डेली न्यूज़ (17 Oct, 2025)



भारत-ऑस्ट्रेलिया स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ एक महत्त्वपूर्ण सहयोग कर रहा है, जब दोनों देश वैश्विक आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों के बीच महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये चीन पर निर्भरता कम करते हुए अपने महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया-भारत स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी को विस्तार देने की आवश्यकता क्यों है?

  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन: इंडो-पैसिफिक को गंभीर जलवायु जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है, प्रति माह औसतन 10 जलवायु आपदाएँ (1970–2022) आती हैं, जिससे वर्ष 2050 तक 89 मिलियन लोग बेघर हो जाएंगे और 80% आबादी प्रभावित होगी।
  • चीन पर अत्यधिक निर्भरता: चीन महत्त्वपूर्ण खनिजों में प्रभुत्व रखता है — वह 90% से अधिक रेयर अर्थ एलिमेंट्स का परिष्करण (Refining) करता है और विश्व के 80% सौर मॉड्यूल का उत्पादन करता है।
    • भारत वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और पवन ऊर्जा के लिये आवश्यक रेयर अर्थ मैग्नेट तथा बैटरी सामग्रियों के आयात पर निर्भर है, जबकि ऑस्ट्रेलिया लिथियम, कोबाल्ट एवं दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का उत्पादन करता है, परंतु उसके पास परिष्करण और डाउनस्ट्रीम विनिर्माण क्षमता की कमी है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP): वर्ष 2024 में लॉन्च की गई REP आठ क्षेत्रों सौर पीवी तकनीक, ग्रीन हाइड्रोजन, ऊर्जा भंडारण, सौर आपूर्ति शृंखलाएँ, नवीकरणीय ऊर्जा में परिपत्र अर्थव्यवस्था, द्विपक्षीय निवेश, क्षमता निर्माण और अन्य साझा प्राथमिकताओं में सहयोग का खाका प्रस्तुत करती है।
    • यह ट्रैक 1.5 संवाद भी शुरू करता है, जो नीतिनिर्माताओं, उद्योग और शोध संस्थानों को व्यावहारिक सहयोग के लिये जोड़ता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखला: ऑस्ट्रेलिया महत्त्वपूर्ण खनिज और नियामक स्थिरता प्रदान करता है ताकि परिष्करण एवं प्रसंस्करण में सह-निवेश किया जा सके, जबकि भारत पैमाना, कुशल कार्यबल व सौर ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण एवं हाइड्रोजन के लिये बाज़ार की मांग प्रदान करता है, जिसे स्किल इंडिया तथा उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का समर्थन प्राप्त है।
    • साथ मिलकर, ये दोनों क्षेत्रीय रूप से मज़बूत और अनुकूल स्वच्छ ऊर्जा इकोसिस्टम तैयार कर सकते हैं।
  • साझा जलवायु महत्त्वाकांक्षाएँ: भारत वर्षं 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखता है, जिसमें से 280 GW सौर ऊर्जा से प्राप्त होगी, जबकि ऑस्ट्रेलिया वर्ष 2035 तक 62–70% उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य रखता है, जो उसके नेट-ज़ीरो लक्ष्यों के अनुरूप है।

स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिये भारत की रणनीतिक वैश्विक साझेदारियाँ क्या हैं?

  • भारत–EU स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी (CECP): वर्ष 2016 में स्थापित, यह साझेदारी ऑफशोर पवन, सौर पार्क, स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा भंडारण, बायोफ्यूल, हरित हाइड्रोजन और भवनों में ऊर्जा दक्षता के संयुक्त प्रोजेक्ट्स का समर्थन करती है।
  • US-भारत रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (SCEP): यह साझेदारी स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखला, अनुसंधान एवं विकास, सौर एवं पवन ऊर्जा, बैटरियाँ, ऊर्जा ग्रिड सिस्टम और स्वच्छ तकनीक निर्माण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • ग्रीन फ्यूल्स एलायंस इंडिया (GFAI) डेनमार्क के साथ: डेनमार्क ने GFAI की स्थापना की ताकि सतत् ऊर्जा समाधानों पर सहयोग को मज़बूत किया जा सके और कार्बन न्यूट्रैलिटी के साझा लक्ष्य को आगे बढ़ाया जा सके, विशेष रूप से ग्रीन हाइड्रोजन जैसे ग्रीन फ्यूल्स पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस: इसे वर्ष 2023 में नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन में भारत और USA, ब्राज़ील, इटली, अर्जेंटीना, सिंगापुर, बांग्लादेश, मॉरीशस और UAE के अभिकर्त्ताओं द्वारा लॉन्च किया गया ताकि सतत् बायोफ्यूल्स को बढ़ावा दिया जा सके।

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा

  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: मार्च 2025 तक, कुल नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता 220.10 GW तक पहुँच गई है, जो पिछले वर्ष के 198.75 GW से बढ़ी है।
  • क्षेत्रीय विवरण:
    • सौर ऊर्जा: कुल स्थापित सौर क्षमता अब 105.65 GW है, जिसमें वित्तीय वर्ष 2024–25 में 23.83 GW नई क्षमता जोड़ी गई, जिससे सौर ऊर्जा इस वर्ष की क्षमता विस्तार में सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता बनी।
    • पवन ऊर्जा: कुल संचयी स्थापित पवन क्षमता अब 50.04 GW है, जिसमें वर्ष 2024–25 में 4.15 GW नई क्षमता जोड़ी गई।
    • जैव ऊर्जा: जैव ऊर्जा प्रतिष्ठानों की कुल क्षमता 11.58 GW तक पहुँच गई है, जिसमें ऑफ-ग्रिड और वेस्ट-टू-एनर्जी प्रोजेक्ट्स से 0.53 GW शामिल है।
    • लघु जल विद्युत: लघु जल विद्युत परियोजनाओं की क्षमता 5.10 GW तक पहुँच गई है और अतिरिक्त 0.44 GW परियोजनाओं के तहत निर्माणाधीन है।
  • भारत की पंचमित्र योजना:

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी के महत्त्व पर चर्चा कीजिये, जो जलवायु परिवर्तन और आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों को संबोधित करने में सहायक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) क्या है?
REP एक द्विपक्षीय पहल है, जिसे वर्ष 2024 में लॉन्च किया गया था। यह सौर PV, ग्रीन हाइड्रोजन, ऊर्जा भंडारण और क्षमता निर्माण पर केंद्रित है ताकि स्वच्छ ऊर्जा सहयोग को मज़बूत किया जा सके।

2. भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की स्थिति क्या है?
कुल क्षमता 220.10 GW तक पहुँच गई है, जिसमें सौर ऊर्जा 105.65 GW, पवन ऊर्जा 50.04 GW, जैव ऊर्जा 11.58 GW और लघु जल विद्युत 5.10 GW है।

3. चीन पर अत्यधिक निर्भरता भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिये क्यों चुनौती है?
चीन 90% से अधिक रेयर अर्थ एलिमेंट्स का परिष्करण करता है तथा विश्व के 80% सौर मॉड्यूल का उत्पादन करता है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन, पवन और सौर ऊर्जा क्षेत्रों में दोनों देशों के लिये जोखिम उत्पन्न होता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रीलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016)
(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर में विद्युत पहुँचाना।
(c) कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समय के साथ प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d) विद्युत वितरण कंपनियों के बदलाव और पुनरुद्धार के लिये वित्त प्रदान करना।

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न. "वहनीय (अफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस० डी० जी०) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)

प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर लेख लिखिये। (2013)


सुंदरबन के SAIME मॉडल को FAO द्वारा वैश्विक मान्यता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में नेचर एनवायरनमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसाइटी (NEWS) द्वारा विकसित सस्टेनेबल एक्वाकल्चर इन मैंग्रोव इकोसिस्टम्स (SAIME) मॉडल को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा वैश्विक तकनीकी मान्यता प्रदान की गई है।

SAIME मॉडल क्या है?

  • परिचय: यह पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में एक समुदाय-आधारित पहल है, जिसका उद्देश्य मैंग्रोव संरक्षण और जलीय कृषि आधारित आजीविका के बीच संतुलन स्थापित करना है।
    • इस मॉडल के अंतर्गत 5-30% जलीय कृषि तालाब क्षेत्रों को मैंग्रोव आवरण के तहत रखा जाता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करते हुए मछली और झींगा पालन का समर्थन करता है।
    • किसान मैंग्रोव लिटर को ब्लैक टाइगर श्रिम्प (Penaeus monodon) के लिये प्राकृतिक चारे  के रूप में उपयोग करते हैं, जो इस क्षेत्र में पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली उच्च-मूल्य वाली प्रजाति है, जिससे रासायनिक इनपुट पर निर्भरता कम होती है।
    • यह दृष्टिकोण जलवायु-अनुकूल जलीय कृषि को बढ़ावा देता है, जिससे किसान लाभ बढ़ा सकते हैं और समुद्री स्तर में वृद्धि एवं तटीय कटाव के खिलाफ तटीय अनुकूलन मज़बूत कर सकते हैं।
  • प्रभाव: SAIME मॉडल ने उत्पादन लागत को कम करके किसानों के वार्षिक निवल लाभ को दोगुना कर दिया है।
    • SAIME दृष्टिकोण जलवायु-अनुकूल है, जो डेल्टा वाले सुंदरबन में समुद्री स्तर में वृद्धि और लवणीय खतरे को संबोधित करता है।
    • तालाबों में शामिल मैंग्रोव प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे कार्बन संचयन में सहायता मिलती है और स्थानीय जलवायु प्रभावों को कम किया जा सकता है।
    • आर्थिक आवश्यकताओं और पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी के बीच संतुलन बनाकर, यह तटीय आजीविका अनुकूलन के लिये स्केलेबल समाधान प्रस्तुत करता है।
    • यह मॉडल सीधे FAO के सतत् खाद्य प्रणाली और पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन ढाँचे के तहत वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में योगदान देता है।

सुंदरबन

  • भौगोलिक वितरण: सुंदरबन विश्व के सबसे बड़े मैंग्रोव वन का क्षेत्र है, जो गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा में बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है।
    • यह एक विशिष्ट मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र है जो भूमि और समुद्र के बीच स्थित है, जिसमें द्वीपों का एक मोज़ेक शामिल है जो लगातार ज्वारीय जल द्वारा आकारित होते हैं। यह उष्णकटिबंधीय एवं उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भारत और बांग्लादेश में फैला हुआ है।
  • बायोलॉजिकल लैंडस्केप:
    • वनस्पति: इसमें हेरिटिएरा फोमेस (सुंदरी), एक्सोकेरिया एगैलोचा (गेवा), सेरियोप्स डेकांड्रा (गोरान) और सोनेराटिया एपेटाला (केओरा) अधिक हैं।
      • लवणता का बढ़ता स्तर लंबे वृक्षों को छोटी प्रजातियों से प्रतिस्थापित कर रहा है, जिससे वनों की बनावट में बदलाव हो रहा है।
    • जीव-जंतु: बंगाल टाइगर, गंगेटिक और इर्रवाडी डॉल्फ़िन, एस्टुएरीन मगरमच्छ, और ऑलिव रिडली कछुए पाए जाते हैं।        
    • पारिस्थितिकीय भूमिका: यह मछली, केकड़े और झींगे के लिये एक नर्सरी क्षेत्र के रूप में कार्य करता है; मैंग्रोव तटीय क्षेत्रों को तूफानों से बचाते हैं तथा कार्बन संग्रहीत करते हैं
  • सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य:
    • आजीविका: इस डेल्टाई पारिस्थितिकी तंत्र में 12 मिलियन से अधिक लोग (भारत में 4.5 मिलियन और बांग्लादेश में 7.5 मिलियन) निवास करते हैं।
    • सांस्कृतिक समरसता: पारंपरिक विश्वास, लोककथाएँ और रीति-रिवाज प्रकृति के प्रति सम्मान को उजागर करते हैं, उदाहरण के लिये बॉनबीबी पूजा मानव एवं वन्यजीवन के बीच सह-अस्तित्व का प्रतीक है।
  • संरक्षण:
    • सुंदरबन को भारत में वर्ष 1987 और बांग्लादेश में वर्ष 1997 में UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया।
    • सुंदरबन वेटलैंड (भारत) को वर्ष 2019 में रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व वाला वेटलैंड घोषित किया गया।
    • भारत–बांग्लादेश समझौता ज्ञापन (MoU, 2011) पर हस्ताक्षर किये गए ताकि सुंदरबन के साझा पारिस्थितिकी तंत्र का संयुक्त संरक्षण और निगरानी सुनिश्चित की जा सके।
    • सुंदरबन बायोस्फियर रिज़र्व (BR) में कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं, जैसे:
      • सुंदरबन नेशनल पार्क (भारत)
      • बांग्लादेश में सुंदरबन वन्यजीव अभयारण्य, जो एक बड़े मैंग्रोव वन का हिस्सा हैं।
      • सुंदरबन रिज़र्व फाॅरेस्ट (बांग्लादेश)

मैंग्रोव का महत्त्व क्या है?

  • कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव शक्तिशाली नीले कार्बन सिंक हैं, जो अपनी लवणीय, ऑक्सीजन-विहीन मिट्टी में धीमी गति से अपघटन के कारण प्रति हेक्टेयर टन कार्बन संग्रहित करते हैं।
  • तटीय संरक्षण: ये तूफानों, सुनामी और कटाव के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं, जिससे तरंग ऊर्जा 5-35% और बाढ़ की गहराई 70% तक कम हो जाती है, जिससे तटीय समुदायों की सुरक्षा होती है।
  • जैवविविधता हॉटस्पॉट: भारत में 5,700 से अधिक प्रजातियों का घर मैंग्रोव पारिस्थितिक संतुलन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • मैंग्रोव वैश्विक मत्स्य पालन को बढ़ावा देते हैं, समुद्री प्रजातियों का पोषण करते हैं तथा शहद, फल और पत्ते प्रदान करते हैं, जिससे लाखों तटीय आजीविकाएँ बनी रहती हैं।

मैंग्रोव का क्या महत्त्व है?

  • कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव शक्तिशाली नीले कार्बन सिंक हैं, जो अपनी लवणीय, ऑक्सीजन-विहीन मिट्टी में धीमी गति से अपघटन के कारण प्रति हेक्टेयर टन कार्बन संग्रहित करते हैं।
  • तटीय संरक्षण: ये तूफ़ानों, सुनामी और कटाव के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं, जिससे तरंग ऊर्जा 5-35% और बाढ़ की गहराई 70% तक कम हो जाती है, जिससे तटीय समुदायों की सुरक्षा होती है।
  • जैवविविधता हॉटस्पॉट: भारत में 5,700 से अधिक प्रजातियों का घर मैंग्रोव पारिस्थितिक संतुलन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • मैंग्रोव वैश्विक मत्स्य पालन को बढ़ावा देते हैं, समुद्री प्रजातियों का पोषण करते हैं तथा शहद, फल और पत्ते प्रदान करते हैं, जिससे लाखों तटीय आजीविकाएँ बनी रहती हैं।

भारत के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के लिये प्रमुख खतरे और संरक्षण रणनीतियाँ क्या हैं?

पहलू

खतरा 

संरक्षण रणनीति

भूमि रूपांतरण

जलीय कृषि (Aquaculture), पाम ऑयल एवं धान की खेती के लिये मैंग्रोव वनों की बड़े पैमाने पर कटाई से मैंग्रोव आवरण में भारी कमी आई है।

तटीय क्षेत्रीय नियोजन और भूमि उपयोग नियमों को सख्ती से लागू करना। तटीय विकास योजनाओं में मैंग्रोव बफर जोन को शामिल करना।

लकड़ी निष्कर्षण और कोयला उत्पादन

अव्यवस्थित कटाई और लकड़ी संग्रहण से मैंग्रोव पारितंत्र का ह्रास होता है, जिससे जैवविविधता और कार्बन अवशोषण क्षमता घटती है।

स्थानीय समुदायों के लिये वैकल्पिक आजीविकाओं को बढ़ावा देना। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अंतर्गत प्रवर्तन को मज़बूत करना।

प्रदूषण 

तेल रिसाव, औद्योगिक अपशिष्ट और प्लास्टिक कचरा मैंग्रोव पुनर्जनन और मिट्टी की गुणवत्ता को बाधित करते हैं।

फाइटो-रिमेडिएशन और सफाई अभियानों को लागू करना। तेल और रासायनिक रिसाव के लिये सख्त दायित्व (Strict Liability) लागू करना।

आक्रामक प्रजातियाँ 

प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा (Prosopis juliflora) जैसी प्रजातियाँ देशी वनस्पतियों से प्रतिस्पर्द्धा कर उन्हें विस्थापित करती हैं, मिट्टी की लवणता बदलती हैं तथा मैंग्रोव पुनर्जनन को बाधित करती हैं।

जैव-पुनर्स्थापन (Bio-restoration) विधियों और देशी प्रजातियों के पुनरोपण (Replantation) का उपयोग कर देशी वनस्पतियों की रक्षा करना।

जलवायु परिवर्तन और समुद्र-स्तर वृद्धि 

बढ़ी हुई लवणता, तटीय अपरदन और डूबने की घटनाएँ मैंग्रोव आवासों के लिये गंभीर खतरा हैं।

ब्लू कार्बन पहल  में भागीदारी को सशक्त करना। जलवायु-सहिष्णु (Climate-resilient) मैंग्रोव पट्टियाँ विकसित करना।

निष्कर्ष:

SAIME मॉडल दर्शाता है कि किस प्रकार मैंग्रोव संरक्षण और जलीय कृषि एक साथ मिलकर आजीविका और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे सकते हैं। यह तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करते हुए और सतत् एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  प्रश्न: सुंदरवन में SAIME मॉडल आजीविका सुरक्षा को मैंग्रोव संरक्षण के साथ किस प्रकार एकीकृत करता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1. SAIME मॉडल क्या है?
उत्तर: सस्टेनेबल एक्वाकल्चर इन मैंग्रोव इकोसिस्टम्स (SAIME) सुंदरबन क्षेत्र में एक सामुदायिक-आधारित पहल है, जिसका उद्देश्य मैंग्रोव संरक्षण और जलीय कृषि (Aquaculture) से होने वाले जीविकोपार्जन के बीच संतुलन स्थापित करना है।

प्रश्न 2. SAIME के अंतर्गत मुख्य रूप से कौन-सी प्रजाति की खेती की जाती है?
उत्तर: ब्लैक टाइगर श्रिम्प (Penaeus monodon) इस योजना के तहत मुख्य रूप से पाली जाने वाली प्रजाति है। इसमें मैंग्रोव की पत्तियों (litter) को प्राकृतिक चारे के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे रासायनिक पदार्थों का प्रयोग कम हो जाता है।

प्रश्न 3. सुंदरबन का भौगोलिक विस्तार क्या है?
उत्तर: सुंदरबन भारत और बांग्लादेश में फैला हुआ है और यह गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है, जो लगभग 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित संरक्षित क्षेत्रों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. बांदीपुर  
  2. भीतरकनिका 
  3. मानस  
  4. सुंदरबन

 उपर्युक्त में से किसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया है?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 1, 3 और 4

(c) केवल 2, 3 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (2019)