डेली न्यूज़ (06 Apr, 2020)



भारत में प्रवास (Migrant in India)

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में प्रवास, शुद्ध-प्रवास दर 

मेन्स के लिये:

भारत में प्रवास का स्थानिक वितरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID- 19 महामारी के चलते लगाए गए 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद शहरों से भारी संख्या में प्रस्थान करने वाले उन प्रवासी कामगारों को चर्चा में ला दिया है, जो काम के लिये अपने गृह राज्यों से बाहर रहते हैं।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या 45.36 करोड़ है, जो देश की जनसंख्या का लगभग 37% है। 
  • हाल ही में लॉकडाउन के कारण लोगों का व्यापक पलायन (Mass Exodus) देखने को मिला, जिसका प्रमुख कारण अंतर-राज्य प्रवासियों द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया आवागमन है।

भारत की जनगणना में प्रवास की गणना दो आधारों पर की जाती है: 

  • जन्म का स्थान:
    • यदि जन्म का स्थान, गणना स्थान से भिन्न है; इसे जीवनपयर्तं प्रवासी के रूप में जाना जाता है। 
  • निवास का स्थान:
    • यदि निवास का पिछला स्थान गणना के स्थान से भिन्न है; इसे निवास के पिछले स्थान से प्रवासी के रूप में जाना जाता है। 
  • प्रवास की धाराएँ: 
    • इसे आंतरिक प्रवास (देश के भीतर) तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रवास (देश के बाहर) में वर्गीकृत किया जाता है। 
    • आंतरिक प्रवास के अंतर्गत चार धाराओं की पहचान की गई है:
      1. ग्रामीण से ग्रामीण 
      2. ग्रामीण से नगरीय 
      3. नगरीय से नगरीय  
      4. नगरीय से ग्रामीण 

प्रवास तथा व्यवसाय:

  • देश में अंतर-राज्य प्रवास के आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन विकासशील समाजों का अध्ययन केंद्र (Centre for the Study of Developing Societies- CSDS) द्वारा वर्ष 2011 की जनगणना, NSSO सर्वेक्षण तथा आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर वर्ष 2020 के लिये प्रवास के अनुमानित आँकड़े जारी किये हैं। CSDS के अनुसार, देश में अंतर-राज्य प्रवासीयों की संख्या लगभग 65 मिलियन हैं, जिनमें से लगभग 33% श्रमिक वर्ग है। 
  • अनुमानों के अनुसार, इन प्रवासी श्रमिकों में से 30% अल्पकालिक श्रमिक (Casual Workers) हैं तथा अन्य 30 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करने वाले नियमित कार्मिक हैं।
  • इसके अलावा स्ट्रीट वेंडर्स को इन आँकड़ों में शामिल कर लिया जाए तो 12-18 मिलियन लोग ऐसे हैं जो अपने मूल स्थान से अन्य राज्यों में रह रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत के बड़े नगरों की लगभग 29% आबादी दैनिक मज़दूरी करने वाले लोगों की है तथा ये लोग पुन: अपने गृह- राज्यों में वापस जाना चाहते हैं।

प्रवास का स्थानिक वितरण:

  • कुल प्रवासियों में उत्तर प्रदेश और बिहार में अंतर-राज्य प्रवासियों का प्रतिशत क्रमश: 25% तथा 14% है। इसके बाद राजस्थान (6%) तथा मध्य प्रदेश (5%) का स्थान है। 

प्रवासी श्रमिकों की आय:

  • CSDS द्वारा किये सर्वेक्षण के अनुसार, इन प्रवासी श्रमिकों की आय निम्नलिखित प्रकार से पाई गई:

मासिक घरेलू आय (रुपए में)

श्रमिकों का प्रतिशत 

2,000 से कम 

22%

2,000-5,000 

32%

5,000-10,000 

25%

10,000 और 20,000

13%

20,000 से अधिक 

8%

प्रवास एवं नगर: 

  • लॉकडाउन के बाद सर्वाधिक अंतर-राज्यीय प्रवास संकट दिल्ली, मुंबई, सूरत जैसे शहरों में देखा गया। दिल्ली में प्रवासन दर 43% है, जिनमें से 88% अंतर-राज्यीय तथा 63% ग्रामीण-नगरीय प्रवासी हैं। मुंबई में प्रवासन की दर 55% है, जिसमें से 46% अंतर-राज्यीय तथा 52% ग्रामीण-नगरीय प्रवासी हैं। सूरत में प्रवासन दर 65% है, जिनमें से 50% अंतर-राज्यीय तथा 76% ग्रामीण-नगरीय प्रवासी हैं।
  • वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, ज़िले-से-ज़िले प्रवास में प्रवासियों का सबसे अधिक अप्रवास गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश), गुरुग्राम जैसे नगरीय-जिलों में हैं। 
  • किसी ज़िले से उत्प्रवास (बाहर प्रवास करने वाले कामगारों) को देखा जाए तो इसमें मुज़फ़्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर जैसे ज़िले सर्वोच्च स्थान पर हैं।

शुद्ध-प्रवास दर

(Net Migration Rate- NMR):

  • NMR, किसी क्षेत्र में आने वाले तथा उस स्थान को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर जाकर रहने वाले लोगों की संख्या के बीच अंतर होता है। यदि किसी क्षेत्र से बाहर प्रवास करने वालों की संख्या, आने वाले प्रवासियों से अधिक हो तो उसे धनात्मक शुद्ध प्रवासन दर कहते हैं। 
  • बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों में शुद्ध-प्रवास (Net Out Migration) उच्च है। दिल्ली में सर्वाधिक प्रवासी आते हैं। जबकि उत्तर- प्रदेश तथा बिहार राज्यों से बाहर प्रवसन करने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है। 
  • आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि महाराष्ट्र, गोवा तथा तमिलनाडु का प्रमुख शुद्ध प्रवासन प्राप्तकर्ता जबकि झारखंड और मध्य प्रदेश का शुद्ध प्रवासन दाता राज्य है।

प्रवास तथा लैंगिकता में संबंध:

  • महिला प्रवासी श्रमिकों की सबसे अधिक हिस्सेदारी निर्माण क्षेत्र में है (शहरी क्षेत्रों में 67%, ग्रामीण क्षेत्रों में 73%), जबकि सबसे अधिक पुरुष प्रवासी श्रमिक भागीदारी सार्वजनिक सेवाओं (परिवहन, डाक, सार्वजनिक प्रशासन सेवाएँ ) तथा आधुनिक सेवाओं (वित्तीय मध्यस्थता, अचल संपत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य) में है।

Migrant-Worker

निष्कर्ष:

  • प्रवासी आबादी अपने गाँव-आधारित जातीय संबंधों को न तो पूरी तरह से बरकरार रखती है और न ही पूरी तरह से त्याग देती है, इस कारण वे आजीविका के स्रोत से सैकड़ों किलोमीटर दूर लौटना चाहते हैं। अत: सरकार को ऐसे श्रमिकों की आर्थिक तथा आवागमन दोनों तरह से सहायता करनी चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


लॉकडाउन तथा मानसून पूर्वानुमान प्रणाली

प्रीलिम्स के लिये:

मानसून पूर्वानुमान प्रणाली, सांख्यिकीय मॉडल, गतिशील मॉडल, EPS, सुपर कंप्यूटर प्रत्यूष एवं मिहिर  

मेन्स के लिये:

भारतीय मानसून 

चर्चा में क्यों:

देश में लॉकडाउन के चलते नागरिक विमान उड्डयन पर प्रतिबंध लगाए जाने के कारण  ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department- IMD) की मानसून पूर्वानुमान प्रणाली प्रभावित हो सकती है।

मुख्य बिंदु:

  • विश्व की मौसम एजेंसियों द्वारा मौसम पूर्वानुमान के गतिशील मॉडल (Dynamical Model) में ऊपरी वायुमंडल के तापमान एवं हवा की गति मापन के आँकड़ों का उपयोग किया जाता है तथा इसके लिये उड्डयन आधारित विमान रिले डेटा (Aircraft Relay Data) का उपयोग किया जाता है।
  • मार्च माह के मध्य से भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया था तथा 24 मार्च तक घरेलू हवाई यात्रा पर भी पूर्णतया रोक लगा दी गई। इससे विमान रिले डेटा की प्राप्ति में उत्पन्न समस्या के कारण इस वर्ष IMD अपने पारंपरिक सांख्यिकीय पूर्वानुमान प्रणाली (Statistical Forecast System) के आधार पर मौसम पूर्वानुमान जारी करेगा।

मानसून पूर्वानुमान के मॉडल:

  • सांख्यिकीय मॉडल (Statistical System)
    • IMD वर्ष 2010 तक केवल इसी मॉडल का उपयोग मौसम पूर्वानुमान जारी करने में करता था। 
    • इस मॉडल में उत्तरी अटलांटिक और उत्तरी प्रशांत के बीच समुद्र की सतह की तापमान प्रवणता, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में गर्म पानी की मात्रा, यूरेशियन बर्फ का आवरण जैसे मानसून के प्रदर्शन से जुड़े जलवायु मापदंडों को शामिल किया जाता था।
    • उपरोक्त मापदंडों के फरवरी और मार्च के आँकड़ों की सौ वर्ष से अधिक के वास्तविक वर्षा के आँकड़ों से तुलना करने के बाद (सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग करते हुए) किसी एक विशेष वर्ष के मानसून का पूर्वानुमान लगाया जाता था।
  • गतिशील मॉडल (Dynamical Model):
    • वर्ष 2015 से ही मानसून पूर्वानुमान हेतु एक गतिशील प्रणाली का परीक्षण शुरू किया गया। इस प्रणाली में कुछ निश्चित स्थानों की भूमि और समुद्र के तापमान, नमी, विभिन्न ऊँचाई पर वायु की गति जैसे मापदंडों के आधार पर मौसम का अनुमान लगाया जाता है। 
    • इस प्रणाली से प्राप्त आँकड़ों की गणना शक्तिशाली कंप्यूटरों के माध्यम से की जाती है। साथ ही मौसम के पूर्वानुमान में भौतिकी समीकरणों का भी प्रयोग किया जाता है।
  • एसेंबल प्रेडिक्शन सिस्टम (Ensemble Prediction Systems- EPS):
    • आगामी दस दिनों तक मौसम पूर्वानुमान करने के लिये IMD द्वारा EPS का उपयोग करता है अर्थात लघु अवधि के मौसम पूर्वानुमान में इसका बहुत महत्त्व है। 

मौसम पूर्वानुमान तथा सुपर कंप्यूटर:

  • प्रत्यूष:
    • वर्तमान में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) पुणे में सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटर लगाया गया है जिसे प्रत्यूष कहा जाता है। इसकी गति 4.0 पेटाफ्लॉप्स है। 
  • मिहिर:
    • नेशनल सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्टिंग (National Centre for Medium Range Weather Forecasting- NCMRWF) में मिहिर नामक सुपर कंप्यूटर लगाया गया है, जिसकी गति 2.8 पेटाफ्लॉप्स है।

आगे की राह:

  • उड्डयन प्रणाली आधारित रिले डाटा तापमान में होने वाले त्वरित परिवर्तन तथा तड़ितझंझा की चेतावनी देने के लिये सहायक होते हैं। इन आँकड़ों की लंबे समय तक अनुपलब्धता मौसम की प्रवृत्ति तथा भविष्य के जलवायु पैटर्न की गणना को बेहतर तरीके से समझने की वैज्ञानिक क्षमता को नुकसान पहुँचा सकती है। अत: इन आँकड़ों की शीघ्र प्राप्ति की दिशा में कार्य कर गतिशील मौसम पूर्वानुमान की दिशा में कार्य करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 दवा निर्माण हेतु पर्यावरण प्रभाव आकलन से राहत

प्रीलिम्स के लिये: 

सक्रिय दवा सामग्री, COVID-19 

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रभाव आकलन, स्वास्थ्य सेवाओं पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) ने देश में COVID-19 की दवा के निर्माण हेतु आवश्यक सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredient- API) से संबंधित परियोजनाओं के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) की अनिवार्यता से अंतरिम राहत प्रदान करने का फैसला किया है।

मुख्य बिंदु:

  • MoEFCC के इस फैसले के तहत 30 सितंबर, 2020 तक देश में API के निर्माण की परियोजनाओं से संबंधित आवेदनों के लिये अनिवार्य EIA की छूट प्रदान की जाएगी।    
  • 30, सितंबर 2020 तक प्राप्त ऐसे सभी आवेदनों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत B2 श्रेणी में रखा जाएगा। 
  • MoEFCC के अनुसार, 30 सितंबर, 2020 के बाद इस संदर्भ में कोई भी निर्णय उस समय के नियमों के आधार पर लिया जाएगा।
  • MoEFCC के अनुसार, COVID-19 के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से थोक दवाओं के निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिये पूर्व के पर्यावरण मंज़ूरी संबंधी नियमों में तेज़ी लाना अति आवश्यक है।   
  • ध्यातव्य है कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के नियमों के तहत परियोजनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
    • ‘A’: श्रेणी ‘A’ के तहत उन परियोजनाओं को रखा जाता है जिनका अनुमोदन केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय’द्वारा किया जाता है।
    • ‘B’: श्रेणी ‘B’ के तहत उन परियोजनाओं को रखा जाता है जिनका अनुमोदन राज्यों द्वारा किया गया हो।
    • ‘B2’: इस श्रेणी में EIA और जन सुनवाई से राहत प्राप्त योजनाओं को सूचीबद्ध किया जाता है।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम

{ENVIRONMENT (PROTECTION) ACT}, 1986: 

  • इस अधिनियम की अवधारण वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित ‘संयुक्त राष्ट्र के विश्व मानव पर्यावरण अभिसमय’ (United Nations Conference on the Human Environment), जिसमें भारत ने भी हिस्सा लिया था,  के बाद प्रस्तुत की गई।
  • इस अधिनियम में पर्यावरण संरक्षण और सुधार तथा इससे जुड़े हुए मुद्दों के लिये आवश्यक विधिक प्रावधानों का विवरण दिया गया है। 
  • यह अधिनियम वर्ष 1986 में लागू किया गया। 

क्या है सक्रिय दवा सामग्री?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी रोग के उपचार, रोकथाम अथवा अन्य औषधीय गतिविधि के लिये आवश्यक दवा के निर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थ या पदार्थों के संयोजन को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ के नाम से जाना जाता है।

  • वर्तमान में भारतीय दवा उद्योग के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियाँ दवाइयों के निर्माण में आवश्यक API के लिये अन्य देशों पर होने वाले आयात पर निर्भर रहता है।
  • इनमें से अधिकांश (लगभग 70%) चीन से आयात किया जाता है।
  • वर्तमान में COVID-19 के कारण विश्व के कई देशों में यातायात पर प्रतिबंध के कारण भारत में API की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
  • इससे पहले भी देश में API के क्षेत्र में स्थानीय क्षमता के विकास के माध्यम से आयात की निर्भरता को कम करने के प्रयास किये गए हैं परंतु वे बहुत अधिक सफल नहीं हुए। 
  • हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में API या थोक दवाओं (Bulk Drugs) के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये लगभग 13 हजार करोड़ रुपए की लागत से  बल्क ड्रग्स पार्क (Bulk Drugs Park) की स्थापना के साथ कुछ अन्य योजनाओं की घोषणा की है।

EIA में छूट के लाभ:

  • वर्तमान में औषधि क्षेत्र या अन्य परियोजनाओं के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करने में अत्यधिक समय लगता है, ऐसे में MoEFCC की इस छूट के बाद COVID-19 के लिये दवाओं के निर्माण में तेज़ी आएगी।
  • वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए EIA में छूट देने के संदर्भ में MoEFCC की पहल सराहनीय है।
  • किसी भी क्षेत्र के विकास के लिये औद्योगिक संस्थानों, सरकार और नियामकों का मिलकर काम करना बहुत ही आवश्यक है, इस विचारधारा के तहत MoEFCC की तत्परता भारतीय दवा उद्योग क्षेत्र के भविष्य के लिये एक सकारात्मक संकेत है।     

स्रोत:  द इंडियन एक्सप्रेस


आयुष्मान भारत के तहत COVID-19 का मुफ्त परीक्षण और उपचार

प्रीलिम्स के लिये

आयुष्मान भारत योजना

मेन्स के लिये

आपदा/महामारी प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भूमिका

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत कोरोनावायरस का मुफ्त परीक्षण और उपचार प्रदान करने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख बिंदु

  • सरकार द्वारा की गई यह घोषणा आयुष्मान भारत योजना के 50 करोड़ लाभार्थियों को निर्दिष्ट निजी अस्पतालों में मुफ्त परीक्षण और उपचार की सुविधा प्राप्त करने में मदद करेगी।
  • इस संदर्भ में प्रस्तुत किये गए आधिकारिक विवरण के अनुसार, इस योजना के तहत निर्दिष्ट अस्पताल या तो अपनी स्वयं की अधिकृत परीक्षण सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं अथवा  योजना के लिये अधिकृत परीक्षण सुविधा के साथ टाई अप (Tie Up) कर सकते हैं।
  • सभी परीक्षण भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council for Medical Research-ICMR) द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार ICMR द्वारा पंजीकृत निजी प्रयोगशालाओं द्वारा ही किये जाएंगे।
  • सरकार के इस निर्णय का उद्देश्य परीक्षण और उपचार सुविधाओं की आपूर्ति में वृद्धि करना और ICMR दिशा-निर्देशों के अनुसार आयुष्मान योजना के माध्यम से आम लोगों की निजी क्षेत्र में पहुँच में वृद्धि करना है।

निर्णय के लाभ

  • योजना के लाभार्थियों को मुफ्त परीक्षण और उपचार की सुविधा उपलब्ध कराने का यह निर्णय COVID-19 महामारी के प्रति भारत के प्रयासों को और मज़बूत करेगा।
  • साथ ही इस घोषणा के कारण लाभार्थियों को समयबद्ध तथा मानक उपचार प्राप्त हो सकेगा।

निजी क्षेत्र की भागीदारी

  • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार, ‘इस गंभीर संकट के समय कोरोनावायरस (COVID-19) के विरुद्ध लड़ाई में निजी क्षेत्र को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार और हितधारक के रूप में सक्रिय रूप से शामिल करना आवश्यक है।’
  • आयुष्मान भारत योजना के तहत निजी क्षेत्र के अस्पतालों और प्रयोगशालाओं को शामिल करके लोगों को मुफ्त परीक्षण और उपचार सुविधा उपलब्ध कराना हमारी क्षमताओं का काफी विस्तार करेगा और गरीबों पर इस भयावह वायरस के प्रतिकूल प्रभाव को कम करेगा।
    • स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार, कई राज्य निजी क्षेत्र के अस्पतालों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में थे जिन्हें केवल COVID-19 अस्पतालों में परिवर्तित किया जा सकता था।

आयुष्मान भारत योजना

  • आयुष्मान भारत योजना भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसे यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (Universal Health Coverage-UHC) के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 द्वारा की गई अनुशंसा के आधार पर लागू किया गया था।
  • आयुष्मान भारत के तहत दो अंतर-संबंधित घटकों से युक्त देखभाल के दृष्टिकोण को अपनाया गया है, जो हैं-
    • स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs)
    • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY)
  • यह पहल सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDGs) और इनके तहत  रेखांकित प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये तैयार की गई है।
  • इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तरों पर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बाधाओं को समाप्त करना है। साथ ही इस योजना के माध्यम से देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या को स्वास्थ्य कवर के दायरे में लाने का भी प्रयास किया जा रहा है।

कोरोनावायरस और भारत

  • कोरोनावायरस मौजूदा समय में विश्व के समक्ष एक गंभीर चुनौती बन गया है और दुनिया भर में इसके कारण अब तक 69000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और तकरीबन 1200000 लोग इसकी चपेट में हैं। 
  • भारत में भी स्थिति काफी गंभीर है और इस खतरनाक वायरस के कारण अब तक देश में 109 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा देश में 4000 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं। 
  • भारत सरकार द्वारा कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में 21 दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की थी।
  • इसके अलावा गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा 21,064 राहत शिविर बनाए गए हैं और लगभग 6,66,291 लोगों को शरण दी गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हवाई अड्डों पर 15.25 लाख यात्रियों की जाँच की गई, 12 प्रमुख बंदरगाहों पर 40,000 लोगों की जाँच की गई और भूमि सीमाओं पर 20 लाख लोगों की जाँच की गई है।

स्रोत:  द हिंदू


ओपेक-रूस वार्ता स्थगित

प्रीलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन 

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कच्चे तेल की घटती कीमतों को लेकर ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’- ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) और रूस के बीच होने वाली वार्ता को अगले सप्ताह तक के लिये स्थगित कर दिया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • रूस और सऊदी अरब के बीच कुछ मतभेदों के कारण 4 अप्रैल, 2020 को प्रस्तावित इस बैठक को स्थगित कर दिया गया है।
  • हाल ही में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए ओपेक+ (समूह के स्थायी सदस्य और अन्य देश) देशों ने तेल उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया था।
  • परंतु रूस ने वर्ष 2018 के समझौते के विपरीत पुनः तेल उत्पादन में कटौती करने से इनकार कर दिया था।
  • इसके बाद सऊदी अरब ने कच्चे तेल के उत्पादन में वृद्धि कर दी, जिससे बाज़ार में तेल की उपलब्धता अधिक होने के कारण कच्चे तेल के मूल्य में अभूतपूर्व गिरावट देखी गई है।
  • तेल उत्पादक देशों के बीच वर्तमान में चल रहे विवाद के कारण ब्रेंट क्रूड ऑयल (Brent Crude Oil) का मूल्य 2 अप्रैल, 2020 को घटकर लगभग 33 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया था।

‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’

(Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC):  

  • OPEC एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1960 में इराक में आयोजित बगदाद सम्मेलन (10-14 सितंबर, 1960) के दौरान की गई थी।
  • ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला इस संगठन के पाँच संस्थापक सदस्य हैं। 
  • वर्तमान में इस संगठन के सदस्य देशों की संख्या 14 है।
  • OPEC के अनुसार, इस संगठन का उद्देश्य पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये उचित और स्थिर कीमतों को सुरक्षित करने, उपभोक्ता राष्ट्रों को पेट्रोलियम की एक कुशल, किफायती तथा नियमित आपूर्ति एवं तेल उद्योग में निवेश करने वालों के लिये एक उचित लाभ को सुनिश्चित करने हेतु सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों के समन्वय और एकीकरण को बढ़ावा देना है।
  • OPEC का मुख्यालय वियना (आस्ट्रिया) में स्थित है।       

तेल कीमतों में गिरावट के कारण: 

  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की मांग में कमी को देखते हुए तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती लाने के लिये किसी सहमति का अभाव।
  • रूस द्वारा तेल उत्पादन में कटौती लाने से इनकार करने पर सऊदी अरब ने अपना तेल उत्पादन 9.8 मिलियन बैरल प्रति दिन से बढ़ाकर 12.3 मिलियन बैरल प्रति दिन करने की घोषणा कर दी थी।
  • इसके अतिरिक्त COVID-19 के कारण वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में औद्योगिक गतिविधियों को स्थगित करना पड़ा है, जिससे तेल की मांग में गिरावट और तेज़ हुई है।
  • ध्यातव्य है कि चीन विश्व का सबसे बड़ा तेल आयात करने वाला देश है, दिसंबर 2019 में COVID-19 के शुरूआती मामलों की पुष्टि के बाद देश में यातायात और अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध के कारण चीन ने तेल के आयात में भारी कटौती की है।
  • COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू उड़ानों पर प्रतिबंधों के कारण विमानन ईंधन (Aviation Turbine Fuel) की खपत में अभूतपूर्व कमी आई है।

तेल कीमतों में गिरावट के प्रभाव:

  • तेल उत्पादन क्षेत्र की कंपनियों का मुनाफा तेल निकासी (Oil Extraction) की लागत पर निर्भर करता है। 
  • वर्तमान में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में तेल उपलब्ध है परंतु पिछले कुछ वर्षों से तेल निकासी की लागत में वृद्धि हुई है और इसका प्रभाव कंपनियों के मुनाफे पर भी पड़ा है, ऐसे में तेल की कीमतों में गिरावट से इस क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
  • ‘हेंस और बून ऑयल पैच बैंकरप्सी मॉनिटर रिपोर्ट’ (Haynes and Boone's Oil Patch Bankruptcy Monitor Report) के अनुसार, वर्ष 2015 (जबसे तेल कीमतों में गिरावट देखी गई) से उत्तरी अमेरिका की 208 तेल उत्पादक कंपनियों ने स्वयं को दिवालिया घोषित किया।
  • कच्चे तेल की कीमतों में कमी से तेल के निर्यात पर आश्रित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे- ईरान, वेनुजुएला, रूस आदि) को गंभीर क्षति होगी।
  • तेल की कीमतों में आई गिरावट का प्रभाव निर्यात पर आश्रित देशों की अर्थव्यवस्था के साथ ही उनकी राजनीति पर भी देखने को मिलेगा, ऐसे में अधिक समय तक तेल की कीमतों में गिरावट का प्रभाव देश की आतंरिक एवं क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है।    

तेल की कीमतों में गिरावट से भारत पर प्रभाव:

  • कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से तेल के आयात पर होने वाले सरकारी खर्च में कमी आई है।
  • मार्च 2014 और अप्रैल 2020 के बीच भारत में आयात होने वाले कच्चे तेल का मूल्य प्रति बैरल 107 अमेरिकी डॉलर से घटकर 21 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल  हो गया है। 
  • हालाँकि मार्च 2014 और फरवरी 2020 के बीच खुदरा तेल बिक्री की कीमतों में बहुत कमी नहीं हुई है, उदाहरण के लिये इस अवधि के दौरान देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत में लगभग 1.82 रुपए प्रति लीटर की ही कमी की गई।
  • जबकि इसी अवधि के दौरान तेल की बिक्री के माध्यम से केंद्र सरकार को शुल्क के रूप में प्राप्त होने वाली राशि में दोगुनी वृद्धि (10.38 रूपए से लगभग 23 रुपए प्रति लीटर) हुई है।
  • मार्च 2020 में वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए केंद्र सरकार ने भारत में बिकने वाले तेल पर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में लगभग 3 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि कर दी, परिणामतः भारतीय बाज़ार में मिलने वाले तेल की कीमत में कोई विशेष बदलाव देखने को नहीं मिला।

उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में वृद्धि का कारण:

  • COVID-19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभावों से पहले ही सरकार राजकोषीय घाटे की समस्या से जूझ रही थी।
  • लगभग चार वर्ष पहले लागू ‘वस्तु और सेवा कर’ (Goods and Services Tax- GST) से अपेक्षा के अनुरूप शीघ्र ही अधिक कर (Tax) इकट्ठा नहीं किया जा सका है।
  • इस दौरान उपभोक्ता मांग में गिरावट को देखते हुए आयकर में कटौती जैसे माध्यमों से उपभोक्ताओं को अधिक मुद्रा उपलब्ध कराने की मांग तेज़ हुई है।
  • वर्तमान में सरकार के लिये आयकर में कटौती करना बहुत मुश्किल है अतः सरकार ने करदाताओं को नई दरों वाले आयकर स्लैब का विकल्प उपलब्ध कराया है।
  • वर्तमान में उपभोक्ता मंहगाई में वृद्धि का कारण खाद्य पदार्थों एवं अन्य वस्तुओं की खराब आपूर्ति रही है, उपभोक्ता मंहगाई पर तेल की बढ़ी कीमतों का कोई विशेष प्रभाव नहीं रहा है।
  • इसे देखते हुए वर्तमान में सरकार ने तेल की कीमतों को स्थिर रखकर, तेल से अर्जित लाभ के माध्यम से अपने वित्तीय घाटे को कम करने का प्रयास किया है। 
  • 24 मार्च, 2020 के लॉकडाउन के पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल हालिया उत्पाद शुल्क वृद्धि से ही सरकार को वित्तीय वर्ष 2020-21 में 43,000 करोड़ रुपए का लाभ होने का अनुमान है।

देश में तेल की आपूर्ति पर COVID-19 का प्रभाव:

  • वर्तमान में COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये देशभर लागू लॉकडाउन के परिणामस्वरुप  पेट्रोल और डीजल की खपत में 50% तक की कमी आई है तथा विमानन ईंधन (Aviation Turbine Fuel) की बिक्री लगभग शून्य रही है।
  • इसे देखते हुए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (Indian Oil Corporation- IOCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Hindustan Petroleum Corporation Limited- HPCL) जैसी भारतीय तेल परिशोधन कंपनियों ने आगामी अप्रैल माह के लिये कच्चे तेल के आयात में 50% तक की कमी करने का फैसला किया है जबकि वर्तमान में निर्यातक एक बैरल तेल 20 अमेरिकी डॉलर या उससे कम में भी देने के लिये तैयार हैं।
  • भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Bharat Petroleum Corporation Limited- BPCL) रिफाइनरी निदेशक के अनुसार, वर्तमान में हमारी रिफाइनरियाँ (Refineries) केवल 80% क्षमता पर कार्य कर रहीं हैं और भविष्य में इसके और कम होने की उम्मीदें है, जिसके कारण हमें अतिरिक्त आयात को रद्द या विलंबित करना अथवा कहीं और बेचना पड़ेगा।
  • वर्तमान में IOCL ने भी कच्चे तेल के कुल परिशोधन में अपनी क्षमता की एक-तिहाई कमी की है। 
  • IOCL ने पश्चिमी देशों के निर्यातकों से फोर्स मेजर (Force Majeure) नियमों के तहत तेल के आयत को कम करने का आग्रह किया है, कंपनी के अनुसार, COVID-19 के नियंत्रण के लिये देशव्यापी लॉकडाउन के कारण पेट्रोल की बिक्री में 54% और डीजल की बिक्री में 63% की गिरावट देखने को मिली है।  

निष्कर्ष:  वर्तमान में कच्चे तेल की घटती कीमतें तेल उत्पादक देशों के लिये एक बड़ी चिंता का विषय बन गईं हैं, यदि तेल की उत्पादन सीमा को लेकर उत्पादक देशों में शीघ्र ही कोई सहमति नहीं बनती तो यह समस्या और भी जटिल हो सकती है। परंतु आर्थिक क्षेत्र में दबाव झेल रही भारत सरकार के लिये अपने वित्तीय घाटे को कम करने का यह सबसे उपयुक्त समय है, आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा में कमी भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी।     

स्रोत: द हिंदू   


बैंकिंग धोखाधड़ी की निगरानी हेतु विशेष विंग

प्रीलिम्स के लिये

भारतीय रिज़र्व बैंक, यस बैंक संकट

मेन्स के लिये

बैंकिंग धोखाधड़ी का बैंकिंग व्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) बैंकिंग धोखाधड़ी की निगरानी करने के लिये एक विशेष विंग स्थापित करने की प्रक्रिया में है, इस विंग में मेटा-डेटा (Meta-Data) प्रोसेसिंग और विश्लेषण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और रिस्क असेसमेंट (Risk Assessment) से संबंधित टीमें होंगी।

प्रमुख बिंदु

  • इसके अलावा रिज़र्व बैंक निजी क्षेत्र से विशिष्ट विषयों (मेटा-डेटा प्रोसेसिंग और विश्लेषण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रिस्क असेसमेंट आदि) पर कार्य करने वाले विशेषज्ञों की भी सहायता लेने पर विचार कर रहा है, ताकि इस विंग में शामिल होने वाले नए सदस्यों को प्रशिक्षित किया जा सके।
  • आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस विंग का गठन आगामी माह तक किया जाएगा और इसकी क्षमता लगभग 600 अधिकारियों की होगी।

कारण

  • ध्यातव्य है कि बीते दिनों ‘यस बैंक’ संकट काफी चर्चा में रहा था और ‘यस बैंक’ गंभीर वित्त समस्याओं का सामना कर रहा था, जिसके कारण बैंक के खाताधारकों पर 50000 रुपए प्रतिमाह निकासी की सीमा आरोपित कर दी गई थी।
    • ऐसे में खाताधारकों के सामने मुद्रा का संकट गहरा गया है।
  • उल्लेखनीय है कि बीते कुछ वर्षों में बैंकों द्वारा दिये जा रहे ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non Performing Assets-NPAs) में बदल गए हैं। ‘यस बैंक’ द्वारा भी रिलायंस ग्रुप, IL&FS, DHFL, जेट एयरवेज़, एस्सार शिपिंग, कैफे कॉफी डे जैसी कंपनियों को लोन दिया गया, जो बाद में NPA में बदल गया।
  • विश्लेषकों के अनुसार, ‘यस बैंक’ संकट के पश्चात् ही बैंकिंग धोखाधड़ी की निगरानी हेतु विंग की स्थापना का विचार और प्रबल हो गया है।

पृष्ठभूमि

  • RBI के शीर्ष प्रबंधन द्वारा सर्वप्रथम अक्तूबर 2019 में बैंकिंग धोखाधड़ी विंग के गठन पर विचार किया गया था।
  • हालाँकि, उस समय कार्य की परिस्थितियाँ काफी सख्त थीं, जिसके कारण किसी भी इतने बड़े दल का गठन नहीं किया जा सकता था।
  • इस समस्या से निपटने के लिये RBI ने संपूर्ण विंग के गठन और उसमें नए लोगों को नियुक्त करने पर विचार शुरू किया, जिसमें उद्योग के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे और टीमों का नेतृत्व करेंगे।
  • RBI के अनुसार, विंग की नई टीमों को नवीनतम तकनीकों में प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, ताकि वे एक नए ‘यस बैंक’ संकट का जन्म होने से रोक सकें।

‘यस बैंक’ संकट

  • वित्तीय संकट के पश्चात् RBI ने 5 मार्च को ‘यस बैंक’ के बोर्ड को निरस्त कर दिया था। साथ ही बैंक के नकद निकासी की सीमा भी निर्धारित कर दी थी।
  • साथ ही RBI ने भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India-SBI) के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी प्रशांत कुमार को ‘यस बैंक’ का प्रशासक नियुक्त कर दिया।
  • इसके पश्चात् RBI ने ‘यस बैंक’ के लिये एक पुनर्निर्माण योजना का खुलासा किया, जिसमें SBI द्वारा ‘यस बैंक’ की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की संभावना व्यक्त की गई।
  • बाद में SBI ने ‘यस बैंक’ में 7,250 करोड़ रुपए तक के निवेश की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

आगे की राह

  • बैंकिंग धोखाधड़ी की निगरानी के लिये गठित की जा रही विंग अवश्य ही भविष्य में बैंकिंग धोखाधड़ी को रोकने में सहायक होगी।
  • आवश्यक है कि इस विंग के गठन और इसके क्रियान्वयन पर यथासंभव ध्यान दिया जाए, ताकि यह विंग भारत की बैंकिंग व्यवस्था के विकास में अपना योगदान दे सके।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस


बीसीजी वैक्सीन का COVID-19 पर प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, तपेदिक

मेन्स के लिये:

COVID-19 और BCG से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, जिन देशों में बेसिल कैलमेट गुएरिन (Bacille Calmette Guerin-BCG) वैक्सीन के टीकाकरण का कार्यक्रम सुचारू रूप से संचालित हुआ है, वहाँ  COVID-19 से कम मौतें हुई हैं।

बीसीजी वैक्सीन नीति और COVID​​-19 से मौतें: 

  • मध्यम और उच्च आय वाले देश:
    • मध्यम और उच्च आय वाले 55 देशों को इस विश्लेषण के लिये चुना गया। ऐसे देश जहाँ BCG वैक्सीन के टीकाकरण का कार्यक्रम सुचारू रूप से संचालित हुआ वहाँ COVID-19 के कारण मृत्यु दर 0.78% प्रति मिलियन है। 
    • मध्यम और उच्च आय वाले ऐसे 5 देश जहाँ BCG के टीकाकरण का कार्यक्रम नहीं हुआ वहाँ COVID-19 के कारण मृत्यु दर 16.39% प्रति मिलियन है।
  • निम्न और मध्यम आय वाले देश:
    • निम्न और मध्यम आय वाले देशों को विश्लेषण से बाहर रखा गया है। इन देशों में COVID-19 का परीक्षण दर कम होने के कारण यहाँ मृत्यु के कुल मामले स्पष्ट नहीं हैं।
  • भारत के संदर्भ में:
    • भारत को विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया है हालाँकि उक्त अध्ययन के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में BCG वैक्सीन के टीकाकरण का कार्यक्रम सुचारू रूप संचालित होने के कारण मृत्यु दर अत्यधिक कम है।

बीसीजी वैक्सीन

BCG तपेदिक और सांस से जुड़ी बीमारियों को राेकने वाला टीका है। BCG को जन्म के बाद से छह महीने के बीच लगाया जाता है। 

COVID-19 से प्रभावित देश और BCG:

  • वर्ष 1947 से ही जापान में BCG के टीकाकरण का कार्यक्रम संचालित हो रहा है। शुरुआती दौर में चीन के बाद COVID-19 से संक्रमित देशों में से एक होने के बावज़ूद जापान में सामाजिक दूरी (Social Distancing) को सख्त रूप में लागू नहीं किया गया था। 29 मार्च तक जापान में 1655 लोग संक्रमित तथा 65 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • वर्ष 1984 में ईरान में BCG के टीकाकरण का कार्यक्रम शुरू किया गया था। यहाँ पर 36 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति अत्यधिक असुरक्षित हैं। ईरान में अभी तक कम से कम 3000 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • स्पेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली और नीदरलैंड में BCG के  टीकाकरण के कार्यक्रम हेतु कोई नीति नहीं है। इन देशों में COVID-19 से लोगों की मृत्यु अत्यधिक संख्या में हुई है। 
    • इनमें से कई देशों में BCG के टीकाकरण कार्यक्रम का संचालन नहीं होता है क्योंकि वयस्कों में TB के प्रति  BCG हमेशा असरदार साबित नही होने के साथ ही माइकोबैक्टीरियम की अन्य प्रजातियों से संक्रमण बढ़ने का खतरा होता है। 
  • ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका स्वास्थ्य कर्मियों पर BCG का टीकाकरण करने जा रहे हैं। इस टीकाकरण से यह अनुमान लगाने की कोशिश की जा रही है कि BCG से COVID-19 पर कैसा प्रभाव पड़ता है। 

तपेदिक (Tuberculosis-TB):

  • माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) नामक बैक्टीरिया के कारण तपेदिक होता है।
  • हस्तांतरण:
    • TB एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हवा के माध्यम से फैलता है।
  • विश्व क्षय रोग दिवस हर साल 24 मार्च को तपेदिक के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने तथा वैश्विक तपेदिक महामारी को समाप्त करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 06 अप्रैल, 2020

हैक द क्राइसिस- इंडिया

हाल ही में केंद्र सरकार ने “हैक द क्राइसिस- इंडिया” (Hack the Crisis – India) नामक ऑनलाइन हैकाथॉन लॉन्च की है। इस हैकाथॉन का उद्देश्य कोरोनावायरस (COVID-19) के लिये एक व्यावहारिक समाधान खोजना और COVID-19 के खिलाफ लड़ाई को और मज़बूत बनाना है। इसका आयोजन ‘हैक ए कॉज- इंडिया’ और ‘फिक्की लेडीज़ ऑर्गेनाइजेशन पुणे’ द्वारा किया जा रहा है। इसके अलावा इसे  इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) का समर्थन भी प्राप्त है। इस हैकाथॉन के माध्यम से कुछ शीर्ष भागीदार टीमों से मिले विचारों को लागू करके कोरोना संकट से निपटने का यथासंभव प्रयास किया जाएगा। ध्यातव्य है कि यह पहल एस्टोनिया (यूरोप का एक देश) में आयोजित हो रही “हैक द क्राइसिस” नामक पहल का हिस्सा है। इस पहल के तहत वैश्विक कार्यक्रम का आयोजन 9 अप्रैल, 2020 से अप्रैल 11, 2020 के बीच किया जाएगा। वर्तमान में इस पहल के प्रतिभागियों की संख्या 100,000 से अधिक हो गई है।

‘करुना’ पहल

IAS, IPS और IRS सहित भारत की विभिन्न सिविल सेवाओं के अधिकारियों ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के विरुद्ध सरकारी प्रयासों को अपना समर्थन देने के लिये ‘करुना’ (CARUNA) नाम से एक विशेष पहल का शुभारंभ किया है। इस पहल का शुभारंभ भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) समेत केंद्रीय सिविल सेवा के अधिकारी संघ द्वारा किया गया है। ‘करुना’ एक प्रकार का विशेष सहयोगी मंच है जिसके तहत कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के लिये सिविल सेवक, उद्योगपति, गैर-सरकारी संगठनों के पेशेवर और IT पेशेवर एक साथ मिलकर काम करेंगे। इस पहल के माध्यम से COVID-19 से निपटने के लिये सरकार के 11 सशक्त समूहों के प्रयासों को सहायता देने के लिये ज़िला स्तर तक फैले अधिकारियों और विशेषज्ञों के नेटवर्क का प्रयोग किया जाएगा। इस मंच का उपयोग स्वास्थ्य उपकरणों और निर्माताओं के डाटाबेस को एकत्रित करने के लिये किया जाएगा और यह मंच दूरस्थ क्षेत्रों में आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति के वितरण की सुविधा भी प्रदान करेगा।

वेंटिलेटर ‘जीवन’

भारतीय रेलवे ने देश में कोरोनावायरस (COVID-19) के बढ़ते प्रकोप के बीच ‘जीवन’ नाम से काफी सस्ता वेंटिलेटर तैयार किया है। ‘जीवन’ वेंटिलेटर को कपूरथला रेलवे कोच फैक्ट्री द्वारा विकसित किया है। इस वेंटिलेटर का अभी प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि ICMR से इसे मंज़ूरी मिलने की प्रतीक्षा की जा रही है। अभी देश में उपलब्ध वेंटिलेटर की अधिकतम संख्या तकरीबन 57000 है, किंतु यदि कोरोनावायरस संक्रमण तेज़ी से फैलता रहा तो स्थिति काफी खराब हो सकती है और हमें देश में 15 मई तक 1.10 लाख से 2.20 लाख वेंटिलेटर तक की ज़रूरत पड़ सकती है। ‘जीवन’ वेंटिलेटर की कीमत बिना कंप्रेसर के लगभग 10000 रुपए होगी। इसे बनाने वाली रेलवे कोच फैक्ट्री (RCF) के अनुसार, यदि इसे ICMR की मंज़ूरी मिल जाती है तो रेलवे के पास प्रतिदिन 100 वेंटिलेटर बनाने की क्षमता है। ध्यातव्य है कि देश में कोरोनावायरस के तेज़ी से हो रहे प्रसार के कारण वेंटिलेटर की भारी कमी महसूस की जा रही है।

बास्केटबॉल हॉल ऑफ फेम

प्रसिद्ध अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी कोबी ब्रायंट और पूर्व अंतर्राष्ट्रीय बास्केटबॉल महासंघ (FIB) के महासचिव पैट्रिक बाउमन दोनों को मरणोपरांत बास्केटबॉल नाइस्मिथ मेमोरियल हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया है। ध्यातव्य है कि कोबी ब्रायंट का इसी वर्ष जनवरी माह में विमान दुर्घटना के कारण निधन हो गया था। कोबी ब्रायंट को बास्केटबॉल की दुनिया में सबसे महानतम खिलाड़ियों में गिना जाता था। कोबी ब्रायंट का जन्म 23 अगस्त, 1978 को अमेरिका के पेनसिलवेनिया (Pennsylvania) में हुआ था। वे अमेरिका की मशहूर बास्केटबॉल प्रतियोगिता NBA की टीम लॉस एंजेल्स लेकर्स से जुड़े हुए थे। वे वर्ष 1996 से लेकर 2016 तक लॉस एंजेल्स लेकर्स के साथ ही जुड़े रहे। उन्होंने अपने कॅरियर में कुल 33,643 पॉइंट्स स्कोर किये। वे वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक तथा वर्ष 2012 के लंदन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली अमेरिकी बास्केटबॉल टीम का हिस्सा भी थे। पैट्रिक बाउमन का 51 वर्ष की उम्र में ब्यूनस आयर्स में वर्ष 2018 युवा ओलंपिक खेलों में भाग लेने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।