डेली न्यूज़ (09 Nov, 2020)



स्थानीय लोगों के लिये नौकरियों की बढ़ती प्रवृत्ति

प्रिलिम्स के लिये: 

अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19

मेन्स के लिये: 

स्थानीय लोगों के लिये नौकरियों के बढ़ते चलन और इससे जुड़ी चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा विधानसभा ने राज्य के 75% निजी क्षेत्र की नौकरियों को स्थानीय निवासियों के लिये आरक्षित करने हेतु  हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोज़गार विधेयक, 2020 (Haryana State Employment of Local Candidates Bill, 2020) पारित किया है।

  • इसने स्थानीय लोगों के लिये नौकरियों के बढ़ते चलन और इससे जुड़ी चिंताओं पर एक नई बहस छेड़ दी है।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक के प्रावधान:
    • प्रत्येक नियोक्ता ऐसे पदों पर 75% स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करेगा जिनका सकल मासिक वेतन या मज़दूरी 50,000 रुपए अथवा सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित वेतन से अधिक न हो।
    • स्थानीय उम्मीदवार राज्य के किसी भी ज़िले से हो सकते हैं, लेकिन नियोक्ता किसी भी ज़िले के स्थानीय उम्मीदवार के रोज़गार को स्थानीय उम्मीदवारों की कुल संख्या के 10% तक सीमित कर सकता है।
    • एक नामित पोर्टल (A Designated Portal) बनाया जाएगा, जिस पर स्थानीय उम्मीदवारों और नियोक्ता को पंजीकरण करना होगा तथा स्थानीय उम्मीदवार तब तक लाभ प्राप्त करने के लिये पात्र नहीं होंगे जब तक कि वे नामित पोर्टल पर अपना पंजीकरण नहीं करते।
  • कानून बन जाने के बाद यह राज्य भर में स्थित कंपनियों, ट्रस्टों, सीमित देयता भागीदारी फर्मों, साझेदारी फर्मों आदि पर लागू होगा।
  • उद्योगों के हित में न होने के कारण इसकी आलोचना की गई  है क्योंकि इससे उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित होगी और हरियाणा में निवेश को नुकसान होगा।

स्थानीय लोगों के लिये नौकरियाँ

  • स्थानीय लोगों के लिये नौकरी में आरक्षण:
    • देशीयतावाद (Nativism), भारत में स्थानीय लोगों की नौकरी की सुरक्षा का मुद्दा हाल ही में बढ़ा है।
    • विभिन्न राज्यों ने स्थानीय लोगों के आरक्षण (Job Reservation For Locals-JRFL) के लिये नौकरी में आरक्षण के संबंध में समान कदम उठाए हैं, जिसमें प्रस्तावित आरक्षण 30% से 70-80% अधिक है।
    • यह कदम सरकारी और/या निजी दोनों क्षेत्रों पर लागू है।
  • हाल के प्रयास:
    • महाराष्ट्र (वर्ष 1968 और 2008), हिमाचल प्रदेश (वर्ष 2004), ओडिशा (वर्ष 2008), कर्नाटक (वर्ष 2014, 2016 और 2019), आंध्र प्रदेश (वर्ष 2019), , मध्य प्रदेश (वर्ष 2019) जैसे राज्यों में कई दलों (सत्तारूढ़ या विपक्षी नेताओं) द्वारा भी इस पर विचार किया गया है।
    • हालाँकि इनमें से किसी को भी लागू नहीं किया गया है और यह कार्यान्वयन तंत्र की कमी तथा उद्योगों, निकायों के अनिच्छुक दृष्टिकोण के कारण केवल कागज़ों तक ही सीमित रह गया है।
  • भारत का संविधान अपने कई प्रावधानों के माध्यम से आवागमन की स्वतंत्रता और इसके परिणामस्वरूप भारत में रोज़गार की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद-14 भारत के प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार प्रदान करता है
    • अनुच्छेद- 15 जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध है।
    • अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोज़गार में जन्म-आधारित भेदभाव नहीं होने की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 19 यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूम सकते हैं।
  • ऐसे विधानों के पीछे का कारण:
    • वोट बैंक की राजनीति: अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों (Inter-State Migrant Workers)  का वृहत स्तर पर एक ऐसा समूह होता है जो प्रायः अपने मतों का उपयोग नहीं करता। यदि इन श्रमिकों और संभावित प्रवासियों को JRFL के माध्यम से बनाए रखा जा सकता है तथा नौकरी प्रदान की जा सकती है जिससे चुनावी लाभों की पूर्ति होती है।
    • आर्थिक सुस्ती: स्थानीय बेरोज़गारी का मुद्दा प्रासंगिक है क्योंकि सरकारी रोज़गार कम होने से बेरोज़गारी बढ़ गई है।
    • बढ़ी हुई आय और प्रतिभा: JRFL न केवल प्रतिभा बल्कि आय को बनाए रखेगा जो अन्यथा ‘अन्य क्षेत्रों’ में जाएगा।
    • भूमि अधिग्रहण के लिये पूर्व शर्त: किसान और ग्रामीण जो कि उद्योगों के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में अपनी ज़मीन खो देते हैं, ऐसी पूर्व शर्त रखते हैं जिसमें उद्योगों को स्थानीय युवाओं को रोज़गार प्रदान करना होता है।
  • प्रभाव:
    • ऐसे प्रतिबंधों वाले राज्य में उद्योगों के अवरोध के कारण रोज़गार सृजन कम हो गया। यह वास्तव में लाभान्वित करने की तुलना में मूल निवासियों को अधिक नुकसान पहुँचाएगा।
    • इस तरह के प्रतिबंध व्यापार को प्रभावित करके संबंधित राज्य और देश के विकास तथा उसकी संभावनाओं को बाधित कर सकते हैं।
    • श्रम गतिशीलता पर प्रतिबंध, विविध प्रकार के श्रम से होने वाले ऐसे लाभ की उपेक्षा करेगा जो भारतीय अर्थव्यवस्था की एक ज़रूरत है।
    • यह आक्रामक क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे सकता है और इस प्रकार भारत की एकता तथा अखंडता के लिये खतरा है।
    • श्रम की कमी के कारण जोखिम में वृद्धि, बेरोज़गारी में वृद्धि, बढ़ती मज़दूरी, मुद्रास्फीति और बढ़ती क्षेत्रीय असमानता आदि  कुछ इसके अन्य संभावित प्रभाव हो सकते हैं।

आगे की राह

  • JRLF का विचार एक देश के भीतर एक अलग देश बनाने या फिर किसी एक क्षेत्र विशिष्ट के भीतर एक अलग क्षेत्र बनाने जैसा है, जो कि पूर्णतः इस संदिग्ध अवधारणा पर आधारित है कि स्थानीय बाज़ार में कौशल की कोई कमी नहीं है।
  • इससे बाहर बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका आर्थिक सुधार सुनिश्चित करना और कौशल प्रशिक्षण तथा फोकस किये गए क्षेत्रों में उचित शिक्षा के साथ युवाओं के लिये पर्याप्त रोज़गार के अवसर प्रदान करना है, ताकि  जनता को मुक्त बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • राज्यों को एक ऐसा ढाँचा बनाने की ज़रूरत है, जहाँ काम के लिये सुरक्षित अंतर्राज्यीय प्रवास की सुविधा हो और सामाजिक सुरक्षा लाभों की सुगम पहुँच को सक्षम करने के लिये राजकोषीय समन्वय किया जाए। यदि ऐसा किया जाता है तो अंतर्राज्यीय प्रवास बढ़ जाएगा और यह क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने के अधिक अवसर प्रदान करेगा।

स्त्रोत: द हिंदू


विमुद्रीकरण: समग्र विश्लेषण

प्रिलिम्स के लिये

विमुद्रीकरण और इसका उद्देश्य

मेन्स के लिये

काले धन और नकली नोटों को समाप्त करने तथा कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में विमुद्रीकरण की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

8 नवंबर, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी या विमुद्रीकरण (Demonetisation) के चार वर्ष पूरे हो गए हैं। काले धन को समाप्त करने के उद्देश्य से उठाए गए इस कदम के कारण उस समय प्रचलित तकरीबन 86 प्रतिशत मुद्रा अमान्य हो गई थी यानी उसका कोई मूल्य नहीं रह गया था।

प्रमुख बिंदु

  • चार वर्ष बाद भी सरकार के इस निर्णय को लेकर आम लोगों की राय काफी बँटी हुई है, कुछ लोगों का मानना है कि सरकार के इस कदम से काले धन को कम करने, कर अनुपालन बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता को बढ़ावा देने में काफी मदद की है। 
    • वहीं आलोचकों का मत है कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी गहरे तक प्रभावित किया है और इससे नकदी पर निर्भर रहने वाले अधिकांश छोटे व्यवसायों को कठिनाई का सामना करना पड़ा था।
  • विमुद्रीकरण को लागू किये जाने के पीछे मुख्यतः तीन उद्देश्य थे-
    • काले धन को समाप्त करना।
    • नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना।
    • डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देकर कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाना।

क्या होता है विमुद्रीकरण?

  • विमुद्रीकरण का अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया से है, जिसमें देश की सरकार द्वारा देश की मुद्रा प्रणाली में हस्तक्षेप करते हुए किसी विशेष प्रकार की मुद्रा की कानूनी वैधता समाप्त कर दी जाती है।
  • विमुद्रीकरण को प्रायः कर प्रशासन के एक उपाय के रूप में देखा जाता है, जहाँ काला धन छिपाने वाले लोगों को न चाहते हुए भी अपनी संपत्ति की घोषणा करनी पड़ती है और उस पर कर भी देता पड़ता है। 

काला धन

  • सरकार की मानें तो काले धन को समाप्त करना विमुद्रीकरण का प्राथमिक लक्ष्य था, हालाँकि कई लोगों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के आधार पर नोटबंदी के इस उद्देश्य पर प्रश्नचिह्न लगाया है। 
    • काला धन असल में वह आय है जिसे कर अधिकारियों से छुपाने का प्रयास किया जाता है यानी इस प्रकार की नकदी का देश की बैंकिंग प्रणाली में कोई हिसाब नहीं होता है और न ही इस पर किसी प्रकार का कर दिया जाता है। 
  • वर्ष 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि विमुद्रीकरण के दौरान अवैद्य घोषित किये गए कुल नोटों का तकरीबन 99.3 प्रतिशत यानी लगभग पूरा हिस्सा बैंकों के पास वापस आ गया था। 
    • आँकड़ों के मुताबिक, अमान्य घोषित किये गए 15.41 लाख करोड़ रुपए में से 15.31 लाख करोड़ रुपए के नोट वापस आ गए थे।
  • फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि विमुद्रीकरण समेत सभी प्रकार के काले धन को समाप्त करने के लिये उठाए गए विभिन्न उपायों के कारण 1.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन बरामद किया गया था, जबकि सरकार ने विमुद्रीकरण की घोषणा करते हुए इस संबंध में तकरीबन 3-4 लाख करोड़ रुपए बरामद करने की बात कही थी।
    • अतः आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था से काले की समस्या को समाप्त करने में कुछ हद तक विफल रही है।

नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना

  • नकली नोट या नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना सरकार द्वारा लागू किये गए विमुद्रीकरण का दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य था। 
  • आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर वित्तीय वर्ष 2015-16 में 6.32 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे, वहीं दूसरी ओर वित्तीय वर्ष 2016-17 में 7.62 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे। नोटबंदी लागू होने के चार वर्ष बाद अब तक 18. 87 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे।
  • रिज़र्व बैंक की वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट की मानें तो विमुद्रीकरण के बाद के वर्ष में ज़ब्त किये गए अधिकांश नोटों में 100 रुपए मूल्यवर्ग की संख्या सबसे अधिक है। 
    • वर्ष 2019-20 में 1.7 लाख नकली नोट, वर्ष 2018-19 में 2.2 लाख नकली नोट और वर्ष 2017-18 में 2.4 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 की तुलना में वर्ष 2019-20 में 10, 50, 200 और 500 रुपए मूल्यवर्ग में ज़ब्त किये गए नकली नोटों की संख्या में क्रमशः 144.6 प्रतिशत, 28.7 प्रतिशत, 151.2 प्रतिशत और 37.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
    • इस प्रकार निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण जैसे कठोर कदम के बावजूद अभी भी अर्थव्यवस्था में नकली नोटों का प्रसार हो रहा है।

कैशलेस अर्थव्यवस्था का निर्माण करना

  • सरकार द्वारा नोटबंदी को दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने के एक उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया था। हालाँकि रिज़र्व बैंक के आँकड़ों की मानें तो नोटबंदी लागू होने से अब तक अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों के कुल मूल्य और मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में अर्थव्यवस्था में प्रचलित कुल नोटों की संख्या तकरीबन 16.4 लाख करोड़ रुपए थी, जो कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में बढ़कर 24.2 लाख करोड़ रुपए हो गई है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों के मूल्य में तुलनात्मक रूप से वृद्धि देखने को मिली है।
  • इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी लागू किये जाने के बाद भी अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों की संख्या और मात्रा में वृद्धि हुई है, हालाँकि नोटों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ डिजिटल लेन-देन में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
    • कोरोना वायरस महामारी ने भी लोगों के बीच नकदी के प्रचलन को और बढ़ावा दिया है। जब मार्च माह में सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी तो आम लोगों ने किसी भी आपातकालीन परिस्थिति से निपटने के लिये  नकदी को एकत्र करना शुरू कर दिया, जिसके कारण हाल के कुछ दिनों में अर्थव्यवस्था में नकदी के प्रचलन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है।

डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी

  • इसी वर्ष अक्तूबर माह में प्रकाशित रिज़र्व बैंक के आँकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा में 3,434.56 करोड़ की भारी वृद्धि हुई है।
  • आँकड़ों के अनुसार, बीते पाँच वर्षों में डिजिटल भुगतान की मात्रा में 55.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है, वहीं डिजिटल भुगतान के मूल्य के मामले में 15.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।
  • अक्टूबर 2020 में एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) आधारित भुगतान ने 207 करोड़ लेन-देन के साथ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

विमुद्रीकरण: दीर्घकाल के लिये लाभदायक

  • कई जानकार मानते हैं कि विमुद्रीकरण का अल्प काल में अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव हो सकता है, किंतु दीर्घकाल में यह भारत और संपूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • चूँकि विमुद्रीकरण के निर्णय ने कुछ हद तक भारत में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसलिये भारत डिजिटल आधार पर होने वाली चौथी औद्योगिक क्रांति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित कर सकता है।
  • इसके अलावा विमुद्रीकरण के कारण प्रत्यक्ष कर में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेतक है।

निष्कर्ष

समग्र विश्लेषण से ज्ञात होता है कि नोटबंदी के निर्णय ने देश में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने और वित्तीय प्रणाली के औपचारिकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विमुद्रीकरण अपने सभी उद्देश्यों को पूरा करने में पूर्णतः विफल रहा है और काले धन को समाप्त करने का इसका प्राथमिक लक्ष्य अब तक प्राप्त नहीं किया जा सका है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विदेशज जीव

प्रिलिम्स के लिये: 

असम राज्य चिड़ियाघर-सह-वानस्पतिक उद्यान, हाइसिंथ मकाव, कैपुचिन बंदर, CITES

मेन्स के लिये: 

वन्यजीवों की तस्करी के हॉटस्पॉट के रूप में उभरता पूर्वोत्तर भारत  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गुवाहाटी में ‘असम राज्य चिड़ियाघर-सह-वानस्पतिक उद्यान’ (Assam State Zoo-cum-Botanical Garden) में छह नीले या हाइसिंथ मकाव (Hyacinth Macaw) और दो कैपुचिन बंदरों (Capuchin Monkey) को लाया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि इसी क्षेत्र में इससे पहले विदेशी जानवरों की एक बड़ी खेप को राजस्व खुफिया निदेशालय (Directorate of Revenue Intelligence- DRI) द्वारा ज़ब्त कर लिया गया था। 
  • अवैध वन्यजीव व्यापार से संबंधित प्रावधान: अवैध रूप से व्यापार के लिये ले जाए जा रहे  विदेशी जीवों को सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (Customs Act, 1962) की धारा 111 के तहत ज़ब्त कर लिया जाता है, जो ‘वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन’ (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) और भारत में विदेशी व्यापार नीति (आयात-निर्यात नीति) के प्रावधानों से संबंधित है।
  • इसके अलावा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 48 व 49 जंगली जानवरों, जानवरों से संबंधित लेखों या ट्राफियों के व्यापार या वाणिज्य पर प्रतिबंध लगाती है।

चिंताएँ: 

  • COVID-19 के मद्देनज़र ऐसी विदेशज प्रजातियों की तस्करी के कारण ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार की आशंका एक वैश्विक मुद्दा बन रहा है।
  • नशीले पदार्थों की तस्करी, नकली सामान और मानव तस्करी के बाद अवैध रूप से वन्यजीव व्यापार को वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे बड़ा संगठित अपराध घोषित किया गया है।
  • बांग्लादेश एवं म्याँमार की सीमाओं और थाईलैंड से निकटता के कारण पश्चिम बंगाल एवं पूर्वोत्तर भारत, सीमा-पार से वन्यजीव तस्करी के हॉटस्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है।
  • वन्यजीव अपराध में शामिल कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन विदेशी मुद्रा के अवैध संचलन के अलावा कई अन्य गैर-कानूनी गतिविधियों जैसे- ड्रग्स की तस्करी, वाणिज्यिक सामान और यहाँ तक ​​कि बंदूकों की तस्करी के लिये भारत-बांग्लादेश सीमा का उपयोग करते हैं।

असम राज्य चिड़ियाघर-सह-वानस्पतिक उद्यान

(Assam State Zoo-cum-Botanical Garden):

  • इसकी स्थापना वर्ष 1957 में हुई थी।
  • यह चिड़ियाघर राजधानी गुवाहाटी के ‘हेंग्राबारी रिज़र्व फॉरेस्ट’ (Hengrabari Reserve Forest) में अवस्थित है।
  • कई जीवों की मौजूदगी के कारण यह चिड़ियाघर लोकप्रिय रूप से गुवाहाटी शहर के ‘ग्रीन लंग’ (Green Lung) के रूप में जाना जाता है।

ब्लू मकाव (Blue Macaw):

  • वैज्ञानिक नाम: एनोडोरिंचुस  हाइसिंथिनुस (Anodorhynchus Hyacinthinus)
  • यह एक तोता है जो मध्य और पूर्वी दक्षिण अमेरिका का मूल निवासी है।
  • लगभग एक मीटर की लंबाई के साथ यह तोता की अन्य प्रजातियों की तुलना में लंबा है।
  • यह सबसे बड़ा मकाव तोता है और सबसे लंबी दूरी तक उड़ने वाले तोते की एक प्रजाति है।
  • खतरा: आवास के नुकसान और पालतू जीवों के व्यापार के लिये अन्य पक्षियों के साथ जाल में फँसने से इनकी आबादी तेज़ी से कम हो रही है।
  • इसे IUCN की रेड लिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) तथा CITES के परिशिष्ट-I (Appendix-I) की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। 

कैपुचिन बंदर (Capuchin Monkey): 

  • वैज्ञानिक नाम: सेबस (Cebus)
  • कैपुचिन बंदर, जिसे सापाजोउ (Sapajou) भी कहा जाता है, निकारागुआ से पराग्वे तक उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाया जाने वाला एक सामान्य मध्य और दक्षिण अमेरिकी प्राइमेट है।
  • इनका नाम (कैपुचिन बंदर) इनके सिर पर बालों से निर्मित ‘कैप’ के कारण रखा गया है, जो कैपुचिन भिक्षुओं के टोपयुक्त परिधान से संबंधित है।
  • इसे IUCN की रेड लिस्ट में संकटमुक्त (Least concerned) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। 

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 और टिनिटस

प्रिलिम्स के लिये: 

COVID-19, टिनिटस

मेन्स के लिये:  

COVID-19 और इस संक्रमण से लड़ने के लिये किये जा रहे उपायों का मानव शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक नए शोध में पाया गया है कि COVID-19 और इस संक्रमण से लड़ने के लिये किये जा रहे उपायों द्वारा टिनिटस को खत्म किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • ब्रिटेन में एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी (Anglia Ruskin University) द्वारा ब्रिटिश टिनिटस एसोसिएशन और अमेरिकन टिनिटस एसोसिएशन (British Tinnitus Association and the American Tinnitus Association) के समर्थन से अनुसंधान का नेतृत्व किया गया था।
  • शोध में 48 देशों के टिनिटस से ग्रसित 3,103 लोगों को शामिल किया गया, जिनमें से अधिकांश UK और USA से संबंधित थे।
  • टिनिटस  एक सामान्य स्थिति है जिससे कान और सिर में शोर या बजने की आवाज होती है।
  • इस शोध में यह पाया गया कि COVID-19 के लक्षणों को प्रदर्शित करने वाले 40% लोग एक साथ टिनिटस से प्रभावित हुए।
  • यद्यपि अध्ययन में पहले से मौजूद टिनिटस वाले लोगों पर ध्यान केंद्रित किया गया था, प्रतिभागियों की एक छोटी संख्या से यह भी ज्ञात हुआ कि उनकी स्थिति शुरू में COVID-19 लक्षणों के विकसित होने से शुरू हुई थी। इससे पता चलता है कि कुछ मामलों में टिनिटस COVID-19 का एक लक्षण हो सकता है।
  • अध्ययन में यह भी पाया गया है कि लोगों का एक बड़ा हिस्सा मानता है कि सामाजिक दूरी के उपायों से उनके टिनिटस को बदतर बनाया जा रहा है।
    • ब्रिटेन के 46% उत्तरदाताओं (Respondents) ने कहा कि जीवनशैली में बदलाव ने उत्तरी अमेरिका के 29% लोगों की तुलना में उनके टिनिटस को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
  • BMJ Case Reports नामक रिपोर्ट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में, शोधकर्त्ताओं ने वो संभावित तरीके बताए, जिनके माध्यम से COVID-19 श्रवण क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
    • SARE-CoV-2 के साथ ACE-2 मानव संग्राहक (Receptor) की उपस्थिति।
      • Receptor को हाल ही में चूहों (MICE) के मध्य कान में Epithelial कोशिकाओं में व्यक्त किया गया था।
    • एक और तरीका जो श्रवण क्षमता को प्रभावित कर सकता है वह संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया के माध्यम से है। इस मामले में, प्रतिक्रियाएँ और संक्रमण के कारण साइटोकिन्स (Cytokines) में वृद्धि के मामले में सुनने की दक्षता में हानि हो सकती है, जिससे सूजन और कोशिका तनाव होता है।
      • साइटोकाइन्स तीव्र प्रतिरक्षा विज्ञानी (Inflammatory Immunological) प्रोटीन होते हैं जो संक्रमण से लड़ने और कैंसर को दूर करने के लिये होते हैं।
  • इससे पहले, कान, नाक और गले (ENT) के विशेषज्ञों ने एनोस्मिया/Anosmia (गंध की अचानक हानि) और उम्र के साथ रोगियों की बढ़ती संख्या (स्वाद की भावना का नुकसान) जैसे लक्षणों की पहचान की थी। एनोस्मिया और अस्वाद (Ageusia) दोनों ही लोगों में COVID-19 के लक्षण हो सकते हैं जो अच्छी तरह से दिखाई देते हैं।

टिनिटस (Tinnitus)

  • मरीज़ द्वारा कान में गुंजन या किसी अतिरिक्त ध्वनि के अनुभव करने को टिनिटस कहते हैं। 
  • टिनिटस एक या दोनों कानों को प्रभावित कर सकता है।
  • टिनिटस के कारण प्रत्यक्ष रूप से श्रवण हानि नहीं होती लेकिन यह ध्यान देने व सुनने की क्षमताओं को निश्चित ही बाधित कर सकता है।
  • टिनिटस  होने के कई कारण हैं जैसे-कान का इन्फेक्शन, साइनस इनफेक्श, मैल जमा होने के कारण कानों का बंद होना, मैनीएरेज़ रोग (Meniere’s disease), वृद्धावस्था, शोर भरी आवाजों के लगातार संपर्क में आना आदि।
  • धुम्रपान छोड़ना, धीमे संगीत सुनना, अपने कानों को किसी चोट से बचाए रखना आदि टिनिटस से बचाव के उपाय हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


गोरखा राइफल्स में गैर-गोरखाओं की भर्ती

प्रिलिम्स के लिये

गोरखा राइफल्स, आंग्ल-नेपाल युद्ध

मेन्स के लिये

गोरखा राइफल्स में गैर-गोरखाओं की भर्ती से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

अपने एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णय में सेना मुख्यालय ने गोरखा राइफल्स (Gorkha Rifles-GR) में उत्तराखंड के गैर-गोरखाओं की भर्ती को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • मौजूदा व्यवस्था
    • वर्तमान में भारतीय सेना के पास लगभग 40 गोरखा राइफल्स (GR) बटालियन हैं, जिसमें केवल नेपाल-अधिवासित गोरखाओं (NDG) और भारतीय-अधिवासित गोरखाओं (IDG) को ही क्रमशः 60 और 40 के अनुपात में भर्ती किया जाता है।
    • हालाँकि कुछ वर्ष पूर्व एक पूर्णतः भारतीय-अधिवासित गोरखाओं (IDG) की बटालियन भी बनाई गई थी। अब गोरखा राइफल्स (GR) की सात में 3 रेजिमेंटों में उत्तराखंड के गैर-गोरखाओं की भर्ती को भी मंज़ूरी दे दी गई है।
  • कारण:
    • यद्यपि एक ओर अलग-अलग गोरखा राइफल्स (GR) बटालियन में नेपाल से होने वाली भर्तियों में कोई कमी नहीं है, किंतु कुछ इकाइयों में भारतीय गोरखाओं की कमी देखी जा रही थी, जिसे पूरा करने के लिये यह कदम उठाया गया है।
    • वर्तमान में गोरखा राइफल्स (GR) बटालियन में गैर-गोरखाओं की भर्ती करने का निर्णय केवल दो वर्ष के लिये लिया गया है।
  • प्रभाव
    • ध्यातव्य है कि भारतीय सेना के इस महत्त्वपूर्ण निर्णय से उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ के युवा गोरखा राइफल्स (GR) में भर्ती होने के लिये योग्य माने जाएंगे, जिससे इस क्षेत्र के युवाओं के लिये रोज़गार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी।
    • हालाँकि गोरखा राइफल्स (GR) के कई पूर्व सैनिकों ने इस कदम को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए कहा है कि गोरखा राइफल्स (GR) में केवल गोरखा लोगों की ही भर्ती की जानी चाहिये।
  • पृष्ठभूमि 
    • नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच वर्ष 1947 में हुए एक त्रिपक्षीय समझौते के मुताबिक, भारत और ब्रिटेन को अपनी सेनाओं में नेपाल के गोरखा सैनिकों की भर्ती करने की अनुमति दी गई है।
    • इस समझौते के तहत तत्कालीन दस गोरखा राइफल्स (GR) रेजिमेंटों में से छह भारत के तथा चार ब्रिटेन के हिस्से में आई थीं। समझौते के तहत भारतीय सेना के हिस्से में नंबर 1, 3, 4, 5, 8 और 9 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट आईं और ब्रिटिश सेना के हिस्से में नंबर 2, 6, 7 और 10 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट आईं। 
      • बाद में भारत ने 11 नंबर गोरखा राइफल्स रेजिमेंट भी बनाई और इस तरह भारत के पास कुल 7 रेजिमेंट हैं।
    • ‘आंग्ल-नेपाल युद्ध’ (वर्ष 1814-16) जिसे ‘गोरखा युद्ध’ भी कहा जाता है, के दौरान जब अंग्रेज़ सेना को अधिक क्षति हुई थी तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार अपनी सेना में गोरखाओं को भर्ती किया था। यह युद्ध वर्ष 1816 की सुगौली की संधि पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ था।
      •  ‘आंग्ल-नेपाल युद्ध’ के समय ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लाॅर्ड हेस्टिंग्स थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस