से बदला जा रहा है।

On the decline

वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्ष 1997 से प्रत्येक वर्ष विश्व तपेदिक रिपोर्ट जारी करता है।
  • इसका उद्देश्य तपेदिक के निदान के लिये वैश्विक, क्षेत्रीय तथा देशों के स्तर पर व्यक्त की गईं प्रतिबद्धताओं और रणनीतियों के संदर्भ में व्यापक एवं अद्यतन मूल्यांकन करना है।

मास्को घोषणा घोषणा:

  • तपेदिक के उन्मूलन के लिये नवंबर 2017 में मास्को में विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के सम्मिलित प्रयासों से पहली बार मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित हुई।
  • मास्को घोषणा में वर्ष 2030 तक तपेदिक उन्मूलन का वैश्विक लक्ष्य रखा गया है।

निष्कर्ष :

सतत् विकास लक्ष्य क्रमांक-3 की प्राप्ति हेतु अर्थात् सभी व्यक्तियों की स्वास्थ्य सेवाओं तक सुलभ पहुँच स्थापित करने और तपेदिक जैसे संक्रामक रोग के उन्मूलन के लिये सभी राष्ट्रों को प्रयास करना चाहिये।

स्रोत-द हिन्दू


भारत नवाचार सूचकांक 2019

प्रीलिम्स के लिये:

भारत नवाचार सूचकांक 2019 से संबंधित तथ्य और मानक

मेन्स के लिये:

भारत में नवाचार का महत्त्व, संबंधित समस्याएँ, सरकार के प्रयास, नवाचार के लाभ

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग (Niti Aayog) द्वारा भारत नवाचार सूचकांक 2019 (India Innovation Index 2019) जारी किया गया।

भारत नवाचार सूचकांक:

  • नी‍ति आयोग ने यह सूचकांक प्रतिस्‍पर्द्धी क्षमता के लिये संस्‍थान (Institute for Competitiveness) के साथ मिलकर तैयार किया है।
  • सूचकांक में राज्यों को तीन श्रेणियों- प्रमुख राज्य (Major States), उत्तर-पूर्व एवं पहाड़ी राज्य (North-East and Hill States) और केंद्रशासित प्रदेश/शहर राज्य/छोटे राज्य (Union Territories/City States/Small States) में विभाजित किया गया है।
  • यह सूचकांक भारत में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नवाचार हेतु वातावरण के निरंतर मूल्यांकन के लिये एक व्यापक रूपरेखा तैयार करता है।

निष्कर्ष:

  • भारत नवाचार सूचकांक 2019 में कर्नाटक शीर्ष स्थान पर रहा।
  • नवाचार सूचकांक में कर्नाटक के बाद शीर्ष 09 राज्‍य क्रमशः तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, केरल, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और आंध्र प्रदेश रहे।
  • सूचकांक के अनुसार दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश कच्‍चे माल को उत्‍पादों (Inputs Into Output) में बदलने के मामले में सर्वाधिक दक्ष राज्‍य हैं।
  • भारत नवाचार सूचकांक 2019 के औसत स्कोर की गणना दो आयामों- सक्षम (Enablers) और प्रदर्शन (Performance) के आधार पर की गई।
  • सक्षम वे कारक हैं जो अभिनव क्षमताओं को रेखांकित करते हैं। इनको पाँच स्तंभों में वर्गीकृत किया गया है-
  1. मानव पूंजी
  2. निवेश
  3. ज्ञान कार्यकर्त्ता (Knowledge Workers)
  4. व्यावसायिक वातावरण
  5. सुरक्षा और कानूनी वातावरण।
  • प्रदर्शन आयाम उन लाभों को अधिकृत करता है जिनको एक देश इनपुट से प्राप्त करता है। इसको दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
  1. ज्ञान उत्पादन (Knowledge Output)
  2. ज्ञान प्रसार (Knowledge Diffusion)
  • प्रमुख राज्यों की श्रेणी में कर्नाटक समग्र रैंकिंग में अग्रणी है। इसने अवसंरचना, ज्ञान कार्यकर्त्ता, ज्ञान उत्पादन और व्यावसायिक वातावरण के मानक पर भी शीर्ष स्थान प्राप्त किया।
  • महाराष्ट्र ने सक्षम श्रेणी में शीर्ष स्थान प्राप्त किया। इसका तात्पर्य यह है कि यह नवाचार के लिये सबसे उपर्युक्त है। महाराष्ट्र समग्र नवाचार सूचकांक में तीसरे स्थान पर रहा।

कार्य (FUNCTION):

  • इसके निम्नलिखित तीन कार्य हैं-
  1. सूचकांक स्कोर के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग करना।
  2. अवसरों और चुनौतियों की पहचान करना।
  3. नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकारी नीतियों को मज़बूत करने में सहायता करना।

उद्देश्य:

  • भारत नवाचार सूचकांक का उद्देश्य भारत में नवाचार हेतु अनुकूल वातावरण तैयार करना है।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद और सुशासन की अवधारणा को क्रियान्वित करना।
  • सूचकांक देश में नवाचार के वातावरण में सुधार करने हेतु इनपुट और आउटपुट दोनों घटकों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारत नवाचार सूचकांक भारत में नवाचार हेतु वातावरण की जांँच करता है। इसका उद्देश्य एक समग्र उपकरण (Tool) बनाना है जिसका उपयोग देश भर में नीति निर्माताओं द्वारा किया जा सके।

आगे की राह:

  • भारत को शिक्षा, अनुसंधान और विकास पर व्यय बढ़ाना चाहिये जिससे नीतियों के लिये बेहतर वातावरण एवं अवसंरचना का विकास किया जा सके।
  • नवाचार क्षमता बढ़ाने हेतु उद्योगों और शैक्षिक संस्थानों के बीच अधिक समन्वय एवं सहयोग की आवश्यकता है।
  • नवाचार के सभी हितधारक जैसे-शोधकर्त्ताओं और निवेशकों को शामिल करते हुए एक समग्र मंच विकसित किया जाना चाहिये।
  • राज्य स्तर पर भी नवाचार और उद्यमशीलता के वातावरण में सुधार से संबंधित नीतियों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिये।

स्रोत:PIB


एक्सोप्लेनेट और डार्क मेटर

प्रीलिम्स के लिये:

नोबेल पुरस्कार, एक्सोप्लेनेट, डार्क मेटर,डार्क एनर्जी, CMB, बिग बैंग थ्योरी

मैन्स के लिये:

ब्रह्मांड के विस्तार की प्रक्रिया, बिग बैंग थ्योरी, इस प्रकार की खोज का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रॉयल स्वीडिश अकादमी ऑफ साइंस (Royal Swedish Academy of Science) द्वारा वर्ष 2019 के भौतिकी (Physics) के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई।

  • इस वर्ष भौतिकी का नोबेल पुरस्कार न्यू प्रेस्पेक्टिव ऑफ़ अवर प्लेस इन द यूनिवर्स (New Prespective of our place in the Universe) हेतु प्रदान किया गया।

विजेता:

  • इस वर्ष माइकल मेयर, डीडीयर क्युलेज़ व जेम्स पीबल्स को संयुक्त रूप से इस पुरस्कार के लिये चुना गया है। माइकल मेयर व डीडीयर क्युलेज़ जो कि जिनेवा विश्वविद्यालय से संबद्ध है को सौर मंडल के बाहर एक ऐसे ग्रह की खोज के लिये चुना गया है जो कि सूर्य जैसे तारे की परिक्रमा करता है।
  • वही जेम्स पीबल्स जो कि प्रिंसटन विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं, को भौतिक ब्रह्मांड विज्ञान में उनके योगदान के लिये इस पुरस्कार हेतु चुना गया।

एक्सोप्लेनेट क्या है:

  • सौर मंडल से बाहर पाए जाने वाले ग्रह एक्सोप्लेनेट (Exoplanet) कहलाते हैं, ये सौरमंडल में मुख्य ग्रहों के अतिरिक्त उपस्थित ग्रह हैं।
  • मेयर एवं क्युलेज़ द्वारा खोजा गया प्रथम एक्सोप्लानेट 51 पेगासी (Pegasi) b था जिसे वर्ष 1995 में खोजा गया था।

51 पेगासी बी (Pegasi b) किस प्रकार का ग्रह है? क्या यह मनुष्यों के रहने योग्य है?

  • पेगासस तारामंडल (Pegasus Constellation) में एक तारा 51 पेगासी है जो पृथ्वी से लगभग 50 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है।
  • यह एक गैसीय ग्रह है, जो बृहस्पति के लगभग आधे आकार का है, इसी कारण इसे डिमिडियम नाम दिया गया था, जिसका अर्थ एक-आधा होता है।
  • यह केवल चार दिनों में अपने तारे की परिक्रमा पूरी कर लेता है। यह संभावना काफी कम है कि यह मनुष्यों के रहने योग्य हो।

एक्सोप्लेनेट संबंधी इतिहास:

  • निकोलस कोपरनिकस (वर्ष 1473–1543) ऐसे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने यह बताया कि सूर्य सौरमंडल के केंद्र में अवस्थित है, साथ ही कहा कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। इस खोज ने एक नई सोच को जन्म दिया जिसने सारे पुराने नियमों को परिवर्तित कर दिया।
  • उपरोक्त तथ्यों को आधार बनाकर इटेलियन दर्शनशास्त्री गियोरदानो ब्रूनो (Giordano Bruno) ने सोलहवीं सदी में, वहीं बाद में सर आईज़ेक न्यूटन (Sir Isaac Newton) ने भी सूर्य की विशिष्ट स्थिति को स्पष्ट किया, साथ ही बताया कि पृथ्वी के साथ-साथ अन्य कई ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

पीबल्स को पुरस्कार दिये जाने का कारण:

  • बिग बैंग से पहले ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझना मुश्किल था पर यह माना जाता था कि यह सघन, अपारदर्शी एवं गर्म था।
  • बिग बैंग के लगभग 400,000 वर्ष बाद ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और यह माना गया कि इसके तापमान में कुछ हज़ार डिग्री सेल्सियस की गिरावट आई। साथ ही ब्रह्माण्ड में पारदर्शिता बढ़ी एवं प्रकाश को गुजरने की अनुमति मिली। बिग बैंग के बचे हुए कणों को कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) कहा गया।
  • ब्रह्मांड का यह विस्तार व ठंडा होना जारी रहा एवं इसका वर्तमान तापमान 2 केल्विन (kelvin) के करीब है अर्थात् लगभग माइनस 271 डिग्री सेल्सियस के करीब है।
  • पीबल्स द्वारा बताया गया कि CMB के ताप को मापने से यह पता लगाया जा सकता है कि बिग-बैंग में कितनी मात्र में पदार्थ/कण/पिंड का निर्माण हुआ। जैसा कि हम जानते हैं कि CMB में माइक्रोवेव रेंज में प्रकाश निहित होता है और ब्रह्मांड के विस्तार के साथ यह प्रकाश विस्तारित होता गया।
  • माइक्रोवेव विकिरण अदृश्य प्रकाश होता है। यह प्रकाश इस तथ्य की खोज में एक अहम् भूमिका निभा सकता है कि किस प्रकार बिग बैंग में उत्पन्न हुए पदार्थों ने वर्तमान समय में उपस्थित गैलेक्सी का सृजन किया। उनकी इस खोज से इन सवालों का जवाब आसानी से खोजा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड में कितनी मात्रा व ऊर्जा है, साथ ही यह भी की यह कितना पुराना है?

बिग बैंग थ्योरी

(Big Bang Theory)

  • यह बताता है कि ब्रह्मांड बहुत उच्च घनत्व और उच्च तापमान वाली स्थिति से कैसे विस्तारित हुआ और प्रकाश तत्वों की प्रचुरता, ब्रह्मांडीय माइक्रोवेव पृष्ठभूमि (CMB), बड़े पैमाने पर संरचना सहित घटनाओं की एक विस्तृत शृंखला के लिये एक व्यापक विवरण प्रदान करता है।
  • CMB (Cosmic Microwave Background) के बारे में पहली बार 1964 में पता चला था, इस खोज को वर्ष 1978 में नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।

डार्क मेटर (Dark Matter):

  • डार्क मेटर वह तत्त्व है जो कि ब्रह्मांड का लगभग 85% हिस्सा है, इसके कुल ऊर्जा घनत्व का लगभग ¼ है। यह उन कणों से बना होता है जो कि प्रकाश को प्रतिबिंबित नहीं करते है, साथ ही विद्युत चुम्बकीय विकिरण से इसे पता कर पाना मुश्किल होता है, वहीं दूसरी तरफ इन्हें देखा जाना भी संभव नहीं होता है।

डार्क मेटर को समझने में पीबल्स की क्या भूमिका रही?

  • आकाशगंगाओं की घूर्णन की गति से खगोलविदों ने यह अंदाज़ा लगाया कि ब्रम्हांड में अधिक मात्रा में द्रव्यमान होना चाहिये था जो कि आकाशगंगाओ को गुरुत्वाकर्षण शक्ति के साथ नियंत्रित करता हो। हालाँकि द्रव्यमान के एक हिस्से को देखा जा सकता था तथापि एक बड़ा हिस्सा अदृश्य था, इसी गायब तत्त्व को डार्क मेटर कहा गया।
  • पीबल्स के हस्तक्षेप से पहले लापता द्रव्यमान को न्युट्रीनो के रूप में संदर्भित किया जाता रहा। बाद में इन्होंने यह भी बताया कि डार्क मेटर के इसे केवल गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से महसूस कर सकते हैं बजाय प्रभाव क्रिया के माध्यम से। ज्ञात हो कि ब्रह्मांड के द्रव्यमान का लगभग 25% हिस्सा डार्क मेटर से बना है।

डार्क एनर्जी (dark energy):

  • यह ऊर्जा का एक काल्पनिक रूप है जो कि गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कार्य करता है एवं प्रतिकारक दबाव को बाहर निकालता है, इसे सुपरनोवा के गुणों के अवलोकन के लिये परिकल्पित किया गया है।

स्रोत: द हिन्दू


‘वन नेशन वन फास्टैग’ स्कीम

प्रीलिम्स के लिये:

वन नेशन वन फास्टैग (One Nation One FASTags) स्कीम

मेन्स के लिये:

परिवहन के क्षेत्र में सरकार के प्रयास तथा नीतियाँ

चर्चा में क्यों?

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 'वन नेशन वन फास्टैग' (One Nation One FASTags) स्कीम की शुरुआत की। यह स्कीम 1 दिसंबर, 2019 से संपूर्ण देश में लागू होगी।

प्रमुख बिंदु:

  • इस योजना का उद्देश्य टोल के संग्रह को डिजिटल रूप से एकीकृत करना तथा संपूर्ण भारत में वाहनों की निर्बाध गतिशीलता को सुनिश्चित करना है।
  • संपूर्ण देश में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (Radio Frequency Identification- RFID) टैग वाली नई कारों में इस तकनीक के माध्यम से लाभ उठाया जा सकता है।
  • इसके माध्यम से टोल प्लाज़ा पर यातायात का मुक्त प्रवाह सुनिश्चित होगा और समय व ईंधन की बचत होगी।

फास्टैग (FASTag) क्या है?

  • FASTags वे स्टीकर हैं जो वाहनों के विंडस्क्रीन पर चिपकाए जाते हैं।
  • इसमें RFID लगा होता है जिससे टोल गेटों पर बिना रुके डिजिटल रूप से भुगतान किया जा सकता है।
  • ये टैग बैंक खातों और अन्य भुगतान विधियों से जुड़े होते हैं।

यह किस प्रकार काम करता है?

  • जैसे ही एक कार एक टोल प्लाज़ा को पार करती है, वैसे ही सेंसर स्क्रीन पर लगा हुआ FASTag इसकी पहचान (Sense) कर लेता है तथा राशि स्वचालित रूप से काट ली जाती है एवं इससे संबंधित सूचना पंजीकृत मोबाइल फोन नंबर पर भेज दी जाती है।
  • FASTag को रिचार्ज करने के लिये क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, आरटीजीएस और नेट बैंकिंग का प्रयोग किया जा सकता है।
  • एक FASTag पाँच साल के लिये वैध होता है तथा इसे आवश्यकतानुसार रिचार्ज कराना होगा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (18 October)

1. जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद का समापन

  • इस महीने के अंत में जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य को विभाजित कर दो केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने से राज्‍य की 62 वर्ष पुरानी विधान परिषद का 17 अक्तूबर को समापन हो गया।
  • राज्‍य प्रशासन ने परिषद को भंग करने और इसके 116 कर्मचारियों को सामान्‍य प्रशासन विभाग में रिपोर्ट करने के आदेश जारी किये हैं।
  • यह आदेश 31 अक्‍तूबर की आधी रात को राज्‍य को लद्दाख और जम्‍मू-कश्‍मीर नाम के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किये जाने के करीब दो सप्‍ताह पहले आया है।
  • विदित हो कि केंद्रसरकार ने 5 अगस्‍त को संविधान के अनुच्‍छेद 370 के उन प्रावधानों को निरस्‍त कर दिया था जिनके तहत जम्‍मू-कश्‍मीर को विशेष राज्‍य का दर्जा मिला हुआ था।
  • 36 सदस्‍यों वाली जम्‍मू-कश्‍मीर विधान परिषद की स्‍थापना वर्ष 1957 में भारतीय संसद द्वारा अधिनियम पारित किये जाने के बाद की गई थी।
  • यह परिषद 87 सदस्‍यों वाली विधानसभा के ऊपरी सदन के तौर पर कार्य करती थी।
  • अब परिषद सचिवालय से संबंधित तमाम दस्‍तावेज़ वि‍धि, न्याय और संसदीय कार्य मंत्रालय को हस्‍तांतरित कर दिये जाएंगे।
  • जम्‍मू-कश्‍मीर प्रशासन ने लद्दाख से जुड़े सभी विभाग लेह स्‍थानांतरित कर दिया है।

2. निजी शिक्षण संस्‍थानों की शिक्षिकाओं को भी मिलेगा मातृत्‍व अवकाश

  • केरल में अब मातृत्‍व अवकाश का लाभ निजी शिक्षण संस्‍थानों की शिक्षिकाओं और अन्‍य कर्मचारियों को भी दिया जाएगा।
  • केंद्र सरकार ने राज्य के निजी शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के लिये इस अधिनियम के लाभों को विस्तारित करने के लिये अधिसूचना जारी करने के आग्रह को मंजूरी दे दी है।
  • केरल राज्य मंत्रिमंडल ने 29 अगस्त की बैठक में निजी शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों को यह लाभ देने की अधिसूचना जारी करने के लिये केंद्र सरकार की अनुमति लेने का फैसला किया था।
  • इसके लिये मातृत्‍व लाभ कानून में संशोधन के बाद यह सुविधा प्रदान करने वाला केरल देश का पहला राज्‍य हो जाएगा ।
  • इसके तहत महिला कर्मचारियों को पूर्ण वेतन के साथ 26 सप्ताह का मातृत्‍व अवकाश मिलेगा। इसके अतिरिक्‍त नियोक्‍ता को चिकित्‍सा भत्‍ते के रूप में एक हजार रुपए भी देने होंगे।
  • इसके अलावा केरल सरकार अनुदानिक शैक्षणिक संस्थानों के कर्मचारियों के लिये न्यूनतम वेतनमान निर्धारित करने की दिशा में भी कदम उठा रही है।
  • केरल सरकार श्रमिकों के मौजूदा निर्धारित वेतन भत्ते को प्रतिदिन 150 रुपए से बढ़ाकर 600 रुपए करने की भी मांग कर रही है।

मातृत्‍व लाभ कानून, 1961

  • फिलहाल मातृत्‍व लाभ कानून, 1961 प्रसव के पहले और बाद में कुछ अवधि के लिये कुछ प्रतिष्‍ठानों में महिलाओं की नियुक्ति को विनियमित करता है और मातृत्‍व एवं अन्‍य लाभों की व्‍यवस्‍था करता है।
  • ऐसे लाभों का उद्देश्‍य महिलाओं और उनके बच्‍चों का जब वह कार्यरत नहीं रहती हैं, पूर्ण रूप से स्‍वास्‍थ्‍य रखरखाव की व्‍यवस्‍था करने के द्वारा मातृत्‍व की प्रतिष्‍ठा की रक्षा करता है।

मातृत्‍व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016

  • इसके लिये मातृत्‍व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 लाया गया, जिसमें इन सभी खामियों को दूर किया गया है।
  • संसद द्वारा पारित हो चुका यह कानून सभी महिलाओं के लिये 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का प्रावधान करता है।
  • संशोधित कानून में 50 या 50 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक प्रतिष्ठान से अपेक्षा की गई है कि वह एक निर्धारित दूरी के अंदर क्रेश की सुविधाएँ प्रदान करेगा। महिला कर्मचारियों को क्रेश में चार बार जाने की अनुमति दी जाएगी।
  • अगर किसी महिला को सौंपे गए काम की प्रकृति ऐसी है कि वह घर से भी किया जा सकता है, तो नियोक्ता उसे घर से काम करने की अनुमति दे सकता है। यह नियोक्ता और महिला कर्मचारी द्वारा परस्पर सहमति से तय किया जा सकता है।
  • इस कानून के दायरे में 10 या 10 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठान और अन्य अधिसूचित प्रतिष्ठान आते हैं।